मॉरिशस जहां हर तरफ है अपनापन

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आना-जाना

मॉरिशस के लिए भारत से कई एयरलाइंस की सीधी सेवाएं हैं। मॉरिशस के चारों ओर समुद्र होने से कहीं आने-जाने के लिए रेल की व्यवस्था नहीं है। आप किराये पर टैक्सी लेकर घूम सकते हैं। अगर आपके पास ड्राइविंग लाइसेंस है तो कार लेकर स्वयं भी चला सकते हैं।

भाषाएं

यहां मुख्य राजभाषा फ्रेंच और अंग्रेजी है। वैसे हिंदी अधिकतर लोग आसानी से बोलते और समझते हैं। इसके अलावा यहां भोजपुरी, तमिल, मराठी, उर्दू, मैंडरिन व कैंटोनीज भाषा का भी प्रयोग होता है। यहां बोलचाल की एक स्थानीय भाषा क्रियोल भी है।

मौसम

मौसम अकसर यूरोपियन देशों की तरह बदलता रहता है। दिन में गर्मी महसूस होती है, तो शाम 4-5 बजे से ठंडी हवा के झोंके ठंड की याद दिला देते हैं। गर्मी का मौसम नवंबर से मार्च तक माना जाता है। मॉरिशस जाने के लिए आम तौर पर जून से सितंबर के बीच का मौसम बेहतर माना जाता है। पर पिछले 7-8 वर्षो से यहां मौसम की परवाह छोड़ कर पूरे साल पर्यटकों का तांता लगा रहता है।

ग्लोबल बनती दुनिया के किसी भी कोने से किसी भी कोने तक जाना अब मुश्किल नहीं है। इसलिए पर्यटन लोगों की लाइफस्टाइल का हिस्सा बनता जा रहा है। इसी क्रम में कुछ देशों का नाम इधर पर्यटन मानचित्र पर तेजी से उभरा है। दुनिया भर के पर्यटकों को सम्मोहित करने वाले ऐसे ही लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में मॉरिशस प्रमुख है। मात्र 16 लाख की आबादी वाले इस देश की पहली पहचान ‘पाचू का द्वीप’ के रूप में है। चारों ओर हरियाली और उनके बीच कहीं हरा तो कहीं नीला-सा फैला हुआ विशाल समुंदर। इसकी सुंदरता पर मशहूर लेखक मार्क ट्वेन ने कहा है, पहले विधाता ने मॉरिशस को रचा.. फिर जब इसे इतना सुंदर पाया तो इसी की नकल पर उसने स्वर्गलोक  की रचना की। वाकई, मॉरिशस की खूबसूरती अनुपम  है। मॉरिशस को देखने के बाद मार्क ट्वेन की बात पर पूरा यकीन  हो जाता है।

रोमांचक खेलों का केंद्र

हरा-भरा मॉरिशस बसा है हिंद महासागर में, मेडागास्कर के पूर्व में 900 किमी तथा भारत के दक्षिण-पश्चिम में यह 3,943 किमी पर बसा है। यह छोटा सा द्वीप सदियों पहले हुए ज्वालामुखी विस्फोटों के कारण बना है। इस देश की राजधानी है पोर्ट लुई। जिन लोगों को वॉटर स्पो‌र्ट्स की गतिविधियां पसंद हैं, वे यहां आना बहुत पसंद करते हैं। खास तौर से स्नॉर्केलिंग, स्कूबा डायविंग और डीप सी फिशिंग के शौकीन लोग यहां खूब आते हैं। जो भी पर्यटक यहां आते हैं, वे वॉटर स्पो‌र्ट्स का लुत्फ लिए बिना लौट नहीं सकते। यहां खास कर स्कूबा डायविंग का लुत्फ उठाने का अपना अलग मजा है। पूरी दुनिया से सेलिब्रिटीज स्कूबा डायविंग करने मॉरिशस पहुंचते हैं। इसके अलावा शांति की तलाश में आए पर्यटकों की भी पहली पसंद बनता जा रहा है यह देश।

बहुरंगी संस्कृति

मॉरिशस में सबसे पहले डच लोगों का शासन था। सन 1598 से 1710 तक यहां डच शासन रहा। इसके बाद यहां फ्रेंच शासक आए और उन्होंने 1810 तक राज किया। फिर यहां अंग्रेजों ने अपना शासन कायम किया और 1968 तक उनका शासन रहा। अंग्रेजी शासन के दौरान ही यहां चीनी उद्योग फैला। इसके लिए उन्होंने गन्ने की खेती भी शुरू की और वहां काम के लिए जब उन्हें मजदूरों की जरूरत पड़ी तो वे भारत से बहला-फुसला कर लोगों को ले गए। कुछ श्रमिकों को वे बंदी बनाकर भी लाए। इन मजदूरों में ज्याददातर लोग उत्तर प्रदेश, बिहार, मुंबई और चेन्नई से लाए गए थे।

