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देश के हिंदू तीर्थस्थानों में पुष्कर का अलग ही महत्व है। यह महत्व इसलिए बढ़ जाता है कि यह अपने आप में दुनिया में अकेली जगह है जहां ब्रह्मा की पूजा की जाती है। लेकिन इस धार्मिक महत्व के अलावा भी इस जगह में लोगों को आकर्षित करने वाली खूबसूरती है। अजमेर से नाग पर्वत पार करके पुष्कर पहुंचना होता है। इस पर्वत पर एक पंचकुंड है और अगस्त्य मुनि की गुफा भी बताई जाती है। यह भी माना जाता है कि महाकवि कालिदास ने इसी स्थान को अपने महाकाव्य अभिज्ञान शाकुंतलम के रचनास्थल के रूप में चुना था। पुष्कर में एक तरफ तो विशाल सरोवर से सटी पुष्कर नगरी है तो दूसरी तरफ रेगिस्तान का मुहाना। सैलानियों की इतनी बड़ी संख्या के बावजूद यहां के स्वरूप में खास तब्दीली नहीं आई है।
कार्तिक के महीने में यहां लगने वाला ऊंट मेला दुनिया में अपनी तरह का अनूठा तो है ही, साथ ही यह भारत के सबसे बड़े पशु मेलों में से भी एक है। मेले के समय पुष्कर में कई संस्कृतियों का मिलन सा देखने को मिलता है। एक तरफ तो मेला देखने के लिए विदेशी सैलानी पड़ी संख्या में पहुंचते हैं, तो दूसरी तरफ राजस्थान व आसपास के तमाम इलाकों से आदिवासी और ग्रामीण लोग अपने-अपने पशुओं के साथ मेले में शरीक होने आते हैं। मेला रेत के विशाल मैदान में लगाया जाता है। आम मेलों की ही तरह ढेर सारी कतार की कतार दुकानें, खाने-पीने के स्टाल, सर्कस, झूले और न जाने क्या-क्या। ऊंट मेला और रेगिस्तान की नजदीकी है इसलिए ऊंट तो हर तरफ देखने को मिलते ही हैं। लेकिन कालांतर में इसका स्वरूप एक विशाल पशु मेले का हो गया है, इसलिए लोग ऊंट के अलावा घोड़े, हाथी, और बाकी मवेशी भी बेचने के लिए आते हैं। सैलानियों को इनपर सवारी का लुत्फ मिलता है सो अलग। लोक संस्कृति व लोक संगीत का शानदार नजारा देखने को मिलता है।
मेला स्थल से परे पुष्कर नगरी का माहौल एक तीर्थनगरी सरीखा होता है। कार्तिक में स्नान का महत्व हिंदू मान्यताओं में वैसे भी काफी ज्यादा है। इसलिए यहां साधु भी बड़ी संख्या में नजर आते हैं। पुष्कर मेला कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी से शुरू होता है और पूर्णिमा तक चलता है। मेले के शुरुआती दिन जहां पशुओं की खरीद-फरोख्त को जोर रहता है, वहीं बाद के दिनों में पूर्णिमा पास आते-आते धार्मिक गतिविधियों का जोर हो जाता है। श्रद्धालुओं के सरोवर में स्नान करने का सिलसिला भी पूर्णिमा को अपने चरम पर होता है। मेले के दिनों में ऊंटों व घोड़ों की दौड़ खूब पसंद की जाती है। सबसे खूबसूरत ऊंट व ऊंटनियों को इनाम भी मिलते हैं। दिन में लोग जहां जानवरों के कारनामे देखते रहते हैं, तो वहीं शाम का समय राजस्थान के लोक नर्तकों व लोक संगीत का होता है। ऐसा समां बंधता है कि लोग झूमने लगते हैं।
मंदिरों की नगरी
