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मुख पृष्ठ » पूर्व भारत » उड़ीसा »
उड़ीसा को जिन कारणों से अंतरराष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर जाना जाता है, उनमें उदयगिरि और खंडगिरि की गुफाएं भी एक हैं। भुवनेश्वर से करीब 6 किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ों में मौजूद ये गुफाएं बौद्ध और जैन धर्मदर्शन तथा इनसे जुड़ी कलाओं का बेहतरीन नमूना हैं। ये गुफाएं सि़र्फ वास्तुशिल्प की दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं हैं, ये मूक साक्षी हैं बौद्ध भिक्षुओं के ध्यान और जैन मुनियों की तप साधना की भी।
इनमें उदयगिरि की गुफाएं करीब 135 फुट की ऊंचाई पर हैं जबकि खंडगिरि की गुफाएं 118 फुट की ऊंचाई पर मौजूद हैं। उदयगिरि का अर्थ है वह पर्वत जहां सूर्योदय होता हो और खंडगिरि का अर्थ है खंडित यानी टूटा हुआ पर्वत। इन गुफाओं में दूसरी शताब्दी ई.पू. में बनाई गई कलाकृतियां इस बात का प्रमाण हैं कि उन दिनों इस क्षेत्र में बौद्ध और जैन धर्म का कितना गहरा असर था।
मुख्य आकर्षण
इन गुफाओं का मुख्य आकर्षण इनमें उकेरी गई मनोहारी चित्रकृतियां ही हैं। उदयगिरि की सभी गुफाओं में सबसे बड़ी और भव्य है रानी गुफा। तरह-तरह की चित्रकृतियों से सजी इस गुफा की दीवारों पर अपने समय के तमाम ऐतिहासिक दृश्य उकेरे गए हैं। साथ ही संगीत-नृत्य आदि ललित कलाओं की झलक भी इनमें देखी जा सकती है। वहीं एक हाथी गुफा भी है, जिसके द्वार पर ही हाथियों की बहुत बड़ी प्रतिमाएं लगी हुई हैं। गुफा के भीतर पालि भाषा में 117 पंक्तियों का एक शिलालेख उत्कीर्ण है और मध्य भाग में प्राचीन मागधी भाषा में भी एक शिलालेख है। इस गुफा में मुख्य रूप जैन साधु तप करते थे। इसी तरह खंडगिरि में भी तमाम गुफाएं मौजूद हैं। इनमें से अधिकतर का उपयोग उन दिनों ध्यान के लिए किया जाता रहा है। खंडगिरि की गुफाओं में अक्षय गंगा, गुप्त गंगा, श्याम कुंड और राधा कंुड खास तौर से लोकप्रिय हैं। यहां 24 तीर्थकरों की एक गुफा भी है। पूर्वी भारत के वास्तुशिल्प की धरोहरों में इनका स्थान बहुत महत्वपूर्ण है। कला और धर्म ही नहीं, इतिहास और पहाड़ों को काटकर बनाए गए वास्तुशिल्प की दृष्टि से भी ये अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
मध्यकाल में लंबे समय तक उपेक्षा के कारण इन गुफाओं की रंगत काफी बिगड़ भी गई थी। बाद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से इनका जीर्णोद्धार भी कराया गया है। यहां पहुंचने के लिए आप भुवनेश्वर से बस या ऑटो रिक्शा का प्रयोग कर सकते हैं।