राजसी ठाठ का शहर बैंकॉक

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बैंकाक के कई दिनों के प्रवास के दौरान मुझे महसूस हुआ कि चाओ फ्राया नदी के आसपास बैंकाक सबसे खूबसूरत है और बाद में स्थानीय लोगों ने मुझे बताया कि यही क्षेत्र वास्तव में बैंकाक की आत्मा है। यही वह इलाका है जहां बैंकाक के सबसे प्रमुख दर्शनीय वट (मंदिर) और महल हैं। इसी कारण से यह क्षेत्र आध्यात्मिक और ऐतिहासिक दोनों ही दृष्टियों से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

बैंकाक के शाही महल तक जाने के कई रास्ते हैं, पर सबसे अच्छा रास्ता चाओ फ्राया नदी के किनारे वाला ही है। असल में यही शाही पथ है। नदी के दक्षिण में एक विशेष रास्ता है जो सिर्फ राजा के लिए आरक्षित है, जिसे राजावोरादित नाम से पुकारा जाता है। अगर आप सुबह-सवेरे इस इलाके में पहंुच जाएं तो आपको यहां विशेष प्रकार की छोटी-बड़ी नावों की भीड़ दिखाई देगी। ये सभी राजा की नावें हैं, जिनसे आपको सामान उतारा-चढ़ाया जाना नजर आएगा। नदी की तरफ से अगर आप आएं तो शाही महल में प्रवेश का उत्तरी द्वार दिखाई देगा। यहीं से अंदर जाने की टिकट भी मिलती है। टिकट घर के निकट ही एक म्यूजियम भी है। इसे कॉइन म्यूजियम के नाम से जाना जाता है। इस म्यूजियम में थाईलैंड के आदिकाल से लेकर अब तक के सिक्कों और करेंसी का संग्रह है। इसके अलावा यहां राजसी पदकों और साज-सजावट की वस्तुओं का भी खास संग्रह है।

मंदिरों के द्वार पर यक्ष

राजमहल के प्रांगण में घुसते ही मुझे जिस चीज ने सबसे ज्यादा आकर्षित किया वह था- वट प्राकिओ। यह बैंकाक का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है। लगभग सवा दो सौ साल पुराने इस मंदिर का जीर्णोद्धार अब तक कई बार किया जा चुका है। मंदिर में घुसने से पहले उसके द्वार के दोनों तरफ बनी यक्षों की दो प्रतिमाएं स्थापित हैं, जो सबसे ज्यादा ध्यान आकर्षित करती हैं। ये मूर्तियां लगभग अठारह फुट ऊंची हैं। असल में बैंकाक के हर प्रमुख मंदिर के द्वार पर यक्ष की मूर्तियां जरूर मिलती हैं। अलग-अलग मंदिरों के प्रवेशद्वार पर खड़े इन यक्षों के नाम भी अलग-अलग होते हैं। मंदिर में भगवान बुद्ध की एक आकर्षक प्रतिमा स्थापित है। इसके बराबर वाले हॉल में मंडप पुस्तकालय है। इस पुस्तकालय में बौद्ध साहित्य और अभिलेखों का बड़ा भंडार है। हालांकि आम जनता या पर्यटकों को इस पुस्तकालय में प्रवेश की अनुमति नहीं है, पर बाहर से ही इसकी झलक देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि भीतर यह कितनी संपन्नहोगी।

मंडप पुस्तकालय के उत्तर की ओर पत्थर से बना कंबोडिया के प्रसिद्ध अंगकोर वट का मॉडल है। यह मॉडल रामा-पांच के समय का है। उन दिनों यहां के राजा ने अपने साम्राज्य को कंबोडिया तक फैला रखा था। मंडप के पूर्वी हिस्से में विभिन्न प्रकार की मूर्तियों का विशाल संग्रह है। इनमें ज्यादातर मूर्तियां स्वर्ग किन्नरों की हैं। आधी स्त्री और आधे पक्षी शरीर वाले ये देवी-देवता थाई संस्कृति के पौराणिक साहित्य के अनिवार्य हिस्से हैं।