पुष्कर को तीर्थनगरी का दर्जा हासिल है तो उसकी एक वजह यह भी है कि यहां कई मंदिर हैं। इसीलिए इसे मंदिरों की नगरी भी कहा जाता है। पुष्कर में छोटे-बड़े चार सौ से ज्यादा मंदिर हैं। ब्रह्मा मंदिर: ब्रह्मा के नाम मौजूद यह एकमात्र मंदिर है। इस समय जो मंदिर है, वह 14वीं सदी में बनाया गया था। मंदिर के लिए कई सीढि़यां चढ़नी होती है जो संगरमरमर की बनी हैं। मंदिर के गर्भगृह के ठीक सामने चांदी का कछुआ बना हुआ है। कछुए के चारों तरफ मार्बल के फर्श पर सैकड़ों सिक्के गढ़े हुए हैं जिनपर दानदाताओं के नाम खुद हुए हैं।
रंगजी मंदिर: रंगजी को विष्णु का ही रूप माना जाता है। इनके दो मंदिर हैं- एक नया और दूसरा पुराना। नया मंदिर हैदराबाद के सेठ पूरणमल गनेरीवाल ने 1823 में बनवाया था। इस मंदिर की खूबसूरती द्रविड़, राजपूत व मुगल शैली के अद्भुत समागम की वजह से है। सावित्री मंदिर: ब्रह्मा की पहली पत्नी का यह मंदिर ब्रह्मा मंदिर के पीछे एक पहाड़ी पर स्थित है। मंदिर तक पहुंचने के लिए कई सीढि़यां चढ़नी होती हैं। मंदिर से नीचे पुष्कर सरोवर और आसपास के गांवों का मनमोहक नजारा देखने को मिलता है।
सरस्वती मंदिर: विद्या की देवी सरस्वती भी ब्रह्मा की पत्नी हैं। वह नदी भी हैं और उन्हें उर्वरता व शुद्धता का प्रतीक माना जाता है। यह जोरदार बात है कि पुष्कर को ज्ञान अर्जना का भी केंद्र माना जाता है। सदियों से लेखक, कलाकार अपनी-अपनी कलाओं को निखारने के लिए पुष्कर आते रहे हैं। इनके अलावा पुष्कर में बालाजी मंदिर, मन मंदिर, वराह मंदिर, आत्मेश्वर महादेव मंदिर आदि भी श्रद्धा के प्रमुख केंद्रों में से हैं। सरोवर के ही किनारे आमेर के राजा मान सिंह का पूर्व निवास मन महल भी है। हालांकि अब इसे राजस्थान पर्यटन विकास निगम के होटल के रूप में तब्दील किया जा चुका है। यहां आने वाले लोग कहते हैं कि पुष्कर का अपने में अलग जादू है जो लोगों को खींचता है। खास तौर पर मेले के समय यहां आना एक यादगार अनुभव है। एक ऐसा अनुभव जो अगर मौका मिले तो किसी हाल में चूकना नहीं चाहिए। त्रिदेवों में विष्णु व शिव के साथ ब्रह्मा को गिना जाता है। ब्रह्मा जहां सृष्टि के रचियता माने जाते हैं, वहीं विष्णु उसके पालक और शिव संहारक।
पुष्कर का अर्थ एक ऐसे सरोवर से होता है जिसकी रचना एक पुष्प से हुई हो। पुराणों के अनुसार ब्रह्मा ने अपने यज्ञ के लिए एक उचित स्थान चुनने के इरादे से एक कमल गिराया था। पुष्कर उसी से बना। ब्रह्मा एक खास मुहूर्त में यज्ञ करना चाहते थे। यज्ञ पूर्ण करने के लिए उनके साथ उनकी अर्धागिनी सावित्री का होना जरूरी था। लेकिन सावित्री उन्हें इंतजार कराती रहीं। चिढ़कर ब्रह्मा ने एक ग्वालिन गायत्री से विवाह कर लिया और यज्ञ में उसे सावित्री के स्थान पर बैठा दिया। सावित्री ने वहां आकर अपनी जगह किसी और को बैठा देखा तो वह कुपित हो गई और उन्होंने ब्रह्मा को श्राप दे दिया कि जिस सृष्टि की रचना उन्होंने की है, उसी सृष्टि के लोग उन्हें भुला देंगे और उनकी कहीं पूजा नहीं होगी। लेकिन बाद में देवों की विनती पर सावित्री पिघली और उन्होंने कहा कि पुष्कर में उनकी पूजा होगी। इसीलिए कहा यही जाता है कि दुनिया में ब्रह्मा का सिर्फ एक ही मंदिर है और वह पुष्कर में है।
