गढ़वाल हिमालय जहां वक्त भी ठहर जाता है

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उफनती नदियों, हिमाच्छादित चोटियों, मनमोहक झीलों, वनस्पतियों और वन्य जीवों से परिपूर्ण हिमालय को देव भूमि कहा जाता है। यहां की ठंडी हवा और हिमालय की छटा स्वर्गिक सुख प्रदान करती है। छह जिलों-देहरादून, उत्तरकाशी, चमोली, रुद्र प्रयाग, पौड़ी, टिहरी से मिलकर बना गढ़वाल, भक्तों के लिए देव भूमि है। एडवेंचर के शौकीन, मौज-मस्ती करने वाले और तीर्थाटन करने वाले सैनानियों के लिए यह एक बेहतरीन स्थल है। बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री जैसे पवित्र धाम भी यहीं स्थित हैं। गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियों का उद्गम भी यहीं से हुआ है। गढ़वाल की घाटियों में नैसर्गिक सौंदर्य बिखरा हुआ है।

यात्रा का आरंभ देहरादून से करते हैं। यहीं से गढ़वाल एक तरह से आरंभ होता है। यह पहाड़ और मैदानी भाग का मिलन बिंदु है।

फूलों की घाटी

कुदरत ने कुछ स्थानों को बड़ी फुर्सत से संवारा और सजाया है जिनमें फूलों की घाटी का स्थान प्रमुख है। 5 कि.मी. लंबी और 2 कि.मी. चौड़ी इस फूलों की घाटी में आपकी नजर जितनी दूर जाती है, उतनी दूर तक आपको फूल-ही-फूल नजर आते हैं। खासकर मानसून के दिनों में इस घाटी का शबाब सारी सीमाओं को लांघता नजर आता है। तभी तो यह जगह पूरे विश्व में अद्वितीय है। इसे देखने के लिए सैलानियों की भीड़ उमड़-घुमड़ कर यहां पहुंचती रहती है और जब ऐसा खूबसूरत समां कुदरत बांधेंगी तो इसके आगोश में दूसरे खूबसूरत जीव-जंतु भी होंगे ही। बद्रीनाथ के पूरब में शंकु के आकार की एक घाटी है, जिसे ‘फूलों की घाटी’ का नाम दिया गया है। पुष्पावती नामक नदी इसी घाटी से होकर प्रवाहित होती है। इस घाटी को राष्ट्रीय पार्क घोषित किया गया है। इस घाटी में कैंप लगाना, खाना पकाना, पशुओं को चराना आदि मना है। जिससे यहां का पर्यावरण संतुलित रहे और स्थानीय वनस्पतियों पर बुरा असर न पड़े।

हेमकुंड साहब

फूलों की घाटी से निकलकर आप एक और मनोहारी दुनिया में पहुंच सकते हैं। यह दुनिया है हेमकुंड साहब की। समुद्र तल से 4,329 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हेमकुंड साहब फूलों की घाटी के समीप बनी एक पवित्र झील है। यह स्थल गुरु गोविंद सिंह से संबंधित है। यह सात हिमाच्छादित चोटियों और उनसे जुड़ी हिमनदियों से घिरा हुआ है। इस झील के स्वच्छ जल का अपना एक अलग आकर्षण है। हाथी पर्वत और सप्त ऋषि चोटियों से निकलने वाली हिम नदियां इस झील को जल से परिपूर्ण रखती हैं। इसी झील से हिमगंगा नामक एक छोटी-सी नदी निकलती है। गुरु ग्रंथ साहिब के अनुसार सिक्ख पंथ के दसवें गुरु गोविंद सिंह ने अपने पूर्व जन्म में इसी झील के तट पर तपस्या की थी। यह स्थान सिक्ख संप्रदाय के लोगों के लिए ही नहीं, हिंदुओं और अन्य मत के लोगों के लिए भी एक प्रमुख तीर्थ बन गया है।

प्रयाग दर्शन

प्रयाग नदियों के संगम को कहा जाता है। हिंदू धर्म शास्त्रों में नदियों को देवी माना गया है। दो या दो से अधिक नदियों के संगम का जल तो और भी अधिक पवित्र होता है। ऐसे में प्रयाग दर्शन का अपना ही महत्व और आकर्षण है।

