देशी बजट में विदेश की सैर

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एक समय था, जब विदेश जाना आम भारतीय के लिए सपना हुआ करता था। जो व्यक्ति एक बार विदेश घूम आया, समाज में उसका स्टेटस बढ़ जाता था। वैश्वीकरण के मौजूदा दौर में दुनिया की हर चीज बदली है। साथ ही बदले हैं सैर-सपाटे के रंग-ढंग भी। आज दुनिया के कई देशों में न सिर्फ आना-जाना आसान हुआ है, बल्कि वहां के वीजा नियमों एवं अन्य सुविधाओं में भी बहुत लचीलापन आया है। इस लचीलेपन की एक वजह तो पर्यटन क्षेत्र की आर्थिक संभावनाओं की पहचान है। इसके अलावा सभी देशों में अपनी-अपनी संस्कृति से दुनिया भर को परिचित कराने का जज्बा भी पैदा हुआ है। यह बात स्पष्ट हो गई है कि कोई भी सभ्यता अथवा संस्कृति एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के बीच ही अपनी श्रेष्ठता को कायम रख सकती है और यह प्रतिस्पर्धा उत्पन्न होती है परस्पर समझ के विकसित होने के बाद। परस्पर संबंधों एवं व्यवहार को साझा करने में पर्यटन का कोई सानी नहीं। इस सोच ने अंतरराष्ट्रीय मानकों में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन कराए हैं। इन परिवर्तनों का ही नतीजा है जो अब दुनिया के अनेक देशों की सैर आप अपने सीमित बजट में कर सकते हैं।

भारतीय रेल पर्यटन एवं खान-पान निगम ने दिल्ली से केरल तक जिस बजट में यात्रियों के लिए अपने पैकेज मुहैया कराए हैं, लगभग उतनी ही लागत में आप दुनिया के कई देशों में से किसी एक की सैर कर सकते हैं। यही नहीं, कुछ देशों की सैर तो आईआरसीटीसी के बजट से आधे में ही हो जाएगी। आईआरसीटीसी ने दिल्ली से केरल तक के टूरिस्ट पैकेज के लिए तीन श्रेणियां निर्धारित की हैं। आठ दिन और नौ रात्रि वाले ट्रेन द्वारा निश्चित इस पैकेज में स्टैंडर्ड क्लास की कीमत 19 हजार रुपये और डीलक्स पैकेज की कीमत 24 हजार रुपये रखी गई है। भारत में कन्याकुमारी या लद्दाख तक ठीक-ठाक ढंग से सफर करने पर भी लगभग 30 हजार रुपये प्रति व्यक्ति खर्च होते हैं। लगभग इतनी ही राशि खर्च करके आप मलेशिया, ओमान, थाईलैंड, मॉरीशस, नेपाल, सिंगापुर, दुबई, श्रीलंका और इंडोनेशिया आदि देशों का भ्रमण भी कर सकते हैं।

एक देश सपने सा : मलेशिया

स्वच्छता, शांति और व्यवस्था के प्रति सम्मान का भाव अगर आप देखना चाहते हैं तो मलेशिया जाइए। पूरा देश घूम आएं तो कहीं-कहीं ही आपको पुलिस तैनात दिखाई देगी। इसके बावजूद क्या मजाल कि कहीं कोई अव्यवस्था दिखे। न तो किसी जगह आपको कूड़ा दिखेगा, न कहीं कोई ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करता मिलेगा, न कहीं जाम, न बिजली गुल और न किसी तरह की धक्का-मुक्की। हम भारतीयों के लिए तो यह कल्पनातीत है। लगता ही नहीं कि यहां व्यवस्था बनाई गई है। ऐसा लगता है जैसे व्यवस्था और अनुशासन यहां के जनजीवन का अभिन्न अंग है। जिस तेज गति से इस छोटे से देश का विकास हुआ है उसमें इस स्वत:स्फूर्त अनुशासन की भूमिका ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।

मलेशिया की राजधानी है कुआलालम्पुर और यहां बने पेट्रोनास टॉवर पर्यटन मानचित्र पर इसकी पहचान। 85 मंजिलों का यह भवन सिर्फ स्टेनलेस स्टील और शीशे का बना हुआ है। यहां एक मिनारा कुआलालम्पुर भी है। यह एक मीनार है, जो पहाड़ी पर बनी है और यहां से पूरे शहर की झलक देखी जा सकती है। यहां की नेशनल मॉस्क भी देखने लायक है। कुआलालम्पुर के निकट ही एक और शहर है पुत्राजया, यह उसके ट्विन सिटी जैसा है। अब मलेशिया सरकार के सारे मुख्यालय और मंत्रालय यहीं हैं। यहां एक राजमहल भी है, हालांकि राजा वहां रहते नहीं हैं।

