रोशनी के उत्सव का महीना

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गंगा महोत्सव, वाराणसी
गंगा एक नदी और एक संस्कृति, दोनों ही रूपों में हमेशा से भारतीय जनमानस की चेतना का केंद्र रही है। इसी गंगा का महोत्सव मनाने के लिए भला वाराणसी के घाट से बेहतर जगह क्या हो सकती है। पांच दिन चलने वाला यह उत्सव भारतीय शास्त्रीय संगीत व नृत्य का अद्भुत आयोजन होता है। हर साल इस महोत्सव का समापन कार्तिक पूर्णिमा पर होता है जब वाराणसी में देव दीपावली मनाई जाती है। गंगा की लहरों में उतरते दीपक और पृष्ठभूमि में गूंजती स्वरलहरियां, इससे सुंदर नजारा और कुछ नहीं हो सकता। इस आयोजन का महत्व इसी से साबित हो जाता है कि देश के तमाम शीर्षस्थ शास्त्रीय गायक व वादक यहां मौजूद रहते हैं। बनारस को देखने का यह सबसे बढि़या समय है।
सोनपुर
पशु मेला, सोनपुर, बिहार
बिहार की राजधानी पटना से लगभग 25 किमी दूर सोनपुर में गंगा के तट पर लगने वाले इस मेले ने देश में पशु मेलों को एक अलग पहचान दी है। इस महीने के बाकी मेलों के उलट यह मेला कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान के बाद शुरू होता है। एक समय इस पशु मेले में मध्य एशिया से कारोबारी आया करते थे। अब भी यह एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला माना जाता है। मेलों से जुड़े तमाम आयोजन तो यहां होते ही हैं। यहां हाथियों व घोड़ों की खरीद हमेशा से सुर्खियों में रहती है। पहले यह मेला हाजीपुर में होता था। सिर्फ हरिहर नाथ की पूजा सोनपुर में होती थी लेकिन बाद में मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश से मेला भी सोनपुर में ही लगने लगा।

अंतरराष्ट्रीय गद्दा-रजाई फेस्टिवल, ह्यूस्टन, अमेरिका
पचास हजार से ज्यादा लोग इस कार्यक्रम से जुड़े विभिन्न आयोजनों में शिरकत करते हैं। हजार से ज्यादा गद्दे-रजाई व फैब्रिक आर्ट की अन्य वस्तुएं प्रदर्शित की जाती हैं। बिक्री के लिए भी सैकड़ों स्टाल लगाए जाते हैं। इंटरनेशनल क्विल्ट एसोसिएशन एक प्रतियोगिता भी आयोजित करती है जिसमें हजारों डॉलर की इनामी राशि बांटी जाती है। इसलिए अगर इन सर्दियों के लिए आप नई रजाई खरीदना चाहते हों तो क्यों न ह्यूस्टन का रुख किया जाए?    

एलोरा फेस्टिवल, एलोरा गुफाएं, औरंगाबाद
महाराष्ट्र में औरंगाबाद से लगभग तीस किलोमीटर दूर एलोरा गुफाओं की पृष्ठभूमि में होने वाला नृत्य व संगीत का शानदार आयोजन। यह सालाना जलसा महाराष्ट्र पर्यटन विकास निगम की मेजबानी में होता है। सदियों के इतिहास व संस्कृति के साथ-साथ बेमिसाल कला व शिल्प अपने में समेटे हुए ये प्राचीन गुफाएं आज भी कई प्रतिभाओं को निखरने का मौका देती हैं। गुफाओं की अद्भुत संरचना एक अलग ही माहौल में अनुभव करनी हो तो इस समय यहां जरूर जाइएगा।
चंद्रभागा
मेला, झालरापाटन, झालावाड़ (राजस्थान)
कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाला एक और मेला। चंद्रभागा उड़ीसा में कोणार्क के पास एक खूबसूरत तट का नाम है लेकिन झालावाड़ में लगने वाले इस मेले का नाम चंद्रभागा दरअसल यहां बहने वाली चंद्रावती नदी पर पड़ा है। कार्तिक पूर्णिमा पर लोग इसी नदी में स्नान करते हैं। पुष्कर की ही तरह यहां भी एक विशाल पशु मेला इस मौके पर लगता है जिसमें ऊंटों, बैलों, घोड़ों, गाय-भैसों की जमकर खरीद-फरोख्त होती है। राजस्थान के अलावा मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र तक से लग यहां आते हैं। लोक संस्कृति से परिचित होने का बढि़या मौका होता हैयहाँ ।
र्ल्ड पंकिन-चंकिन चैंपियनशिप, मिल्सबोरो, अमेरिका
अजीबोगरीब हरकतें करने में अमेरिकियों को कुछ खास महारत हासिल है। अब कद्दू को ही लें। कद्दू की सब्जी हमारे यहां भी खाई जाती है। हमारे खेतों में भी बड़े-बड़े कद्दू उगाए जाते हैं। लेकिन कद्दू के गोले? कुछ ज्यादा ही अजीब लगता है। लेकिन यहां हर साल तीन दिन तोप से कद्दू दागने की चैंपियनशिप होती है। तोपें भी लोग खुद बनाकर लाते हैं और आसमान में दूर-दूर तक कद्दू दागते हैं। कद्दू के पकवानों का स्वाद भी यहां चखा जा सकता है। अगर आप भी कद्दू प्रेमी हों तो जरूर जाइएगा।
लखनऊ
महोत्सव, लखनऊ
जब देश के शास्त्रीय संगीत की अनमोल विरासत की बात हो तो लखनऊ महोत्सव उसे सहेजने की महत्वपूर्ण कड़ी है। हर साल इन दिनों होने वाला यह आयोजन अवध की अनूठी संस्कृति से पहचान कराता है। रंगबिरंगे जुलूस, नाटक और नृत्य-संगीत। लखनऊ घराना वैसे भी अपनी परंपरा को लेकर बहुत प्रख्यात रहा है। ऐसे में कत्थक, सारंगी व सितार का आनंद उठाना हो या गजलों, कव्वाली व ठुमरी में खो जाना हो, लखनऊ महोत्सव हर लुत्फ देता है। ऊपर से लखनवी दावतों की तो महक ही सब जगह फैली रहती है। परंपरा के शौकीनों के लिए इक्कों की रेस, पतंगबाजी व मुर्गोकी लड़ाई भी साथ-साथ चलती रहती है। अवध को जानना हो तो इस महोत्सव में जरूर जाइए।

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