गढ़वाल श्रृंखला में सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रयाग व संगम, ऋषिकेश और त्रिवेणघाट को माना जाता है। गढ़वाल के पंच प्रयाग का स्थान इसके बाद आता है। इनमें देव प्रयाग, रुद्र प्रयाग, कर्ण प्रयाग, नंद प्रयाग और विष्णु प्रयाग शामिल हैं। देव प्रयाग अलकनंदा और भागीरथी नदियों के संगम पर स्थित है। इस स्थान को गंगा का उद्गम स्थल माना जाता है। पुराने समय में इसी स्थान से होकर बद्रीनाथ और गंगोत्री जाने वाले तीर्थयात्री गुजरते थे। प्रसिद्ध रघुनाथ मठ और शिव मंदिर इसी स्थान पर हैं। रुद्रप्रयाग शिव (रुद्र) के नाम पर बसा यह स्थान अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों के संगम पर है। ऐसा माना जाता है कि इसी स्थान पर शिव ने नारद का अभिमान तोड़ा था। यहां रुद्रनाथ और चामुंडा देवी के मंदिर हैं। केदार एक्सकेवेशन के लिए इसी स्थान से रास्ता अलग होता है।

कर्ण प्रयाग, अलकनंदा और पिंडार नदियों के संगम पर स्थित है। यहां से छह कि.मी. की दूरी पर स्थित सिंपली नामक स्थान में पुरातत्व विभाग द्वारा खुदाई का कार्य कराया जा रहा है। यहां गुप्तकाल से भी प्राचीन समय की मूर्तियां निकली हैं। यह स्थान कर्ण और उमादेवी के मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। रानीखेत, अल्मोड़ा और कौसानी तथा ज्वालाधाम के लिए यहां से सड़कें जाती हैं। नंद प्रयाग, अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों के संगम पर बसा हुआ है। इसका नाम यादवों के राजा और कृष्ण के पालनकर्ता पिता नंद के नाम पर है। विख्यात गोपाल जी मंदिर यहीं पर है। विष्णु प्रयाग अलकनंदा और धौली गंगा नदियों के संगम पर स्थित है। यहां एक प्राचीन मंदिर है और विष्णु नामक एक कुंड है।

यमुनोत्री

यमुनोत्री पीठ 3235 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह हिंदुओं के सर्वाधिक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक है। समझा जाता है कि यमुनोत्री की यात्रा करना प्रत्येक हिंदू के लिए आवश्यक है। यह गंगोत्री की विपरीत दिशा में है। धरासू नामक स्थान से यमुनोत्री जाने के लिए रास्ता अलग हो जाता है। यमुनोत्री की यात्रा मसूरी और बारकोट होकर भी की जा सकती है।

गंगोत्री

3200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह पीठ भागीरथी नदी का उद्गम स्थान है। इसके चारों ओर शिवलिंग और संतोपथ पर्वतों की चोटियां एवं सहायक नदियां हैं जिन्हें भागीरथी की बहनों के रूप में जाना जाता है। गंगोत्री हिंदुओं के प्रमुख पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है।

केदारनाथ

केदारनाथ शिव के बारह ज्योतिìलगों में से एक है। केदारनाथ पर्वतमाला की पृष्ठभूमि में स्थित यह मनमोहक स्थान 3581 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां पहुंचने के लिए गौरीकुंड से 14 कि.मी. की पैदल यात्रा करनी पड़ती है। केदार शिव का एक नाम है। यही रक्षक और संहार करने वाले हैं। शिव को प्रेम, घृणा, भय, मृत्यु और गू़ढ़त्व का एकाकार समझा जाता है जिसकी अभिव्यक्ति उनके विभिन्न रूपों के माध्यम सेकी जाती है। अकेले चमोली जिले में ही शिव के 200 से अधिक पीठ हैं जिनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण केदारनाथ पीठ है।