मलेशिया का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण शहर है पेनांग। जिसे पूरब का मोती कहते हैं। मंदिरों और सागरतट वाले इस शहर की दर्शनीय जगहों में एक थाई बौद्ध मंदिर है, जहां लेटे हुए बुद्ध की प्रतिमा है। इसके ठीक सामने ही बर्मीज बौद्ध मंदिर है। यहां से थोड़ी दूर स्नेक टेंपल है। इस मंदिर में हर तरफ सांप ऐसे घूमते रहते हैं जैसे राजस्थान के कर्णी माता मंदिर में चूहे। यहां एक किला भी है- फोर्ट कार्नवालिस। यह किला लॉर्ड कार्नवालिस ने एक जेल के तौर पर बनवाया था और बनाया था भारतीय मजदूरों ने। इससे थोड़ी दूरी पर बटरफ्लाई पार्क है। कहने को तो यह तितलियों का पार्क है, लेकिन यहां कई तरह के जीव-जंतु सुरक्षित रखे गए हैं। स्ट्रेट्स ऑफ मलक्का समुद्र के तटवर्ती इस शहर के सागरतट को देखना अपने-आपमें एक अनुभव है। रोमांचक खेलों के शौकीन तमाम लोग यहां वाटर स्कूटरिंग, पैरा ग्लाइडिंग या बोटिंग जैसी गतिविधियों में व्यस्त देखे जा सकते हैं।

मलेशिया का ऐतिहासिक शहर है मलक्का। यमराज की धारणा तो हमारे यहां भी है, लेकिन मृत्यु के देवता की प्रतिमा और उनकी पूजा हमने यहीं देखी। चीनी समुदाय के एक मंदिर में यहां मृत्यु के देवता की पूजा होती है। वैसे इस मंदिर में मुख्य रूप से पूजा भगवान बुद्ध की होती है। यहां पुर्तगालियों, डच लोगों और अंग्रेजों के चर्च भी कई हैं। इनमें खास तौर से सेंट फ्रांसिस के चर्च को लेकर कई दंतकथाएं भी हैं। यह चर्च एक छोटी सी पहाड़ी पर बना है। यहां के बाजारों में एंटीक सामानों की भरमार है, लेकिन इन्हें खरीदते समय बहुत सावधानी बरतने की जरूरत है। क्योंकि इनमें ज्यादातर सिर्फकहे जाने के लिए ही एंटीक हैं। इनके अलावा आप चाहें तो लंग्कावी और गैंटिंग हाईलैंड भी घूम सकते हैं। समुद्रतटवर्ती होने के कारण राज्य के ज्यादातर क्षेत्रों मौसम हमेशा खुशगवार रहता है। भाषा यहां मलय बोली जाती है, लेकिन अंग्रजी भी आसानी से बोली और समझी जाती है। दक्षिण भारत के लोग यहां खूब हैं। इसलिए मलयालम और तमिल भाषाएं भी प्रचलन में हैं।

वीजा, मुद्रा और खर्च : मलेशिया के लिए वीजा आपको पहले से लेना होगा। यहां के लिए वीजा लेना कोई मुश्किल काम नहीं है। नई दिल्ली स्थित मलेशियाई दूतावास में इसके लिए आवेदन कर आप आसानी से वीजा प्राप्त कर सकते हैं। यहां की मुद्रा है मलेशियन रिंगिट। आप चाहें तो यहां डॉलर ले जाकर कुआलालम्पुर या पेनांग आदि शहरों में निर्धारित काउंटर पर उसे रिंगिट बदल सकते हैं और चाहें तो सीधे रुपये से भी बदल सकते हैं। खरीदारी के लिए यहां भारत में मौजूद लगभग सभी बैंकों के वी़जा या मास्टर क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड का इस्तेमाल किया जा सकता है। यहां एक व्यक्ति के तीन से पांच दिन तक घूमने का खर्च 25 से 40 ह़जार के बीच बैठेगा।

