छुट्टियां यानी सैर-सपाटा

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मेरे खयाल से छुट्टियां बिताने का असली मजा ऐसे लोगों के बीच है, जिनके लिए वक्त  की रवानी आपसे ज्यादा और जीवंत हो- ऐसा कहते हैं जे.बी. प्रीस्टली। 19वीं सदी का यह अंग्रेज लेखक छुट्टियों की बात आते ही कैसे लोगों की बातें करने लगा? ऐसे लोग जिन्हें आप पहले से नहीं जानते, क्योंकि जिन्हें भी आप पहले से जानते हैं उनके लिए वक्त की रवानी आपको अपने से ज्यादा लगे, ऐसा कम ही होता है। क्योंकि जब तक आपके मन की आंखें किसी उद्देश्य पर टिकी हैं, तब तक आपको कोई और गतिशील दिखे, ऐसा कहां होता है? दूसरों की गति पर तो आपका ध्यान तब जाता है न, जब आप खुद ठहर गए हों! ऐसा तभी होता है जब आप अपने रोजमर्रा जीवन और चिर-परिचित परिवेश से कहीं दूर निकल जाएं।

भारत में अब यह प्रवृत्ति गति पकड़ रही है, पर पश्चिम में शताब्दियों से छुट्टियों का मतलब सिर्फऔर सिर्फघुमक्कड़ी है। वैसे भारत इसकेरस से वंचित रहा हो, ऐसा भी नहीं है। अगर ऐसा होता तो हमारे आदि महाकाव्य ‘रामायण’ की पूरी कथा-यात्रा विवरणों से भरी न होती। उपनिषद और ब्राह्मण ‘चरैवेति-चरैवेति..’ के उद्घोष से भरे न होते।

चरैवेति-चरैवेति

हमारे आदिग्रंथों का ऐसे भावों से भरे होना ही इस बात का प्रमाण है कि हमारी संस्कृति ‘निरंतर चलते रहने’ यानी सैर-सपाटे की पक्षधर रही है। हमारे लिए चलते रहने यानी निरंतर प्रवहमान होने का नाम ही जिंदगी है। हजारों-लाखों वर्षो से भारत की सभ्यता इस सच को जीती आई है। कमोबेश यह बात पश्चिम में भी रही है। फर्क बस यह है कि हमारे यहां इसके वास्तविक रस को धर्म से जोड़ दिया गया। हमारे ऋषि-मुनियों ने प्रकृति के कण-कण में मौजूद आध्यात्मिक मूल्य की पहचान की और घर व कारोबार के दायरे से बाहर निकलने के बाद उसी में रम जाने के लिए लोगों को प्रेरित किया। शायद इसका ही परिणाम है जो आज हमारे देश में हर चप्पे पर एक तीर्थ है और हर तीर्थ आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण।

इन तीर्थो की यात्राओं से पर्यटन और अपनी सांस्कृतिक धरोहरों से निकट परिचय का भाव तो जुड़ा ही है, रहस्य, रोमांच, साहस और संकटकालीन प्रबंधन का उद्देश्य  भी इनमें निहित है। यही कारण है कि भाषा, खानपान, पहनावे और पहुंचने के लिए साधनों की कठिनाई तथा पूरे भारत के कई छोटे-छोटे राज्यों-रियासतों में बंटे होने के बावजूद उत्तर के लोग दक्षिण व दक्षिण के लोग उत्तर केवल तीर्थयात्रा के लिए आते-जाते रहे हैं।

बद्री-केदार, गंगासागर, रामेश्वरम, अमरनाथ, मणिमहेश, कामाख्या, हिंगलाज, द्वारका या सोमनाथ जैसी जगहों पर तरह-तरह के खतरे झेलकर हर गांव से लोग जाते रहे हैं। कई तरह केमतभेदों, आपसी संघर्षो और विदेशी घातों के बावजूद पूरे भारत को एक बनाए रखने में इन तीर्थो और इनके प्रति भारतीय जनमानस के लगाव की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इसमें कोई दो राय नहीं कि अपने मूल रूप में यह है तो पर्यटन ही और किसी देश की सांस्कृतिक-भौगोलिक अस्मिता को अक्षुण्ण बनाए रखने में पर्यटन का इससे महत्वपूर्ण योगदान और क्या हो सकता है!

