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चीन कई मायनों में भारतीय संस्कृति का सहोदर है। भारत और चीन को जोड़ने वाले सबसे बड़े सूत्र हैं-भगवान बुद्ध। बुद्ध के प्रति पूरे चीन में जिस तरह की आस्था है, वहां के नागरिकों के भारतीयों के प्रति व्यवहार में उसका प्रतिबिंब झलकता है। उनके शब्दों में- ‘आप भगवान के देश से आए हो।चीन की 7000 हजार वर्ष पुरानी सभ्यता विश्व की चार सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक है।
प्राचीनतम चीनी संस्कृति बहुत धनी है। 22वीं शताब्दी पूर्व हंग क्वीन ने मध्य एशिया और यूरोप को जोड़ने वाला सिल्क रूट तैयार किया। इससे न सिर्फ उन्होंने रेशम बल्कि चीन में बनी अन्य वस्तुएं भी बाहर भेजीं, जिससे चीन उद्योग का एक नया केंद्र बना। यहीं से चीनी संस्कृति का समूचे विश्व में विस्तार हुआ। पिछले कुछ दशकों से चीन में पर्यटन के क्षेत्र में भारी बढ़ोतरी हुई हैं। 1970 में चीन ने औपचारिक रूप से विदेशी पर्यटकों के लिए अपने दरवाजे खोले। फलस्वरूप अलग पर्यटन मंत्रालय का जन्म हुआ। यहां के ऐतिहासिक स्थलों में चीन की महान दीवार (ग्रेट वाल) सबसे प्रसिद्ध है। इसकी लंबाई लगभग 6350 किमी है, जो पूरे उत्तरी चीन में फैली हुई है। 7वीं शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर 16वीं शताब्दी तक लगभग 2000 वर्षो से अधिक समय में चीन के सभी राजवंशीय सम्राटों ने इस महान दीवार के अनेक टुकडे़ बनाए, यदि उन सभी को जोड़ दिया जाता, तो यह दीवार पचास हजार किलोमीटर लंबी होती।
चीन की यात्रा के दौरान, जो यात्री इस महान दीवार पर नहीं चढ़ा, उसकी यात्रा अधूरी मानी जाती है। अंतरिक्ष से पृथ्वी की तरफ देखने पर जल के अलावा सिर्फ चीन की विशाल दीवार ही साफ दिखाई देती है। चीन की यह लंबी दीवार जितनी बड़ी है, उतनी ही पुरानी इसकी कहानी भी है। इस दीवार का मूल नाम है ‘वान ली छांग छंग‘ जिसका शाब्दिक अर्थ है-चीन की महान दीवार । विश्व प्रसिद्ध इस चीनी दीवार का इतिहास ईसा से तकरीबन 300 वर्ष पूर्व शुरू होता है। उन दिनों उत्तरी क्षेत्र के खानाबदोश हूण कबीले चीन पर लगातार आक्रमण करते रहते थे।
तत्कालीन सम्राट चीन शिहाड़ती ने उनसे देश की रक्षा के लिए उत्तरी भू-भाग पर विशाल दीवार बनाने का आदेश दिया। छह हजार किलोमीटर लंबी दीवार का निर्माण अनवरत डेढ़ हजार वर्षोतक चलता रहा। दीवार में कई जगह पर बुर्ज बनाए गए हैं। इस दीवार की चौड़ाई इतनी है कि इस पर पांच घोड़े एक साथ दौड़ सकते हैं। दीवार पर अनेक स्थानों पर संस्कृत भाषा में मंत्र खुदे हैं। पीकिंग से 80 किमी दूर चु-चुंग क्वान नामक स्थान पर दीवार के प्रवेश द्वार पर लोकपालों की जो चार मूर्तियां बनाई गई हैं उनमें भारतीय मूर्तिकला की झलक मिलती है। समझा जाता है कि इस दीवार के निर्माण में कुछ भारतीय मूर्तिकारों को भी शामिल किया गया था। इस दीवार का निर्माण विदेशी हमले से बचाव के लिए किया गया था लेकिन इसका इस्तेमाल सदियों तक परिवहन, माल व लंबी यात्राओं में होता रहा। हालांकि यह दीवार पूरी तरह सुरक्षित और अजेय नहीं रही। अनेक आक्रमणकारियों ने इसको ध्वस्त किया। सन् 1211 ने चंगेज खां ने इस दीवार को तोड़कर चीन पर हमला किया। हाल ही में मंगोलिया ने इस दीवार को लगभग तीस किलोमीटर तक क्षतिग्रस्त किया। वैसे 1984 से एक गैर सरकारी फाउंडेशन इस दीवार के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग अर्जित कर रही है।
कन्फ्यूशियस टेंपल