रावण का नाम तोसाकन

थाईलैंड में पौराणिक साहित्य की बात चलती है तो रामकथा का नाम सबसे पहले आता है। मुझे महल में भ्रमण के दौरान कई बार महसूस हुआ कि यहां देखने के लिए बहुत कुछ है और अगर जल्दबाजी में इसे देखा जाएगा तो बहुत कुछ छूट सकता है। दोबारा आने की बजाए मैंने तय किया कि महल के अधिकांश हिस्सों को इत्मीनान के साथ देख लिया जाए। महल के एक हिस्से में रामकिएन की दीवारों पर अंकित भित्तिचित्र एक विशेष प्रकार का आकर्षण रखते हैं। लंबी दीवार पर बने इन चित्रों में रामकथा को क्रमवार उकेरा गया है। अंगकोर मॉडल के बिलकुल सामने दीवार पर उत्तर की तरफ से राम और सीता की गाथा उकेरी गई है। राम-सीता विवाह के बाद सीताहरण दिखाया गया है, जिसमें सीता को दुष्ट राजा तोसाकन ले जा रहा है। थाई रामकथा में रावण का नाम तोसाकन बताया गया है। सीताहरण के बाद हनुमानजी द्वारा सीता की खोज और भगवान राम का हनुमान और वानर सेना की सहायता से दुष्ट राजा तोसाकन पर आक्रमण के बाद विजय को इन चित्रों में अत्यंत सजीव ढंग से दिखाया गया है।

कला का संरक्षण

महल की यह कला कई सौ वर्ष पुरानी है और समय-समय पर इसका जीर्णोद्धार भी होता रहा है। जीर्णोद्धार के यह कार्य दो बार इस महल के शताब्दी वर्षो (1882 और 1982) में किए गए थे। 1982 में जब इसका जीर्णोद्धार किया गया था तब इस पर लगभग 4 अरब रुपये खर्च किए गए थे। थाईलैंड के ललित कला विभाग ने इस कार्य के लिए दो हजार पेंटरों और काष्ठ कलाकारों की सेवाएं ली थीं। पुरानी कला की बारीकियों को उसी तरह बचाए रखने के लिए कंप्यूटर कैमरों की मदद ली गई थी। शताब्दी समारोह के उस दिन को बैंकाकवासी आज भी याद करते हैं जब कई देशों से आए ढाई हजार नर्तक और नृत्यांगनाओं ने पूनम की उस रात खुले विशालकाय प्रांगण में अपनी कला का प्रदर्शन किया था।

राजमहल के पास ही बैंकाक का खास वट पो है। इस विशालकाय मंदिर का खास आकर्षण रिक्लाइनिंग बुद्ध की प्रतिमा है। जिस भवन में यह प्रतिमा है, वह भी लगभग उतना ही बड़ा है जितनी भगवान बुद्ध की प्रतिमा। ईट-सीमेंट से बनी 150 फुट लंबी और 50 फुट ऊंची यह प्रतिमा पूरी तरह स्वर्णपत्रों से मढ़ी हुई है। लेटी हुई मुद्रा वाली यह प्रतिमा भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण से पूर्व की अवस्था को दर्शाती है और करीब पौने दो सौ वर्ष पुरानी है। प्रतिमा का आकार और उचित प्रकाश का अभाव, दोनों विषमताएं यहां किसी भी फोटोग्राफर के लिए खासी मुश्किल पैदा करती हैं।

सुरक्षा सांस्कृतिक विरासत की

शाही महल और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण कुछ  विशेष मंदिरों के अलावा थाईलैंड की ज्यादातर ऐतिहासिक संपदा काल के गाल में समा गई। वहां ऐतिहासिक विरासत से जुड़ी अधिकतर चीजें अब अपने मूल स्वरूप में नहीं रह गई हैं, लेकिन बैंकाक पहुंचने के बाद यह कमी भी खलने नहीं पाती है। इतिहास और सांस्कृतिक विरासत में खास तौर से रुचि रखने वाले पर्यटकों के लिए यहां की सरकार ने एक विशेष इंतजाम कर रखा है। शहर के एक किनारे पर एक बड़ा हिस्सा ओल्ड बैंकाक के नाम से सुरक्षित कर दिया गया है। इसकी व्यवस्था ही थाईलैंड के उस ऐतिहासिक विरासत को सहेजने के लिए की गई है जो अब केवल किताबों और परंपरा से मिले होने के कारण लोगों की स्मृतियों में ही शेष रह गई है। यहां थाईलैंड के इतिहास की प्रमुख घटनाओं और वृत्तांतों के आधार पर मॉडल तैयार करके रखे गए हैं। इन मॉडलों की खास बात यह है कि ये देखने में वास्तविक लगते हैं। इस तरह यहां आए पर्यटक को बैंकाक के इतिहास की अच्छी जानकारी भी मिल जाती है और साथ ही एक अलग तरह के रोमांचक अनुभव का आनंद भी मिलता है।

