गया: पितरों की स्मृति का तीर्थ

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पुरातन प्रज्ञा के प्रदेश-बिहार’ की राजधानी पटना से तकरीबन 92 कि.मी. दूरी पर स्थित और मोक्ष तोया फल्गु के किनारे शोभायमान गया भारत का प्राचीन, ऐतिहासिक व समुचन तीर्थ है। पांचवां धाम, मोक्ष स्थली, पिंडदान भूमि, विष्णुधाम, प्राच्य युगीन तीर्थ, स्वर्गारोहण्य द्वार आदि कितने ही नामों से संबोधित गया नगरी में हर साल पितृपक्ष के दौरान विशाल मेला लगता है। श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण जैसे धार्मिक कर्म भारत में कई जगह किए जाने का विधान है पर पितरों के नाम पर विशाल मेले का आयोजन गया में ही होता है जिसे श्रद्धालु आदर स्वरूप ‘गयाजी’ कहते हैं।

यों तो गया में सालों भर भक्तों का आगमन बना रहता है पर साल में 15 दिन का पितृपक्ष पितरण कार्य के लिए सर्वथा उपयुक्त है। यही कारण है कि न केवल देश बल्कि विदेश में रह रहे हिंदू भी उस दौरान गया अवश्य आते हैं।  भारत के प्राचीन नगरों में एक गया को दुनिया के प्राचीनतम नगरों में एक माना जाता है। विद्वजनों की राय में किसी स्थान की प्राचीनता का सर्वप्रमुख प्रमाण वहां की मिट्टी, नदी, जंगल, पहाड़ आदि में निहित होता है। गया के चारों ओर सप्त पर्वत- ‘रामशिला’ ‘पे्रतशिला’ ‘ब्रह्मयोगि’ ‘नागकूट’ ‘भस्मकूट’ ‘मुरली’ व ‘धेनूतीर्थ’ और लगभग 42 कि.मी. दूरी पर स्थित ऐतिहासिक बराबर पर्वतमें पाषाण युग में मानव निवास के चिह्न हैं। सोनपुर, ककोलत व हसराकोल का इतिहास भी इस तथ्य का मूक गवाह है कि अति प्राचीन काल से ही यहां इनसानी बसावट रही। आदिम युग में कोल जन जाति का देश भर में जहां-जहां निवास रहा उसमें गया के अरण्यादि क्षेत्र प्रमुख हैं। गया की फल्गु नदी भी इसकी प्राचीनता का प्रत्यक्ष प्रमाण है। भूगोलवेत्ताओं की मानें तो फल्गु का काल ‘सरस्वती’ का समकालीन है।

अति प्राचीन तीर्थ
गया के अक्षयवट को संसार का सबसे पुराना जीवित पेड़ कहा जाता है। वायु पुराण, अग्निपुराण, गरुड़ पुराण व महाभारत जैसे धार्मिक ग्रंथों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि पितरणों के तरन-तारण के लिए इसका रोपण और उद्धार ब्रह्मा जी ने यहां किया। गया की प्राचीनता के स्पष्ट प्रमाण यहां के तीन प्रधान देव स्थल भी हैं। श्री विष्णु पद में चरण की पूजा, शक्तिपीठ मां मंगला गौरी में मां के पंचपयोधन (स्तन द्वय) की और भैरव स्थान मंदिर में भैरोनाथ के कपाल की पूजा की जाती है। गया में भोले भंडारी शंकर एक नहीं चार-चार पीढ़ी के रूप में निवास करते हैं। यह अति प्राचीन तीर्थ में ही संभव है जो हरेक कल्प में मौजूद रहा हो। गया में शंकर जी के इन चार पीढि़यां में क्रमानुसार वृद्ध परपिता महेश्वर, परम् पिता महेश्वर, परपिता महेश्वर और पितामहेश्वर प्राच्य काल से पूजित है जो अक्षयवट, लखनपुरा, फल्गुनतट और पितामहेश्वर मुहल्ले में विद्यमान है।  गया के मूल निवासी ‘गयापाल’ या ‘गयावाल’ कहे जाते हैं जिन्हें ‘ब्रह्मकल्पित’ बताया गया है। ये अपने को प्रजापति ब्रह्मा के मानस पुत्र के रूप में प्रस्तुत करते हैं और अपने आप को सभी तीर्थ विप्रों में सबसे आगे मानते है। उनका मत है कि ब्रह्मा जी ने सबसे पहले इसी तीर्थ का स्थापना व विकास किया इस कारण इस तीर्थ के ब्राह्मण अन्य ब्राह्मणों से पुराने हुए। भैरवी चक्र पर अवस्थित गया को प्राच्य काल में ‘आदि गया’ कहा गया है जो इसकी प्राचीनता का प्रमाण है।