बद्रीनाथ

नर-नारायण पर्वत की गोद में स्थित यह स्थान भी पवित्र पीठों में से एक है। इसके समीप नीलकंठ पर्वत है जिसकी ऊंचाई 6,597 मीटर है। कहा जाता है कि स्वर्गलोक, मृत्युलोक और अन्य लोकों में अनेकानेक पवित्र स्थल हैं, किन्तु बद्रीनाथ के समान पवित्र स्थल न तो कोई है और न ही होगा। यह भी कहा जाता है कि हिंदुओं की खोयी प्रतिष्ठा की पुन: स्थापना और भारत को एक सूत्र में पिरोने के लिए आदि गुरु शंकराचार्य ने भारत के चारों दिशाओं में चार पीठों की स्थापना की थी। उत्तर में बद्रीकाश्रम, दक्षिण में रामेश्वरम्, पश्चिम में द्वारकापुरी और पूर्व में जगन्नाथपुरी।

आकर्षक क्रीड़ांगन औली

गढ़वाल में आप प्राकृतिक छटाओं और धार्मिक स्थलों के अतिरिक्त गैर परंपरागत खेलों का भी लुत्फ उठा सकते हैं। गढ़वाल पर्वत श्रेणियों के हिमाच्छादित ढलान, शरद ऋतु में स्कीइंग के लिए अत्यन्त उपयुक्त हैं। आरंभिक कठिनाइयों के दूर होते ही कुछ दूरी तय होने पर आनंद चरम सीमा को पार कर जाता है। औली के बर्फ से ढके ढलानों के चारों ओर देवदार के घने जंगल हैं, जो जोशी मठ और बद्रीनाथ की ओर से आने वाले तूफान की गति को कम कर 16 कि.मी. की न्यूनतम गति पर ला देते हैं। औली नंदा देवी (7817 मी.), कामेट (7756 मी.), माना पर्वत (7273 मी.) और दूनागिरी (7066 मी.) जैसी हिमालय की चोटियों की छटा 180 डिग्री के कोण से देखी जा सकती हैं। स्कीइंग करने वालों को दस-बारह कि.मी. तक का एक खूबसूरत ढलान मिलता है। जिससे स्कीइंग का आनंद बढ़ जाता  है। ये ढलान क्रास कंट्री और डाउनहिल स्कीइंग के लिए उत्कृष्ट अवसर प्रदान करते हैं। 2519 मीटर से 3049 मीटर तक की ऊंचाई पर तीन कि.मी. के ढलान स्कीइंग के लिए प्रमुख आकर्षण हैं। इसके पास एक स्नोबीटर है जो ढलान को हर समय स्कीइंग के लिए उपयुक्त रखता है। एक 500 मी. लंबा स्कीलिफ्ट स्कीइंग करने वालों को ढलान के शीर्ष तक ले जाता है जिससे वे शीर्ष पर चढ़ने के परिश्रम से बच जाते हैं। इसके साथ ही आप केदारनाथ-वासुकी ताल ट्रेक, गंगोत्री-केदारनाथ ट्रेक, गंगोत्री-गौमुख-नंदनवन-तपोवन ट्रेक, खतलिंग सहत्रताल ट्रेक, हर की दून ट्रेक, रूपकुंड ट्रेक, ऋषिकेश-पौड़ी-बिनसार ट्रेक, मसूरी नागतिबा ट्रेक, कलसी-लाखमंडल ट्रेक और कौरी पास ट्रेक का भी आनंद गढ़वाल में उठा सकते हैं।

जल क्रीड़ा (वाटर स्पो‌र्ट्स)

गढ़वाल में पवित्र गंगा नदी व्यावसायिक खिलाडि़यों के साथ-साथ शौकिया खिलाडि़यों को भी व्हाइट वॉटर राफ्टिंग का भरपूर आनंद प्रदान करती है। अलकनंदा और भागीरथी गंगा की दो प्रमुख सहायक नदियां हैं जिनका संगम देव प्रयाग में होता है। इनके जल ग्रेड 4 और 5 के हैं जो राफ्टिंग के कुशल खिलाडि़यों को खेल के आनंद के लिए चुनौती देते रहते हैं।

