श्रीलंका: बुद्ध का लोक अनूठा

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पर्यटन के लिए जिन चीजों की अपेक्षा की जाती है, वे सभी श्रीलंका में भरपूर मात्रा में उपलब्ध हैं। यहां खूब जंगल हैं, पहाड़ हैं, झीलें हैं, समुद्रतट और नदियां हैं। आकार की दृष्टि से छोटा होने के बावजूद प्रकृति ने इस देश को अपनी संपदा खुले हाथों से लुटाई है। भारत के पौराणिक साहित्य में इसे सोने का द्वीप कहा गया है। इसके अलावा अन्य देशों में भी लंबे अरसे तक इसे ‘पूरब के मोती’, ‘स्वर्णद्वीप’ और ‘सेरेनदीब’ जैसे विशेषणों से जाना जाता है। प्रकृति से इसे मिली समृद्धि को देखते हुए ये विशेषण सत्य से बहुत दूर भी नहीं लगते। माणिक्य, पन्ना और नीलम जैसे बहुमूल्य रत्न यहां के समुद्र तटों पर खूब पाए जाते हैं। इसके पहाड़ों पर रबड़, चाय और कॉफी जैसी कीमती चीजों की खेती भी यहां खूब होती है। गौरतलब है कि श्रीलंका ही वह देश है जहां एक स्त्री पहली बार प्रधानमंत्री बनी थी। सिरिमावो भंडारनायके दुनिया की वह पहली स्त्री हैं जिन्हें सन् 1960 में प्रधानमंत्री होने का गौरव हासिल हुआ।

पिछले करीब एक दशक से आतंकवाद के कारण पर्यटन व्यवसाय यहां मंदा पड़ गया था, पर अब श्रीलंका में शांति लौट आई है। इधर बौद्ध धर्मावलंबी इस देश ने विश्व के पर्यटन मानचित्र पर नये सिरे से अपनी पहचान बनाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं। भारत के इस पड़ोसी देश के पास पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए सभी तत्व मौजूद हैं। श्रीलंका में एक ओर जहां खूबसूरत समुद्र तट हैं, वहीं यहां के पहाड़ों पर फैली हरियाली और चाय बागान के साथ ही यहां का वन्य जीवन और पक्षी विहार भी लोगों को आकर्षित करते हैं। एक तरफ तो यहां परंपरागत रहन-सहन और आचार-व्यवहार का दर्शन होता है, दूसरी तरफ आधुनिक जीवन शैली के प्रतीक कैसीनो भी श्रीलंका में हैं। यह अब तक भारत में भी नहीं है। इसका लुत्फ उठाने के लिए अभी तक  हमारे देश के लोग नेपाल जाया करते हैं। इसके साथ ही श्रीलंका में बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए पूरा जीवन दर्शन और इतिहास भरा पड़ा है। पहाड़ों को काटकर बनाई गई भगवान बुद्ध की मूर्तियां यहां आकर्षण के खास कारणों में से हैं।

मोहक समुद्र तट

श्रीलंका के समुद्र तटों को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है – पश्चिमी और दक्षिणी समुद्र तट तथा दूसरा पूर्वी और उत्तरी समुद्र तट। पश्चिमी और दक्षिणी समुद्र तट पर ही श्रीलंका की राजधानी कोलंबो भी स्थित है। यहां के समुद्र तटों पर नवंबर से अप्रैल के बीच मौसम काफी सुहावना होता है। इन दिनों यहां वाटर स्पो‌र्ट्स के लिए भी आदर्श स्थितियां होती हैं। कोलंबो हवाई अड्डे के पास ही उत्तरी कोलंबो में हेंडाला, नेगोंबो और वैकाल तट हैं। दक्षिणी कोलंबो में गोल्ड कोस्ट के नाम से विख्यात समुद्र तट है। इसके साथ ही लाविनिया, वादुआ, कालुतारा, बेरूआला, बेंटोटा, इंदुरूआ, कोसोगोदा, अहुंगाला, हिक्कादुआ, गाले, उनावंतुना, कोगाला, वेलीगामा, तंगाले और हंबंटोटा जैसे बीच हैं। मीलों लंबे फैले यहां के इन तटों में से आप किसी भी तट पर अपनी छुट्टियां बिता सकते हैं।