गयासुर और गया

देवासुर संग्राम की कथा प्राय: हरेक युग, हर काल में मिलती है। गयासुर देवप्रवृत्ति से महिमामंडित विष्णु का परम भक्त था। असुर वंश में उत्पन्न गय जाति से भले ही असुर था पर स्वभाव से देवताओं जैसा था। माना जाता है कि इसमें राक्षसी भाव के तत्व पूर्णतया गौण हो गए थे। धर्मग्रंथों के अनुसार गयासुर सवा सौ योजन ऊंचा और साठ योजन मोटा था, जिसके पिता त्रिपुरासुर और माता प्रभावती थीं। विवरण मिलता है कि गयासुर के पिता त्रिपुरासुर के आतंक से भगवान शंकर ने उसका वध कर दिया था। अब इस बात की जानकारी युवावस्था आते-आते गयासुर को मिली तो उसने अपने पिता के कृत्य और उसके परिणाम को जान-समझ उनके ठीक विपरीत आचरण धारण किया। इस प्रकार जन कल्याण, मानव सहायता, पूजा-पाठ, धर्म-कर्म गयासुर के जीवन का अंग बन गया। गयासुर ने अपने दाहिने पैर के अंगूठे पर लगातार हजार वर्षो तक निराहार खड़े रहकर दुर्गम कोलाहल पर्वत पर तपस्या कर विष्णु का दिल जीत लिया। गयासुर के तेज से तीनों लोक में हाहाकार मच गया। अब विष्णु को अपने भक्त को दर्शन देना ही पड़ा। जैसे ही गयासुर ने अपने समक्ष भगवान को खड़ा देखा, भावविभोर हो मस्तक झुका लिया। परंपरागत विष्णु भगवान ने उससे वर मांगने को कहा। इस पर गयासुर ने प्रसन्न भाव से कहा ‘प्रभु! आप प्रसन्न हैं तो यह आशीर्वाद दीजिए कि जो कोई प्राणी मेरा शरीर स्पर्श कर ले, वह शांति-विश्रांति को प्राप्त हो मोक्षाधिकारी बने।’ विष्णु के तथास्तु कहने के साथ ही गयासुर का शरीर परम पवित्र हो गया और उसके स्पर्श मात्र से ही जीवधारी कल्याण को प्राप्त होने लगे। स्वर्गलोक में खलबली मच गयी। देवलोक में सहमति बनी कि अगर गयासुर के शरीर को स्थिर कर दिया जाए तो सृष्टि का क्रम यथावत बना रहेगा।

ब्रह्मा जी को इस यज्ञ का प्रधान पुरुष बनाया गया, जिसमें सभी देवों का आगमन हुआ। निर्णयानुसार ब्रह्मा जी गयासुर से बोले- ‘भम्रराज! मैने कोटि-कोटि भूमि का भ्रमण व निरीक्षण किया पर तुम्हारे शरीर के तरह पवित्र कोई भूमि नहीं। समस्त देवताओं की इच्छा है कि तुम्हारे पुण्यकारी काया पर ही सृष्टि के सफल संचालनार्थ होने वाले यज्ञ का आयोजन हो, तेरा क्या विचार हैं? ब्रह्मा के मुख से इन बातों को सुन गयासुर ने सहर्ष स्वीकार कर लिया कि हमारे शरीर पर यज्ञ किया जाए। गयासुर उत्तर की ओर सिर और दक्षिण के तरफ पैर करके लेट गया। और उस पर समस्त देवी-देवता आरूढ़ हो गए। यज्ञ पूर्णाहुति की ओर अग्रसर था पर गयासुर का शरीर स्थिर होने का नाम ही नहीं ले रहा था। शरीर के कंपायमान रहने से यज्ञ में बाधा आ रही थी। ऐसे में समस्त देवताओं ने विष्णु का आह्वान किया। विष्णु धर्म-शिला और गदा लेकर जैसे ही गयासुर के वक्ष स्थल पर विराजमान हुए कि गयासुर उठ खड़ा हुआ। उसने कहा ‘प्रभु! आपने इतना कष्ट क्यों किया? आप कह देते तो मैं हमेशा के लिए प्राण शून्य हो जाता।’ गयासुर के इस भक्ति-भाव को देखकर विष्णु ने उससे फिर वर मांगने को कहा। इस पर गयासुर ने मांगा कि यह पांच कोस की भूमि मेरे नाम से जानी जाए। साथ ही जो कोई प्राणी यहां श्राद्ध-पिंडदान करे उसका व उसके समस्त पूर्वजों का उद्धार हो। कहते हैं तभी से विष्णु भगवान के आशीर्वाद से गया में श्राद्ध पिंडदान का आरंभ हुआ जो आज भी निर्बाध रूप से जारी है।