मुसकान की धरती थाईलैंड

विश्व पर्यटन के मानचित्र पर थाईलैंड तेजी से उभरता हुआ देश है। यहां की सुरक्षा व्यवस्था, स्वच्छता, पर्यावरण के प्रति जागरूकता तथा खान-पान में विविधता के चलते पूरी दुनिया से यहां सैलानी घूमने आते हैं। नखोन सावान से शुरू होने वाली ‘छाओ फराया’ थाईलैंड की प्रमुख नदी है जो प्राचीन काल से इस देश का जीवनस्त्रोत भी मानी जाती है। देश की अन्य नदियों में नान, पिंग, वांग तथा योम हैं। इन सभी नदियों का उद्गम स्थल उत्तरी पर्वत है। थाईलैंड के पश्चिम और उत्तर पश्चिम में म्यांमार (बर्मा), पूर्वोत्तर और उत्तर में लाओस एवं कंबोडिया, दक्षिण में थाईलैंड की खाड़ी तथा उत्तर पश्चिम खंड में दक्षिणी चीन का समुद्र है। 1960 में थाईलैंड का 50 फीसदी हिस्सा यहां के वनों से आच्छादित था, जिसमें आ रही निरंतर कमी यहां के वनस्पति विज्ञानियों के लिए चिंता का सबब है। आकार में थाईलैंड फ्रांस के समान है। देश का प्रथमदृष्टया आकार हाथी के सिर के जैसा है। थाईलैंड में हाथियों को विशेष महत्व दिया जाता है। इसीलिए हाथी वहां के विभिन्न उत्सव एवं परंपराओं के मुख्य हिस्से होते हैं। चीता, तेंदुआ, सांड़ तथा भैंस भी यहां काफी संख्या में देखे जा सकते हैं। थाईलैंड की धरती पर 50 से भी अधिक प्रजातियों के सांप पाए जाते हैं। इनमें से अनेक दुर्लभ नस्लों के हैं। थाईलैंड की धरती को नीलम एवं पुखराज जैसे बहुमूल्य रत्नों की जन्मस्थली भी कहा जाता है। निश्चित रूप से कम मूल्य पर अच्छी क्वालिटी के रत्न खरीदने के लिए भी पर्यटक यहां उत्सुक रहते हैं।

थाईलैंड का मौसम बड़ा विचित्र है। यहां अक्टूबर से मार्च तक का समय ड्राई सीजन माना जाता है। जबकि अप्रैल-मई से लेकर सितंबर तक यहां बारिशों का मौसम रहता है। अप्रैल में सामान्यतया 35 डिग्री और दिसंबर में 21 डिग्री सेल्सियस तापमान होता है। अप्रैल थाईलैंड का सर्वाधिक गर्मी वाला महीना होता है। थाईलैंड की राजधानी बैंकाक है, जहां स्थित डॉन मुआंग इंटरनेशनल एयरपोर्ट से थाईलैंड के सभी प्रमुख शहरों के लिए एक से सवा घंटे के अंतराल पर विमान सेवाएं उपलब्ध रहती हैं। थाईलैंड के होटलों में विशेष अनुरोध पर अतिरिक्त भुगतान करके भारतीय व्यंजनों का लुत्फभी उठाया जा सकता है। वैसे यहां के इंडियन मार्केट में भारत से आने वाले सैलानियों को रसास्वादन करते देखा जा सकता है। यहां के समुद्री बीच विशेष आकर्षण रखते हैं। थाई नागरिकों की मेहमाननवाजी तथा मौज-मस्ती का आलम इन आकर्षणों में और भी वृद्धि करता है।

थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक के अलावा यहां के प्रमुख नगरों मे नाखौन रथसीमा, नॉनथाबुरी, चिंगमई तथा सोंगखला प्रमुख हैं। पताया के बीच व अन्य स्थल यहां पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बने रहते हैं। बैंकॉक एवं पताया में अनेक मसाज सेंटर संचालित होते हैं। यहां का समाज मातृ सत्तात्मक समाज है, जहां स्त्री का अधिकार अधिक समझा जाता है। यहां की मूल भाषा स्यामी है। इसे थाई भी कहते हैं। अंग्रेजी भी थाई शहरों में खूब बोली और समझी जाती है। मार्च से मई के बीच यहां गर्मी ज्यादा होती है। शेष समय यहां घूमने के लिए उपयुक्त है।

