देवरिया ताल: जहां ठहर जाता है मन

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हम लोग देवरिया ताल के सामने खड़े हैं। इसके अप्रतिम सौंदर्य ने सभी को नि:शब्द कर दिया है। हमारा पूरा ध्यान सामने अचानक आ गए बेहद मनोहारी दृश्य से हटने का नाम ही नहीं ले रहा है।  एक पल पहले सभी चढ़ाई की कठिनाइयों पर ही बात कर रहे थे। पत्नी अपने घुटनों में दर्द और बार-बार सांस उखड़ने के बारे में बता रही थी। सभी बार-बार यही पूछ रहे थे कि अभी कितना और चलना है। तभी अचानक एक मोड़ पार करते ही देवरिया ताल दिखाई दिया और प्रकृति का यह अनछुआ सौंदर्य देखते ही सबके मुंह खुले के खुले रह गए।

अलविदा थकान!

जरा देर पहले जो लोग मुझसे कह रहे थे कि घूमने के नाम पर मैं हमेशा उनको किसी न किसी बहाने ट्रेकिंग के लिए ले जाता हूं और अकसर मुश्किल में फंसा देता हूं, अब एकदम शांत हैं। थकान का न तो जिक्र है, न ही कोई निशान। सभी इस स्थान के सौंदर्य से अभिभूत हैं। सामने गंगोत्री, यमुनोत्री, केदार, बद्रीनाथ, हनुमान चोटी आदि पर्वत श्रृंखलाएं है और चौखंबा तो इतना निकट लगता है कि शायद हम उसे हाथ बढ़ाकर छू सकते हैं। ताल बहुत बड़ा तो नहीं, पर छोटा भी नहीं है। इसके शांत जल में सामने ही हिममंडित पर्वतश्रृंखलाओं का प्रतिबिंब ऐसा सजीव है मानो एक पर्वतश्रृंखला पानी में भी हो।

आसपास के ढलान हरी अल्पाइन घास से ढके हैं। कुछ खास वनस्पतियां जो समुद्रतल से 2000 मीटर के ऊपर ही उगती हैं, इस स्थान को और भी अनोखा बनाती हैं। क्षेत्र में बहुतायत से बुरांस है। साथ ही पाइन, जूनीपर, देवदार और आरोकेरिया प्रजाति के शानदार वृक्षों की छटा देखते ही बनती है। सभी लोग इस दृश्य को आत्मसात करने के प्रयास में अपनी थकान भूल चुके हैं और अब आराम से सरोवर के चारों ओर बने परिक्रमा पथ पर चलने लगे हैं। सबकी कोशिश यही है कि जितना संभव हो, प्रकृति के सौंदर्य की यह अनुपम छटा अपनी आंखों में भर ली जाए। कुछ भी छूटने न पाए। लोगों के लिए यह यकीन कर पाना बहुत मुश्किल हो रहा है कि दुनिया अपने-आपमें इतनी सुंदर हो सकती है। सबका मन ही यहां आकर एकदम ठहर सा गया है। लगभग 1600-1700 मीटर के परिक्रमा पथ को पार करते-करते वहां के दृश्य का 360 डिग्री दृश्यावलोकन स्वत: ही हो जाता है।

और हम चल पड़े

इस सबकी शुरुआत भी अचानक हुई। बच्चों की परीक्षाएं समाप्त हुई और कुछ ही दिन पूर्व बैंक का कार्य भी कुछ हलका हो गया था। परीक्षाओं के तनाव से मुक्ति और बढ़ती गर्मी के प्रकोप ने पत्नी और बच्चों को छोटी दूरी के पर्यटन के लिए मुझ पर दबाव डालने के लिए प्रेरित किया। मैंने तुरंत इस अवसर का लाभ उठाते हुए उन्हें देवरिया ताल चलने के लिए अपनी सहमति दी और तुरंत ही निकलने की तैयारी भी शुरू कर दी। कार की धुलाई, छोटी-मोटी मरम्मत, मोबिल ऑयल, ब्रेक ऑयल, स्टीयरिंग ऑयल, पहियों (स्टेपनी सहित) की जांच में अधिक समय नहीं लगा। ठंड के उपयुक्त कपड़ों, खाने-पीने के सामान, कैमरा, हैंडीकैम आदि तैयार किया और रवानगी दर्ज कर दी। मैं इस क्षेत्र में कई बार आ चुका था, परंतु देवरिया ताल पहले केवल एक बार आया था। इसके सौंदर्य ने मुझे पुन: आने का आमंत्रण दिया और मैं यहां पुन: आने से अपने को नहीं रोक सका।