चीन के महान दार्शनिक कन्फ्यूशियस ने चीनी सभ्यता को पूरे विश्व में पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई, उन्हीं के नाम पर बना ‘कन्फ्यूशियस टेंपल’ पर्यटकों में आकर्षण का केंद्र है। संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्को ने विश्व सांस्कृतिक धरोहर के रूप में इसे मान्यता दी है, इस मंदिर में कन्फ्यूशियस के वंशज रहते थे। आज पूरे विश्व में तेजी से फैल रही चिकित्सा पद्धति ‘एक्यूपंचर’ व ‘एक्यूप्रेशर’ चीन की ही देन है। यह सस्ती और उपयोगी चिकित्सा पद्धति है। दो सौ वर्ष पुरानी चीनी थियेटर आर्ट ‘पेकिंग ओपेरा’ चीनी कला व संस्कृति का एक बेहतरीन नमूना है। प्राचीन यूनानी सभ्यता, ईरानी सभ्यता और भारतीय सभ्यता के साथ ही चीन की सभ्यता भी प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक हैं, कई मामलों में यह अन्य सभी से समृद्ध है। प्राचीन ऐतिहासिक स्थल और सभ्यता के अवशेष देश के कोने-कोने में फैले हुए हैं, सरकारी आंकड़ों के अनुसार इसकी संख्या लगभग 5000 है। बीजिंग शहर के बीचोबीच स्थित पैलेस म्यूजियम ‘द फारबिडेन सिटी‘ के नाम से जाना जाता है। यह प्राचीन राजाओं के महलों और सभा-भवनों का समूह है। यह आयताकार दीवारों से घिरा है। इसमें 9995 कमरे हैं और यह विश्व का सबसे बड़ा शाही महल है। इस महल की खूबसूरती देखते ही बनती है। इस महल में मिंग और क्वींग राजतंत्रों के 24 सम्राटों ने 500 वर्षो तक निवास किया। महल के उत्तरी तियनानमेन गेट से कुछ दूरी पर वूमेन गेट स्थित है, जो फारबिडेन सिटी का मुख्य द्वार है। बीजिंग में ही चीन वास्तुशिल्प के अद्भुत नमूने के रूप में टेम्पल ऑफ हैवेन स्थित है, जो 500 वर्ष पुराना है। इस मंदिर की परिधि फॉरबिडेन सिटी की परिधि से दोगुनी है। ‘हॉल ऑफ प्रेयर’ इसका मुख्य भवन है। 1500 वर्ष पुराना ‘हैगिंग टेंपल‘ भी चीन के मुख्य आकर्षणों में से एक है। पूर्वी चीन में यांगजे नदी के किनारे बसा शंघाई चीन का सबसे प्राचीनतम नगर है। यूं तो चीन की राजधानी बीजिंग है, परंतु चीन के अर्थतंत्र का सर्वाधिक सशक्त आधार शंघाई ही है। शंघाई विश्व के सर्वाधिक व्यस्त बंदरगाहों में से एक है। आज यह दुनिया का सबसे बड़ा ‘कार्गो पोर्ट’ बन चुका है। शंघाई को ‘ऑरियंटल पेरिस‘ के नाम से भी जाना जाता है। यह खरीदारी के शौकीनों का स्वर्ग है। मॉर्डन फैशनेबल वस्तुओं की खरीदारी के लिए नॉनजिंग रोड और क्वाई रोड उपयुक्त है। जबकि सभी खरीदारी के लिए सिचुआन नॉर्थ रोड जाया जा सकता है। चीन यात्रा में ऑरियंट पर्ल टीवी टॉवर भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। इसे ‘फोटोग्राफिक ज्वेल’ भी कहा जाता है। पुडोंग पार्क में बना यह टॉवर यांगपू पुल से घिरा है। दूर से देखने पर ऐसा लगता है जैसे दो ड्रेगन मोतियों से अठखेलियां कर रहे हों। 468 मीटर ऊंचा यह टॉवर विश्व का तीसरा सबसे ऊंचा टॉवर है। रात की रोशनी में इसकी आभा देखते ही बनती है। तीन खंबों पर खड़े इस टॉवर में डबलडेकर ऐलिवेटर ‘लिफ्ट’ द्वारा सात मीटर प्रति सेकंड की गति से ऊपर जाया जाता है। 263.5 मीटर के ऑब्जर्वेटरी लेबल से पर्यटक शंघाई की सुंदरता का नजारा देख सकते हैं। टॉवर के भीतरी भाग में मनोरंजक खजाने भरे हैं। इसके पेडस्टल में शंघाई म्युनिसिपल इतिहास संग्रहालय बना है। निम्नतल पर भविष्य का सुन्दर अंतरिक्ष शहर व साइट सीइंग हॉल है, यहां दुनियाभर के प्रमुख स्थलों को एक ही स्थान पर देखा जा सकता है। टॉवर के बेस में साइंस सिटी बनाई गई है। भीतर 25 कमरों का एक
