बात रंगों व फूलों की

  • SocialTwist Tell-a-Friend

खजुराहो डांस फेस्टिवल, खजुराहो, मध्य प्रदेश
खजुराहो के मंदिर इतने खूबसूरत हैं कि नृत्य और संगीत मानो यहां के पत्थरों में सब तरफबिखरा पड़ा है। यूं तो हर प्राचीन इमारत का अपना समृद्ध इतिहास होता है लेकिन खजुराहो के मंदिरों जैसे रहस्यमय आवरण में लिपटे पन्ने बहुत कम को ही नसीब होते हैं। खजुराहो डांस फेस्टिवल इसी विरासत को सहेजने की एक सालाना कोशिश है जिसमें देश के सबसे बेहतरीन शास्त्रीय नर्तक रोशनी में नहाए मंदिरों की पृष्ठभूमि में अपने नृत्य का जादू बिखेरते हैं। कत्थक, भरतनाट्यम, कुचीपड़ी, ओडिसी, मणिपुरी और तमाम शैलियों के नृत्यों के कलाकारों को देखने देश-विदेश से पर्यटक यहां जमा होते हैं। चंदेला राजाओं के बनाए ये मंदिर भारतीय स्थापत्य कला का बेमिसाल नमूना हैं। इस नृत्य समारोह के दौरान ये पत्थर की मूर्तियां और उनके सामने नृत्य करते कलाकार मानो एकाकार हो जाते हैं। एक ऐसा आयोजन जिसे देखने का मौका छोड़ना नहींचाहिए।
सिंगापुर इंटरनेशनल फेस्टिवल फोर चिल्ड्रन, सिंगापुर
बच्चों, खास तौर पर 2-12 साल के बच्चों और साथ में उनके अभिभावकों-अध्यापकों के लिए भी मौज-मस्ती, जानने-सीखने का बेहतरीन मौका। थियेटर, फिल्म, डांस, कठपुतली, मास्क प्ले, संगीत व माइम से जुड़े देशी-विदेशी कलाकार यहां अपनी कारीगरी का नमूना पेश करते हैं। कला के तमाम क्षेत्रों से जुड़ा 11 दिन का यह अनुभव कनाडा, अमेरिका, अर्जेटीना, इंग्लैंड, जापान, चेक गणराज्य, इस्त्राइल, कोरिया, इटली, पेरू, दक्षिण अफ्रीका व आस्ट्रेलिया आदि तमाम देशों से कलाकारों को यहां खींच लाता है।