अध्यात्म और बेफिक्री

यह अलग बात है कि धीरे-धीरे तीर्थयात्रा की अवधारणा केवल पुण्यलाभ की भावना तक सीमित होकर रूढ़ हो गई, लेकिन वास्तविकता इससे बिलकुल अलग है। यह कौन नहीं जानता है कि पुण्य का सीधा संबंध अध्यात्म से है और अध्यात्म का मूल है ध्यान। इस तरह अगर वैज्ञानिक अर्थो में देखें तो पर्यटन को धर्म से जोड़ने का सीधा संदेश है कि जब तीर्थ के लिए यानी घूमने निकलें, तो सांसारिक चिंताओं को घर छोड़ कर जाएं। क्योंकि पूरी निश्चिंतता के बगैर न तो आप प्रकृति से एकात्म हो सकते हैं और न घूमने का पूरा आनंद ही ले सकते हैं। घूमने का असली मजा आप तभी ले सकते हैं, जब बस आप हों और आपकी सैर हो। जैसा कि स्कॉटिश कथाकार रॉबर्ट लुई स्टेवेंसन कहते हैं, जहां तक मेरी बात है, मैं कहीं पहुंचने के लिए नहीं घूमता। ये है कि चल पड़ता हूं। मैं घूमता हूं सिर्फ घूमने के लिए। मेरे लिए सबसे बड़ी बात है चल पड़ना..।

पश्चिम ने पर्यटन के साथ जुड़े आध्यात्मिकता के बजाय इसकी मौज-मस्ती वाली खूबी को सीधे पहचाना और उसे ही लगातार विकसित किया। कई तरह की बंदिशों से मुक्त उनका  समाजउन्हें इस बात की इजाजत भी देता था कि वे उन्मुक्त घुमक्कड़ी कर सकते थे और आज भी करते हैं। यह मानने में हमें संकोच नहीं होना चाहिए कि हमारे देश की सुरक्षामूलक जटिल सामाजिक-नैतिक संरचना ने पर्यटन को अध्यात्म से तो जोड़ा, पर उसे सांसारिक महत्व का यह रूप दे पाने में नाकाम रही। यही वजह है कि अपने देश के भीतर मौजूद परंपरागत पर्यटन स्थलों से जुड़े रोमांच, साहसिकता और अन्वेषण जैसे पक्षों को भुलाकर हमने उनसे जुड़े मूलभूत उद्देश्य को ही खो दिया। यह अलग बात है कि पश्चिम हमारी  तरह पर्यटन को कोई आध्यात्मिक रूप नहीं दे सका, लेकिन उन्होंने इसके साथ जुड़ी अपनी खोजी वृत्ति को जिंदा रखा और इसका पूरा सांसारिक लाभ हासिल किया।

पर्यटन और कारोबार

चौंकिए मत। पर्यटन से सांसारिक लाभ की बात कोई अजूबी नहीं है। दुनिया के सबसे बड़े व्यवसायों में से एक पर्यटन है। कई देशों की तो अर्थव्यवस्था का आधार ही यही है। वैसे यह जरूरी नहीं कि लाभ केवल आर्थिक हो। आखिर जानकारी, संबंध-संपर्क, स्वास्थ्य और मौज-मस्ती का लाभ भी तो लाभ ही है। यह अकारण नहीं है कि मध्यकालीन यूरोप के लोग अपने युवा बेटे-बेटियों को पढ़ाई के बाद कारोबार से जोड़ने के पहले उन्हें पूरे यूरोप की सैर पर भेजा करते थे।

अंग्रेजी, रूसी और फ्रेंच साहित्य ऐसे तमाम आख्यानों से भरा पड़ा है। इसके मूल में उनका इरादा होता था कई देशों में घूमकर अपने समय व समाज संबंधी नजरिये का विकास, ताकि युवाओं की समझ में परिपक्वता आए और आगे व्यावसायिक निर्णय लेने में भी सहयोगी साबित हो। दुनिया का बाद का इतिहास गवाह है कि कई मामलों में यूरोप अन्य महाद्वीपों से बहुत आगे निकला। इसमें पर्यटन की इस परंपरा की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। युवाओं को कारोबारी बनाने से पहले सैर पर भेजने की यह परंपरा यूरोप में आज भी काफी हद तक कायम है।

यह केवल व्यवसाय के लिए ही लाभकारी हो, ऐसा नहीं है। साहित्य, संगीत, कला, विज्ञान या कोई अन्य क्षेत्र ही क्यों न हो, आपकी दृष्टि का विकास एक जगह बैठकर नहीं हो सकता। समझ का परिष्कार देश-विदेश में घूमने से ही होता है। यही वजह है जो भारत के चारों कोनों पर शंकराचार्य ने चार धाम स्थापित किए और बुद्ध ने तो दूसरे देशों में भी धर्म के प्रचार के लिए अपने शिष्यों को भेजा। भारत ही नहीं, दुनिया भर के अधिकतर बड़े साहित्यकारों की प्रवृत्ति में घुमक्कड़ी रही है। जो जितना ज्यादा घूमा उतना ही उम्दा लिख सका।

