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उड़ीसा में कहावत है, ‘बारामासे तेरा पर्व’ यानी बारह महीनों मे तेरह पर्व। यह कहावत यहां के सांस्कृतिक परिवेश को व्यक्त करती है। पर्वो के अलावा यहां कुछ अन्य उत्सवों का आयोजन भी होता है। राज्य की सांस्कृतिक विरासत से लोगों को परिचित कराने के इरादे से खास तौर से तैयार किए गए ये उत्सव खूब लोकप्रिय हुए हैं। इनमें से ज्यादातर उड़ीसा के पर्यटन विभाग की ओर से आयोजित किए जाते हैं। इसमें भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय, क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों तथा अन्य संगठनों का भी सहयोग होता है।
कोणार्कउत्सव (1 से 5 दिसंबर): पांच दिन चलने वाले इस उत्सव का मजा लेने के लिए हजारों पर्यटक हर साल कोणार्क आते हैं। इस दौरान विश्वप्रसिद्ध सूर्य मंदिर परिसर में स्थित मुक्ताकाशी रंगमंच पर नृत्यकला से जुड़ी देश की कई प्रसिद्ध हस्तियां अपने कार्यक्रम प्रस्तुत करती हैं। ओडिसी नृत्य की एक-एक भावभंगिमा को इसमें निकट से देखा और समझा जा सकता है।
पुरी बीच फेस्टिवल (26 से 30 नवंबर): राज्य के पर्यटन विभाग व पूर्वी क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र की मदद से होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ उड़ीसा पुरी बीच फेस्टिवल का आयोजन करता है। हर साल पांच दिन तक चलने वाला यह उत्सव कोणार्क उत्सव की भूमिका बनाता है। पांच दिन चलने वाले इस उत्सव में नृत्य, संगीत, नाटक व अन्य कलाओं की प्रस्तुति समुद्र तट पर अद्भुत छटा बनाती है। पूरे देश के मशहूर कलाकार इसमें भाग लेते हैं। हस्तकला वस्तुओं, हैंडलूम के कपड़ों व सैंड आर्ट की प्रदर्शनी तथा नृत्यनाटिकाओं एवं नृत्य के नए रूपों की प्रस्तुति इसे अधिक आकर्षक बना देती है।
श्रीक्षेत्र उत्सव (14 से 25 दिसंबर): भारत के प्रमुख तीर्थो में एक पुरी के प्रति पर्यटकों के आकर्षण का बड़ा कारण श्रीक्षेत्र उत्सव भी है। वस्तुत: श्रीक्षेत्र पुरी का ही एक और नाम है। इस उत्सव का मुख्य उद्देश्य पुरी की परंपराओं को जीवंत बनाए रखना है। यहां जो जितना बड़ा है उतना ही सुंदर माना जाता है। इसलिए उत्सव भी यहां एक-दो दिन नहीं, पूरे तीन हफ्ते चलता है। उड़ीसा का पर्यटन विभाग केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय व कुछ अन्य संगठनों की मदद से यह आयोजन करता है। आयोजन का अंतिम हिस्सा है रेत की कला का प्रदर्शन और यह भी कुछ छोटा नहीं होता है। यह 14 से 25 दिसंबर तक चलता है। वस्तुत: श्रीक्षेत्र उत्सव उड़ीसा की सांस्कृतिक विरासत व खास तौर से पुरी की परंपराओं को उनकी पूर्णता में पेश करता है। पूरे 21 दिनों तक चलने वाला संस्कृति का यह महान उत्सव अपने-आपमें अनूठा है।