रिमझिम फुहारों में सैर

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दिन बारिश के हों तो घर में बैठकर चाय-पकोड़े खाना सबसे ज्यादा सुहाता है। लेकिन नहीं जनाब! घूमने वाले कहते हैं कि बारिश में यायावरी का भी अपना मजा है और बात अगर कोंकण से लेकर केरल तक की सैर की हो तो फिर कहना ही क्या। तो आइए उपेंद्र स्वामी के साथ आप भी करें इन इलाकों की सैर।

केरल का अनूठा सौंदर्य

केरल की खूबसूरती का सबसे ज्यादा आनंद मानसून के दौरान ही उठाया जा सकता है। यह बात यहां इन दिनों आने वाले देशी-विदेशी सैलानियों की संख्या देखकर साबित भी होती है। घने जंगल, नयनाभिराम पर्वत शिखर, वेगवती नदियां, समुद्री झीलें और ताल-तलैया, झरने और सुरम्य सागरतट। चारों ओर जबर्दस्त हरियाली। बस यूं समझें कि प्रकृति के उपहारों का भरपूर वरदान है- केरल। तभी तो इसे ‘गॉड्स ओन कंट्री’ अर्थात ‘ईश्वर की अपनी भूमि’ कहा गया है।

एलप्पी [अल्लपुझा] से कोल्लम तक के बैकवॉटर्स का स्वप्निल सौंदर्य, बेहद खूबसूरत कोवलम बीच, कायाकल्प कर देने वाली आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति और समृद्ध कला-संस्कृति के कारण भी केरल विश्व पर्यटन मानचित्र पर अलग पहचान बना चुका है। राजधानी तिरुअनंतपुरम तटों, पर्वतों, वन्य जीव अभयारण्यों और द्वीपों के एक सुंदर संसार में प्रवेश के लिए द्वार खोलती है।

झील का अनूठा सौंदर्य

तिरुअनंतपुरम से 9 किमी की दूरी पर स्थित वेली टूरिस्ट विलेज सुंदर झील है। मानसूनी पर्यटकों के लिए यह स्थान स्वर्ग सरीखा है। पास ही स्थित सुंदर बागों की श्रृंखला इसे और भी रमणीय बनाती है। यहां से थोड़ी ही दूरी पर आम्कुलम झील है, जहां केरल का सबसे बड़ा बाल उद्यान है। तिरुअनंतपुरम से 16 किमी की दूरी पर स्थित कोवलम भारत के सबसे सुंदर समुद्रतटों में से एक है। कोवलम के तट के किनारे ठहरने की विविध सुविधाएं हैं। केरल के कीलोन से एलप्पी के बीच बैकवॉटर्स में तैरते असंख्य हाउसबोट, मानसूनी पर्यटन को ज्यादा रोमांचक बनाते हैं। उत्तर भारत की गर्मी में जो नवयुगल वैवाहिक जीवन में प्रवेश करते हैं, वर्षा ऋतु में यह स्थान उनके लिए आकर्षक हनीमून स्थल के रूप में भी विकसित हो रहा है। आने वाले पर्यटक यहां न सिर्फ जलक्रीड़ा व शांत जंगलों के बीच छुट्टियां बिता सकते हैं, साथ हाउसबोट के अनुभव को भी यादगार बना सकते हैं। तिरुअनंतपुरम से उत्तर में लगभग 50 किमी दूर वरकाला में अति सुंदर समुद्रतट वरकाला बीच और जनार्दन स्वामी का प्रसिद्ध मंदिर है। यहां से तीन किमी पूर्व में पहाड़ी पर स्थित शिवगिरी मठ पवित्र तीर्थस्थल है। वरकाला बीच बहुत ही खूबसूरत सैरगाह है। यहां खनिज जल के झरने हैं। यहां से 37 किमी दूर अष्टमुड़ी झील के किनारे बसे कोल्लम शहर का पुराने समय से ही व्यापारिक महत्व रहा है। कोल्लम केरल के सुप्रसिद्ध बैकवॉटर्स का प्रवेशद्वार कहलाता है। कोल्लम व एलप्पी के बीच की झीलें और जलमार्ग ऐसे हैं, जिन पर नौका विहार का आनंद भुलाया नहीं जा सकता।

