कर्नाटक : ऐतिहासिक इमारतों का गढ़

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पहले मैसूर नाम से जाने जाने वाले कर्नाटक प्रदेश का यह वर्तमान नामकरण 1 नवंबर 1973 को हुआ था। अपने अंक में कृष्णा, कावेरी और गोदावरी समाए इस कर्नाटक की भौगोलिक स्थिति कुछ ऐसी है जो पर्यटकों को अपनी ओर बरबस ही आकृष्ट कर लेती है। नदियों और समतल धरातल के बीच निरंतर आने वाली छोटी-बड़ी पहाडि़यां, प्रकृति का वह मोहक दृश्य निर्मित करती हैं जो किसी को भी अपनी ओर खींच लेने का साम‌र्थ्य रखती है। यही कारण है कि देशी-विदेशी पर्यटक इस प्रदेश की तरफ बरबस ही खिंचे चले आते हैं।

उद्यानों का शहर बंगलौर

कर्नाटक का भ्रमण बंगलौर से ही आरंभ करना श्रेष्ठ है क्योंकि यहां दुनिया के किसी हिस्से और देश के किसी कोने से पहुंचना काफी सुगम है। आबोहवा की दृष्टि से बंगलौर हमेशा ही स्वर्ग माना जाता रहा है क्योंकि यहां न गर्मी पड़ती है और न ही सर्दी। पूरे वर्ष सुहाना मौसम रहता है। यहां कभी तेज आंधी या लू चलते नहीं देखा गया है पर अब प्रदूषण ने यहां भी अपना प्रकोप फैलाना शुरू कर दिया है। फिर भी यह सभी महानगरों में अपने मौसम के कारण अभी भी सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

कर्नाटक की राजधानी बंगलौर देश का आठवां सबसे बड़ा शहर है। लगभग साढ़े पांच करोड़ आबादी वाले इस प्रदेश के 36 प्रतिशत लोग शहर में रहते हैं और बाकी 64 प्रतिशत गांवों में। साक्षरता यहां 67 प्रतिशत है। कर्नाटक का दिल कहा जाने वाला यह अद्भुत शहर अभी तक गार्डन सिटी के नाम से जाना जाता था पर पिछले दशक में जिस तेजी से यहां औद्योगिक विकास हुआ है और यहां की सरकार ने कंप्यूटर उद्योग को अपनाया है उससे इसने अपना गार्डन सिटी होने का हक खो-सा दिया है।

लालबाग : बंगलौर के भ्रमण की शुरुआत आप लालबाग से कर सकते हैं। 18वीं शताब्दी में 40 एकड़ की जमीन पर हैदरअली द्वारा बनाए गए इस उद्यान में ऊंचे, पुराने वृक्ष, छोटे-बड़े बगीचे, मखमली घास के मैदान और फूलों से लदे पौधे बहुतायत में देखे जा सकते हैं। यहां बने फव्वारे एक अलग ही नजारा प्रस्तुत करते हैं। अब यह बाग 240 एकड़ में फैला हुआ है। लालबाग के सामने ही बंगलौर का विश्वप्रसिद्ध रेस्तरां एमटीआर है जहां शहर का सर्वश्रेष्ठ दक्षिण भारतीय भोजन उचित कीमत पर मिल जाता है।

कब्बन पार्क : बंगलौर में लालबाग से बड़ा 300 एकड़ में फैला कब्बन पार्क है। 1864 में निर्मित इस पार्क में आज ग्रीस शैली में बनी कई इमारतें और उच्च न्यायालय है। इसमें बच्चों के लिए बना बालभवन और एक पार्क है जिसमें एक टॉय-ट्रेन और एक मछलीघर भी है। शाम के वक्त यहां के रंगीन फव्वारे एक दिलकश नजारा प्रस्तुत करते हैं।

विधानसभा : कब्बन पार्क की उत्तरी सीमा पर कर्नाटक की विधानसभा है। यह पूरा भवन ग्रेनाइट से बना हुआ है। सप्ताह के अंतिम दो दिनों में यहां की गई बिजली की सजावट बंगलौर का विशेष आकर्षण है।

विश्वेश्वरैया म्यूजियम : बंगलौर में भ्रमण करने के लिए म्यूजियम और कला दीर्घाएं भी हैं। विश्वेश्वरैया म्यूजियम में बच्चे और बड़े दोनों ही भरपूर आनंद उठा सकते हैं। इसी का अनुसरण कर बाद में मुंबई और दिल्ली में साइंस सेंटर बनाए गए।