देव प्रयाग से नीचे आने के बाद गंगा एक बड़े ताल (पूल) में बदल जाती है। लगभग 70 कि.मी. का यह विस्तृत ताल व्यावसायिक खिलाडि़यों के साथ-साथ नौसिखिए खिलाडि़यों के लिए भी उपयुक्त है। साथ ही, बैसी में वाल और गोल्फ कोर्स भी विद्यमान हैं जो शिवपुरी गांव से 4 कि.मी. नीचे है। जगह-जगह नदी का रेतीला तल राफ्टिंग करने वालों को विश्राम करने का स्थान उपलब्ध कराता है। दोनों ओर से ढलान के इलाके, ओक, पाइन, देवदार और फर के वृक्षों से भरे पड़े हैं। कहीं-कहीं आबादी और खेत हैं जो उनकी सुंदरता को और अधिक सुंदर बना देते हैं। कुछ दूरी पर चितकबरा हिरण, बंदर, चीता, सफेद बहुरंगी तितलियां दिख जाती हैं।

जीएमवीएन नामक संस्थान कौडियाला में राफ्टिंग का प्रशिक्षण देता है। यह राफ्ट और उसके उपकरण, नदी किनारे कैंप लगाने के सामानों के साथ-साथ सुरक्षा के समान और प्रशिक्षित गाइड प्रदान करता है। ऋषिकेश-बद्रीनाथ राजमार्ग पर 480 मी. की ऊंचाई पर घने जंगलों के बीच गंगा की वेग गति धारा व्हाइट वॉटर राफ्टिंग के लिए अत्यन्त उपयुक्त है। यहां नदी के साथ-साथ प्रकृति भी चलती है और रोमांच प्रेमियों के लिए रॉक क्लाइंबिंग की व्यवस्था भी की जाती है।

पर्यटन विभाग ने हाल ही में डाक पाथर, जिला देहरादून, आसान बराज में एक जलक्रीड़ा यमुना नदी के किनारे है। देहरादून से मोटर द्वारा 40 मिनट में इस रिसॉर्ट पर पहुंचा जा सकता है। जीएमवीएन वॉटर स्कीइंग, स्पीड बोटिंग, पैडल बोटिंग, रोबिन, सेलिंग, कनोइंग और कैयकिंग के सामान उपलब्ध कराता है।

कुछ जरूरी सुझाव

गढ़वाल की यात्रा करने के लिए सबसे उपयुक्त समय मई से अक्टूबर का होता है। यहां की सामान्य जलवायु के अनुसार गर्मियों में दिन में शीतलता होती है, लेकिन रातें ठंडी होती हैं। इसलिए दिन के समय यहां के दर्शनीय स्थानों को देखने का भरपूर लुत्फ उठाया जा सकता है। सर्दियों में तो बस बर्फ-ही-बर्फ नजर आती है और तापमान शून्य से भी नीचे गिर जाता है। इसलिए पर्यटक यहां गर्मियों में ही जाना ज्यादा पसंद करते हैं। यदि आप गर्मियों में गढ़वाल की सैर पर निकले हैं तो हल्के ऊनी कपड़े ही पर्याप्त हैं। सितंबर-अक्टूबर में तो गरम कपड़ों की ही जरूरत पड़ेगी।

गढ़वाल पहुंचने के लिए आप सड़क, रेल या हवाई कोई भी मार्ग चुन सकते हैं। सभी सेवाएं आसानी से उपलब्ध हैं। देहरादून इस क्षेत्र का सबसे प्रमुख शहर है। यहां से 24 कि.मी. की दूरी पर जॉली-ग्राण्ट हवाई अड्डा है जहां आप हवाई जहाज से पहुंच सकते हैं। देहरादून उत्तर रेलवे का एक महत्वपूर्ण स्टेशन है जहां देश के सभी महत्वपूर्ण स्थानों से तीव्र गति की रेलगाडि़यां पहुंचती हैं। सड़क मार्ग से यह राजमार्ग संख्या 45 से जुड़ा हुआ है। यहां से आप बद्रीनाथ, केदारनाथ, ऋषिकेश आदि गढ़वाल के किसी पर्यटन या धार्मिक महत्व के स्थल तक सड़क मार्ग से पहुंच सकते हैं।

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