वीजा, मुद्रा और खर्च: थाईलैंड आने के लिए वीजा लेना जरूरी है, लेकिन इसके लिए वीजा मिलना मुश्किल नहीं है। पर्यटन प्रमुख व्यवसाय होने और भारत से अच्छे संबंधों के नाते वीजा आसानी से मिल जाता है। मुद्रा यहां बाट चलती है, जिसे अमेरिकी डॉलर और भारतीय रुपये से आसानी से बदला जा सकता है। एक व्यक्ति के तीन से चार दिन यहां घूमने का खर्च इन दिनों 20 से 25 हजार रुपये के बीच आता है।

मेजबानी में सिरमौर ओमान

पिछले एक दशक में मध्य पूर्व के देशों पर भारत तथा भारत के लोगों का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा है। ऐसा ही एक देश है-सल्तनत ऑफओमान। वर्षो पूर्व काम-धंधे की तलाश में या नियुक्ति के बाद भारत के असंख्य लोग यूएई में जा बसे। इनमें से तमाम लोग आज भी अपने वतन ‘हिंदुस्तान’ से मोहब्बत रखते हैं। यही वजह है कि यहां आने वाले भारतीय समय-समय पर भारतीय सभ्यता व संस्कृति से जुड़े विभिन्न पर्वो व उत्सवों में उत्साहपूर्वक सम्मिलित होते हैं।

ओमान की राजधानी मस्कट में बनाए गए बा़जार, सड़कें व अन्य व्यावसायिक कॉम्प्लैक्स देखने लायक हैं। यहां के लोगों में गजब का ट्रैफिक सेंस है जो सामान्यत: भारत में कहीं देखने को नहीं मिलता। यहां के मुख्य मार्गो पर चार तथा छह लेन ट्रैफिक की व्यवस्था है। यहां 60 किलोमीटर से लेकर 300 किलोमीटर प्रति घंटा तक की अलग-अलग लेन बनाई गई हैं। यहां की पुलिस के प्रति लोगों में विशिष्ट सम्मान है तथा उसकी ईमानदारी की मिसालें लोग देते नहीं थकते।

सल्तनत ऑफ ओमान की राजधानी मस्कट अपनी अनेक विशेषताओं के साथ-साथ अदबी खिदमात के दुनियावी नक्शे पर भी ते़जी से उभरा है। इसकी एक वजह वहां रहने वाले कुछ भारतीय मूल के साहित्यप्रेमी हैं, जो साल भर विविध गतिविधियों को अमली जामा पहना कर वहां भारतीयता को जीवंत बनाए रखते हैं।

सामान्यत: ओमान के लोग सीधे-सादे तथा भोले हैं। लोगों की आवभगत का उन्हें शौक है। खाना खाने और खिलाने में वे आगे रहते हैं। स्ति्रयों को पूरे देश में सुरक्षा व सुविधा प्रदान की गई है। ओमान की राजभाषा अरबी है। प्राय: अंग्रेजी भी चलन में है। भारत से गए लोग हिंदुस्तानी बोलते मिल जाएंगे। एशियन भाषाएं, हिंदी, उर्दू व बलूची भी चलन में हैं। गर्मियों में ओमान का तापमान अत्यधिक गर्म होता है। तटीय तापमान 46 डिग्री सेल्सियस और भीतरी प्रदेश का तापमान इससे भी अधिक हो जाता है। जाड़े के दिनों में भी यहां काफी गर्मी होती है। अधिकतर मस्कट का तापमान 29 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहता है। कुल मिलाकर ओमान भारत के निकटवर्ती ऐसे देशों में से एक है जहां भारत के अधिकांश लोगों के सपने फलते-फूलते हैं व जिंदगी को अपने बेहतरीन आयामों में जीने के सुअवसर उपलब्ध होते हैं।

वीजा, मुद्रा और खर्च : ओमान के लिए पूर्वत: वीजा लेना जरूरी है, जो आसानी से मिल जाता है। मुद्रा यहां रियाल चलती है, जिसे डॉलर के बदले आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। क्रेडिट कार्ड भी यहां आम तौर पर चलते हैं। एक व्यक्ति के तीन से चार दिन यहां घूमने का खर्च इन दिनों 20 से 25 हजार रुपये के बीच आता है।