नंदी हिल्स : बंगलौर से 22 किलोमीटर की दूरी पर बनेरघट्टा राष्ट्रीय उद्यान है जहां घडि़याल, सांप और शेर देखे जा सकते हैं। बंगलौर से ही 24 किलोमीटर की दूरी पर रामोहल्ली गांव है जहां कर्नाटक का सबसे विशाल वटवृक्ष है जो अकेला ही पांच एकड़ में फैला हुआ है। इसके अलावा बंगलौर से 50 किलोमीटर की दूरी पर नंदी हिल्स है, जो बंगलौर के निकट एक छोटे-से हिल स्टेशन के रूप में जाना जाता है। इस पहाड़ी पर कई ऐतिहासिक लड़ाइयां लड़ी गई थीं। यहां 2000 वर्ष पुराना एक मंदिर भी है।

कुर्ग: प्राकृतिक सौंदर्य का खजाना

बंगलौर से मात्र 200 किलोमीटर की दूरी तय कर आप कुर्ग पहुंच सकते हैं। यह स्थान बंगलौर से थोड़ा ठंडा है और प्रकृति के नजदीक है। एक बार कुर्ग में आने पर आपको पता लग जाएगा कि यहां घूमने की जगहों की कमी नहीं है। कुर्ग जिले का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव मदिकेरी नाम का एक छोटा-सा कस्बा है। ब्रह्मागिरि पहाडि़यों के बीच मदिकेरी का पुराना किला है जहां से कुर्ग का राजा शाम के वक्त सूर्यास्त और विहंगम दृश्यावली का सुख उठाता था। मदिकेरी की बाहरी सीमा के पास एक निजी कॉफी बागान को पिकनिक स्थल में बदल दिया गया है। यह सिर्फ इस खयाल से किया गया है कि जो लोग कुर्ग में दूर-दूर तक फैले कॉफी बागानों को देखने ना जा सकें, वे कम से कम यहीं उसका थोड़ा-सा लुत्फ उठा लें। यहां से थोड़ी दूर पर अब्बी फॉल है, जहां बहुत सारे झरने और धाराएं किसी भी पर्यटक का मन मोह सकती हैं।

कॉफी बागान : कुर्ग दो चीजों के लिए खासा प्रसिद्ध है एक कॉफी बागान और दूसरी यहां की शादियां, जो देश के किसी भी इलाके से अलग और दिलचस्प होती हैं। कुर्ग में कई हॉलीडे रिजॉर्ट हैं जो अकसर शादियों के लिए बुक रहते हैं। जहां तक कॉफी बागान की बात है, प्रकृति की इस सुंदरता का बेहतर लुत्फ तभी उठाया जा सकता है जब आपकी रुचि ट्रेकिंग में हो।

ताल कावेरी : कुर्ग में दक्षिण भारत की सबसे बड़ी नदी कावेरी का स्त्रोत भी है। ताल कावेरी नाम से मशहूर यह स्त्रोत 4500 फीट की ऊंचाई पर है। इस स्त्रोत से 27 किलोमीटर नीचे की तरफ भाग मंडल में कनिके नदी भी कावेरी में मिलती है। भाग मंडल, मदिकेरी से 30 किलोमीटर की दूरी पर पड़ता है और यह इलाका मंदिरों के लिए प्रख्यात है। ताल कावेरी के तट पर अक्टूबर माह में एक बहुत विशाल मेला लगता है और यहां के पवित्र कुंड में दूर-दूर से आए भक्त डुबकी लगाकर पवित्र स्नान करते हैं।

अगर आप मदिकेरी तक आ गए हैं तो यहां से 50 किलोमीटर दक्षिण में नागरहोल अभयारण्य है, जो हाथियों के लिए मशहूर है। यहां पर खुली जीप में घूमने का मजा अलग ही है। चीतल और बड़े-बड़े दांत वाले हाथी यहां बहुतायत में हैं। अगर आपको कहीं एक टाइगर दिख जाए तो जान लीजिए कि आपका यहां आना सफल हो गया।

श्रवणबेलगोला :