सैर कर दुनिया की

सैर के इस रस को समझते हुए ही इस्माइल मेरठी ने कहा, सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहां जिंदगी गर कुछ रही तो नौजवानी फिर कहां और बाद में महापंडित बने राहुल सांकृत्यायन इससे ऐसे प्रभावित हुए कि घर-बार सब छोड़ कर दुनिया घूमने ही निकल पड़े। फिर घूमने पर लिखना शुरू किया तो पूरा ‘घुमक्कड़ शास्त्र’ ही लिख डाला। क्यों घूमें, कब घूमें, कैसे घूमें.. आदि-आदि ऐसे बहुतेरे सवालों के सटीक जवाब राहुल ने घूमते-घूमते ही दिए हैं। हालांकि तब से लेकर अब तक समय के साथ परिस्थितियां और परिवेश सभी बिलकुल बदल चुके हैं। पर्यटन की व्यवस्था प्रशिक्षित और कुशल हाथों में जा चुकी है। अब कहीं भी आने-जाने के लिए कोई खास मौसम नहीं रह गया है। कभी भी कहीं भी जाया जा सकता है। हर जगह ठहरने-खाने के लिए हर तरह की व्यवस्था है। आप खास तौर से पर्यटन केरोमांच पक्ष का मजा लेने के लिए ही निकलना चाहें तो अलग बात है, वरना कभी बहुत मुश्किल समझी जाने वाली जगहों के लिए भी अब आसानी से सवारियां उपलब्ध हो जाती हैं।

तो जाहिर है, कीमत कम या ज्यादा भले हो, पर सैर-सपाटा अब पहले की तरह मुश्किल बात नहीं रही। हमारी कुशलता इस बात में है कि समय केसाथ मिली सुविधाओं का पूरा लाभ उठाएं। कम से कम जो कीमत हम दे रहे हैं, उसका अधिकतम रिटर्न तो हासिल कर ही लें। जरा सोचिए, पर्यटन का असली हासिल क्या हो सकता है? न्यूनतम या अधिकतम, जो कुछ भी है, सैर-सपाटे का असली हासिल तो है पूर्वाग्रहों से मुक्ति। जैसा कि अमेरिकी व्यंग्यकार मार्क ट्वेन कहते हैं,  घूमना बहुत घातक है दुराग्रहों, कट्टरता और कूप मंडूकता के लिए।

जब निकलना हो सैर पर

इसलिए जब घूमने निकलना हो तो पूर्वाग्रहों से मुक्ति की तैयारी पहले कर लें। सबसे पहले तो यह जरूरत घुमक्कड़ी के संदर्भ में ही है। पर्यटन के कार्पोरेटीकरण के इस दौर में आम तौर पर होता यह है कि लोग अपने ढंग से अलग-अलग फ्लाइट और होटल बुकिंग करा कर घूमने के बजाय किसी एजेंसी का पैकेज ले लेते हैं। इन पैकेजों में घूमने के लिए शहर तो तय होते हैं, पर शहरों या उनके आसपास जगहें कौन-कौन सी दिखाई जाएंगी यह पहले से तय नहीं होता है। कई बार तय करके भी नहीं दिखाया जाता और कई बार ट्रैवल एजेंट किसी जगह की बहुत मशहूर चीजों को ही आपकी आइटेनरी में दर्ज कर देते हैं। इसलिए जब आप पैकेज फाइनल करने निकलें तो इन सब बातों का पूरा खयाल रखें।

किन शहरों में वे कौन-कौन सी दर्शनीय चीजें दिखाएंगे और वहां के लोकजीवन को देखने-समझने के लिए वह आपको कितना वक्त देंगे, यह सब पहले से तय कर लें। क्योंकि दूर देश में जो चीजें छूट जाएंगी, बाद में मालूम होने पर उन्हें न देख पाने की कसक उम्र भर बनी रहेगी और अगर आप उन्हें फिर देखना ही चाहें तो इसके लिए आपको दुबारा पूरा किराया-भाड़ा खर्च करना पड़ेगा। यह बात भी याद रखें कि सभी क्षेत्रों की तरह इस क्षेत्र में भी मोलभाव की पूरी गुंजाइश होती है। कम से कम धन में ज्यादा से ज्यादा फायदा पाने के लिए मोलभाव करने में संकोच बिलकुल न करें।

ऐसे करें तैयारी

देश या विदेश, जहां कहीं भी पर्यटन के लिए निकलना हो, कम खर्च में ज्यादा फायदा हासिल करने का अच्छा तरीका यह है कि तैयारियों की शुरुआत आप जानकारी जुटाने से करें। मसलन यह कि जहां कहीं भी आप जा रहे हैं, उसके आसपास और कौन-कौन सी जगहें हैं? क्या उन्हें इस यात्रा पैकेज में शामिल किया जा सकता है? जिन शहरों की यात्रा पर आप जा रहे हैं, वहां देखने के लिए कौन-कौन सी मशहूर जगहें हैं?