बाद में चाइनीज और अफ्रीकन लोग भी आए। मॉरिशस की संस्कृति पर इन सबका असर देखा जा सकता है। कई संस्कृतियों के असर का ही नतीजा है जो यहां का जनजीवन बहुरंगी और जीवंत बन गया है। अब तो यह सामासिक संस्कृति का जीता-जागता प्रतीक है। सर्वधर्म समभाव को जीवनमूल्य मानने वाली मॉरिशियन जनता दुनिया भर के लिए एक जीवंत उदाहरण है। यहां जितने चर्च नजर आते हैं, उतने ही मंदिर। भारतीयों की यहां बड़ी तादाद होने के कारण सारे भारतीय त्योहार धूमधाम से मनाए जाते हैं। जब हम मॉरिशस में थे उन्हीं दिनों पूरा देश श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाने में व्यस्त था। गणेश चतुर्थी का उत्सव देख ऐसा लगता है जैसे हम महाराष्ट्र में ही हों।

संतुलित है पर्यावरण

मॉरिशस का सबसे बड़ा आकर्षण है विशाल और साफ-सुथरा नीला-हरा सागर और कोरल रीफ्स। पानी के अंदर के जीवन को करीब से देखना अपने आपमें अनूठा अनुभव है। कई दुर्लभ जलीय वनस्पतियों, कई तरह की मछलियों और कछुओं को देखकर पर्यटकों का मन प्रसन्न हो जाता है। यहां पाई जाने वाली दिलचस्प मछलियों में क्लाउन फिश, डॉल्फिंस  और शार्क प्रमुख हैं। कई तरह की अत्याधुनिक बोट्स और स्पीड बोट्स यहां सागर में घूमने के लिए मिल जाती हैं। यहां के कोरल रीफ्स (गहरे पानी के भीतर की वनस्पतियां) इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इनके चलते ही सागर के भीतर का पारस्थैतिक संतुलन बना रहता है। यही वजह है कि मॉरिशस में कहीं किसी तरह का प्रदूषण दिखाई नहीं देता है।

सहेजी है विरासत

मॉरिशस की राजधानी है पोर्ट लुई। यह नाम राजा लुई के सम्मान में इस शहर को बरसों पहले दिया गया था। यही इस देश की आर्थिक राजधानी भी है। ज्यादातर महत्वपूर्ण इमारतें यहीं हैं। यहां एक रेसकोर्स भी है, जिसे 1872 में अंग्रेजों ने बनवाया था। शॉपिंग के लिए पूरे मॉरिशस में पोर्ट लुई से बेहतर कोई और जगह नहीं है। यहां शॉपिंग मॉल्स, सिनेमा हॉल, कसिनो, ड्यूटी फ्री शॉप, बार, क्राफ्ट शॉप सभी खूब हैं। इनके अलावा रोड साइड शॉपिंग के लिए भी पोर्ट लुई बेहतर जगह है। यहां की नाइट लाइफ भी काफी चर्चित है। पूरा मॉरिशस जहां शांत है, वहीं पोर्ट लुई के चप्पे-चप्पे पर चहल-पहल नजर आती है।

पोर्ट लुई में नैचरल हिस्ट्री म्यूजियम दर्शनीय है। यहां का राष्ट्रीय पक्षी है डोडो। डोडो के अलावा कई जानवर और पक्षियों की खाल का रेप्लिका बनाकर इसे आकर्षक बना दिया गया है। यह इमारत वास्तु की दृष्टि से भी सुंदर है। इसी जगह मस्जिद, मंदिर और चर्च भी नजर आते हैं। पोर्ट लुई में ऐतिहासिक महत्व की कई इमारतें आज भी बुलंद हैं।

अपनी ऐतिहासिक विरासत को सहेजने के मामले में मॉरिशस शासन के प्रयास सराहनीय हैं कि उन्होंने शहर की शान ज्यों की त्यों बऱकरार रखी है। यहां देखने लायक इमारतों में सेंट्रल पोस्ट ऑफिस, वॉटर फ्रंट और विंडमिल म्यूजियम हैं। सेंट्रल पोस्ट ऑफिस की स्थापना 1810 में की गई थी। आज भी वहां 17वीं और 18वीं सदी में इस्तेमाल किए गए संचार के साधनों को भी संभाल कर रखा गया है।