कब जाएं
पुष्कर के पवित्र सरोवर में स्नान के लिए साल में कभी भी जाया जा सकता है। लेकिन स्नान के साथ-साथ पुष्कर के जगप्रसिद्ध ऊंट मेले का भी मजा लेना हो तो कार्तिक माह में जाएं। मेला कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी से शुरू होकर पूर्णिमा तक चलता है। इस साल यह मेला 17 से 24 नवंबर तक चलेगा। 24 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा है। लेकिन ध्यान रखें कि वह समय सर्दियों की शुरुआत का है। पुष्कर के खुले रेतीले इलाके में उन दिनों रातें खासी ठंडी हो सकती हैं। इसलिए जाएं तो साथ में गरम कपड़ों का इंतजाम जरूर रखें।
कैसे जाएँ
सड़क मार्ग - सड़क मार्ग से पुष्कर अजमेर से केवल 12 किलोमीटर दूर है। वहीं अजमेर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 8 (दिल्ली-मुंबई) पर स्थित है। अजमेर से जयपुर 138 किमी व दिल्ली 392 किलोमीटर है। जबकि दूसरी दिशा में उदयपुर 274 और मुंबई 1071 किलोमीटर दूर है। अजमेर के लिए सभी बड़े शहरों से सीधी सामान्य व डीलक्स बसें हैं। अजमेर से पुष्कर जाने के लिए भी कई साधन उपलब्ध हैं। रेल मार्ग-पुष्कर जाने के लिए आपको ट्रेन से अजमेर ही आना होगा। अजमेर दिल्ली-अहमदाबाद मुख्य रेल लाइन पर है। अहमदाबाद जाने वाली ट्रेनों के अलावा दिल्ली से शताब्दी भी अजमेर तक है। हवाई रास्ता-अजमेर में हवाई अड्डा नहीं है। इस लिहाज से जयपुर सबसे निकट का हवाईअड्डा है। हालांकि अजमेर के पास किशनगढ़ में एक हवाई पट्टी हाल ही में बनाई गई है जहां छोटे चार्टर विमान उतर सकते हैं। इसके अलावा अजमेर के निकट घूघरा में और पुष्कर के निकट देवनगर में हैलीपेड हैं जो हेलीकॉप्टर से आने वालों के लिए हैं।
क्या खरीदें
यहां खरीदने के लिए हस्तशिल्प की कई सारी वस्तुएं मिल जाएंगी। स्थानीय लोग महिलाओं, मवेशियों व ऊंटों की सजावट का सामान काफी खरीदते हैं। यादगार के तौर पर कई पारंपरिक चीजें यहां से खरीदी जा सकती हैं। राजस्थान पर्यटन इस मौके पर एक शिल्पग्राम भी स्थापित करता है जहां राज्य के विभिन्न हिस्सों से शिल्पकार अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। आप इस मौके पर न केवल उन्हें अपनी कला में रत देख सकते हैं बल्कि अपने संग्रह के लिए उनके शिल्प को खरीद भी सकते हैं। स्थानीय शिल्प को प्रोत्साहन देने का भी यह काफी कारगर तरीका है।
कहां ठहरें
पुष्कर में ठहरने के लिए हर तरह के बजट लायक कई होटल व गेस्ट हाउस हैं। मेले के दौरान बड़ी संख्या में टेंट भी लगाए जाते हैं। इनमें लग्जरी टेंट भी होते हैं और कई सैलानी माहौल का पूरा आनंद उठाने के लिए टेंट में ठहरना ज्यादा पसंद करते हैं। लग्जरी टेंट आम तौर पर पर्यटन विभाग और निजी टूर ऑपरेटरों द्वारा लगाए जाते हैं। पुष्कर में न ठहरना चाहें तो अजमेर भी एक विकल्प है।