बंगलौर से मंगलौर जाने वाले रास्तों पर तीन दर्शनीय स्थल हैं। इस राजमार्ग के मध्य में हासन से जरा पहले श्रवणबेलगोला है जहां 58 फीट ऊंची और 1000 वर्ष पुरानी गोमतेश्वर की बहुत सुंदर प्रतिमा है। इंद्रगिरि पर्वत पर बनी ग्रेनाइट की इस प्रतिमा को अरिस्थनेमि नामक कारीगर ने 500 पत्थर तराशने वाले कारीगरों की मदद से एक विशाल पहाड़ में से काट कर बनाया था और इसको बनाने में 12 वर्ष लगे थे। कहा जाता है कि इस कारीगरी के एवज में अरिस्थनेमि को इस प्रतिमा के बराबर तोल का सोना और चांदी पुरस्कार में दिए गए थे।

हैलेबिड : हासन कस्बे से थोड़ा आगे उत्तर में एक घंटे की परिधि में बेलूर और हेलेबिड हैं। ये दोनों ही स्थान होयसाला काल में राजधानियां थीं और बाद में मैसूर राज्य के महत्वपूर्ण हिस्से बने। आज बेलूर और हेलेबिड दोनों ही उजाड़ हैं और आसपास के गांववालों और आनेवाले पर्यटकों के अलावा वहां कोई नहीं जाता पर बेलूर के चैन्न केशव व वीरनारायण तथा हेलेबिड के होयसालस्वरा मंदिरों में पत्थरों में तराशी गई चालुक्य काल की कला का जो दर्शन मिलता है वह वास्तव में अद्वितीय है। ये मंदिर 12वीं सदी में विष्णुव‌र्द्धन के काल में निर्मित हुए और उस समय इनको ‘द्वार समुद्रम’ (समुद्र का द्वार) कहा जाता था।

टीपू सुल्तान का किला : कर्नाटक का समुद्र तट यहां से लगभग 150 किलोमीटर दूरी पर है। मैसूर से आधा घंटे के फासले पर बंगलौर वाली सड़क पर श्रीरंगपट्टनम है, जहां पर टीपू सुल्तान का किला और कब्र दोनों ही मौजूद हैं। यहां म्यूजियम भी है जिसमें मुगल और ब्रिटिश काल की चीजों को काफी संभाल कर रखा गया है। कावेरी नदी के किनारे बसे टीपू सुल्तान के इस किले की दीवारों पर मुगल बादशाहों और अंग्रेजों के बीच हुई लड़ाई को कई पेटिंग्स में उकेरा गया है। सड़क के दूसरी तरफ दरिया दौलत बाग है, जहां टीपू सुल्तान गर्मी के दिनों में निवास किया करते थे। यहां एक सुंदर उद्यान भी है और एक छोटे म्यूजियम में टीपू सुल्तान की व्यक्तिगत वस्तुओं को सुरक्षित रखा गया है।

टीपू सुल्तान का महल: टीपू सुल्तान का महल भी काष्ठ-कला का सुंदर नमूना है। यहां पुरानी पेंटिग्स का एक अच्छा संग्रह भी है। यह महल 1537 में कैम्पगौडा ने मूल रूप से मिट्टी से बनाया था जिसे दौ सौ वर्ष बाद टीपू के पिता हैदरअली ने लकड़ी की इमारत में बदल दिया था।

पक्षी विहार : श्रीरंगपट्टनम के नजदीक ही मैसूर के उत्तर में एक छोटा-सा द्वीप है। 1940 में रंगनाथिट्टू के नाम से यहां एक पक्षी विहार बनाया गया था। यह द्वीप कावेरी नदी के किनारे है। नदी में पैडल वाली नावों से भ्रमण कर यहां फैली प्राकृतिक छटा का आनंद उठाया जा सकता है। नवंबर से मार्च के बीच में यहां तरह-तरह के पक्षी खूब आते हैं इसलिए यहां उन दिनों सैलानियों का जमघट खूब लगा रहता है। यहां से 80 किलोमीटर की दूरी पर नीलगिरि पहाडि़यों के बीच 690 वर्ग किलोमीटर में फैला बांदीपुर का राष्ट्रीय उद्यान भी है। यहां पर बाघ, हाथी, गौर, चीतल, तेंदुआ के अलावा दूसरे विभिन्न प्रकार के जानवर और सैकड़ों प्रकार के पक्षी पाए जाते हैं। काजीरंगा की तरह यह उद्यान भी अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है।