ऐसे ही यहां घूमने लायक एक और जगह फ्लोटिंग मार्केट भी है। यहां लोग वास्तव में नदियों व नहरों के मुहानों पर रहते हैं और पानी के बीच ही दुकानें और घर बनाते हैं। इसी तरह बैंकाक शहर से बाहर स्थित एक पार्क  में खास तरह का एलिफेंट, क्रोकोडाइल और स्नेक शो भी आयोजित किया जाता है। हालांकि मनोरंजन के इस खेल में पैसा ज्यादा खर्च होता है।

गांवों में कला-संस्कृति

बैंकाक के आसपास ग्रामीण इलाकों में घूमने का आनंद ही कुछ और है। असल में ये ही वे इलाके हैं जहां थाई कला-संस्कृति की सही झलक देखी जा सकती है। वैसे तो बैंकाक का ग्रामीण क्षेत्र बहुत बड़े दायरे में फैला हुआ है, पर अब शहरों की उपभोक्तावादी संस्कृति के बढ़ते प्रभाव के कारण गांवों के भी ज्यादातर हिस्सों से असली ग्राम्य जीवन गायब होता जा रहा है। वहां अब फैलती जा रही हैं छोटी-छोटी फैक्टि्रयां। मैं जब इन ग्रामीण इलाकों का जायजा ले रहा था तो मुझे छोटे-छोटे तालाबों और नदियों की धाराओं के मुहाने और किनारों पर एक नजारा अकसर देखने को मिला।

धूप और गरमी से बचने के लिए यहां के लोग एक खास तरह का हैट पहनते हैं। गोल आकार में बने इस हैट का व्यास इतना ज्यादा होता है कि हैट एक तरह से सिर पर रखे छाते जैसा लगता है। व्यास अधिक होने के कारण यह हैट न केवल पूरे चेहरे पर छांह रखता है, बल्कि गर्दन के नीचे के काफी हिस्से को धूप से बचाए रखता है। यह छातानुमा हैट लगाए और हाथ में एक लंबा बांस लिए लोग अकसर किसी जलाशय या जलधारा के किनारे एकाग्र मुद्रा में खड़े मिल जाएंगे। इस बांस के किनारे पर मछली को फंसाने वाला एक यंत्र होता है। यह अद्भुत यंत्र कुछ इस तरह का होता है कि मछली इसके अंदर आसानी से घुस तो जाती है, पर घुसने के बाद निकल नहीं पाती। मछली के निकलने को असंभव सा बनाने वाला यह हिस्सा एक धातु का बना होता है, जो बांस वाले हिस्से के साथ बड़ी चतुराई से जोड़ दिया जाता है।

मछली पकड़ने वाला यह यंत्र थाई लोगों के लिए सैकड़ों वर्षो से बेहद उपयोगी साबित होता रहा है। यह यंत्र थाई कारीगरों की कलात्मक दक्षता को दिखाता है। दूसरे शब्दों में यह यंत्र थाई लोककला का अद्भुत उदाहरण है और थाईलैंड की प्रमुख सांस्कृतिक विरासत है। कला की यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है, जो यहां के बर्तनों और घरेलू कामकाज की वस्तुओं से लेकर गृह निर्माण और सजावट की चीजों तक में दिखाई पड़ती है। ग्रामीण इलाकों में लकड़ी और नारियल से लेकर केले तथा अन्य वृक्षों के कई हिस्सों का उपयोग इस हस्तकला की सिद्धि में किया जाता है।

