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रोजमर्रा जिंदगी की आपाधापी और एकरसता से उपजी ऊब से उबरने का सबसे अच्छा उपाय है सैर-सपाटा। इससे जीवन में नए रंग भरने का मौका तो मिलता ही है, कई तरह की नई जानकारियों और नए अनुभवों की उपलब्धि भी होती है। इनमें सर्वोत्तम उपलब्धि है विभिन्न देशों की संस्कृतियों, उनके रीति-रिवाजों और परंपराओं की समझ। यह समझ जितनी विकसित होगी, सोचने और समझने का दायरा उतना ही बड़ा होगा। रीति-रिवाजों और परंपराओं को समझने का सबसे अच्छा माध्यम है उस देश का भोजन। भोजन से आप एक नया स्वाद तो लेते ही हैं, खानपान से उस देश विशेष के रीति-रिवाजों और उसकी सांस्कृतिक-भौगोलिक विशिष्टताओं का भी अंदाजा आपको आसानी से हो जाता है। वैसे भी, कहा जाता है कि जैसा खाए अन्न वैसा बने मन।
इसी क्रम में हम आपके लिए चुन कर लाए हैं तीन ऐसे देशों की जानकारी जिनका खानपान किसी हद तक हमारे भारतीय खानपान से भी मिलता है। और किसी मामले में हो न हो, पर खानपान के मामले में जरूर इन जगहों पर जाकर आपको ऐसा लगेगा, गोया आप अपने देश में ही हैं। ये देश हैं मोरक्को, पोलैंड व फिलीपींस। तो आइए जानते हैं इन देशों के खास स्थलों और खानपान के बारे में।
बहुरंगी प्रकृति का देश मोरक्को
खानपान के लिहाज से पर्यटन की बात करें तो सबसे पहला नाम आएगा मोरक्को का। पूरे देश में कहीं भी चले जाएं, तरह-तरह के मसालों की दुकानें आपको हर तरफ दिख जाएंगी। इसका साफ असर उनके खानपान पर भी देखा जा सकता है। तरह-तरह के व्यंजन और उन व्यंजनों में मसालों का भरपूर इस्तेमाल। देखते ही खाने को जी ललचाए। प्रकृति और इतिहास की संपदा से भरपूर इस देश में घूमने के लिए भी काफी कुछ है। मोरक्को का पूरा नाम अल ममलकाह अल मगरिबिया है। अरबी भाषा में इसका अर्थ है पश्चिम का राज्य। जनसंख्या के मामले में अरब देशों में इसका तीसरा स्थान है। इसके बावजूद शांति इसकी थाती है। अगर आप पहाड़ों का सफर करना पसंद करते हैं और ट्रेकिंग के शौकीन हैं तो आपको मोरक्को जरूर जाना चाहिए, क्योंकि यह देश चारों तरफ से पहाड़ों से घिरा हुआ है। मोरक्को के पहाड़ी गांवों में लहलहाते फूलों से महकते खूबसूरत मैदान देखकर तो आप अभिभूत ही रह जाएंगे। इसके अलावा रेतीले रेगिस्तान, सुंदर समुद्रतट और हरियाली से भरी उपजाऊ घाटियां भी आप यहां देख सकते हैं। प्रकृति की बहुरंगी छटा के मामले में यह काफी कुछ भारत जैसा ही है। ऐतिहासिक विरासत के मामले में भी यह कुछ कम नहीं है। यहां मरखेज, तांजा, फेस और कसाब्लांका जैसे शहर ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। इससे भी दिलचस्प बात यह है कि मोरक्को भी भारत की तरह उत्सवों का देश है। यहां पूरे साल कोई न कोई त्योहार मनाया जाता रहता है। इससे माहौल हमेशा उत्सवी बना रहता है।
रखें खयाल
कैसे पहुंचें: भारत के नई दिल्ली स्थित अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से मोरक्को की राजधानी रबात के लिए नियमित उड़ानें हैं। ये उड़ानें आम तौर पर लंदन या पैरिस होकर जाती हैं।