मैसूर : मैसूर अपनी तीन चीजों, चंदन, दशहरा और राजमहल के लिए खासा प्रसिद्ध है। शहर में आप कहीं भी चले जाइए गुलाब, जैस्मिन और चंदन की खुशबू से वातावरण महकता हुआ मिलेगा। यहां चंदन से बनाई अगरबत्ती, धूपबत्ती से लेकर लाखों रुपयों की कीमत वाले बड़े फर्नीचर  मिल जाएंगे। पर छोटी-छोटी हजारों फैक्टि्रयों में यहां अगरबत्ती बनाने का धंधा बहुतायत में है। अगरबत्तियां हाथ से ही बनाई जाती हैं और एक कुशल कारीगर एक दिन में 10000 अगरबत्तियां अपने हाथ से निकाल सकता है। मैसूर, क्राफ्ट का भी बहुत बड़ा केंद्र है। कशीदाकारी युक्त रोजवुड और चंदन के बने फर्नीचर और हाथी के नमूने पूरे शहर में बिकते दिखाई पड़ेंगे और वे चीजें जिनमें हाथीदांत का काम होता है, बहुत महंगी लेकिन खूबसूरत मानी जाती हैं।

दशहरा उत्सव : मैसूर का दशहरा उत्सव यहां का बहुत बड़ा आकर्षण है। यह आयोजन काफी अनूठा, आकर्षक और भव्य होता है। यहां के दशहरा उत्सव की सवारी पूरे शहर में घूमती है, जिसमें नृत्यांगनाओं, लोक-कलाकारों और तरह-तरह की झांकियों का आकर्षक आयोजन शामिल होता है।

राजमहल : मैसूर में इसके अलावा भी और अनेक चीजें हैं जिनकी वजह से आप मैसूर आने का लोभ संवरण नहीं कर पाएंगे। देश की आजादी से पहले मैसूर एक बहुत बड़ा राजकीय इलाका था और यहां के राजा का क्षेत्र आज के कर्नाटक के लगभग तिहाई हिस्से को घेरे हुए था। शहर के बीचोबीच बना राजमहल मैसूर का सबसे बड़ा आकर्षण स्थल है। यह महल 42 लाख के खर्चे से पुराने महल के स्थान पर 1907 में बनाया गया। पुराना महल आग लगने से तबाह हो गया था। महल में दर्पण, रंग-बिरंगे शीशे और नक्काशी वाली लकड़ी का काम बहुत खूबसूरती से किया गया है। बड़े हॉल में मार्बल से बना फर्श और खंभे हैं और दीवारों पर राजा एडवर्ड के काल में राजा के जीवन को दर्शाते आकर्षक चित्र हैं।

चामुंडा हिल्स : शहर से कुछ दूरी पर चामुंडा हिल्स है, जहां 1000 सीढि़यां चढ़कर आप चामुंडेश्वरी देवी के दर्शन कर सकते हैं। सीढि़यों के बजाय आप बस से जाना चाहें तो भी इसके लिए आपको आधा दिन रिजर्व रखना चाहिए। पहाड़ी का आधा रास्ता पार करने के बाद 5 मीटर ऊंची नंदी की प्रतिमा है और देश की बड़ी नंदी प्रतिमाओं में से एक है। यह एक चट्टान को काटकर बनाई गई है और काफी पुरानी है। चामुंडा देवी का मंदिर काफी बड़ा है, इसका 40 मीटर ऊंचा और सात मंजिला गोपुरम पहाड़ी के नीचे से ही काफी दूर से दिखाई पड़ता है।

चामुंडा की पहाड़ी से नीचे चारों तरफ विशाल मैसूर का विहंगम दृश्य किसी का भी मन मोह सकता है। चामुंडा के मंदिर के सामने बड़ी मूंछों वाले महिषासुर की भी मूर्ति है। चामुंडा ने महिषासुर का ही वध किया था। मैसूर में महाराजा के पैलेस के अलावा जगनमोहन पैलेस में बनी जयचम राजेन्द्र आर्ट गैलरी भी है, जहां कुछ ऐतिहासिक धरोहरों के अलावा राजा रवि वर्मा की पेंटिंग्स भी देखने योग्य हैं। मैसूर में कृष्णराजसागर के बांध पर बना मशहूर वृंदावन गार्डन है। शाम को रंगीन रोशनियों से जगमग करते इस विशाल गार्डन में नौका विहार का आनंद भी उठाया जा सकता है। ‘म्यूजिकल फाउन्टेन्स’ में संगीत की लहरी पर झूमते-नाचते पानी के फव्वारों का एक छोटा-सा शो इस गार्डन का विशेष आकर्षण है।