ईश्वर का शहर मकाओ

गुआंगडौंग प्रॉविंस के पर्लरिवर डेल्टा के दो द्वीपों और एक प्रायद्वीप को मिलाकर बना है मकाओ। यह चीन का विशेष प्रशासित क्षेत्र है। वैसे ही जैसे 1997 तक हांगकांग था। पर मकाओ का एक खास माहौल है, जो इसे हांगकांग और चीन से अलग बनाता है। यहां चीनी, पुर्तगाली और ब्रिटिश संस्कृतियों का अनूठा मेल है। 1557 में जब पुर्तगालियों द्वारा यूरोप का पहला बसेरा चीन के समुद्रतट पर बसाया गया तो उन्होंने मकाओ को ईश्वर का शहर कहा। यहां पहले आने वालों में कुछ पादरी थे। हो सकता है यह भी इसे ईश्वर का शहर कहे जाने का एक कारण हो। ताइपा और कोलोएन नामक दो द्वीपों से बने मकाओ में हमेशा पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है। दूर तक फैले समुद्रतट और उनके किनारे बसे चीनी गांव वनों से पूरित पहाडि़यां हजारों पर्यटकों को अपनी ओर आकृष्ट करती हैं। मकाओ अंतरराष्ट्रीय अड्डा, यूनिवर्सिटी ऑफमकाओ, जॉकी क्लब रेसवे तथा मकाओ स्टेडियम के कारण ताइपा पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। अगर आप मकाओ की पारंपरिक झलक देखना चाहते हैं तो आपको चीनी मंदिरों, शिपयार्डो तथा पारिवारिक रेस्टोरेंट्स में जरूर जाना चाहिए। ताइपा यदि आधुनिक व पारंपरिक दोनों है तो कोलोएन तुलनात्मक रूप से ग्रामीण है। यहां की हरियाली के कारण इसे एक आदर्श गोल्फ कंट्री मान लिया गया है। वाटर स्पो‌र्ट्स, जंगल ट्रेकिंग तथा गोकार्टिग ट्रैक ने कोलोएन को खेलों में रुचि रखने वालों के लिए प्रिय स्थान बना दिया है। स्थानीय मछुआरों की आ-मा देवी की करीब 20 मीटर ऊंची प्रतिमा दूर से ही दिखती है।

यहां सबसे पहले जो इमारतें बनीं उसमें कई गिरजाघर थे। ये गिरजे ब्रिटिश व चीनी निर्माण शैली के सुंदर नमूने हैं। मकाओ के सभी गिरजाघरों की आंतरिक सज्जा बेहद सुंदर है। मकाओ में चूंकि मुख्य प्रभाव चीनी संस्कृति का ही है, अत: चीन की तरह यहां बौद्ध व ताओ मंदिर कई देखे जा सकते हैं। बौद्ध धर्म के अनुयायियों को बड़ी तादाद में इन मंदिरों में पूजा करते देखा जा सकता है, पर अन्य धर्मो के लोग भी प्राचीन परंपरा व वास्तुकला के इन उदाहरणों के दर्शन के लिए आते हैं। कैसिनो भी यहां खूब हैं। रात में मनोरंजन के लिए कई पब व बार खुले रहते हैं। खेल व रेसों पर दांव लगाने वालों के लिए कार रेस, घोड़ों की रेस व कुत्तों की रेस भी यहां होती रहती है। फ्री पोर्ट होने के कारण मकाओ शॉपिंग करने वालों के लिए पसंदीदा जगह है। घडि़यां, चीनी कलाकृतियां, पोर्सलेन, इलेक्ट्रॉनिक सामान आदि यहां अन्य पड़ोसी देशों की तुलना में सस्ती हैं।

मकाओ का तापमान 16 डिग्री सेल्सियस से 25 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है। अक्टूबर से दिसंबर के बीच का मौसम यहां घुमक्कड़ी के लिए सबसे अच्छा समझा जाता है। इस दौरान यहां दिन बहुत गर्म नहीं होते और उमस भी अपेक्षाकृत काफी कम होती है। जनवरी से मार्च तक थोड़ी ठंड पड़ती है। आप अगर मकाओ से हांगकांग भी जाना चाहें तो फेरी या हेलीकॉप्टर से जा सकते हैं।

वीजा, मुद्रा और खर्च: मकाओ के लिए वीजा आसानी से मिल जाता है। पटाका यहां की मुद्रा है, पर हांगकांग डॉलर भी स्वीकार किए जाते हैं। मकाओ में तीन से पांच दिन की सैर पर आपको 20 से 30 हजार रुपये तक खर्च करने पड़ेंगे।