खास तौर से किसी भी बड़े शहर के भीतर की दर्शनीय जगहों को कई हिस्सों में बांटकर देखें। दुनिया के सभी बड़े शहरों में देखने के लिए आधुनिक दौर की कई चीजें होती हैं। इससे वहां के व्यापारिक और तकनीकी विकास का पता चलता है। घुमक्कड़ी का दूसरा पक्ष रिक्रिएशन है, जिसे मौज-मस्ती या रोमांच भी कह सकते हैं।

समुद्रतट और उनके आसपास की घुमक्कड़ी इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। सागरतट पर टहलना जहां मौज-मस्ती का माध्यम है, वहीं वॉटर राफ्टिंग, स्नोर्केलिंग या वॉटर स्कूटरिंग जैसी गतिविधियां रोमांच का। समुद्रतट पर बसे बड़े शहरों में ये दोनों चीजें एकसाथ मिलती हैं। अधिकतर ट्रैवल एजेंसियों द्वारा कराया जाने वाला पर्यटन बस यहीं तक सीमित होता है।

पर याद रखें, ऐसा कोई बड़ा शहर नहीं है जिसका समृद्ध अतीत न हो। यह भी कि प्राचीन काल में स्थापत्य की सर्वोत्तम कृतियां धार्मिक विश्वासों-संस्थाओं की देन हैं। आज भी कई शहरों में मौजूद धार्मिक स्थलों का स्थापत्य सौंदर्य देखते ही बनता है। संग्रहालय अब विज्ञान से लेकर, प्रकृति, इतिहास और कला तक सभी विषयों के कई शहरों में है। इसलिए जब भी घूमने निकलें तो उस स्थान विशेष की सभी ऐतिहासिक-सांस्कृतिक धरोहरों के बारे में पहले से पूरी जानकारी कर उन्हें अपनी सूची में शामिल करना न भूलें।

रहे ध्यान इतना

जब आप पर्यटन के लिए निकलते हैं तो घूमना जितना महत्वपूर्ण है, व्यक्तिगत सुरक्षा व सेहत उससे कम अहम नहीं है। यह सच है कि अब हर मौसम में हर जगह घूमा जा सकता है, पर मौसम के कुछ रंग या भौगोलिक हालात निजी तौर पर आपके लिए नुकसानदेह हो सकते हैं। इसलिए जब कहीं निकलना हो तो वहां की पारिस्थितिकी के बारे में जान लें। यह सारी जानकारी आपको इंटरनेट से मिल सकती है। इसके अनुरूप अपने चिकित्सक की सलाह और जरूरी दवाइयां लेना कभी न भूलें। अगर आप देश के भीतर जा रहे हों तो वहां अपने पूर्व परिचितों और बाहर जा रहे हों तो भारतीय उच्चायोग के बारे में पूरी जानकारी जरूर कर लें। मुश्किल समय में यही आपके काम आते हैं। यह सही है कि बाहर जाते वक्त सभी जरूरी सामान आपके पास होने चाहिए, पर यह भी खयाल रखें कि यात्रा के दौरान सामान जितना ज्यादा होगा, झंझटें भी उतनी ही ज्यादा होंगी। इसलिए जो सामान ले जाने हैं पहले उनकी सूची बनाएं। फिर उन पर विचार करें। जो चीजें बहुत जरूरी हों, वही ले जाएं। अगर इन बातों का खयाल रखें तो सैर-सपाटा  छुट्टियां बिताने और मौज-मस्ती का सबसे अच्छा जरिया साबित होगा। व्यक्तित्व विकास इसका बोनस तो है ही, भला उससे आपको वंचित कौन कर सकता है!