डॉल्फिन के साथ रेस

अरब सागर के तट पर कोच्चि [एर्णाकुलम] बसा है। यह केरल का सबसे बड़ा व्यावसायिक केंद्र है और विश्व का सबसे बड़ा प्राकृतिक हार्बर भी यहीं है। कोच्चि के लिए एलेप्पी से कार के द्वारा जाया जा सकता है। बाकी देश से भी यह जगह रेल व हवाई सेवा से सीधे जुड़ी है। हार्बर हाउस और कई अन्य जगहों को आप मोटरबोट से देख सकते हैं। डॉल्फिन को अपनी बोट के साथ रेस लगाते देख चौंकिएगा नहीं। डॉल्फिन यहां घूमती रहती हैं। डच पैलेस देखने लायक है जिसे पुर्तगालियों ने 1557 में बनाकर केरल के राजा को सौंपा था।

सर्प नौका रेस

जुलाई से सिंतबर के दौरान यह केरल के बैकवाटर्स का सबसे बड़ा आकर्षण होता है। यह आयोजन ओणम के पर्व से जुड़े होते हैं। इसे केरल की संस्कृति की सबसे शानदार तस्वीर भी कहा जा सकता है। सजे-धजे हाथी और वाटर परेड से इसकी रंगत कुछ और ही हो जाती है। खेलों के नजरिये से देखें तो यह दुनिया में सबसे बड़ी भागीदारी वाली टीम स्पर्धा है। एक सर्प नौका में एक मुख्य नाविक, 25 गायक और सौ से सवा सौ खेवैये होते हैं। इन रेसों में सबसे पुरानी अम्बलापुज्जा के श्रीकृष्ण मंदिर की चंपाकुलम मूलम बोटरेस, दो दिन की अर्णामुला बोटरेस, अल्लपुझा से 35 किमी दूर पय्यीपड़ झील में तीन दिन का जलोत्सवम, नेहरु ट्रॉफी बोट रेस व और भी न जाने कितनी रेस शामिल हैं। अब तो इन रेसों में अंतरराष्ट्रीय टीमें भी आने लगी हैं। इन नौका दौड़ों के पीछे सबकी अपनी एक कहानी है।

कैसे और कहां

केरल देश के सभी भागों से रेल, सड़क व वायु मार्ग से जुड़ा है। मानसून इस समय जोरों पर है और सितंबर तक इसका पूरा आनंद वहां उठाया जा सकता है। ठहरने के लिए ज्यादातर शहरों में हर तरह के होटल हैं, पर हाउसबोट पर ठहरने का अनुभव यादगार रहेगा। यहां पांचसितारा सुविधाओं वाले हाउसबोट भी हैं। करीब 7 हजार से लेकर 14 हजार रुपये में दो कमरों वाली अच्छी हाउसबोट पानी के भीतर धीमे-धीमे घुमाती रहेगी। दो वक्त का खाना और सुबह का नाश्ता भी इसी में दिया जाएगा। रात को न रहना हो तो 300 रुपये में एक घंटे की एक फेरी भी की जा सकती है।

खाएं और ले जाएं

शॉपिंग : यहां से बढि़या खरीदारी भी की जा सकती है। केरल भारत में मसालों का सबसे बढि़या केंद्र है, इसलिए दालचीनी व इलायची काफी सस्ती व उत्तम किस्म की मिलती हैं। साडि़यों की तो यहां भरमार है। चाहें तो आप काजू भी ले जा सकते हैं।

खाना: यदि आप शाकाहारी हैं तो केरल में दिक्कत नहीं और मांसाहारी हैं तो भी वाह-वाह। सी फूड के शौकीन अपनी पसंद का हर किस्म का पकवान ले सकते हैं। मछलियों से लेकर झींगा व अन्य समुद्री स्वाद भी यहां मिलेगा। शाकाहारी को साउथ इंडियन थाली में हर सब्जी मिलेगी, मगर नारियल वाली। डोसा, इडली और उत्तपम का तो स्वाद ही निराला है। केला भी यहां विभिन्न किस्मों का मिलेगा। इनके स्वाद भी अलग-अलग हैं और एक से बढ़कर एक गुणकारी।