पूर्वी और उत्तरी किनारे पर श्रीलंका में नीलावेली, कुच्चावेली, मार्बल बे, स्वीट बे और डेड वे केव्ज नामक तट हैं जो अपने व्यापक बलुआ तट और दूर-दूर तक फैले स्वच्छ पानी से भरे हुए हैं। इन तटों पर आपको वाटर स्पो‌र्ट्स के लिए हर तरह की सुविधा मिल जाएगी। दक्षिण की ओर जाने पर पासेकुद्दा, कालकुद्दा और अरूगम बे जैसे शांत तट हैं।

श्रीलंका के ज्यादातर समुद्र तट अब तक भीड़ भाड़ से अछूते और साफ-सुथरे हैं। कई मायनों में ये समुद्र तट दुनिया के बेहतरीन तटों में से एक हैं और इनकी तुलना मलयेशिया और मारिशस के समुद्री तटों से की जा सकती है। इन तटों के किनारे केरल की तरह ही पेड़ों की कतारें हैं जो तटों को हरियाली से भर देते हैं। यहां के कई तट बरबस केरल की याद दिला देते हैं।

वैभव के अवशेष

श्रीलंका में प्राचीन धरोहरों को निहारना अपने आप में एक अलग अनुभव है। हालांकि श्रीलंका का लिखित इतिहास 2000 वर्ष से भी कम पुराना है, पर वहां की स्थापत्य कला के प्राचीन नमूनों से साफ झलकता है कि श्रीलंका बहुत पहले से एक विकसित क्षेत्र रहा है। सैकड़ों साल पहले जिस तरह से वहां तरणताल, जलाशय, पार्क और मंदिरों का निर्माण किया गया, उससे इस बात का साफ आभास होता है।

श्रीलंका के प्राचीन वैभव को देखने के लिए अनुराधापुरा से यात्रा शुरू की जा सकती है। अनुराधापुरा श्रीलंका की राजधानी रह चुका है। कोलंबो से 205 किलोमीटर दूर स्थित इस शहर में किलों के प्राचीन भग्नावशेष और भव्य स्तूप चारों ओर दिखते हैं। इनमें से रूवांवेली, जेतावान्ना और अभयागिरी के स्तूपों की भव्यता देखते ही बनती है। पर्यटकों को लुभाने वाले ये स्तूप 1500 साल से भी ज्यादा समय से यहां खड़े हैं। इसके पास ही विश्व के सबसे पुराने पेड़ों में से एक पवित्र श्री महाबोधि वृक्ष स्थित है। संभवत: यह वृक्ष दुनिया का सबसे पुराना पवित्र वृक्ष है। इस वृक्ष को लगभग 2310 साल पहले सम्राट अशोक के पुत्र महेंद्र ने अनुराधापुरा में लगाया था। माना जाता है कि यह वृक्ष भारत के बोधगया स्थित उस महाबोधि वृक्ष का ही एक अंश है जिसके नीचे भगवान बुद्ध को बुद्धत्व प्राप्त हुआ था और जिसकी एक टहनी महेंद्र अपने साथ ले गए थे। अनुराधापुरा में इसी पेड़ के पास ऊंचे-ऊंचे कंकरीट के कालम खड़े हैं जो सैकड़ों साल पुराने हो चुके हैं, पर उनकी अपनी ही छटा है। यहीं पर समाधि में लीन बुद्ध की प्रतिमा स्थित है जो मूर्तिकला का अद्भुत मिसाल है। पहाड़ों को काटकर यहां बनाई गई बुद्ध की मूर्तियां अफगानिस्तान के बामियान प्रांत में बनाई गई मूर्तियों की याद ताजा कराती हैं जिन्हें वहां के कट्टरपंथी तालिबान शासकों ने नष्ट कर दिया है। वैसे पूरे अनुराधापुरा में इस तरह की मूर्तियों, मंदिरों और पुरातात्विक अवशेषों की भरमार है जहां पर्यटक खो से जाते हैं।