होटल भी है। टॉवर के ऊपरी भाग में पर्यटकों के लिए यादगार वस्तुओं की अनेक दुकानें हैं। इसी टॉवर से चीन के रेडियो कार्यक्रमों का भी प्रसारण किया जाता है। शंघाई के प्राचीनतम उद्यानों में से एक उद्यान यूयुआन गार्डन है। यह मिंग और किंग राजाओं के काल की वास्तुकला पर आधारित है। यह छह भागों में विभक्त है। प्रत्येक भाग का अपना अलग सौंदर्य व महत्व है। यह दो हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है। शंघाई में नानपु ब्रिज भी दर्शकों के आकर्षण का केंद्र है। यहां पर शाम ढलते ही स्थानीय नागरिकों व पर्यटकों का मेला लगता है। 1970 में पुरातत्व विभाग द्वारा खोजी गई बड़ी टेरा-कोटा आर्मी भी चीन के दर्शनीय स्थलों में से एक है। चीन का प्रथम सम्राट चाहता था कि उसके मरने के बाद भी उसके पास बड़ी सेना हो, इसलिए जब उसका प्राणांत हुआ, तो उसके निर्माण स्थल के पास हजारों की संख्या में जीवित व्यक्तियों के कद के पेटेंट टेरा-कोटा सैनिकों, घोड़ों, युद्ध में प्रयोग होने वाले हथियारों को वहीं दफना दिया गया। पुरातत्व विभाग की खोजबीन के बाद पूरी दुनिया का ध्यान इसकी ओर आकर्षित हुआ। यह जीयान शहर से कुछ दूरी पर स्थित है। भगवान बुद्ध का पूरे चीन में जबरदस्त प्रभाव है। भगवान बुद्ध की शिक्षाएं यहां के जनमानस में आज भी ऊर्जा व प्रेरणा का काम करती हैं। चूंकि भगवान बुद्ध भारत के थे अत: भारतीय संस्कृति व सभ्यता के प्रति भी यहां के नागरिकों में विशिष्ट आदर है। चीनी यात्री ह्वेन सांग ने अपनी भारत यात्रा के बाद लिखित संस्मरणों में अनेक स्थानों पर भारतीय मूल्यों का चीन में प्रभाव होने की बात कही है। सिहान प्रांत स्थित लेसहान में 71 मीटर ऊंची और 28 मीटर चौड़ी बौद्ध प्रतिमा सबके आकर्षण का केंद्र है। चीन आने वाले पर्यटक इस प्रतिमा को देखने अवश्य आते हैं। इस मंदिर का निर्माण 1000 वर्ष पहले तंग राजघराने के राजाओं ने कराया था। इस मंदिर का निर्माण 90 वर्षोमें पूरा हुआ था। भगवान बुद्ध की दुनिया में यह सबसे बड़ी पत्थर की मूर्ति है। जेड बुद्ध मंदिर भी चीन के प्रमुख बौद्ध मंदिरों में से एक है। यहां सफेद जेड (विशिष्ट शैली का बहुमूल्य पत्थर) से बनी बुद्ध प्रतिमाएं हैं। एक प्रतिमा बैठी आकृति में और दूसरी लेटी हुई आकृति में हैं। यहां कुछ चीनी दैविक राजाओं की मूर्तियां भी दर्शनीय है। (मीडिया फीचर्स ऑफ इंडिया)
कब जाएं
ज्यादातर पर्यटक चीन के पारंपरिक अवकाशकाल में यहां की यात्रा के लिए आते हैं, जो जनवरी से शुरू होकर फरवरी तक चलता है। जून माह में होने वाला ड्रेगनबोट फेस्टिवल भी यहां पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहता है। विभिन्न अवसरों पर परंपरागत चाइनीज व्यंजनों का लुत्फ उठाया जा सकता है। अपनी अचरज भरी जीवनशैली सांप, ड्रेगनों से परिपूरित परंपराएं और रंग-बिरंगे लिबासों में सजे-धजे चीनी नागरिक पूरी दुनिया के लोगों को अपने खास अंदाज में बुलाते प्रतीत होते हैं। आत्मरक्षा की युद्धकलाओं मसलन जूडो-कराटे, कुंगफू आदि के यहां साक्षात प्रदर्शन पर्यटकों को विस्मृत करते हैं। वैसे चीन इतनी विविधताओं भरा देश है कि यहां वर्ष में कभी भी आया-जाया जा सकता है।
कैसे जाएं
विभिन्न ट्रेवल व टूर कंपनियों द्वारा चीन के लिए यात्रा पैकेज बनाए जाते हैं। समूचे चीन के ग्यारह दिवसीय टूर का शुल्क लगभग एक लाख रुपये प्रति व्यक्ति होता है। इसमें रहना, खाना, घूमना शामिल है। जो यात्री सिर्फ शंघाई घूमना चाहते हैं उनके लिए हवाई यात्रा का शुल्क लगभग 30 से 40 हजार रुपये बैठता है। चीन ऐसा देश है जहां आश्चर्यो व रहस्यों की एक नई दुनिया आपसे चंद कदमों के फासले पर खड़ी हो आपका स्वागत करती है।