चन्नकेश्वर मंदिर: मैसूर से पैंतालीस किलोमीटर पूरब की ओर सोमनाथपुर का चन्नकेश्वर मंदिर है। 1260 ईसवी के आसपास बना यह मंदिर कला का एक अद्भुत नमूना है। तारे के आकार में बना यह मंदिर चारों ओर से पत्थरों पर उकेरी गई मूíतयों से घिरा है। इनमें रामायण, महाभारत और होयसाला काल से संबंधित घटनाओं को गढ़ा गया है। यहां बनी सभी मूíतयां एक-दूसरे से बिलकुल भिन्न हैं।

उत्तरी कर्नाटक

उत्तरी कर्नाटक तीन मशहूर गढ़ों के लिए प्रसिद्ध है- हम्पी, बीजापुर और बादामी। प्राचीन शहर हम्पी की अलग ही पहचान है। यह हिस्सा उन लोगों के लिए देखना बहुत आवश्यक है, जो इतिहास में रुचि रखते हैं और प्राचीन भारतीय कला और संस्कृति से जुड़ी चीजें देखना चाहते हैं। इस दृष्टि से विजयनगर (हम्पी) सबसे ज्यादा रोचक है क्योंकि यह देश का अकेला ऐसा प्राचीन शहर है जिसे भारतीय पुरातत्व ने उसके वास्तविक रूप में सहेज कर रखा है।  1336 ईसवी में हरिहर और बुक्का नामक के तेलुगु भ्राताओं द्वारा बसाया गया यह शहर राजा कृष्णदेवाचार्य के काल (1509-29) में अपने सांस्कृतिक उत्थान की चरम सीमा पर था। विजयनगर राज्य के अधीन उस समय कृष्णा और तुंगभद्रा नदियों के दक्षिण का सारा हिस्सा था।

इतिहासकारों के अनुसार विजयनगर की आबादी पांच लाख थी और यह 33 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ था। विजयनगर पर 1565 ई. में बीजापुर, बिदार, गोलकुंडा और अहमदनगर के सुल्तानों ने मिलकर धावा बोला और इसे तहस-नहस  कर दिया। पिछले तीन-चार दशकों में पुरातत्व विभाग की खुदाई ने इस शहर को जमीन से खोदकर ढूंढ निकाला।

विजयनगर : विजयनगर के अवशेषों को देखने के लिए आपको एक पूरा दिन सुरक्षित रखना चाहिए। अगर आपके पास कोई वाहन है तो भी ठीक है वरना आप पैदल भी हम्पी में इन अवशेषों की यात्रा कर सकते हैं। यात्रा शुरू करने के लिए सबसे अच्छा स्थान हम्पी बाजार है। यहां से सारा विजयनगर घूमना सुविधाजनक होगा और बाद में लौटकर आप म्यूजियम भी आसानी से पहुंच सकते हैं, जहां से आप होस्पेट के लिए बस पकड़ सकते हैं।

निकट बसे गांव में ही विरुपाक्ष मंदिर है। 95वीं सदी में बनाया गया यह मंदिर अपनी सुंदर प्रतिमा के कारण यात्रियों में बहुत लोकप्रिय है। यहां से 2 किलोमीटर की दूरी पर विट्ठल मंदिर है जो विजयनगर का खास आकर्षण है। इसको विश्व हेरिटेज स्मारक घोषित किया जा चुका है। पूरे भारत में इस तरह के सिर्फ तीन मंदिर हैं। बाकी दो विट्ठल मंदिर तंजावुर और महाबलिपुरम में हैं। मंदिर के द्वार पर बने खंभे म्यूजिकल पिलर्स के नाम से जाने जाते हैं। इन खंभों पर कुछ भी आघात करने से खंभे में संगीत की ध्वनि तैर जाती है। मंदिर के बाहर खुले में पत्थर का रथ है, जो ‘हम्पी रथ’ के नाम से जाना जाता है और फोटोग्राफरों के बीच काफी लोकप्रिय है।

हम्पी बाजार और विट्ठल मंदिर के बीच रास्ते में दाहिने भाग में उजाड़ बाजार हैं। अवशेष देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि उस वक्त के बाजार कैसे रहे होंगे। यहीं पास में दक्षिणी हिस्से में बेहतरीन नक्काशी वाला अच्युतराय मंदिर है। इस मंदिर के खंभे भी बजाने पर संगीत पैदा करते हैं।