दुर्लभ पौधों का शहर

पोर्ट लुई के पास है क्यूरीपाइप। इस शहर को इंग्लिश शहर कहा जाता है, क्यूरीपाइप की रचना पुराने ब्रिटेन की तरह है। यहां का रामगुलाम बोटैनिकल गार्डन काफी सुंदर जगह है। यहां काफी दुर्लभ पेड़-पौधे और औषधीय वनस्पतियां मौजूद हैं। यहां 200 साल पुराना बोधि-बुद्धा वृक्ष पर्यटकों का ध्यान बरबस अपनी ओर खींच लेता है। यहां से पर्यटक औषधीय महत्व की कुछ वनस्पतियां साथ ले भी जाते हैं। वैसे यहां चारों ओर गन्ने के खेत हैं। यहां से गन्ने के रस से बनी रम भी पर्यटक साथ ले जाते हैं।

ऐतिहासिक यादगार

मॉरिशस जाने वाला हर पर्यटक आप्रवासी घाट देखने जरूर जाता है। आप्रवासी घाट का सीधा मतलब है इमिग्रेशन डिपो। यह ऐतिहासिक स्मारक उन सभी स्वतंत्रता सेनानियों की कुर्बानी को याद दिलाती है, जिन्होंने यहां तमाम तरह की तकलीफों का सामना करते हुए अपनी जान गंवाई। इनमें भारतीय मूल के मजदूरों की तादाद बहुत बड़ी रही है। आप्रवासी घाट की स्थापना 1849 में हुई थी। हजारों की तादाद में भारत से जो आम लोग मॉरिशस में खेतों पर काम करने के लिए जहाजों द्वारा लाए जाते थे, यहां पहुंचने पर कोई काम देने से पहले यहीं उनके रुकने का प्रबंध किया जाता था। इस स्मारक को सुरक्षित रखने के लिए मॉरिशस के कला एवं संस्कृति मंत्रालय ने आप्रवासी घाट के लिए एक खास ट्रस्ट की स्थापना की। बाद में 12 जुलाई 2006 को आप्रवासी घाट को यूनेस्को ने भी विश्व विरासत की सूची में शामिल कर लिया। इससे दुनिया भर में मॉरिशस के इस ऐतिहासिक स्मारक की अहमियत काफी बढ़ गई है। यहां एक फोर्ट एडलेड है। यह भी ऐतिहासिक महत्व की जगह है। इसका निर्माण नवंबर 1830 में किया गया था। मॉरिशस वैसे तो एक हार्बर है। आने वाले शत्रु का जायजा लेने के लिए इस किले का निर्माण किया गया था। इसके बाद अंग्रेजों ने काफी समय अपना डेरा यहां सुरक्षा छावनी के रूप में कर लिया था।

12 मार्च 1968 को मॉरिशस ने आजादी की सांस ली। हमें मॉरिशस के बारे में काफी सारी जानकारी दी वहां के पर्यटन मंत्री और उप प्रधानमंत्री जेवियर दुवल, मॉरिशस के जाने-माने उद्योगपति नरेश गजधर और उनकी पत्नी श्रीमती शिल्पा गजधर ने। नरेश जी और उनका परिवार पिछली तीन पीढि़यों से मॉरिशस में बसा हुआ है। वे मूलत: बिहार के रहने वाले हैं। नरेश जी ने हमें यह भी बताया कि मॉरिशस की जनता बॉलीवुड फिल्मों के साथ भोजपुरी फिल्मों की भी बेहद दीवानी है। अधिकतर भोजपुरी फिल्में वहां प्रदर्शित होती हैं और इन्हें देखने के लिए मॉरिशियन जनता की भारी भीड़ भी जुटती है। वहां के सिनेमा घरों में हिंदी तथा भोजपुरी फिल्म देखने आई मॉरिशियन जनता की लंबी कतारें उनकी बात का सबूत दे रही थीं। यह कहना गलत नहीं  है कि मॉरिशस भारत के बाहर एक लघु भारत है। खानपान से लेकर बात-व्यवहार, पहनावा, रीति-रिवाज और आचार-विचार हर मामले में यह आपको अपने देश के काफी करीब  लगता है। अधिकतर जगहों पर घूमते हुए लगता ही नहीं कि हम भारत के बाहर आए हुए हैं। बड़ी-बड़ी प्रतिमाओं वाले मंदिरों और वहां के पवित्र वातावरण को देखकर तो कई बार मन इस देश के प्रति श्रद्धा से भर उठता है। पूरी तरह से भारतीय संस्कृति से रंगा.. सजा-धजा मॉरिशस कब अपना-सा हो जाता है., पता ही नहीं चलता। बस हम कह पड़ते हैं.. मॉरिशस तुम-सा नहीं देखा।

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