सपनों का द्वीप मॉरीशस

सैर-सपाटे के लिए पूरी दुनिया में तेजी से अपना स्थान बनाता मॉरीशस ’डोडो’ नामक खूबसूरत पक्षी के कारण भी विख्यात है। डोडो सिर्फयहीं पाया जाता है जो अब विलुप्त हो चुका है। हिंद महासागर से घिरे इस द्वीप की उत्पत्ति ज्वालामुखी के लावे से हुई। इसके अतिरिक्त कोरल रीफ (प्रवाल भित्ति) से घिरे इस छोटे से देश में अनेक स्वच्छ लैगून हैं। इसके अलावा विशाल केंद्रीय पठार, उष्ण कटिबंधीय वन, नदियां, नहरें और झरने इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं। मॉरीशस में घूमने के लिए जुलाई से अगस्त तक का समय सर्वाधिक उपयुक्त है। मॉरीशस के खूबसूरत समुद्री किनारे देखने लायक हैं। यही वजह है कि भारत में बनने वाली अधिकांश फिल्मों तथा टीवी धारावाहिकों की शूटिंग अब मॉरीशस में हो रही है।

नीलम की तरह सौम्य नीलिमा लिए नीले समुद्र से घिरा मॉरीशस एक ऐसा द्वीप है, जिसके सुंदर रेतीले बीच पर्यटकों को सम्मोहित कर लेते हैं। यहां उपलब्ध मौज-मस्ती पर्यटकों को बार-बार यहां आने के लिए प्रेरित करती है। मॉरीशस के उत्तरी प्रांत में ‘पेरी-बेरी’, ‘ग्रांडबाई’ आदि खूबसूरत बीच हैं, तो दक्षिण में ‘ब्लू-बे’ बीच देखने लायक है। पश्चिमी तट पर स्थित ‘प्लिक इन लैक’ बीच पर्यटकों को आकर्षित करता है, जबकि पूर्वी तट पर स्थित ‘इल ऑक्स सफर्स’ के तो क्या कहने! समुद्र का जादू यहीं खत्म नहीं होता। सागर के अंदर छिपी दुनिया का लुत्फउठाने के लिए ‘ब्ल्यू सफारी’ पनडुब्बी आपकी सेवा में हाजिर है। समुद्र की अनजानी रहस्यमयी दुनिया को दिलचस्प ढंग से जानने के लिए ‘पैरासेलिंग’ से बेहतर विकल्प नहीं है। पैरासेलिंग के तहत एक टैक्सी बोट आपको समुद्र के अंदर ले जाती है और वहां डेढ़ घंटे तक आप भरपूर मनोरंजन करते हैं। यहां विभिन्न होटलों और रेस्तरांओं द्वारा उपकरणों से सुसज्जित नाव उपलब्ध कराई जाती है, जिससे टूना, सेलफिश, शार्क आदि मछलियां पकड़ सकते हैं।

समुद्र का और अधिक आनंद उठाने के लिए क्रूज नावों का भी बंदोबस्त है। समुद्र की सैर के बाद यहां की सुंदर धरा भी आपके स्वागत के लिए तत्पर रहती है। कसेला के पक्षी गॉर्डन में तो पहुंच कर आपको ऐसा लगेगा कि आप प्रकृति की गोद में बैठे हैं। यहां का नेशनल पार्क भी घूमने लायक है।

कसेला के पक्षी गार्डन में 140 प्रजातियों के पक्षी देखे जा सकते हैं। यहां का मुख्य आकर्षण दुर्लभ मॉरेशियाई गुलाबी कबूतर है। लावेनिले, मगरमच्छ, मेढक, बंदर और कछुआ अभ्यारण्य भी कम दिलचस्प नहीं हैं। यहां का कछुआ पार्क तथा वैनीला मगरमच्छ उद्यान भी देखने लायक है। डॉमेन डुचेयर नामक प्राणी उद्यान में हिरण और जंगली सुअर रखे गए हैं। यहां शिकार की अनुमति है। अगर आप जल की रानी मछली से मिलना चाहते हैं तो पोएनटि-ऑक्र-पिमेन्ट्स तथा टाऊ-ऑक्स-बिचेस जैसे मछली उद्यानों में जाया जा सकता है। जब प्राणी जगत से ऊब होने लगे तो आप जॉरडिन बोटेनिक डि पैंपमाउलेज और डोमेन लेस पेल्लेस आदि पार्को में जा सकते हैं। यहां विभिन्न किस्म के सुंदर फूल और पेड़-पौधे किसी भी पर्यटक का मन मोह लेने की क्षमता रखते हैं। टेमेरिन झरने को देखे बिना मॉरीशस से वापस आना अधूरा है।

