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कोणार्क फेस्टिवल, कोणार्क (उड़ीसा)
कोणार्क के सूर्य मंदिर भारतीय शिल्प के इतिहास की एक बेजोड़ दास्तान हैं। यह फेस्टिवल इस विरासत को महसूस करने और सहेजने का एक शानदार जरिया है। इन अद्भुत मंदिरों की पृष्ठभूमि में समुद्र की लहरों की गर्जना के बीच खुले मंच में होने वाला यह महोत्सव भारत के शास्त्रीय व पारंपरिक नृत्य-संगीत की जादुई छवि पेश करता है। इस मौके पर एक आर्टिस्ट कैंप भी लगाया जाता है जो उड़ीसा के मंदिरों के वास्तुशिल्प का शानदार नमूना पेश करता है। अगर रेत पर चहलकदमी करते हुए, सूर्य मंदिर के नायाब शिल्प को निहारते हुए देश के पारंपरिक नृत्यों का मजा लेना हो तो इससे बेहतर जगह और कोई नहीं।
विंटर टॉलवुड फेस्टिवल, थेरेसीनवेज, म्यूनिख (जर्मनी)
वर्ष 1988 में हुई एक छोटी सी शुरुआत आज एक ऐसे सांस्कृतिक महोत्सव का रूप ले चुकी है जिसमें हर साल दस लाख लोग हिस्सा लेते हैं। थेरेसीनवेज के टेंटों में इस आयोजन में कैबरे से लेकर सर्कस तक, हर चीज का आकर्षण होता है। मूल रूप से यह एक बहुसांस्कृतिक आयोजन है, जिसका मकसद म्यूनिख में नए व अनूठे प्रभावों को न्योता देना है। यहां अंतरराष्ट्रीय सितारे आते हैं तो बावरिया, आस्टि्रया व उत्तर जर्मनी के कुछ इलाकों के स्थानीय हीरो भी अपनी छटा बिखेरते हैं। एक से बड़े एक रसोइए डिनर थिएटर की अवधारणा गढ़ते हैं तो क्रिसमस के खास बाजार शहरी बाजारों का विकल्प पेश करते हैं। इस उत्सव की आखिरी रात यानी 31 दिसंबर की रात चरम की होती है जब हर तरफ संगीत का समां होता है।
सांता क्लॉज वर्ल्ड चैंपियनशिप, समनौन (स्विट्जरलैंड)
क्रिसमस आते-आते सांता क्लॉज दुनियाभर में सबसे पसंदीदा पात्रों में से एक हो जाता है। सरदी के मौसम की शुरुआत में हर साल सांता क्लॉज की विश्व चैंपियनशिप आयोजित की जाती है। इसमें भाग लेने वाली सांता क्लॉज टीमों को उन सारी कारगुजारियों की प्रतियोगिता में शिरकत करनी होती है जो आम तौर पर किस्सों-कहानियों में सांता क्लॉज करते दिखाई देते हैं। जैसे कि चिमनी चढ़ना, जिंजरब्रेड सजाना, टैलेंट दिखाना, गधे पर बैठकर तोहफे बांटना, पैदल व स्कूटर पर रेस लगाना वगैरह-वगैरह। चार-चार लोगों की टीमों में सौ से ज्यादा सांता क्लॉज पांच हजार यूरो के इनामों के लिए होड़ करती हैं। स्विट्जरलैंड के खूबसूरत नजारों के बीच दर्शकों के लिए भी मनोरंजन के साधन कम नहीं होते।
तानसेन संगीत समारोह, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
देश में संगीत घरानों की नायाब परंपरा में ग्वालियर घराने का महत्वपूर्ण स्थान है। उधर मुगल बादशाह अकबर के नवरत्नों में से एक तानसेन भारतीय संगीत परंपरा की अनमोल धरोहर माने जाते हैं। अपने गायन से आकाश में बादल जुटाकर पानी बरसाने और दीप जलाने की उनकी गाथाएं आज भी सुनी-सुनाई जाती हैं। हर साल दिसंबर में ध्रुपद गायिकी के इस नायाब संगीतकार के सम्मान में यह संगीत समारोह होता है। एक खूबसूरत बगीचे में 17वीं सदी का बना उनका मकबरा इस समारोह का मेजबान बनता है। देश के जाने-माने शास्त्रीय कलाकार अपना फन यहां उतने ही जानकार श्रोताओं के बीच दिखाते हैं। देश की सांस्कृतिक-ऐतिहासिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा ग्वालियर है। इस समारोह में शिरकत करके उस विरासत की झलक देखी जा सकती है।
