सलामत दातांग

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मलेशिया की पहली झलक फ्लाइट की खिड़की से मिली। दूर-दूर तक फैले हुए समुद्र और जंगलों के बीच दिख रहा था यह देश। कुआलालम्पुर एयरपोर्ट पर उतरने के बाद मालूम हुआ कि यह दुनिया के सर्वश्रेष्ठ हवाई अड्डों में से एक है। बाहर निकलते ही हमारी मुलाकात टूरिस्ट गाइड से हुई। उसने ‘सलामत दातांग’ कह कर हमारा स्वागत किया। इसका मतलब है ‘वेलकम टू मलेशिया।’

एयरपोर्ट से हम सीधे अपने होटल के लिए चल पड़े। एयरपोर्ट से कुआलालम्पुर शहर पहुंचने में कुल 45 मिनट लगे। सुबह का समय होने के कारण रास्ते में सब कुछ साफ दिखाई दे रहा था और आंखों के लिए नए दृश्य होने के नाते देखना हमें अच्छा भी लग रहा था। यहां की सड़कें देख कर बहुत अच्छा लगा। साफ-सुथरी और चौड़ी। रास्ते के दोनों तरफ पाइन के पेड़ नजर आ रहे थे। पाइन यहां का मुख्य उत्पाद है। इससे पाइन ऑयल, रबर, वुड और फल की पैदावार होती है।

यहां की अद्भुत प्राकृतिक सुंदरता और अति आधुनिक वास्तुशिल्प विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करती है। यहां की संस्कृति और सभ्यता में भारत, पुर्तगाल, चीन और ब्रिटेन का काफी असर नजर आता है। इस तरह यह कई संस्कृतियों का अद्भुत संगम है। मलेशिया का मुख्य धर्म इस्लाम है। परंतु, जैसा कि आम तौर पर समझा जाता है, इस्लाम का कट्टरपंथी तेवर यहां बिलकुल दिखाई नहीं देता।

हॉप ऑन हॉप ऑफ

कुआलालम्पुर में हमारा पहला दिन रहा ‘हॉप ऑन हॉप ऑफ’ बस सर्विस के नाम। अगर कम पैसे में पूरा शहर घूमना हो, तो आप इसका इस्तेमाल करना न भूलें। एक दिन में यह बस पूरे कुआलालम्पुर की सैर करा देती है। पूरे शहर के 40 आकर्षक स्थानों पर यह बस रुकती है। इस डबल डेकर बस सर्विस की विशेषता यह है कि अगर किसी जगह पर आप ज्यादा समय बिताना चाहते हैं तो वही टिकट दिखाकर दूसरी बस में बैठ सकते हैं। इस बस की सर्विस हर आधे घंटे बाद की है।

बन न सका बियर मग

दूसरे दिन हम गए रॉयल सेलंगॉर की फैक्टरी।  यह दुनिया की सबसे बड़ी प्यूटर कंपनी है। शहर के भीतर ही मौजूद यह उद्यम अपने नए डिजाइन और कारीगरी के लिए मशहूर है। यहां टिन, सिल्वर और अन्य धातुओं को मिलाकर डेकोरेटिव और गिफ्ट आइटम्स बनाए जाते हैं। इसके वर्कशॉप के टूर में हम प्यूटर बनाने के तरी़के से रूबरू हुए। हमने भी इसे बनाने की कोशिश तो जरूर की। यह अलग बात है कि सफल नहीं हो सके। यहां के कारीगर साढ़े छह फुट ऊंची बीयर मग बनाकर कंपनी का नाम गिनीज बुक ऑफ व‌र्ल्ड रिकॉ‌र्ड्स में दर्ज करा चुके हैं।

इसी दिन हमने कुआलालम्पुर एक्वेरियम देखा। इसे देखना अपने-आपमें रोमांचक अनुभव है। अलग तरह की रंग-बिरंगी मछलियों को देखकर मन खुश हो गया। इसके बाद पेट्रोनास ट्विन टॉवर हमारे लिए अगला आकर्षण था, जो स्ट्रकचरल वंडर माना जाता है। 41वीं मंजिल पर एक-दूसरे से जुड़ने वाले ये दोनों टॉवर एक पुल के जरिये मिलते हैं। इस पर चढ़ कर मजा आ गया। पूरा टॉवर सिर्फ टिन और शीशे से बना है।

रात में केएल टॉवर का मजा लिया। वैसे तो यह कम्यूनिकेशन टॉवर है लेकिन यहां के रिवॉल्विंग रेस्तरां में बैठकर मलेशियन डेलिकेसी का मजा लेते हुए पूरे कुआलालम्पुर का नजारा ले सकते हैं। इस टॉवर की ऊंचाई 421 मीटर है। एक घंटे में पूरा चक्कर काटता है ये रेस्तरां।