खानपान का चीनी उत्सव

खाने-पीने के मामले में बैंकाक का कोई जवाब नहीं है। तरह-तरह के व्यंजन उपलब्ध कराने वाली यहां इतनी जगहें हैं कि अगर आप तीनों वक्त खाएं और हर बार नए रेस्तरां में जाएं तो दोबारा उसी रेस्तरां का नंबर कई साल बाद आएगा। बैंकाक शहर में करीब 32 हजार से अधिक तो रजिस्टर्ड रेस्तरां ही हैं। अगर इसमें ढाबों और सड़क किनारे लगे ठेलों व दुकानों को भी जोड़ लिया जाए तो बैंकाक में खाने-पीने की जगहों की संख्या एक लाख से ऊपर पहुंच जाएगी। बैंकाक में चीनी और थाई रेस्तरांओं की संख्या सबसे ज्यादा है। उसके बाद नंबर आता है भारतीय रेस्तराओं का। ज्यादातर भारतीय रेस्तरां चाइना टाउन के पास बहुरात इलाके में हैं। वहां शाकाहारी और मांसाहारी दोनों तरह का अच्छा खाना मिल जाता है। शहर में जहां एक तरफ मसालेदार व्यंजनों के लिए मशहूर कई पंजाबी ढाबे हैं, वहीं दूसरी तरफ दक्षिण भारतीय डोसे, इडली तथा अन्य व्यंजन परोसने वाले विशेष रेस्तरां भी खूब हैं।

खास तौर से सी फूड के मामले में बैंकाक का कोई जवाब नहीं, लेकिन शाकाहारी लोगों के लिए यहां बहुत सीमित व्यंजन उपलब्ध होते हैं। वैसे साल में एक समय ऐसा भी आता है जब शाकाहारियों के लिए खाने-पीने की चीजों का भंडार सा लग जाता है। अक्टूबर के आसपास बैंकाक में शाकाहारी खानपान का एक विशेष उत्सव मनाया जाता है, जिसे पीती किन जाइ कहा जाता है। उत्सव का दिन चीनी कैलेंडर के अनुसार तय किया जाता है। यह असल में एक चीनी उत्सव है जिसका जोर चाइना टाउन के आसपास ज्यादा दिखाई देता है। इस दौरान कई मंदिरों के प्रांगण में विशेष उत्सवों का आयोजन होता है और ड्रैगन डांस व अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। संगीत ओपेरा के साथ-साथ माहौल मोमबत्तियों की रोशनी से जगमगा उठता है। उस समय का नजारा देखकर यह विश्वास करना बहुत मुश्किल हो जाता है कि सांप, बंदर और छिपकलियों तक को तलकर खा जाने वाले चीनी लोग विशुद्ध शाकाहारी भी हो सकते हैं- पर यह सच है।

पुरानी है प्रथा

चीनी लोगों के कुछ दिनों तक शाकाहारी बने रहने की यह प्रथा कब शुरू हुई इस बारे में ठीक-ठीक बता पाना मुश्किल है, पर कुछ चीनियों से बात करने पर यह जरूर मालूम हुआ कि यह प्रथा काफी पुरानी है और किसी समय महामारी में हजारों लोगों के मर जाने के बाद इस उत्सव के आयोजन की परंपरा शुरू हुई। कभी इस उत्सव का रूप शोक उत्सव जैसा होता था, पर आज इसमें एक अलग तरह का उल्लास सा नजर आता है और लोग शाकाहारी वस्तुओं को उसी खुशी से खाते हैं जैसे वे रोजमर्रा का भोजन खाते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि बैंकाक में फलों की बहुतायत है। बड़ी-बड़ी मुसम्मियों और ताजा तरबूजों की हमेशा बहार रहती है। यहां छोटी मुसम्मी भी होती है, जिसका मीठा रस आपको बैंकाक के हर गली-नुक्कड़ पर मिल जाएगा। बैंकाक में फलों के बीच एक अद्भुत फल भी होता है जिसे दूरियन कहते हैं। इस फल को जब काटा जाता है तो इसके गूदे में से एक विचित्र दुर्गध निकलती है। आश्चर्य है कि इस फल को यहां बड़े चाव से खाया जाता है।

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