कैसे घूमें: यहां घूमने के लिए कई साधन हैं। आप चाहें तो बस सेवा का प्रयोग कर सकते हैं, या फिर रेल या हवाई जहाज से भी सफर कर सकते हैं। मोरक्को के लगभग हर प्रमुख शहर में हवाई अड्डे हैं। वहां प्रायोजित टूर भी खूब होते हैं। बेहतर होगा कि इनका फायदा उठाया जाए।
कब जाएं: यहां घूमने के लिए सबसे बढि़या समय मार्च से मई के बीच होता है। इसके बाद फिर सितंबर से नवंबर के बीच घूमा जा सकता है। ये दोनों ऐसे समय हैं जब यहां न तो बहुत गर्मी होती है और न ही सर्दी।
मसालेदार बिस्तीया
मोरक्को के सैर पर जाने वालों के लिए सबसे अनूठा अनुभव होता है खानपान का। यहां स्थानीय व्यंजनों की सबसे खास बात यह है कि उनमें मसालों का भरपूर प्रयोग होता है। यह एक विशिष्टता ऐसी है जो उन्हें भारतीय व्यंजनों से बहुत निकट ला देती है और यही वजह है कि भारतीय पर्यटक यहां के खानपान को खूब पसंद करते हैं। इनमें कुछ तो भारतीय व्यंजनों जैसे ही हैं, जैसे हलवा और कबाब। इसके अलावा ग्रीन टी और मिंट को उबाल कर बनाया जाने वाला एक पेय भी खूब पसंद किया जाता है, जो स्वाद में बहुत हद तक भारतीय चाय जैसा ही होता है।
पर अगर आप मांसाहारी हैं और मोरक्को जाएं तो बिस्तीया खाना बिलकुल न भूलें। यह एक तरह की पेस्ट्री होती है, जिसके भीतर अलग-अलग तरह की फिलिंग होती है। मोरक्को के स्थानीय लोग बिस्तीया में आम तौर पर कबूतर का मांस भरना पसंद करते हैं। जिन्हें यह पसंद नहीं होता वे चिकेन और अंडे की जर्दी भरते हैं। भरने के पहले इसकी फिलिंग्स में खास तरह से मसाले मिलाए जाते हैं। इसमें नीबू, दालचीनी और सूखे मेवे भी खूब मिलाए जाते हैं। पकाने के बाद इन्हें अॅनियन सॉस के साथ खाया जाता है।
ध्वंस के बाद निर्माण फिर-फिर पोलैंड
क्या आप जानते हैं कि विश्वविख्यात नक्षत्र विज्ञानी निकोलस कॉपर्निकस, पश्चिमी संगीत को नया व्याकरण देने वाले फ्रेडरिक चॉपिन और नोबल विजेता मानवाधिकारवादी लेक वालेसा जैसी महान हस्तियां किस देश से संबंधित हैं। ये सभी पोलैंड में जन्मे हैं। जर्मनी और रूस के बीच मौजूद इस देश ने द्वितीय विश्वयुद्ध की विभीषिका बहुत बुरी तरह झेली थी। दक्षिण में इसकी सीमाएं स्लोवाकिया और चेक रिपब्लिक से मिलती हैं। दुनिया के नक्शे पर इसके उभार की कहानी बर्लिन की दीवार गिरने के साथ शुरू होती है। इसके बाद से ही पर्यटकों के बीच इसकी चर्चा शुरू हुई और अब यह बहुत लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है। पोलैंड में ऐतिहासिक शहर कई हैं और ये सभी ‘ध्वंस के बाद निर्माण फिर-फिर’ की कथा कहते हुए से लगते हैं। राजधानी वारसा को तो फीनिक्स पक्षी की ही उपमा दी जाती है, जो देहांत के बाद अपने ही शरीर की राख से दुबारा उत्पन्न हो जाता है। द्वितीय विश्वयुद्ध में इस शहर का जैसा विध्वंस हुआ था, उसके बाद इसका फिर से निर्माण लगभग असंभव ही था। पर यह शहर फिर से उठ खड़ा हुआ और आज पूरी दुनिया को अपनी उत्कट जिजीविषा का प्रमाण दे रहा है। वैसे यहां एक ऐसा शहर भी है जो युद्ध के प्रभाव से अछूता रह गया था। यह शहर है क्रॉको। गोथिक और रेनेसां काल के वास्तु शिल्प का नजारा लेना चाहें तो इससे बेहतर जगह दूसरी नहीं होगी।