और तो और, यहां कहानी कहना, ड्रामा, कॉमेडी, सर्कस थिएटर व जोकरी जैसी विधाओं को भी सिखाया जाता है। दक्षिण-पूर्व एशिया में बच्चों के लिए यह अपनी तरह का अकेला कला महोत्सव है। न केवल यह तमाम प्रदर्शनों के लिहाज से बेहद आनंददायक है बल्कि अभिभावकों और अध्यापकों के प्रति इस बात को भी रेखांकित करता है कि बच्चों में यथासंभव विभिन्न कलाओं के प्रति रूझान बढ़ाया जाना चाहिए।
दाना प्वाइंट फेस्टिवल ऑफ व्हेल्स, दाना प्वाइंट, कैलिफोर्निया अमेरिका
मार्च में लगातार दो सप्ताहंतों पर होने वाला यह अद्भुत जलसा एक प्राकृतिक प्रक्रिया को मनाने का शानदार तरीका है। व्हेल अपने आपमें बड़ी रोमांचक प्राणी है। उसे समुद्र में अठखेलियां करते देखना तो यादगार अनुभव है। विशालकाय कैलिफोर्निया ग्रे व्हेल हर साल दिसंबर महीने में अलास्का से मैक्सिको का पांच हजार मील का सफर शुरू करती है। यह सफर मार्च तक जारी रहता है। इस माइग्रेशन के चरम के दौरान हर रोज 40-50 व्हेल दाना प्वाइंट से होकर गुजरती हैं। फेस्टिवल ऑफ व्हेल्स इसी सफर का जलसा है। जिसमें लोग जुटकर न केवल गुजरती व्हेल्स को निहारते हैं बल्कि उन पर आर्ट शो, फिल्म स्क्रीनिंग करते हैं। जश्न मनाने का बाकी अंदाज- खाना-पीना, खेल-कूद, समुद्र में सैर, परेड, झांकियां, वगैरह तो होते ही हैं। अपने में एक अद्भुत और दुर्लभ अनुभव।
इंटरनेशनल फ्लावर फेस्टिवल, गंगटोक, सिक्किम
हिमालयी इलाकों के लिए मार्च-अप्रैल का समय फूलों के पूरे यौवन पर खिलने का होता है। सिक्किम वनस्पतियों की प्रजातियों के लिए जाना जाता है। यहां 600 किस्म के ऑर्किड, 240 किस्म के पेड़ व वनस्पतियां, 150 किस्म के ग्लेडियोली, 46 किस्म के रोडोडेन्ड्रन, और न जाने क्या-क्या। प्रकृति की इसी रंगीनी को मनाने के लिए हर साल यह इंटरनेशनल फ्लावर फेस्टिवेल आयोजित किया जाता है। यथासंभव हर किस्म के फूलों की खिलखिलाहट व रंग यहां देखने को मिल जाते हैं। तमाम विशेषज्ञ सेमिनार व लेक्चर आयोजित करते हैं। जलसा है तो इसमें सिक्किम के खास-खास पकवान भी चखने को मिलते हैं। रोमांच प्रेमियों के लिए राफ्टिंग व याक सफारी के आकर्षण भी होते हैं।
ऐलीफेंट फेस्टिवल, जयपुर, राजस्थान
भारत में होली के विविध रंगों में से एक बेहद खूबसूरत और लोकप्रिय रंग। हाथियों से होली खेलने के लिए देश-विदेश से लोग यहां जमा होते हैं। जयपुर के चौगान स्टेडियम में हाथियों की परेड होती है, दौड़ होती है, पोलो खेला जाता है, जिसमें टीमें केसरिया वेशभूषा और लाल साफे पहली होती हैं और सबसे अंत में फागुनी रंगों की होली खेली जाती है। हर तरफ रंग होते हैं, संगीत होता है, पारंपरिक नृत्य होते हैं और इन सबसे ऊपर एक उल्लास होता है। शाम खत्म होते-होते सब प्रेम के रंगों में सराबोर हो जाते हैं। हालांकि सिर्फ हाथी ही नहीं, बल्कि सजे-धजे घोड़े, रथ, ऊंट, तोपें, पालकियां वगैरह भी पारंपरिक झांकियों में शामिल होती हैं। हाथियों में ज्यादातर मादा हाथी होती हैं जिन्हें उनके महावत बेहद सजाकर उतारते हैं। खूबसूरत हौदे होते हैं, हथनियां गहने पहनी होती हैं, उनके मस्तक व सूंड खूबूसरत रंगोली का सा आभास देते हैं। आखिर उनकी भी सौंदर्य प्रतियोगिता होती है। राजस्थान की रंगीन संस्कृति देखने का यह बेहद शानदार मौका होता है।
डव कूइंग कम्पीटिशन, ख्वान मुएंग पार्क, थाईलैंड
दुनियाभर में सालभर अनोखे किस्म के आयोजन व स्पर्धाएं होते रहते हैं। ऐसे ही आयोजन में से यह एक है। कूइंग यानी कूक यानी डव के कूकने की आवाज की स्पर्धा। थाईलैंड में सालों से यह माना जाता रहा है कि डव उन लोगों के जीवन में अच्छी किस्मत लेकर आते हैं जो उन्हें पालते-पोसते हैं। खास तौर पर थाईलैंड के निचले दक्षिणी प्रांत में जेबरा डव (जिनके बदन पर जेबरे की तरह धारियां होती हैं) पालने का बड़ा शौक रहा है। वहां कुछ समय पहले तक डव के कूकने का एक स्थानीय आयोजन होता था जो अब एक अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में तब्दील हो चुका है। इसमें छोटी, मझोली, बड़ी व मिली-जुली आवाजों की श्रेणियों में प्रतियोगिता होती है। हालांकि यह मुख्य स्पर्धा है। साइड आयोजन के तौर पर कई जानवरों की लड़ाईयां भी होती हैं। इन्हें आप नजरअंदाज भी कर दें तो डव के कूकने की आवाज का मजा तो लिया ही जा सकता है।

VN:F [1.9.1_1087]
Rating: 0.0/10 (0 votes cast)



Leave a Reply

    * Following fields are required

    उत्तर दर्ज करें

     (To type in english, unckeck the checkbox.)

आपके आस-पास

Jagran Yatra