यहां आने वाले पर्यटक ट्राऊ-ओऊ-सर्फ नामक विलुप्त ज्वालामुखी जरूर देखते हैं। यहां की सर्वाधिक आकर्षक और अद्भुत जगह है चमेरिल के सतरंगी पहाड़। जो पर्यटक ऐतिहासिक व पुरातात्विक महत्व के स्थान घूमने के शौकीन है उनके लिए मार्टेलो टॉवर, सोउलिक तथा राजधानी पोर्ट लुइस आदर्श स्थल हैं। जो लोग रोमांच और मौज-मस्ती भरा पर्यटन चाहते हैं उनके लिए वॉटर पार्क सुंदर जगह है। यही नहीं, रौड्रिक्स द्वीप पर हाइकिंग, ट्रैकिंग, माउंटेन बाइकिंग, फिशिंग आदि का लुत्फ भी उठाया जा सकता है। नौजवानों के लिए  घुड़दौड़, गोल्फ कार्टिग आदि का प्रबंध है। यहां कैसीनो, पब, डांस क्लब आदि भी मनोरंजन के लिए मुस्तैद हैं।

वीजा, मुद्रा और खर्च : मॉरीशस के लिए भारतीयों को पहले से वीजा लेना जरूरी नहीं है। हां, आपके पास वैध पासपोर्ट जरूर होना चाहिए। वीजा वहां एयरपोर्ट पहुंचने के बाद मिल जाएगा। मुद्रा यहां रुपया ही चलता है, पर मॉरीशस के रुपये का मूल्य भारतीय रुपये से अधिक है। मॉरीशस में तीन-चार दिन भ्रमण के लिए 25 से 40 हजार रुपये तक खर्च करने पड़ सकते हैं।

प्रकृति का दुलारा नेपाल

अगर प्रकृति का सौंदर्य आपके आकर्षण का केंद्र है तो आपको नेपाल जरूर जाना चाहिए। हिमालय की गोद में बसा यह छोटा सा देश प्रकृतिप्रेमी सैलानियों की पहली पसन्द है। यहां के हसीन नजारे हर किसी को मोह लेते हैं। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर नेपाल में मंदिरों, स्तूपों, पैगोडा एवं आस्था के अन्य कई स्थानों के अलावा ऐतिहासिक इमारतें भी हैं। नेपाल की राजधानी काठमांडू विश्व के प्राचीन नगरों में से एक है। यह काफी खूबसूरत शहर है। यहां के बाजारों में विदेशी सामानों की भरमार है। काठमांडू में ही थामेल मशहूर बाजार है, जहां सभी तरह के सामानों के अलावा छोटे-बड़े कई रेस्टोरेंट हैं। इसी क्षेत्र में नेपाली चुलू अर्थात नेपाली भोजन का स्वाद संगीत-नृत्य के साथ ले सकते हैं। पशुपतिनाथ का पवित्र मंदिर काठमांडू में ही है। काठमांडू की घाटी में तीन प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं- काठमांडू दरबार स्क्वायर, पाटन और भक्तपुर दरबार स्क्वायर। भक्तपुर के काफी लंबे-चौड़े क्षेत्र में कई भवनों, मंदिरों आदि में कलात्मक नमूने देखे जा सकते हैं। यहां पचपन खिड़कियों का सुंदर भवन लकड़ी की कला का अद्भुत नमूना है। यहां कई भारतीय फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है। काठमांडू से 32 किलोमीटर की दूरी पर काफी ऊंचाई पर स्थित है नगरकोट। इस स्थान का खास महत्व इसलिए हैकि यहां से प्रात:काल सूरज निकलने का मनोरम दृश्य देखा जाता है। इसके लिए पर्यटक रात में ही नगरकोट पहुंच जाते हैं। गोरखा कस्बे से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है मनोकामना देवी मंदिर। धार्मिक दृष्टि से इसे अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यहां नदी और झरने के दृश्य का भी आनन्द लिया जा सकता है। पोखरा नेपाल का दूसरा बड़ा पर्यटन स्थल है, जो काठमांडू से 200 किलोमीटर दूर है। इसे पोखरा को झीलों का शहर कहते हैं। आठ झीलों वाले इस शहर की फेवा झील में बाराही मंदिर है, जहां लोग दर्शन करने जाते हैं। आप चाहें तो यहां बोटिंग, बर्ड वाचिंग, स्विमिंग, सनबाथिंग भी कर सकते हैं। यहां एक देवी फाल भी है। थोड़ी देर इसके निकट बैठ कर प्रपात को निहारना और कलकल ध्वनि को सुनना आपके दिलो-दिमाग को ताजा कर देने के लिए काफी होगा। यहीं गुप्तेश्वर महादेव गुफा के अन्दर शिवजी का मंदिर दर्शनीय है। इनके अलावा महेन्द्र और वैट्स गुफाएं भी आनंदित करती हैं। पोखरा में इंटरनेशनल म्यूजियम और गोरखा मेमोरियल म्यू़जियम अपनी-अपनी कहानी बताकर इतिहास से परिचित कराते हैं। तितली म्यूजियम का भी मजा लिया जा सकता है। विंध्यवासिनी एवं भद्रकाली मंदिर में श्रद्धालु दर्शनार्थ जाते हैं। कुछ बौद्ध स्तूप भी दर्शनीय हैं। भगवान बुद्ध की जन्मस्थली लुंबिनी भी नेपाल में ही है। हालांकि यह काठमांडू से दूर भारत-नेपाल सीमा पर स्थित है। नेपाल में कई राष्ट्रीय पार्क भी हैं। जहां जंगलों में कई तरह के जानवर देखे जा सकते हैं।