यूरोप जाते हैं शाहरुख

मुझे परिवार के साथ छुट्टियां मनाना बहुत पसंद है। कभी-कभार अगर किसी खूबसूरत लोकेशन पर मैं शूटिंग के मकसद से पहुंच जाता हूं और वहां के प्राकृतिक स्थल मुझे बहुत अच्छे लग जाते हैं तो मैं अपने परिवार को बहुत मिस करता हूं। साल में एक बार मैं अपने परिवार के साथ दूर देश की यात्रा पर जरूर जाता हूं। मैंने दुनिया का भ्रमण किया है। जहां तक मेरे पसंदीदा लोकेशन की बात है तो मुझे घूमने-फिरने के लिए यूरोपीय देश ज्यादा भाते हैं। गर्मियों की छुट्टियां मनाने अकसर मैं अपने परिवार के साथ यूरोपीय देशों की ट्रिप पर जाता हूं। कुदरत ने इन लोकेशनों पर कुछ खास मेहरबानी की है। प्रकृति की गोद में बैठकर मैं और आर्यन दूर कहीं खो जाते हैं। आर्यन को बड़े-बड़े शहरों, मॉल्स या मल्टीप्लेक्स थिएटर्स आदि के बजाय नदी, पहाड़, झरने, घाटियां, फूलों से लदी डालियां, कोयल की कू-कूआदि बहुत पसंद हैं। हम बाप-बेटे खूब मस्ती करते हैं। बाहर रहने का एक फायदा यह भी मिलता है कि मुझे गौरी के हाथों का बना खाना खाने को मिलता है। वह बहुत अच्छी कुक है और उसे होटल या रेस्टोरेंट आदि जगहों का बाहरी खाना पसंद नहीं है। समय कम हो तो बात अलग है। मुझे अंतरराष्ट्रीय फूड बहुत पसंद हैं। विशेषकर थाई फूड का मैं दीवाना हूं। परिवार और पर्यटन के बाद लजीज खाना मेरी कमजोरी है। गौरी को शॉपिंग करना अच्छा लगता है। देश के बाहर शॉपिंग करते हुए गौरी हम सभी के लिए अपनी पसंद के अनुरूप खरीदारी करती है। उसे गृह-सज्जा का भी बहुत शौक है। हमारे घर में जो भी यूनिक चीजें आप देखेंगे, वह गौरी की पसंद है। वैसे दिल की बात बताऊं तो मुझे मेरा देश सारे जहां से अच्छा लगता है। कश्मीर, पंचगनी, शिमला, देहरादून, दार्जिलिंग, हरिद्वार, जयपुर जैसे सैकड़ों लोकेशन हैं, जो हर ट्रिप में आपको नई ताजगी का एहसास कराते हैं। परंतु मेरी समस्या यह है कि  मैं इन जगहों पर अपनी इच्छा के अनुसार उन्मुक्त होकर घूम-फिर नहीं सकता। स्टारडम का भुगतान हमें इसी रूप में चुकाना पड़ता है।

प्रिटी को भाता है न्यूयॉर्क

मेरी फेवरेट जगह है न्यूयॉर्क।  मैं वहां जितनी बार भी जाऊं, मेरा मन नहीं भरेगा। वहां की पहली खासियत है वहां की फास्ट लाइफस्टाइल। ऐसा लगता है जैसे हर तरफ तेज चलने की प्रतियोगिता हो रही हो। वहां घूमने-फिरने और एंजॉय करने के बहुत सारे साधन हैं। न्यूयॉर्क का सेंट्रल पार्क मुझे बहुत पसंद है। प्रकृति द्वारा रचे इस नैसर्गिक जगह पर वक्त गुजारना हर किसी को सुखद लगेगा। मैं अकसर अपना लैपटॉप लेकर कहीं किसी कोने में बैठ जाती हूं। आपको कोई डिस्टर्ब नहीं करेगा। आप पूरे दिन यहां यूं ही बैठे-बैठे गुजार सकते हैं और आपको थकान का जरा भी एहसास नहीं होगा।

मुझे वहां की टाइम्स स्क्वेयर बिल्डिंग बहुत अच्छी लगती है। आप उसे देखेंगे तो घंटों निहारते रह जाएंगे। वहां पास ही स्थित ब्रुकलीन ब्रिज की खूबसूरती तो बस देखते बनती है। अगर आप शॉपिंग करने के मूडमें हैं तो वहां का सोहो सर्वश्रेष्ठ जगह है। यहां दुनिया भर के लगभग सभी बड़े डिजाइनर्स के बुटीक हैं। आधुनिकतम फैशनेबल परिधान जो आपको वहां मिलेगा, वह विश्व में कहीं नहीं मिलेगा। वहां देश-विदेश के भिन्न-भिन्न देशों के पसंदीदा रेस्टोरेंट हैं, जिनमें दुनिया भर के  पसंदीदा लजीज खाने आपको मिलेंगे। वहां मेरा पसंदीदा रेस्टोरेंट है लंच बॉक्स। लंच बॉक्स में हजारों किस्म के व्यंजन आपको मिलेंगे। इसके पास ही कैफे लालोस है, जहां चीज से बने केक  की सैकड़ों वरायटी मिलेगी। वहां का एक और अनुभव जो मैं कभी नहीं भूल सकूंगी। हम लोग फिल्म ‘कल हो ना हो’ की शूटिंग के  सिलसिले में वहां गए। एक दिन अचानक वहां पूरे शहर की बिजली व्यवस्था गड़बड़ा गई। पूरा शहर अंधेरे में गुम। सड़कों पर ट्रैफिक जाम। इसके बाद न्यूयॉर्क के स्थानीय निवासी अपने-अपने घरों से बाहर आ गए। उन्होंने अस्त-व्यस्त हो चुकी ट्रैफिक व्यवस्था को आधे घंटे में सुचारु कर दिया। थोड़ी देर बाद जब लाइट आई तो सब कुछ सामान्य था।

