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चलों चलें अंतरिक्ष की सैर को
यकीन नहीं होता कि विज्ञान के इस दौर में कल्पनाएं कितनी जल्दी साकार होने लगती हैं। किताबों में अंतरिक्ष की सैर का मतलब अंतरिक्ष के बारे में जान लेना होता था। कहा जाता था कि एक समय लोग अंतरिक्ष में घूमने जाने लगेंगे, चांद पर घर बना लेंगे, वगैरह-वगैरह। देखते-देखते कई चीजें हकीकत का रूप लेने लगी हैं। वह समय आ गया है जब रोमांचक पर्यटन में पर्वतारोहण, स्काईडाइविंग व राफ्टिंग के बाद अंतरिक्ष यात्रा का नाम जुड़ रहा है।
और भी रोमांचित करने वाली बात यह है कि अब यह रास्ता आम भारतीयों के लिए भी खुल गया है कि वे स्पेससूट पहनकर भारहीनता की स्थिति का अनुभव लें और ध्वनि से भी तीन गुना तेज चलने वाले यान में सफर करें। वर्जिन एटलांटिक विमान कंपनी चलाने वाले ब्रिटिश उद्योगपति रिचर्ड ब्रैंसन ने वर्जिन गैलेक्टिक नाम से कंपनी बनाई है जो व्यावसायिक अंतरिक्ष उड़ानें करेगी। इस कंपनी ने भारतीयों की बुकिंग के लिए डीलक्स ट्रैवल और जी.डी. गोयनका वर्ल्ड ट्रैवल के साथ मिलकर दिल्ली में आफिस खोला है।
चार भारतीयों समेत तीन सौ लोग पहले ही इस सफर के लिए टिकट बुक करा चुके हैं। इस उड़ान का परीक्षण अगले साल जनवरी में शुरू हो जाएगा। पूर्ण व्यावसायिक उड़ान शुरू करने में डेढ़ साल लग जाएगा।
पहले साल तो हफ्ते में एक उड़ान होगी जिसमें एक बार में छह पर्यटक जा सकेंगे। दूसरे साल से एक दिन में दो उड़ानें करने की कंपनी की योजना है। यात्रियों को पहले तीन दिन प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। उड़ान में यान की खिड़की से धरती के नजारे के अलावा किसी भी दिशा में हजार मील तक देखा जा सकेगा। पूरी उड़ान दो घंटे की होगी और खर्च होगा दो लाख डॉलर यानी लगभग 80 लाख रुपये। यह देखते हुए कि अब भारत में करोड़ रुपये से ज्यादा की कारें और मकान आम हो गए हैं, यह राशि कोई ज्यादा नहीं लगती। बहुत मुमकिन है कि अंतरिक्ष की सैर की कतार में भारतीयों की संख्या में तेजी से इजाफा हो।
कीजिए बोर्नियो में सफारी
मलेशिया जबरदस्त अंतरविरोधों वाली जगह है। यहां आने वाले सैलानियों को अलग-अलग किस्म के अनुभव मिलते हैं। चाहे वह शॉपिंग हो या मनोरंजन हो या फिर रोमांचक गतिविधियां। एक ही जगह में एशिया का हर मजा मिल जाता है। बोर्नियो के जंगलों के बारे में कहा जाता है कि यहां वन्य प्रजातियों की ऐसी किस्में देखने को मिल जाती हैं जो शायद दुनिया में और कहीं सुनने को भी नहीं मिलतीं। दुनिया के इसी सबसे खूबसूरत और रोमांचक जंगलों की सैर करने का मन हो तो बोर्नियो सफारी में शामिल होने पहुंच जाइए।
शाही महल ने बढ़ाई रौनक