वीजा, मुद्रा और खर्च : नेपाल में भारतीय नागरिकों को वीजा की जरूरत नहीं पड़ती। मुद्रा यहां नेपाली रुपया है, जिसकी कीमत भारतीय रुपये से कम है। तीन से पांच दिन यहां घूमने के लिए दस से बीस हजार रुपये की रकम काफी है।

सावधानी है जरूरी

कुल मिलाकर देसी बजट में आप विदेश की सैर आराम से कर सकते हैं। यहां अलग-अलग देशों में घूमने के लिए जो खर्च आपको बताए गए हैं, ये बाजार में उपलब्ध विभिन्न पैकेजों पर आधारित हैं। अब पर्यटन क्षेत्र में कड़ी प्रतिस्पद्र्धा के कारण आपको इनमें कई तरह की रियायतें भी मिल सकती हैं। अगर आप बाजार की पूरी जानकारी करके मोलभाव कर सकें तो हो सकता है कि और कम खर्च में आपकी यात्रा संभव हो जाए। विशेष आग्रह पर कुछ ट्रेवल एजेंट अपने कमीशन में से भी कटौती कर देते हैं। हवाई यात्रा के शुल्क एवं होटलों की बुकिंग अगर समय से पहले करा सकें तो इसमें भी छूट मिल जाती है। आजकल ये सभी कार्य आप घर बैठे इंटरनेट से करा सकते हैं। इन मामलों में थोड़ी सी सतर्कता आपके कुल खर्च में 20-25 प्रतिशत की राहत दिला सकती है।

अगर आप बिंदास हैं, तो बेशक यह अच्छी बात है, पर जब अपने देश की सीमा से बाहर जा रहे हों तो यह ध्यान रखें कि बिंदासपन वहां कहीं आपके लिए भारी न पड़ जाए। इसलिए बेहतर होगा कि जिस देश में जाना हो वहां की आम नागरिक आचार संहिता और सांस्कृतिक पाबंदियों की जानकारी पहले से कर लें। वरना यह कहीं मुसीबत का कारण बन सकता है। इसी तरह जब भी विदेश में हों तो चाहे वह कोई भी देश क्यों न हो, अपना पासपोर्ट और वहां के भारतीय दूतावास का पता तथा फोन नंबर हमेशा अपने साथ रखें। यही वह चीजें हैं जो कहीं भी संकट के समय आपके काम आएंगी।

विदेश जाने पर मुश्किलें और भी कई तरह से आ सकती हैं। मसलन किसी की सेहत बिगड़ जाए, पासपोर्ट खो जाए या किसी चीज का नुकसान हो जाए। ऐसी तमाम मुश्किलों से उबरने का एक बेहद कारगर उपाय है विदेश यात्रा बीमा। यह बीमा एक से 180 दिन की अवधि के लिए होता है और एक महीने के लिए इसका शुल्क अलग-अलग आयुवर्ग के आधार पर 600 से 1000 रुपये तक हो सकता है। अत: जब भी विदेश निकलना हो अपनी हिफाजत के लिए बीमा जरूर कराएं।

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