पहले दिन हम लोग घर से छ: बजे निकलकर आराम से 12.30 बजे हरिद्वार पहुंच गए। यहां पूरी-भाजी खाकर, कुछ समय हर की पौड़ी पर बिताकर, ऋषिकेश की ओर बढ़ चले। मार्ग में लक्ष्मण झूला, राम झूला आदि पर घूमते हुए हम लोग शाम तक श्रीनगर पहुंचे। देवप्रयाग पर भारत के नक्शे के निचले भाग को चित्रात्मक रूप से प्रदर्शित करता भागीरथी भिलंगना तथा अलकनंदा मंदाकिनी के संगम का दृश्य कितनी ही बार देखने के बाद भी हर बार आंखों को विशेष सुख देता है। उसके आगे कर्णप्रयाग पर अलकनंदा और मंदाकिनी के संगम का दृश्य देवप्रयाग से भिन्न है और जलराशि भी बेहद कम है।

बदलने लगे पेड़

श्रीनगर 670 मीटर पर स्थित गढ़वाल का कारोबारी नगर है। यह शिक्षा तथा राजनैतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। साथ ही चारधाम यात्रा का एक आवश्यक पड़ाव भी। यहां भोजन व विश्राम के बाद तरोताजा होकर हम अगले दिन ऊखीमठ के लिए चल पड़े। मार्ग पहले से संकरा होता जा रहा था और एक बार फिर वृक्षों के प्रकार बदलने लगे। नदी के सहारे चलते, सर्पिल मोड़ों पर घूमते दृश्यों के बदलाव का आनंद लेते हम आगे बढ़ते रहते हैं। एक बार काफी ऊंचाई पकड़ने के बाद फिर एक बार नीचे उतरने लगे और शीघ्र ही हम फिर समुद्रतल से 600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कुंड पर आ पहुंचे। यहां से एक मार्ग केदार हेतु गौरीकुंड की ओर जाता है तथा दूसरा ऊखीमठ की ओर। हम दूसरे मार्ग पर चल पड़े।

यहां से मार्ग इतनी गति से ऊंचाई पकड़ता है कि सारे दृश्य एकदम से बदलने लग जाते हैं। चीड़ का स्थान देवदार ले लेते हैं। मौसम में नमी, जंगल घना और वनस्पतियों की विविधता बढ़ जाती है। हरियाली और गहरी हो रही है तथा वन की महक हमें मदहोश करने लगती है। इस क्षेत्र में गढ़वाल के कुछ सबसे घने जंगल हैं।

अद्भुत प्रेमलीला का साक्षी

हम दोपहर बाद आराम से ऊखीमठ पहुंच गए। वहां गढ़वाल मंडल के गेस्टहाउस की हट्स में हमारे ठहरने का प्रबंध पहले से ही सुनिश्चित था।  यहां से सीढ़ीदार खेत, उसके बाद नदी, उस पार के पहाड़ तथा हिमाच्छादित चोटियां सायंकाल के डूबते सूर्य की लालिमा भरे प्रकाश में एकदम मायावी से लगते हैं। हम देर तक इस दृश्य में खोए रहे।

ऊखीमठ में पंचकेदारों के स्वरूप विराजमान हैं। वैसे तो यह केदार का मुख्य मठ है और शीतकाल में जब केदार के कपाट बंद रहते हैं तो केदार संबंधी सारी पूजा-अर्चना यहीं होती है। यहां पंचकेदारों के प्रतीक चिन्हों वाला एक मंदिर है जो भव्य तो नहीं, परंतु प्राचीन अवश्य है। इस मंदिर में एक अलग ही बोध होता है। ऊखीमठ एक अद्भुत प्रेमलीला का साक्षी भी है। वस्तुत: इसका मूल नाम ऊषामठ है जो राक्षसराज बाणासुर की पुत्री के नाम पर रखा गया था। ऊषा को स्वप्न में भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध की छवि देखकर उनसे प्रेम हो गया और उसने मायाबल से अनिरुद्ध का अपहरण कर लिया। बाद में श्रीकृष्ण ने बाणासुर को युद्ध में हरा कर अनिरुद्ध को मुक्त कराया, परंतु ऊषा का प्रेम देखकर उन्होंने विवाह की अनुमति तो दे ही दी, बाणासुर को क्षमा भी कर दिया।