एक दीवार शीशे जैसी

अनुराधापुरा से 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मिहिंटेल में स्तूपों और मंदिरों के अलावा वे गुफाएं देखने लायक हैं जिनमें बौद्ध भिक्षु रहा करते थे। कोलंबो से 216 किलोमीटर की दूरी पर अनुराधापुरा के पास ही स्थित पोलान्नोरुआ में पहाड़ों को काटकर बनाई गई बुद्ध की मूर्तियां भी देखने लायक हैं। यहां आराम करते बुद्ध और खड़े बुद्ध की विशाल मूर्तियां आकर्षक हैं। पोलान्नोरुआ  के पास ही सिगिरिया एक और देखने लायक स्थान है। वास्तव में यह एक छोटी सी गोलाकार पहाड़ी है जिसकी ऊंचाई 200 मीटर और क्षेत्रफल 1.5 हेक्टेयर के आसपास है। इसके ऊपर मौजूद है एक किला। इसका निर्माण पांचवीं शताब्दी में यहां के तत्कालीन शासक ने कराया था, जहां साढे़ नौ फुट चौड़ाई की घुमावदार सीढि़यों से चढ़ा जा सकता है। इन सीढि़यों को दोनों ओर से ढकने के लिए दीवार बनाई गई है और उस पर कुछ इस तरह से प्लास्टर किया गया है कि सैकड़ों साल तक धूप, हवा और बारिश को झेलने के बाद भी इस दीवार में आप अपनी शक्ल देख सकते हैं। संभवत: यही कारण है कि इसे मिरर वॉल कहा जाता है। यह स्थल कुछ मामलों में बिलकुल अनूठा है। श्रीलंका में यह यह इकलौता ऐसा स्थान है जहां पहाड़ों पर स्ति्रयों के चित्र बनाए गए हैं। पहाड़ी के ऊपर से आसपास के इलाकों को देखना एक सुखद अनुभव है क्योंकि इसके चारों ओर हरियाली का साम्राज्य है। ऊपरी भाग में चित्रकला की अनोखी मिसाल देखने को मिलती है।

सिगिरिया से 12 किलोमीटर की दूरी पर दंबुला स्थित है जहां एक विशाल मंदिर है। इस मंदिर की खासियत यह है कि इसमें बुद्ध की 150 से भी ज्यादा आदमकद मूर्तियां एक कतार में लगी हैं। इसके साथ ही इसकी छत पर भी अनगिनत प्रतिमाएं बनाई गई हैं। इसके अलावा यहां की पांच गुफाओं को भी पवित्र स्थलों में बदला गया है जिसमें से एक में 47 फुट लंबी बुद्ध की प्रतिमा है।

जिंदगी है उत्सव जहां

कोलंबो से 129 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कैंडी एक हिल स्टेशन है। कोलंबो के बाद यही श्रीलंका का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। देश की राजधानी होने के कारण कोलंबो राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। परंतु, सांस्कृतिक विविधता की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण जगह कैंडी ही है। यहां पूरे साल रंगारंग कार्यक्रम चलते रहते हैं। कैंडी समुद्र तट से लगभग 1500 फुट की ऊंचाई पर है। गर्मियों में यहां काफी चहल-पहल रहती है। कैंडी को श्रीलंका की सांस्कृतिक राजधानी भी कहा जाता है और रोमांटिक सिटी भी। यहां संगीत और नृत्य के तरह-तरह के समारोहों की भरमार हुआ करती है। देर तक लोग आपको यहां के भीड़ भरे बाजार में खरीदारी करते हुए दिख जाएंगे। इसके साथ ही यहां के मंदिर भी देखने लायक हैं जिनमें चौदहवीं सदी में बना लंकातिलक विहार्य भी शामिल है। ईटों से बना सफेद रंग की पृष्ठभूमि वाला यह मंदिर अत्यंत आकर्षक है। तीन मंजिलों का यह मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तु प्रारूप पर आधारित है। इसकी दीवारों और छतों पर फ्रेस्को स्टाइल की आकर्षक पेंटिगें बनी हुई हैं और लकड़ी के बने इसके दरवाजे भी बेहद खूबसूरत हैं। सोलहवीं शताब्दी में निर्मित यहां का दंत मंदिर दुनिया की महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहरों में एक है। यह धार्मिक दृष्टि से भी उतना ही महत्वपूर्ण है। इस मंदिर में एक दांत रखा है। ऐसा माना जाता है कि यह दांत भगवान बुद्ध का है। श्रीलंकाई पंचांग के अनुसार एसाला चांद्रमास यानी जुलाई-अगस्त के दौरान यहां एक त्योहार मनाया जाता है। इस त्योहार को एसाला डलाडा पेराहेरा कहते हैं। इस अवसर पर पूरे धूमधाम के साथ होने वाला उत्सव देखते ही बनता है। इसके अंतर्गत ढोल-नगाड़े और अच्छी तरह सजाए गए हाथियों के साथ नाच-गाना होता है और पूजा की जाती है। कैंडी के निचले इलाके में कैंडी झील की शोभा रात को देखने ही बनती है। यहां आप नौकायन का आनंद ले सकते हैं और स्नान में लीन हाथियों के झुंड देखने का भी।