तुरिन ने 2006 के शीतकालीन ओलंपिक खेलों की मेजबानी की थी। वह एक पर्यटन स्थल के रूप में खुद को स्थापित करने की योजना का भी एक हिस्सा था। हाल ही में यह योजना अपने चरम पर पहुंची जब एक शानदार शाही महल वेनेरिया रीयल को लोगों के लिए खोल दिया गया। अक्सर इस महल की तुलना वर्सेली के महल से की जाती रही है। इस महल में चल रहे काम को यूरोप की सबसे बड़ी सांस्कृतिक पुनर्निर्माण परियोजना की संज्ञा दी गई थी। तुरिन उसी सेवॉय वंश का गढ़ था जिसने 1946 तक इटली पर शासन किया था। 1861 में तुरिन देश की पहली राजधानी बनी थी। लेकिन 1871 में रोम के राजधानी बनने के बाद से तुरिन के लिए गुमनामी के दिन आ गए। फ्लोरेंस व वेनिस जैसे सांस्कृतिक रूप से समृद्ध शहरों को अहमियत मिलने लगी। तुरिन ही कार बनाने वाली कंपनी फिएट और फुटबाल क्लब जुवेंटस का घर है। पर्यटकों की नजर में चढ़ने के लिए तुरिन में किए गए प्रयासों में उसके सांस्कृतिक स्थलों को पुनर्जीवित किया जाना, शहर में पहले सबवे का निर्माण किया जाना और पैदल चलने वालों के लिए खास इलाके बनाए जाना शामिल था। (भारत ही ऐसा देश होगा जहां पैदल चलने वालों की कोई अहमियत नहीं और उनके लिए खास इलाके? भूल जाइए।) शाही महल दूसरे विश्व युद्ध के बाद जर्जर अवस्था में पहुंच चुका था। लुटेरों ने भी इसे जमकर चपत लगाई। साठ के दशक में तो एक बार इसे गिराकर वहां फैक्टरी कर्मचारियों के लिए मकान बनाने तक की बात होने लगी थी। अब वेनेरिया रीयल यूनेस्को की विश्व धरोहरों की सूची में शामिल है।
ताकि सफर हो जाए और सुहाना
भारत में पर्यटन स्थल तो बहुत सारे हैं लेकिन उन तक पहुँचने के रास्ते और रास्तों की सुहूलियतें काफी तकलीफदेह हैं। अब पर्यटन विभाग ने इन मुश्किलों को दूर करने के लिए कमर कस ली है। एक ऐसी योजना बनाई गई है जिसमें रास्तों में खाने-पीने के स्थान, शौचालय, रेस्ट रूम, टेलीफोन बूथ और आपात चिकित्सा सुविधाएं मुहैया कराने का प्रावधान है। हालांकि ये सुविधाएं मौजूद तो हैं लेकिन भारत में पर्यटकों की बढ़ती संख्या को देखते हुए अपर्याप्त हैं। लिहाजा इस दिशा में कोशिशें शुरू कर दी गई हैं। पहले राजमार्गो और सुपर राजमार्गो को हाथ में लिया जाएगा। साथ ही उन रास्तों को भी दुरुस्त किया जाएगा जो प्रमुख पर्यटक स्थलों की तरफ जाते हैं। इस काम में राज्य सरकारों, तेल कंपनियों और राजमार्ग प्राधिकरणों की मदद ली जाएगी। केरल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक आदि राज्यों ने पहले ही इसमें रुचि दिखा दी है। ज्यादातर काम निजी-सार्वजनिक भागीदारी के तहत होगा, इसलिए परियोजना में उद्यमियों को भी शामिल होने का न्योता दिया गया है। इस योजना को 2010 तक अमल में ले आने का लक्ष्य रखा गया है क्योंकि वह राष्ट्रमंडल खेलों का साल है। भारत में उस साल तक एक करोड़ विदेशी पर्यटकों की मेजबानी करने का लक्ष्य रखा गया है। 2006-07 में यह संख्या 45 लाख के लगभग थी। भारत आने वाले विदेशी सैलनियों में अमेरिका व ब्रिटेन से आने वाले सबसे ऊपर हैं। दक्षिण एशियाई पर्यटक अभी उतनी संख्या में नहीं आ रहे हैं लेकिन अब पर्यटन विभाग ने खास तौर पर चीन व जापान से सैलानियों को आकर्षित करने के लिए खास योजना बनाई है। बौद्ध सर्किट बनाया जाना इसी योजना की एक कड़ी है।