पोलैंड जैसे बड़े देश को एक बार में पूरा घूम पाना तो मुश्किल ही है, पर इसे अलग-अलग हिस्सों में बांट कर देखा जा सकता है। वन्य जीवन देखना चाहें तो आपको मध्य पोलैंड की सैर करनी चाहिए। पश्चिमी भाग राष्ट्रीय स्मारकों की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, दक्षिण पहाड़ी इलाकों और दक्षिण-पश्चिम प्राचीन काल के राजमहलों के लिए जाना जाता है।
रखें खयाल
कैसे पहुंचें: पोलैंड की राजधानी वारसा के लिए नई दिल्ली से नियमित उड़ानें हैं। ये उड़ानें हेलसिंकी या विएना होते हुए जाती हैं।
कैसे घूमें: पूरे पोलैंड में घूमने के लिए साधनों की कोई कमी नहीं है। आप चाहें तो सार्वजनिक साधनों का इस्तेमाल कर सकते हैं या फिर निजी तौर पर टैक्सियों की रिजर्व बुकिंग भी करा सकते हैं। ट्रेनों का संपर्क यहां से बर्लिन और लंदन के लिए भी आसानी से है।
कब जाएं: पोलैंड जैसे बड़े देश में घुमक्कड़ी के लिए पूरे साल मौसम उपयुक्त रहता है। जुलाई-अगस्त के दौरान वहां भीड़ बहुत बढ़ जाती है। अत: अगर इस बीच जाना हो तो आवागमन के साधनों की बुकिंग पहले से करा लें।
चिकेन का जायका अनूठा
ज्यादातर मैदानी इलाके होने के नाते पोलैंड में आपको कई तरह के जायके मिल सकते हैं। हां, जब पोलैंड की सैर कर रहे हों और वहीं का भोजन करना चाहें तो कैलोरी का हिसाब रखे जाने लायक नहीं है। क्योंकि वहांपारंपरिक भोजन में चिकेन का इस्तेमाल सबसे ज्यादा किया जाता है। यहूदियों का पर्याप्त असर होने के कारण यहां कई तरह के सॉस, चुकंदर, ककड़ी, खट्टी क्रीम, मशरूम आदि का इस्तेमाल भी खूब किया जाता है। यहां की सबसे लोकप्रिय डिश है कुर्कजाक डी वलेल। कुर्कजाक पोलिश भाषा में चिकेन को ही कहते हैं। यह एक तरह से चिकेन टिक्का होता है। इसे बटर से तला गया होता है और इसके भीतर मशरूम व कई अन्य चीजें भी भरी होती हैं।
हजार द्वीपों में जिंदगी फिलीपींस
अगर आप सी-फूड के शौकीन हैं तो फिलीपींस की सैर आपके लिए बहुत मुफीद होगी। यह ऐसी जगह है जहां आप सी-फूड के कई रंग देख सकते हैं, वह भी अलग-अलग रूपों और स्वाद में। कई देशों की संस्कृतियों के असर के कारण इनके खानपान पर भी सामासिक संस्कृति का पूरा असर दिखाई देता है। लेकिन पहले बात सैर-सपाटे की। कुल सात हजार द्वीपों वाले इस देश के करीब एक हजार द्वीप ही आबाद हैं। राजधानी इनकी मनीला है और समुद्र तटों का लुत्फ आप इसके किसी भी द्वीप पर ले सकते हैं। हजार द्वीपों से मिलकर बने द्वीप में सांस्कृतिक विविधता तो स्वाभाविक है। इस वैविध्य में फिलीपींस की मूल पहचान इसके पूर्वजों की ऐतिहासिक संस्कृति से है, जिसे मूल निवासियों ने सहेज कर रखा है। इनमें अपने अतीत तथा अपनी भाषा व संस्कृति के प्रति जैसा लगाव एवं गौरव का भाव दिखता है, सीखने लायक है।
फिलीपींस को आजादी और खूबसूरती की धरती कहा जाता है और इसकी सच्चाई आपको राजधानी मनीला से ही दिखने लगेगी। भारतीय शहरों की ही तरह भीड़ और शोर से भरपूर होने के बावजूद मनीला का सौंदर्यबोध देखने लायक है। यह सौंदर्यबोध उनकी ऐतिहासिक इमारतों से लेकर छोटी-बड़ी दुकानों और बाजारों तक हर तरफ दिखाई देता है। मनीला जाएं और नाइटलाइफ का मजा न लें तो घूमना अधूरा रह जाएगा। यहां के नाइटलाइफ में रेस्टोरेंट, बार और पब के अलावा बाजार भी शामिल हैं।