दौर उपनिवेश का

कोलंबो से दक्षिण दिशा में 115 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है गाले। यह उन लोगों के लिए खास तौर से महत्वपूर्ण जगह है जो श्रीलंका के औपनिवेशिक काल के इतिहास को गहराई से जानना चाहते हैं। दरअसल यह एक बंदरगाह है और यहां लंबे अरसे तक भारी संख्या में डच लोग रहते रहे हैं। यहां एक ऐतिहासिक किला भी है। यह किला करीब 36 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैला हुआ है। डच लोगों द्वारा बनवाया गया यह किला आज भी बिलकुल दुरुस्त है। इसके अंदर तमाम डच लोगों के आवास और गिरजाघर भी हैं और ये सभी अच्छी दशा में हैं।

पर्यटन की दृष्टि से यहां कुछ छोटे कस्बे भी महत्वपूर्ण हैं। इनमें खासतौर से बेनटोटा और हिकादुआ के नाम उल्लेखनीय है। इन कस्बों की प्रसिद्धि मुख्य रूप से खूबसूरत समुद्रतट के लिए है। विदेशों से तमाम पर्यटक यहां हर साल धूप Fान के लिए आते हैं। हिकादुआ श्रीलंका का सबसे प्रसिद्ध बीच रिसॉर्ट है। इस मनोरम समुद्रतट पर तैराकी, स्कूबा डाइव आदि की पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध हैं। यहां एक तटीय सैंBुरी में कांच के तले वाली नौकाएं भी उपलब्ध हैं, जिनका आनंद लेने के लिए तमाम पर्यटक यहां खासतौर से आते हैं।

यहां पर्वत की एक ऐसी चोटी भी है, जिसे तितलियों के कब्रिस्तान के रूप में जाना जाता है। आदम की चोटी नाम की यह चोटी श्रीलंका दूसरी सबसे ऊंची पर्वतीय चोटी है और हर साल तमाम तितलियां यहां पहुंच कर मर जाती हैं। इसे समानालकंद नाम से भी जाना जाता है। स्थानीय भाषा में समानालकंद का अर्थ होता है तितलियों का मरणस्थल। इसी चोटी पर एक और जगह है, श्रीपाद। ईसाइयों का विश्र्वास है कि यही वह जगह है जहां आदम ने पहली बार अपने पांव रखे।

श्रीलंका के दो प्रमुख शहर बाट्टीकालोआ और जाफना इधर करीब एक दशक से दुनिया के पर्यटन नक्शे से बाहर माना जा रहा है। इसका एकमात्र कारण वहां जारी आतंकवादी गतिविधियां हैं। श्रीलंका की घुमक्कड़ी के दौरान सबसे दिलचस्प बात यह है कि यहां हर एक से दूसरे शहर की ओर जाते हुए रास्ते में आपको प्रकृति के सौंदर्य का अनमोल खजाना बिखरा पड़ा मिलेगा। यहां की छोटी-छोटी पहाडि़यों पर मसालों के बाग, चाय बागान, काजू और स्ट्राबेरी के खेतों के अलावा मंदिर और स्थापत्य के कई नायाब नमूने दिखते रहते हैं।

झुंड हाथियों के

केरल की ही तरह हाथियों के झुंड श्रीलंका के अभयारण्यों में भी देखे जा सकते हैं। कोलंबो से 309 किलोमीटर की दूरी पर स्थित रुहुना नेशनल पार्क श्रीलंका का सर्वाधिक लोकप्रिय वन्य जीव अभयारण्य है। 1200 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फै ले इस अभयारण्य का प्राकृतिक सौंदर्य भी अप्रतिम है। पेड़ों और तमाम तरह की वनस्पतियों के अलावा यहां मनोरम वाटरफ्रंट और बेहद सुंदर लैगून भी मौजूद हैं। इस अभयारण्य की प्रसिद्धि खास तौर से हाथियों के लिए है। इसके अलावा यहां भारी संख्या में चीते, जंगली सुअर, मोर, सांभर और कई तरह पक्षियां भी मौजूद हैं।