कैसे जाएं
गया जाने के लिए आप हवाई, रेल और सड़क तीनों मार्ग का उपयोग कर सकते है। अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बोधगया में है। वहीं गया जंक्शन देश के प्रमुख शहरों से रेलमार्ग से जुड़ा है। गया से नई दिल्ली, नागपुर, पटना, हावड़ा, रांची, मुंबई आदि जाने की गाड़ी उपलब्ध है। बस से यहां से अम्बिकापुर, राउरकेला, देवघर, भागलपुर, वाराणसी जाने की आरामदायक सुविधा है। गया में बिहार राज्य पथ परिवहन निगम का पुराना डिपो है जहां से लंबी दूरी की बसें चलती हीं। नगर में आंतरिक परिवहन के साधनों में रिक्शा, टैम्पो व टमटम प्रमुख है। यात्रियों को चाहिए ही गंतव्य स्थान का उचित भाड़ा जान समझ कर ही उसका उपयोग करे। पितृपक्ष के दिनों में गया नगर में स्थान-स्थान पर प्रशासनिक और स्वयंसेवी संस्था के सहायता केंद्र बने होते हैं जिनमें यात्रीगण सहायता प्राप्त कर सकते हैं।

महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल
मंगला गौरी मंदिर ; बगला स्थान ; राजेन्द्र टॉवर ; गौड़ीय मठ मंदिर ; जामा मस्जिद ; दुखहरणी मंदिर व तोरण द्वार ; भैरो स्थान मंदिर ; रविन्द्र सरोवर ; ब्रह्मयोनि पर्वत ; मगध सांस्कृतिक केंद्र व संग्रहालय ; आकाशगंगा ; रामशिला और ठाकुरबाड़ी ; सेंट डेविड चर्च ; पीर मंसूर ; गुरु सिंह सभा गुरुद्वारा ; प्राचीन जैन मंदिर ; रामकृष्ण आश्रम ; वैष्णव श्मशान ; गौरक्षणी (गया गोशाला) ; फल्गु नदी पर बने घाट ।

निकटतम ऐतिहासिक-पौराणिक केंद्र
बोधगया-11 कि. मी. बौद्ध मंदिर व ज्ञान प्राप्तिस्थल, डुगेश्र्वरी-14 कि.मी. तपस्या गुफा, धर्मारण्य-14 कि. मी. त्रिनद संगम, सुजातागढ़ -13 किमी. प्राचीन विशाल टीला व स्तूप, बराबर पर्वत-42 कि. मी. सात-सात गुफा, कोंच-32 कि. मी. कोचेश्र्वर महादेव मंदिर, कुर्किहार-33 कि. मी. पुरास्थल व मंदिर, ककोलत जलप्रपात-76 कि. मी. प्राकृतिक झरना, गुनेरी-42 कि. मी. तथागत का ठहराव स्थल, अपसढ़-61 कि. मी. उत्तरगुप्त कालीन राजधानी, टिकारी किला-30 कि. मी. मध्यकालीन विशाल किला, कश्यपा-32 कि. मी. तारा मंदिर व कश्यप ऋषि का स्थान, मानपुर-6 कि. मी. राजा मानसिंह स्मृति भूमि, देव-71 कि. मी. विशाल सूर्य मंदिर, राजगीर-72 कि. मी. जलकुंड, विश्व शांति स्तूप, नालन्दा-83 कि. मी. विश्वविद्यालय व संग्रहालय, पावापुरी- 78 कि. मी. महावीर निर्वाण स्थल ।

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    2 Responses to “गया: पितरों की स्मृति का तीर्थ”

      badrul hassan के द्वारा
      July 16, 2010

      this is very good information about gaya.please add flight details from gaya to some where in india.

      admin के द्वारा
      July 30, 2010

      the flight details can be checked in the booking section on the website

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