बारिश में थोड़ा गोवा हो जाए

गोवा अगर सर्दियों में जाएं तो भीड़ इतनी हो जाती है कि सारा मजा काफूर हो जाता है। गर्मियों में वहां जाने का कोई मजा नहीं, लेकिन मानसून का आनंद ही अलग है। मडगांव से पणजी का हरियाली भरा रास्ता बारिश की फुहारों में तय किया जाए तो उसकी खूबसूरती अवर्णनीय है। बस भीगने से बचने के लिए एक छाता जरूर रख लें। धुली-धुली सड़कें, जहां तक नजरें जाएं वहां तक फैली हरियाली। यहां तक कि स्थानीय निवासियों के अपने कॉटेज भी पेड़-पौधों, फूलों से लकदक नजर आते हैं। शांत माहौल। आकाश में पल-पल रंग बदलते बादल और उनके साथ ताल मिलाती अरब सागर की लहरें- गोवा के ये सारे नजारे केवल मानसून में मिलेंगे।

गोवा की पहचान यूं तो अपने समुद्रतटों से है और उसका भौगोलिक फैलाव भी समुद्र के किनारे ही है, लेकिन उसका काफी भीतरी हिस्सा कर्नाटक की पहाडि़यों की तरफ भी जाता है। वहां आपको मैदान, नदियां, झरने व वन अभयारण्य के अलावा और भी बहुत कुछ मिलेगा। खालिस यायावरी सलाह दी जाए तो मानसूनी फिजां में मोटरसाइकिल या स्कूटर किराये पर लेकर आप बागा, अंजुना, कलुंगटे, माजोर्दा, कोलवा व बेनोलिम आदि उत्तर से दक्षिण तक के बीचों की सैर कर सकते हैं। कष्ट न करना चाहें तो किसी पसंदीदा तट पर छतरी के नीचे पसर कर सागर की लहरों पर उमड़ते-घुमड़ते बादलों को देखते रहें।

गोवा की सैर ओल्ड गोवा [जिसे यहां वेल्हा गोवा कहा जाता है] जाए बिना पूरी नहीं होती। पुर्तगाली छाप वाले गोवा के सबसे खूबसूरत चर्च और भव्य मंदिर, दोनों यहीं हैं। 16वीं सदी के जीसस बैसिलिका में अब भी सेंट फ्रांसिस जेवियर के अवशेष ताबूत में रखे हैं। ठीक सामने साढ़े तीन सौ साल पुराना सी कैथेड्रल है। दोनों की भव्यता, भीतरी शिल्प व सुंदरता देखने लायक है। थोड़ा ही आगे पौंडा में कई मंदिर हैं। इनमें सबसे उल्लेखनीय है मंगेशी मंदिर। पणजी से उत्तर में बोडगेश्वर मापुसा मंदिर भी देखने लायक है।

पणजी में ही बारिश में मीरामार या डोना-पोला बीच पर सैर करने का अलग आनंद है। मंडोवी नदी में हर शाम छोटे स्टीमरों पर क्रूज भी चलते हैं जो घंटे भर में नदी से बाहर निकल कर थोड़ी समुद्र की सैर करा देते हैं। ऊपरी डेक पर गोवा के संगीत व नृत्य का मजा मिलता रहता है। आप चाहें तो ऐसे स्टीमर किराये पर लेकर समुद्र में थोड़ा दूर कुछ अन्य द्वीपों को घूमने या डॉल्फिन देखने भी जा सकते हैं। मानसून के मौसम में घूमने से लेकर ठहरने तक, हर चीज में थोड़ी रियायत भी मिल जाती है। क्योंकि टूरिस्ट सीजन दिसंबर-जनवरी में होता है।

समुद्र में गोता लगाने के लिए सिंधुदुर्ग

समुद्र में रोमांच तलाशने वालों की संख्या भारत में भी बढ़ रही है। इसके लिए कोंकण एक प्रमुख ठिकाने के तौर पर सामने आ रहा है। केरल और गोवा घूमने के बाद ऊपर निकल जाएं तो महाराष्ट्र का कोंकण इलाका है। अब स्कूबा डाइविंग के लिए आपको मालदीव जाने की जरूरत नहीं। महाराष्ट्र के कोंकण इलाके में सिंधुदुर्ग स्कूबा डाइविंग और स्नोर्केलिंग के शौकीन पर्यटकों को खूब आकर्षित कर रहा है।