हम्पी : हम्पी के पूरे क्षेत्र में या तो विजयनगर राज्य के अवशेष हैं या फिर छोटे-छोटे गांव,  स्थानीय लोग निवास करते हैं। विजयनगर में कई स्थानों पर अभी भी किले की दीवारों के अवशेष हैं। इनमें से एक चहारदीवारी के अंदर लोटस महल है और उसके निकट हाथीखाना है, जहां ग्यारह हाथियों के एक साथ रहने की व्यवस्था रहा करती थी। लोटस महल के थोड़ा दक्षिण में पाताल मंदिर और रानी का स्नानगृह है। हम्पी के कमलापुरम म्यूजियम में सिक्कों और मूर्तियों का संग्रह देखने लायक है।

मंदिरों का शहर बदामी: चालुक्यों की राजधानी बदामी, हम्पी से भी 1000 वर्ष ज्यादा पुरानी है। बदामी भी हम्पी की तरह मंदिरों से भरा पड़ा है। यहां पांच गुफाएं हैं, जिनमें चार मानव-निर्मित और एक प्राकृतिक है। इन गुफाओं में उन सारे धर्मो से संबंधित चीजें मिल जाएंगीे जो उस वक्त पांचवी सदी में प्रचलित थे। चट्टानों से काटकर बनाए गए यहां के सुंदर मंदिर बदामी का खास आकर्षण हैं। इन मंदिरों में दो विष्णु के, एक शिव का और एक जैनियों का मंदिर प्राचीन कला का एक अद्भुत नमूना है। पांचवीं प्राकृतिक गुफा एक पूरी पहाड़ी को काटकर बनाई गई है और बौद्ध कला का एक अद्भुत नमूना है। यह गुफा ऊंचाई पर है और यहां से दिखने वाला चारों तरफ का प्राकृतिक सौंदर्य पर्यटकों का मन मोह लेता है।

बदामी सिर्फ चालुक्यों के अधीन नहीं रहा, बाद में राष्ट्रकूटों, कालचूर्यो, देवगिरि के यादवों ने भी बदामी पर शासन किया। फिर आदिल शाह और मराठाओं ने भी इसको अपने अधीन रखा। इन सब शासकों के प्रभाव बदामी के अवशेषों में मौजूद दिखाई हैं। यहां स्थित भूतनाथ का मंदिर, एक मस्जिद, शिवालय और टीपू सुल्तान का खजाना महल सभी अपने में अतीत की गाथाएं और इतिहास समेटे हुए हैं।

बीजापुर का गुम्बद : देश का सबसे बड़ा गुम्बद सोलहवीं सदी में आदिल शाह के कब्जे में रहे बीजापुर का गोल गुम्बद वैसे तो काफी प्रसिद्ध है और सेंट पीटर्स के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गुम्बद वाला स्मारक है पर वास्तुकला की दृष्टि से इसमें ऐसा कुछ नहीं है जिसकी प्रशंसा की जा सके। इस गुम्बद की दो ही विशेषताएं हैं। एक तो यहां स्थित उद्यान काफी खूबसूरत है और दूसरी खासियत यह है कि इस गुम्बद के ऊपर से बीजापुर शहर का पूरा दृश्य दिखाई पड़ता है। बीजापुर के बाकी स्मारक पूरे शहर में दूर-दूर तक फैले हुए हैं। इनमें इब्राहिम रोजा की 24 मीटर ऊंची मीनारें ताजमहल की मीनारों की नकल प्रतीत होती हैं। जामी-ए-मस्जिद काफी बड़ी मस्जिद है जिसमें लगभग 2250 लोग एक साथ नमाज पढ़ सकते हैं। यहां बने फव्वारे शाम को बहुत अच्छा नजारा उत्पन्न करते हैं। बीजापुर में आनंद महल, मक्का मस्जिद और मेहतर महल भी देखने योग्य हैं।

भव्य जोग फॉल्स : कर्नाटक में अगर आपने जोग फॉल्स नहीं देखे तो आपका भ्रमण अधूरा माना जाएगा। उत्तरी कर्नाटक में बिरूर रेलवे स्टेशन से थोड़ी दूरी पर देश के सबसे ऊंचे झरने हैं। लगभग 350 मीटर की ऊंचाई से श्रावस्ती नदी चार भागों में गिरकर चार झरनों का निर्माण करती है। ये झरने रानी, रॉकेट, राजा और रोअरर के नाम से जाने जाते हैं। मानसून के समय ये झरने अपने पूरे यौवन पर होते हैं और देखने वाले इसकी सुंदरता देखकर दंग रह जाते हैं। इनका सबसे सुंदर दृश्य राजा झरने के ऊपर जाकर देखने पर मिलता है जहां से नीचे देखने पर राजा और रोअरर झरने का संगम अद्भुत प्रतीत होता है।

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