पेरिस की खूबसूरती पर फिदा बिपाशा

हमारे लिए पर्यटन उतना ही जरूरी है, जितनी फिल्में। क्योंकि देर तक तेज रोशनी में काम, एक से दूसरे स्टूडियो की भागदौड़ और डबिंग जैसी रुटीन इस कदर थका देती है कि हमें कुछ दिन के लिए अपनी दिनचर्या बदलनी जरूरी होती है। इसका सबसे अच्छा तरीका है पर्यटन। इसलिए मुझे जब भी फुर्सत मिलती है, मैं अपने परिवार के साथ कहीं दूर निकल जाती हूं। मेरी नजर में पेरिस दुनिया की सबसे खूबसूरत जगह है। एक से बढ़कर एक नयनाभिराम लोकेशंस, दिल में तरावट लाने वाला मौसम, लजीज खाना, फैशन और कल्चर हमें वहां मिलते हैं।

1998 में मैं पहली बार पेरिस गई थी, तभी से वह शहर मेरे मन में बस गया है। उस समय मैं चार महीने तक वहां थी। उन चार महीनों के एक-एकदिन मुझे आज भी याद हैं। मैंने काफी करीब से इस शहर को देखा है। पेरिस में एक और बहुत खूबसूरत जगह है पिगाले। यह जगह खूबसूरत लोकेशनों के लिए बहुत मशहूर है। यहां के नाइट क्लब बहुत लोकप्रिय हैं। यहां जॉन के साथ आना मुझे भाता है। मेरी पसंद कुछ अलग तरह की है, इस बात का अंदाजा आप इस तरह भी लगा सकते हैं कि  एफिल टॉवर, जिसे देखने के लिए सारी दुनिया के पर्यटक लालायित रहते हैं, मुझे खास पसंद नहीं है। इसके अलावा मुझे पेरिस के  चप्पे-चप्पे से प्यार है।

पहाड़ों में रमता है ऋतिक का मन

मुझे भारत के हिल स्टेशनों से बहुत प्यार है। खासकर शिमला, नैनीताल, ऊटी, पंचगनी आदि जगहें बहुत पसंद हैं, मगर बात अगर सर्वश्रेष्ठ की हो तो मुझे न्यूजीलैंड स्थित क्वींस टाउन से बहुत ज्यादा लगाव है। मेरी सोच तो यही है कि क्वींस टाउन जैसी खूबसूरत जगह दुनिया में कहीं और नहीं है। यहां आप किसी भी जगह पर खड़े हो जाएं आपको बर्फ से आच्छादित खूबसूरत ऊंची-ऊंची पहाडि़यां, नीचे कलकल करती बहती नदी और दूर-दूर तक फैली हरी मखमली घास दीवाना बना देती है। कुदरत ने इस खूबसूरत और अनमोल नजारे को शायद बहुत फुर्सत में गढ़ा है। हम लोग यहां फिल्म ‘कहो ना प्यार है’ और ‘मैं प्रेम की दीवानी हूं’ की शूटिंग कर चुके हैं। कुछ साल पहले न्यूजीलैंड सरकार के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने मेरे पापा को बुलाकर विशेष रूप से सम्मानित किया था। वहां की मीडिया के लोगों ने बताया कि  ‘कहो ना प्यार है’ की रिलीज के बाद इस लोकेशन को देखने के लिए सारा विश्व उमड़ पड़ा है, जिसकी वजह से न्यूजीलैंड सरकार के पर्यटन मंत्रालय को यहां आने वाले पर्यटकों के लिए पंद्रह प्रतिशत ट्रैफिक टैक्स बढ़ाना पड़ा। फिर भी पर्यटकों के आने का सिलसिला हर साल बढ़ रहा है। न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री का मानना था कि  हमने प्रकृति की इस अनजानी खूबसूरती को दुनिया भर के सामने लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। विदेशों में खरीदारी करना मुझे खास पसंद नहीं, पर मौका मिले तो प्रकृति के इस नजारे को मैं पूरे दिन निहारता रहूं।

मिनिषा फिर जाएंगी गजनेर

बचपन में जब भी गर्मी की छुट्टियां आती थीं तो हम अकसर बाहर घूमने जाते थे। तब पूरा परिवार साथ होता था। अब हम सब इतने व्यस्त हो गए हैं कि पर्यटन के मौके मिल नहीं पाते हैं। अकसर आउटडोर शूटिंग के सिलसिले में ही मुझे बाहर जाने का मौका मिल पाता है। हमारी दौड़ती-भागती जिंदगी में पर्यटन बेहद जरूरी है। इसी बहाने रुटीन लाइफ में कुछ एक्साइटमेंट हो जाती है।