मनीला से छह-सात घंटे की ड्राइव पर बागियो सिटी है। अगर आप किसी ट्रॉपिकल देश की प्रकृति की पूरी जानकारी चाहते हैं तो बागियो के पार्क, बॉटैनिकल गार्डेन जरूर घूमें। बहुत लोग यहां से पौधे, कपड़े और हस्तशिल्प की वस्तुएं खरीद कर ले जाते हैं। सी-बीच का आनंद लेने के लिए तो यहां इतनी जगहें हैं कि नाम गिनना मुश्किल है। इनमें से प्रमुख हैं पुएर्टो गलेरा, अमालपुलो, बोहोल, सजोर्दा रिवर पार्क इबा में, जाम्बेल्स और बोराके।
मिर्च रहित स्वाद लुम्पिया और सिनिगांग
एशिया महाद्वीप में पश्चिमी संस्कृति का सबसे ज्यादा असर अगर कहीं दिखता है तो वह है फिलीपींस। यहां स्पेन, मलेशिया और चीन के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं। इसलिए इनके खानपान पर भी तीनों का असर दिखाई देता है। हालांकि कई और एशियाई देशों की तरह फिलीपींस के लोग मिर्च का इस्तेमाल ज्यादा नहीं करते हैं, पर मसाले का इस्तेमाल खूब करते हैं और उससे स्वाद भी भरपूर मिलता है। भारतीय लोग वहां के व्यंजनों में दो चीजें तो खूब पसंद करते हैं। इनमें एक है लुम्पिया और दूसरा सिनिगांग। लुम्पिया देखने में स्पि्रंग रोल जैसा होता है, जिसके भीतर सब्जियां और मांस भरा होता है। मांस के तौर पर इनमें अधिकतर सी-फूड ही भरा जाता है। जबकि सिनिगांग मिले-जुले स्वाद वाला सूप है। इस मिले-जुले स्वाद में खट्टा प्रमुख है। इसे आम तौर पर चावल के साथ खाया जाता है। वस्तुत: यह कच्चे अमरूद, इमली की पत्तियां व फूल, कामिया और टमाटर डालकर बनाया जाता है। वैसे सिनिगांग कई तरह से बनाया जाता है। खास तौर से मांसाहारी लोगों के लिए इसे दो तरह से बनाया जाता है। या तो मछली डालकर या फिर पोर्क के साथ भी इसे बनाया जाता है।
रखें खयाल
कैसे पहुंचें: मनीला के लिए नई दिल्ली से नियमित उड़ानें हैं। ये उड़ानें आम तौर पर बैंकॉक या कुआलालम्पुर होते हुए जाती हैं।
कैसे घूमें: फिलीपींस के भीतर भ्रमण आम भारतीय के लिए आसान है। सभी जगह आने-जाने के लिए यातायात की सार्वजनिक सुविधाएं आसानी से सुलभ हैं। सड़कों पर बस-टैक्सी आसानी से मिल जाती हैं और अगर आप समुद्र के रास्ते घूमना चाहें तो फेरी का उपयोग कर सकते हैं।
यहां घूमने की योजना आप इस तरह बना सकते हैं। सबसे पहले मनीला, फिर बागियो सिटी, इसके बनेऊ राइस टेरेस, बटेन्स द्वीप समूह, बोराके द्वीप, सेबू सिटी, कोरेगिडोर, दावाओ सिटी, पलावान द्वीप, पैंगासिनान्स हंड्रेड आइलैंड्स, पुएर्टो गलेरा बीच, बोहोल आइलैंड्स और इलोकोस सूर राज्य में स्थित विश्व विरासत की सूची में शामिल शहर विगान।
भाषाएं
भारत की तरह यहां भी भाषाओं और बोलियों की बहुलता है। केवल प्रमुख भाषाओं की संख्या ही यहां 76 है और बोलियां हैं करीब 500, फिर भी शहरों में अंग्रेजी जानना पर्याप्त है।
मौसम
यहां घूमने के लिए नवंबर से मई तक का मौसम बेहतर है। लेकिन जून से अक्टूबर के बीच यहां स्थानीय भ्रमण बरसात के कारण मुश्किल हो सकता है।