अंडमान, लक्षद्वीप व केरल के बाद समुद्र के पानी में अठखेलियां करने की सुविधाएं देने वाला सिंधुदुर्ग भारत में चौथा स्थान है। अब तो इसे महाराष्ट्र का कैलिफोर्निया कहा जाने लगा है। कुछ समय पहले एक समुद्री जीवविज्ञानी सारंग कुलकर्णी ने यहां के समुद्री जीवन पर एक डॉक्यूमेंटरी फिल्म बनाई थी। उसी से प्रेरित होकर महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें यहां ये सुविधाएं विकसित करने का जिम्मा दे दिया। अब यह सपना हकीकत में बदल चुका है। महाराष्ट्र पर्यटन विकास निगम के तरकाली बीच रिसॉर्ट पर समुद्री खेलों की सुविधाएं दी जा रही हैं। भारतीय पर्यटकों को तुलनात्मक रूप से कम खर्च में इस रोमांच के अनुभव का मौका मिल जाता है। इस बहाने तमाम स्थानीय युवकों को रोजगार का नया साधन भी मिल गया है। इस इलाके में दो हाउसबोट भी आ गई हैं, जो पर्यटकों को रुकने की आरामदेह जगह उपलब्ध कराती हैं। सिंधुदुर्ग की खूबसूरती इसी बात में है कि ये पर्यटकों को विविधता तो उपलब्ध कराता ही है, साथ में यहां की सुंदरता गोवा सरीखी आसपास की जगहों की तुलना में एकदम अछूती है। आपको यहां भीड़ नहीं मिलेगी। बड़े सुकून से वक्त गुजार सकते हैं। सिंधुदुर्ग जिले का समुद्रतट 102 किमी लंबा है और यहां 42 तट हैं जो अछूते कहे जा सकते हैं। अरब सागर में मिलने वाली कई नदियों का संगम यहां बैकवाटर्स भी पैदा करता है, वह केरल सरीखे हाउसबोट अनुभव के लिए काफी माफिक जगह है। नदियों के साथ-साथ पहाड़ और जंगलों की मौजूदगी पूरे माहौल को और भी मनोरम बनाती है। सिंधुदुर्ग जिले के मालवन शहर के आसपास छह स्थानों को फिलहाल स्कूबा डाइविंग व स्नोर्केलिंग के लिए चुना गया है।

यहां आने वाले सैलानियों में काफी बड़ी संख्या में विदेशी हैं। कई विदेशी तो उन क्रूज जहाजों में भी आते हैं जो हर साल सिंधुदुर्ग के तट पर लंगर डालते हैं। सिंधुदुर्ग का पानी इतना साफ है कि मौसम अच्छा हो तो यहां समुद्र में आप बीस फुट नीचे तक आसानी से देख सकते हैं। सिंधदुर्ग में सिर्फ पानी ही नहीं, भारत के प्रमुख समुद्री किलों में से भी एक है, जो 17वीं सदी का बना हुआ है। दरअसल इस जिले में कई किले हैं, जो मराठा इतिहास की गवाही देते हैं। इसके अलावा जिले में सावंतवाड़ी के निकट अंबोली हिल स्टेशन भी है, जहां कई खूबसूरत झरने हैं। खासकर मानसून के दिनों में इस इलाके की खूबसूरती में चार चांद लग जाते हैं। अंबोली भारत में चेरापूंजी के बाद दूसरा सबसे ज्यादा बारिश वाला स्थान है।

कैसे पहुंचें

सिंधुदुर्ग जिले का सबसे प्रमुख रेलवे स्टेशन सावंतवाड़ी रोड है जो कोंकण रेल मार्ग पर दिल्ली, मंगलौर, मडगांव एवं मुंबई से सीधा जुड़ा है। इसी रूट पर कोंकावली एक अन्य प्रमुख स्टेशन है। सिंधुदुर्ग स्टेशन सावंतवाड़ी रोड-मडगांव सेक्शन पर है। बसें व टैक्सियां आराम से उपलब्ध हैं। हवाई रास्ते से जाना चाहें तो आपको गोवा से होकर जाना पड़ेगा।

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