‘अनामिका’ की शूटिंग के दौरान ही मैं राजस्थान में गजनेर गई। वहां जाने के बाद मुझे लगा कि जब भारत में ही ऐसी खूबसूरत जगहें हैं तो विदेश जाने की क्या जरूरत है? गजनेर की खूबसूरती ने मुझे अपना दीवाना बना दिया। गजनेर का सब कुछ इतना अच्छा है कि वहां से आने का मन ही नहीं करता। वहां होटल का पारंपरिक खाना भी इतना स्वादिष्ट था कि आज भी सोच कर मुंह में पानी आ जाता है। बीकानेर के करीबी इस शहर का अपना अलग आकर्षण है। गजनेर में प्राकृतिक संुदरता के साथ राजसी ठाठ-बाट का अनूठा मिश्रण देखने को मिलता है। गजनेर पैलेस की भव्यता ऐसा महसूस कराती है, जैसे हम राजा-महाराजा के जमाने में आ गए हों। यहां वाइल्ड लाइफ सैंक्च्यूरी भी काफी प्रसिद्ध है। गजनेर ऐसी जगह है जो पूरे परिवार के लिए एकआइडियल हॉलीडे डेस्टिनेशन है। मुझे तो लगता है कि हर किसी को एक बार गजनेर जरूर आना चाहिए। मैंने अपनी अगली छुट्टियों के लिए भी गजनेर को ही चुना है। आगे वहां मैं अपने परिवार के साथ जाऊंगी।

आरती को पसंद है गोल्ड कोस्ट

मैं जब भी उदास होती हूं या रुटीन लाइफ से बोर हो जाती हूं तो अपने लिए किसी ऐसे हॉलीडे डेस्टिनेशन की तलाश में लग जाती हूं, जहां मुझे सुकून मिल सके। इसी बहाने परिवार के साथ कुछ अच्छे पल बिताने का मौका भी मिल जाता है। जब मैं मुंबई में होती हूं तो परिवार के लिए समय ही नहीं मिल पाता। इसलिए जब भी फुर्सत मिलती है बैग्स पैक करती हूं और परिवार के साथ निकल जाती हूं अपने फेवरेट हॉलीडे डेस्टिनेशंस में कुछ यादगार पल बिताने। वैसे ऑस्ट्रेलिया का गोल्ड कोस्ट मेरा फेवरेट हॉलीडे डेस्टिनेशन है।

जब भी मैं छुट्टियों में होती हूं, ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट जाना पसंद करती हूं। मैं ये विश्वास के साथ कह सकती हूं कि ऑस्ट्रेलिया का गोल्ड कोस्ट ऐसी जगह है, जहां सभी को एक बार जरूर जाना चाहिए। अगर आप हलकी धूप, खुला आसमान और ताजा हवा का मजा लेना चाहते हैं, तो गोल्ड कोस्ट बेहतरीन जगह है। गोल्ड कोस्ट में पहाड़ भी हैं तो दूर तक फैले बीचेज भी। वहां के रेन फॉरेस्ट्स की अपनी ही सुंदरता है। सभी आधुनिक सुविधाएं भी वहां उपलब्ध है। मैं जब भी गोल्ड कोस्ट जाती हूं कोशिश करती हूं अपने परिवार के साथ जाऊं, क्योंकि छुट्टियों में जब आपके साथ परिवार हो तो मजा दुगुना हो जाता है। यहां आने वाले हर टूरिस्ट के लिए उसकी रुचि के अनुसार अलग-अलग एक्टिविटीज होती हैं। बच्चों के लिए थीम पा‌र्क्स हैं तो युवाओं के लिए नाइट लाइफभी है। मैंने ये नोटिस किया है कि गोल्ड कोस्ट में सभी के बजट और रुचि का भी खयाल रखा जाता है। इसलिए ऐसा नहीं है किवहां केवल बहुत अमीर लोग ही जा सकते हैं। आपकी और हमारी तरह के साधारण लोगों के लिए भी गोल्ड कोस्ट में बिताई छुट्टियां यादगार हो सकती हैं।

