उड़ीसा में बौद्ध धर्म के प्रमुख केंद्र

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उड़ीसा में ऐसी कई जगहें हैं, जिनके  बारे में अभी भी पूरी जानकारी दुनिया को नहीं है। प्रकृति के चमत्कारों के अलावा यहां बौद्ध धर्म से जुड़े अवशेष भी हैं। जिस तरह कपिलवस्तु, बोधगया व सारनाथ का संबंध भगवान बुद्ध के जीवन से है, वैसे ही उड़ीसा का संबंध उनके दर्शन से है। राज्य के लगभग हर हिस्से से बौद्ध दर्शन से जुड़ी  चीजें मिल चुकी हैं। 261 ई. पू. में हुए कलिंग युद्ध के बाद यहां बौद्ध धर्म की लोकप्रियता बढ़ी। इसके बाद ही सम्राट अशोक का हृदयपरिवर्तन हुआ और सुदूर पूर्व व दक्षिण एशिया में बौद्ध धर्म का विस्तार शुरू हुआ। उड़ीसा से बौद्ध धर्म के जुड़ाव के प्रमाण चीनी यात्री ह्वेन सांग की डायरी, अशोक के समय व उनके बाद के स्तूप, ताम्रपत्र, बौद्ध साहित्य और तमाम चित्रों से भी मिलते हैं।

चीनी यात्रियों फाह्यान व ह्वेन सांग के अनुसार यहां बौद्ध धर्म महायान और हीनयान आदि सभी रूपों में मौजूद था। बौद्ध धर्म की तांत्रिक शाखा के कई रूपों वज्रयान, कालचक्रयान व सहजयान आदि का उड़ीसा बड़ा केंद्र था। वैसे राज्य के सभी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण बौद्ध पुरावशेष मौजूद हैं, पर बौद्ध शिल्प व दस्तावेजों का बड़ा खजाना रत्नगिरि, ललितगिरि और उदयगिरि में है। इनसे जुड़ी लांगुडी की पहाडि़यों में भी हाल ही में कुछ चित्र मिले हैं, जो सम्राट अशोक के बताए गए हैं।

रत्नगिरि

भुवनेश्वर से करीब 100 किलोमीटर दूर स्थित यह पहाड़ी ब्राह्मणी, किम्हिरिया और बिरूपा नदियों से घिरी है। सन 1985 में हुई खुदाई के दौरान यहां से एक विशाल स्तूप, दो बड़े मठ, एक छोटा मठ, कई छोटे-छोटे स्तूप, शिलालेख, कांसे की प्रतिमाओं और टेराकोटा मुद्राओं के अलावा कई अवशेष पाए गए थे। यहां ईटों से बने विशाल स्तूप के अवशेषों से पता चलता है कि कभी श्री रत्नगिरि महाविहार आर्यभिक्षु संघ यहीं रहा है। यहां पाई गई 5वीं से 13वीं शताब्दी के बीच की मुद्राओं से भी जाहिर होता है कि उस समय यहां बौद्ध धर्म का गहरा प्रभाव था। यहां पत्थर के स्तूपों पर वज्रयान के प्रतीक भी खुदे हैं, जिनसे यहां तांत्रिक बौद्धों के प्रभाव की पुष्टि होती है। यहां मिली भगवान बुद्ध, बोधिसत्व, तारा व कई देवी-देवताओं की प्रतिमाओं से भी ऐसा जाहिर होता है। इससे जुड़े संग्रहालय में कई अभिलेख, कलाकृतियां व दस्तावेज सुरक्षित हैं।

ललितगिरि

रत्नगिरि के पास मौजूद ललितगिरि का महत्व 1985 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा की गई खुदाई के बाद पता चला। यहां बौद्ध धर्म के देवी-देवताओं की मूर्तियों समेत सैकड़ों कलाकृतियां मिली थीं। अपने अनुभवों तथा रीति-रिवाजों को संरक्षित रखने के लिए उड़ीसा के लोगों ने अनूठी विधि ईजाद की है। यह जानकारी एक स्तूप पर लगे शिलालेखों से मिली। खांडोली पत्थर पर बने इस शिलापत्र पर भगवान बुद्ध के जीवन से जुड़ी कथाएं चित्रित हैं। यहां पत्थरों व पक्की ईटों से बने तीन बौद्ध विहार पाए गए हैं। खुदाई के दौरान यहां मिली कलाकृतियों में सबसे महत्वपूर्ण वह है जिसमें भगवान बुद्ध का स्वर्ग से अवतरण दिखाया गया है।

उदयगिरि

रत्नगिरि से पांच और भुवनेश्वर से करीब 90 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद उदयगिरि कभी बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र था। यहां दो बौद्ध मठ तथा एक विशाल स्तूप के अवशेष मिल चुके हैं। स्तूप के चारों कोनों पर ध्यान मुद्रा में भगवान बुद्ध की प्रतिमाएं प्रतिष्ठित हैं। इसमें भूमिस्पर्श, धर्मचक्र, अभय, वरद तथा ध्यान मुद्रा में भगवान बुद्ध की छवियां भी बनी हैं। यहां मिली चीजों में मिट्टी की अभिलिखित मुद्राएं अति महत्वपूर्ण हैं।

लांगुडी पर्वत

रत्नगिरि, उदयगिरि और ललितगिरि से थोड़ी ही दूरी पर मौजूद है लांगुडी हिल। केलुआ नदी के तट पर स्थित इस स्थल की दूरी भुवनेश्वर से 85 किलोमीटर है। खुदाई के दौरान यहां से सम्राट अशोक के दो चित्र प्राप्त किए गए। ध्यान रहे कि यही एक जगह है जहां अशोक के चित्र मिले हैं। पत्थरों को काट कर बनाया गया स्तूप तथा यहां से प्राप्त कुछ अन्य महत्वपूर्ण कलाकृतियां भी इस बात की सबूत हैं कि किसी समय यह बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है।

अन्य स्थल

उड़ीसा में ऐसा एक भी जिला नहीं है, जहां बौद्ध धर्म से जुड़ी कुछ न कुछ चीजें न पाई गई हों। इन जगहों में प्राची घाटी में स्थित कुरुमा, चौरासी, जुइंती, खुर्दा जिले में बानपुर, पुरी जिले में विश्वनाथ हिल्स और अष्टरंग, कटक जिले में चौद्वार, कुरुकुल्ला व लटहारन, जाजपुर जिले में जाजपुर, सोलमपुर व खादीपाड़ा, केंद्रपारा में केंद्रपारा, बालासोर में बालासोर व अयोध्या, गंजम में जूनागढ़ व बुद्धाखोल, मयूरभंज जिले में खिछिंग, उडाला और बड़ीपदा, संभलपुर जिले में गनियापल्ली व मेल्चामुंडा, बौद्ध जिले में बाद्ध, सोनपुर जिले में सोनपुर तथा बोलांगीर जिले में बिनका आदि भी उड़ीसा में बौद्ध धर्म के प्रमुख केंद्र रहे हैं।

जरूरी जानकारियां

निकटतम हवाई अड्डा : भुवनेश्वर

निकटतम रेलवे स्टेशन : जाजपुर-क्योंझर  सड़क से भी यहां पहुंचा जा सकता है भुवनेश्र्वर से आप पूरे बौद्ध परिपथ की यात्रा ओटीडीसी बस या टैक्सी या फिर कार से कर सकते हैं।

ठहरना : ठहरने के लिए आप को पथराजपुर या भुवनेश्वर में कई अच्छे होटल मिल सकते हैं।

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