विंटर फेस्टिवल, माउंट आबू (राजस्थान)
माउंट आबू इस लिहाज से मजेदार है कि वहां गरमियों व सरदियों, दोनों ही मौसम में विशेष उत्सव होते हैं। ग्रीष्मोत्सव जहां बुद्ध पूर्णिमा पर होता हैं वहीं विंटर फेस्टिवल की तारीखें तय हैं, हर साल 29 से 31 दिसंबर के बीच। मुख्य मकसद है पर्यटकों को लुभाना। जाहिर है, क्रिसमस और नया साल इस जलसे का मुख्य आधार होता है। माउंट आबू पश्चिमी भारत का अकेला हिल स्टेशन कहा जा सकता है। यहां पहाड़ की तरह बर्फ तो नहीं गिरती लेकिन कड़कड़ाती सरदी का आनंद जरूर लिया जा सकता है। सरदी थोड़ी ज्यादा ही हो जाए तो नक्की झील के पानी को जमते देखने का मजा भी मिल सकता है।
कोच्चि कार्निवल, कोच्चि (केरल)
साल के आखिरी दिन लगभग पूरी दुनिया में छुट्टी व मौजमस्ती के होते हैं। इसी मौजमस्ती ने अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग रूप अख्तियार कर लिए हैं। फोर्ट कोच्चि में साल के आखिरी सप्ताह में हर तरफ उत्सव का सा नजारा होता है। यहां यह कार्निवल मनाने की परंपरा उस समय से चली आ रही है जब यहां पुर्तगालियों का शासन था। हर तरफ रोशनी बिखरी होती है। खेल होते हैं, कई प्रतियोगिताएं होती हैं। नए साल के पहले दिन एक विशाल जुलूस निकलता है। आगे-आगे सजे-धजे हाथी चलते हैं, ढोल-नगाड़ों का शोर होता है, पंचवाद्यम बज रहे होते हैं, पारंपरिक नृत्य होते हैं और सजी-धजी नौकाएं होती हैं। नया साल यहां मनाएं तो उसका मजा कुछ और ही होगा।
हरबल्लभ संगीत सम्मेलन, जालंधर (पंजाब)
बाबा हरबल्लभ संगीत सम्मेलन को भारतीय शास्त्रीय संगीत के दुनिया के सबसे पुराने संगीत समारोह के रूप में माना जाता है। बाबा हरबल्लभ की समाधि पर यह समारोह हर साल दिसंबर के आखिरी सप्ताहांत पर आयोजित होता है। पहला सम्मेलन 1875 में जालंधर में सिद्धपीठ देवी तालाब पर हुआ था। तभी से यह हर साल हो रहा है। भारत के अलावा पाकिस्तान से भी कलाकार और श्रोता इस सम्मेलन में शिरकत करने आते रहे हैं। देश के जाने-माने शास्त्रीय कलाकारों को सुनने के लिए भारी तादाद में लोग यहां जुटते हैं। पर्यटन मंत्रालय ने इसे राष्ट्रीय उत्सवों की श्रेणी में शामिल कर रखा है। शुद्ध रूप से संगीत का लुत्फ लेना हो तो इससे बेहतर जगह और कोई नहीं।
पाइरेट्स इन पैरेडाइज फेस्टिवल, की वेस्ट (अमेरिका)
दुनिया अजग-गजब की एक और मिसाल। की वेस्ट द्वीप अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण लंबे समय तक समुद्री लुटेरों का गढ़ रहा है। वहां से पहला जमीनी संपर्क (पुल) 1905 में ही कायम हो पाया था। यह महोत्सव उसी विरासत को याद करने का है। समुद्री लुटेरों का वह खौफ अब एक जलसे में तब्दील हो चुका है। स्थानीय लोग व सैलानी इस दौरान जमकर पार्टियां व अलग-अलग आयोजन करते हैं। जमीन पर व समुद्र में लुटेरों के से कारनामे दिखाए जाते हैं, लड़ाइयां लड़ी जाती हैं, सेमिनार होते हैं, भोज, परेड, डांस व न जाने क्या-क्या। समुद्री लुटरों पर बनी फिल्में यदि आपको लुभाती हैं तो यहां जीती-जागती फिल्म देखी जा सकती है।