खरीदारी का लुत्फ

आप कुआलालम्पुर आएं और खरीदारी न करें, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। भारतीय पर्यटक वैसे भी खरीदारी के लिए खासे मशहूर हैं और शायद यही वजह है कि दुनिया भर के दुकानदारों की अपेक्षाएं भी उनसे बहुत ज्यादा होती हैं। इसलिए तीसरे दिन हमने पूरे वक्त शॉपिंग की। बुकित बिंतांग जलान पर कई मॉल्स है। इस मार्ग पर हमने शॉपिंग का भरपूर लुत्फ उठाया, सुनेगी वॉन्ग और बर्जाया टाइम्स स्क्वेयर मॉल में। अगर इलेक्ट्रॉनिकचीजें खरीदनी हों तो लो-यात मॉल सबसे बढि़या है। पवेलियन एक हाई एंड मॉल है। यहां तभी जाएं जब खर्च करने के लिए आपके खूब

पैसा हो। पवेलियन मॉल में हमने फिश स्पा का भी भरपूर मजा लिया। 38 रिंगिट में आधे घंटे का फिश स्पा ले सकते हैं। ये डॉक्टर फिश के नाम से जानी जाती हैं।

सागर तीरे धीरे-धीरे

कुआलालम्पुर के बाद हमें जाना था पोर्ट डिक्सन। यह कुआलालम्पुर से 90 किमी की दूरी पर है। कार से यहां पहुंचने में डेढ़ घंटे का समय लगता है। सागरतट का लुत्फ लेना हो तो यहां जरूर आएं। वॉटर स्पो‌र्ट्स में मोटर क्राफ्ट, कनोइंग, बनाना बोट और स्नॉर्केलिंग का मजा यहां लिया जा सकता है। पोर्ट डिक्सन एक दिन में घूमा

जा सकता है। लेकिन अगर आपको समुद्र किनारे रहने का शौक है और शांति पसंद है तो आपके लिए यह कई दिनों के लिए अच्छा पड़ाव हो सकता है। यहां एक ऑस्टि्रच फार्म भी है। यहां हमने ऑस्टि्रच राइड का मजा लिया। फिर यहीं तानजुंग तुआन लाइट हाउस की चढ़ाई की। यह मलेशिया का सबसे पुराना लाइट हाउस है, जिसे 1860 में बनाया गया था। मजेदार बात यह है किचढ़ाई करते वक्त केप रशाडो फॉरेस्ट रिजर्व का आनंद लेते हुए इसकी चढ़ाई आराम से की। यह रिजर्व दूर देश से आने वाले अतिथि पक्षियों के ठहरने की जगह है।

विरासत का शहर मलक्का

अगले दिन हम मलक्का के लिए रवाना हुए। 600 साल पुराना यह ऐतिहासिक और सांस्कृतिकशहर अपने आपमें अनूठा है। यहां की पुरानी इमारतों और पतली सड़कों को देखकर साफ पता चलता है कि इस शहर ने अपने इतिहास को संभाल कर रखा है। यहां पुर्तगाल, डच और ब्रिटेन ने काफी समय तक राज किया। इनके अलावा अरब, चीन, भारत और यूरोप के व्यापारी भी यहां व्यापार करते थे। इसका असर यहां की साझी संस्कृति में साफ दिखाई देता है।

बाबा न्योना हेरिटेज म्यूजियम इसका एक दाहरण है। दिलचस्प इतिहास है इसका। एक चीनी व्यापारी ने यहां आकर एक मलय स्त्री के साथ घर बसाया। दोनों ने मिलकर नीड़ के रूप में अपने सपनों को यहां जो आकार दिया, वह पहले उनके घर के  तौर पर सामने आया और बाद में उनकी ही संतानों ने इसे एक म्यूजियम में बदल दिया। इस तरह यह एक साझा चीनी-मलय घर बना। इसी तरह भारतीयों ने भी यहां आकर मलय स्ति्रयों के साथ अपनी दुनिया शुरू की। उनकी संतानों को उन्हें मामक न्योना के नाम से जाना जाता है।

पार्क में पूरा मलेशिया

यहां स्थानीय लोगों के रहन-सहन को जानने के लिए हम विला सेंटोसा भी गए। मिनी मलेशिया पार्क में मलेशिया के हर राज्य के गांवों का घर बना है। अगर एंटीक चीजों को खरीदने का शौकहै तो सीधे जॉन्कर्स स्ट्रीट जाएं और वहां ट्राई शॉ राइड का मजा लिया और मेरीटाइम म्यूजियम भी घूमा।

अगले दिन पूरे समय हम पुत्राजया घूमे। पुत्राजया मलेशिया के प्रशासनिक केंद्र के रूप में विकसित किया गया है। सही पूछिए तो यह राजधानी कुआलालम्पुर का जुड़वां शहर है और मलेशिया का सारा राजकाज अब यहीं से चलता है। यहां की सुंदर चौड़ी सड़कों के दोनों तरफ पार्क हैं और आधुनिक भवन अपनी थीम ‘गार्डन सिटी, इंटलेक्चुअल सिटी’ को सही साबित करते हैं। यहां आप लेक क्रूज का मजा अवश्य उठाएं।

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