कष्ट के बाद का सुख

अगले दिन हम लोग यहां से मुख्य सड़क पर थोड़ी दूर चले, फिर सारीग्राम के संपर्क मार्ग पर आ गए। लगभग 7 किलोमीटर का यह मार्ग अभी भी दुर्गम है। यहां कार बहुत सावधानी से चलानी पड़ती है।

सारी ग्राम से देवरिया ताल की दूरी मुश्किल से दो-ढाई किलोमीटर है, परंतु यह पैदल पथ इतनी तीखी चढ़ाई वाला है कि चलते ही सभी लोग थकान और सांस फूलने की शिकायत करने लगे। यह दूरी लगभग एक घंटे में पूरी हुई, परंतु इस कष्ट के बाद जो दृश्य सामने आया वह कल्पनातीत था।

लगभग पूरा दिन यहां बिताकर हम लोग वापसी के लिए चल पड़े और तीखी ढलान के कारण सावधानी से उतरते हुए अपने घुटनों की शिकायत सुनते सारीग्राम जा पहुंचे। खाने-पीने का सामान साथ था ही और सभी लोगों ने ताल के किनारे टहल-टहल कर खूब खाया था, परंतु हमने एक भी रैपर, पॉलीथिन, खाली डिब्बा आदि वहां नहीं छोड़ा था। कहते हैं यह ताल देवताओं का विचरण  स्थान है और चौखंभा उनकी विशिष्ट मंत्रणा का स्थल। अत: हमारा ही कर्तव्य है कि इस स्थान की अलौकिक गरिमा बनाए रखें।

शाम के वक्त हमने फिर ऊखीमठ पर विश्राम किया और अगले दिन चोपता के अनुपम दृश्य का दर्शन कर हम लोग उसी दिन शाम तक श्रीनगर आ गए। अगले दिन वापस अपने घर। इस प्रकार मात्र पांच दिन में हम ऊखीमठ, देवरिया ताल और चोपता के अनुपम अप्रतिम सौंदर्य को अपने मानस पर समेटे वापस आ गए। वे सुंदर दृश्य आज भी हमारी स्मृति में ज्यों के त्यों अंकित हैं।

कैसे पहुंचें

हरिद्वार, इसके बाद ऋषिकेश, देवप्रयाग, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, तिलवाड़ा, अगस्त मुनि, चंद्रपुरी, कुंड होकर ऊखीमठ, सारीग्राम और वहां से देवरिया ताल।

कहां ठहरें

ठहरने के लिए लगभग हर जगह सामान्य और बेहतर सुविधाएं उपलब्ध हैं। गढ़वाल मंडल के गेस्टहाउस बेहतर विकल्प हैं, परंतु पूर्व बुकिंग आवश्यक है (दिल्ली तथा ऋषिकेश से)

मौसम

ऊखीमठ, चोपता तथा देवरिया आदि स्थानों पर हर मौसम में ठंड रहती है। मई से लेकर सितंबर तक प्रतिदिन बारिश आम बात है। इसलिए कपड़ों की विशेष व्यवस्था कर के चलें।

दूरी तथा समुद्रतल से ऊंचाई

दूरी : ऋषिकेश से श्रीनगर 80 किमी तथा ऊखीमठ लगभग 185 किमी है।

ऊंचाई : श्रीनगर 670 मीटर, ऊखीमठ 1311 मीटर, देवरिया ताल 2440 मीटर, चोपता 2900 मीटर।

आसपास

यहां से आसानी से गुप्तकाशी त्रिजुगी नरायन, केदार (कुंड होकर) जाया जा सकता है तथा दूसरी ओर चोपता, तुंगनाथ, सती अनुसुइया मंदिर जा  सकते हैं।

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