रानी को पसंद है ग्रीस

मुझे बचपन से पर्यटन प्रिय रहा है। हर देश की अपनी खासियत, सुंदरता और उसके प्रति अलग चाहत होती है। तमाम देशों में मुझे ग्रीस सबसे ज्यादा पसंद है। पहली बार फिल्म ‘चलते-चलते’ की शूटिंग के लिए मैं वहां गई। प्राकृतिक  सौंदर्य का तो प्रचुर भंडार वहां है ही, जिस चीज ने मुझे ज्यादा आकर्षित किया वह तीन समुद्रों ऑयोनियन, मेडिटेरिनियन व एजियान का अद्भुत संगम था। तीन अलग-अलग रंगों वाले इस समुद्री संगम से नजरें हटाने की इच्छा ही नहीं होती। इकोनोस द्वीप भी बहुत प्यारा है। यहां नीले आकाश व सफेद बादलों की पृष्ठभूमि पर एक  जैसी डिजाइनों वाली बिल्डिंग्स को दूर से देखना बहुत सुखद लगता है। कंक्रीट व प्रकृति का ऐसा सुंदर तालमेल कहीं और नहीं दिखा। यहां का कल्चर तो शानदार है ही। यहां बहुत स्वादिष्ट मछलियां भी पाई जाती हैं। पर्यटन के बाद अगर मेरी कोई कमजोरी है तो मछली के तरह-तरह के व्यंजन, जो यहां खूब मिलते हैं।

ध्यान दें इन बातों पर

वीजा की औपचारिकता: अगर आप विदेश यात्रा पर निकल रहे हैं तो जब यह निश्चित हो जाए कि आपको कहां-कहां जाना है, तुरंत वीजा के लिए कार्यवाही शुरू कर दें। मुख्य गंतव्य के बाद उसके आसपास के विकसित देशों के वीजा के लिए पहले आवेदन क्यों करें। क्योंकि कुछ देश इस प्रक्रिया में ज्यादा समय लगाते हैं, साथ ही उनकी कुछ शर्ते भी होती हैं। समय से पहले आवेदन करें तो यह काम आसान हो जाता है।

टीका लें: कुछ देशों की जलवायु के अनुरूप वहां खास किस्म की बीमारियों की आशंका बनी रहती है। बेहतर होगा कि उनके लिए पहले से ही टीकाकरण करवा कर चलें। मसलन पूरे पश्चिमी यूरोप में कहीं आने वाले पर्यटकों को हेपेटाइटिस ए और बी, ब्राजील आने वाले विदेशियों को येलो फीवर और मलेशिया जाने वालों को डेंगू फीवर  का टीका लेकर आने की सलाह दी जाती है।

बच कर रहें: ध्यान रखें, आतंकवाद किसी एक देश या क्षेत्र की समस्या नहीं रह गया है। अब यह विश्वव्यापी है। इसके अलावा कई देशों में चोरी, झपटमारी व जेबकतरी जैसे अपराध खूब बढ़ रहे हैं। इंडोनेशिया, ब्राजील, मलेशिया, श्रीलंका जैसे देशों में तो यह सब होता ही है, इटली और नीदरलैंड्स जैसे विकसित देश भी माफियाओं और उचक्कों के प्रभाव से अछूते नहीं हैं। इसलिए कहीं भी हों, इनसे हमेशा सतर्क रहें। जो भी देखना हो दिन में घूम लें, अनजान जगह पर रात में बाहर निकलने से बचें।

अपनों से जुड़े रहें: आप जहां कहीं भी हों, वहां आपकी स्थिति और कुशलता की सूचना आपके परिजनों और शुभचिंतकों को निरंतर होनी चाहिए। इसके लिए बेहतर होगा कि आप उनसे लगातार जुड़े रहें। संचार साधनों के इस युग में यह मुश्किल भी नहीं है। मोबाइल पर आईएसडी रोमिंग की जरूरत नहीं है। अधिकतर देशों में आपको शॉर्ट टर्म प्रीपेड सिम पासपोर्ट की जीरॉक्स कॉपी देकर मिल जाते हैं। इसका प्रयोग करें।

मर्यादाओं का सम्मान: जिस किसी भी देश में जाएं उसके कानून और शिष्टाचार का सम्मान करें। कुछ विश्वप्रसिद्ध शहरों के कुछ क्षेत्र प्रतिषिद्ध हैं। वहां बाहरी लोगों को जाने से मना किया जाता है। उनके बारे में किताबी जानकारी रखें। मौका मुआयना करने की कोशिश न करें। यह नुकसानदेह हो सकता है।

भय जंतुओं का: अगर आप कुछ खास जंतुओं से डरते हैं तो विदेश में ठहरने या घूमने के लिए स्थल चुनते हुए सावधानी बरतें। मसलन उष्णकटिबंधीय देशों में बड़े आकार की छिपकलियां खूब देखी जाती हैं। इसी तरह हिंदू संस्कृति से प्रभावित देशों में मंदिरों के आसपास बंदरों का होना आम बात है। मलेशिया के पेनांग शहर में चीनी समुदाय के एकमंदिर में तो सर्पों की बहुतायत है। अगर आप इन जंतुओं से डरते हैं तो उन्हें बाहर से ही देख कर आ जाएं। उन्हें नुकसान पहुंचाने की कोशिश न करें।

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