कैंडी स्थित थहानम केले और को उदवात्केले वन्य अभयारण्य खास तौर से देखने लायक हैं। यहां वन्य जंतुओं की विलुप्त होती 16 प्रजातियों को संभाल कर रखा गया है। इनमें चूहा और हिरन भी शामिल हैं। कैंडी के अतिरिक्त सिंहराजा रेन फॉरेस्ट भी देखने लायक है। विलपतु और इनगिनियागाला अभयारण्यों में सुरक्षित चोटियों से या बंद जीप के माध्यम से आप जंगली जानवरों को बिलकुल पास से देख सकते हैं। पक्षियों के लिए विशेष रूप से कुमाना और विरावाला पक्षी विहार देखना समय का सदुपयोग होगा। इन अभयारण्यों में श्रीलंका में पाई जाने वाली 427 प्रकार के पक्षियों को भी देखा जा सकता है। पक्षियों में पीले कानों वाली बुलबुल, लाल चेहरों वाली मल्कोहा पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। इनके अलावा वासागामुआ नेशनल पार्क , हॉटन प्लेंस नेशनल पार्क, बुंदाला नेशनल पार्क  और गल ओया नेशनल पार्क भी देखने लायक जगहें।

खान-पान और खरीदारी

चारों तरफ समुद्र से घिरे होने के कारण श्रीलंका में खाने के लिए आपको सी-फूड पर्याप्त मात्रा में मिल सकता है। इसके अलावा मसालेदार करी-चावल भी यहां का पसंदीदा भोजन है। कोलंबो और कैंडी तथा तटीय बीचों पर हर तरह के खान-पान उपलब्ध हैं। कैंडी और कोलंबो में रुकने के दौरान आप श्रीलंकाई हस्तशिल्प की बनी वस्तुओं की खरीदारी कर सकते हैं। कोलंबो में आप किला और हाथियों का विशेष सर्कस शो देख सकते हैं।

इतिहास

श्रीलंका का इतिहास अधिकांशत: जनश्रुतियों में ही सुरक्षित है। ऐसा माना जाता है कि यहां आने वाला पहला सिंहली भारतभूमि से पांचवीं या छठीं शताब्दी ई.पू. में यहां आया था। उसने यहां के मूल निवासियों को उनके घर में ही पराजित कर दिया और यहां अपना राज्य स्थापित कर लिया। यहां के मूल निवासी वेद्दा बताए जाते हैं।  सिंहलियों ने यहां अपना राज्य स्थापित कर लिया और उन्होंने अनुराधापुरा को अपनी राजधानी बनाया। उन्होंने भारत के सम्राट अशोक के साथ अपने कूटनीतिक संबंध भी स्थापित कर लिए। इन्हीं संबंधों के चलते बौद्ध मिशनरियां श्रीलंका तक पहुंचीं और उन्होंने तीसरी शताब्दी में बड़े पैमाने पर श्रीलंका के लोगों को बौद्ध संप्रदाय की दीक्षा दी।

अनुराधापुरा ईसवी सन् 10 तक सिंहलियों की राजनीति का केंद्रीय स्थल बना रहा। इसके बाद दक्षिण पूर्वी श्रीलंका का एक दूसरा शहर पोलोन्नारुआ इसकी राजधानी बना। बाद में कई और शहरों में भी श्रीलंका की राजधानी रही। इसी दौरान इस देश पर विदेशी व्यापारियों और उपनिवेशवादियों की गिद्ध दृष्टि पड़ी। खास तौर से पुर्तगालियों ने इसका इस्तेमाल मसाले के व्यापार और अपने धर्म के प्रचार-प्रसार दोनों कार्यो के लिए किया। 17 शताब्दी में यहां डच लोग पहुंचे और उन्होंने पुर्तगालियों को किनारे लगाने की कोशिशें शुरू कीं। उन्होंने इस द्वीप के व्यापार-व्यवसाय पर कब्जे के प्रयास में 140 वर्षो तक हर तरह के जोड़-तोड़ की कोशिश की। बाद में डच लोगों को अंग्रेजों ने हटाकर यहां अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया। यहां 1796 में अंग्रेजों ने सबसे पहले सीलोन पर कब्जा किया था और तब वे मद्रास से ही यहां का शासन चलाया करते थे। यह स्थिति सन 1802 तक रही और इसके बाद यह एक मुकम्मल उपनिवेश बन गया। अंग्रेजों की नजर खास तौर से इस देश के चाय, मसालों, नारियल और रबड़ के बागान पर थी। इसके व्यवसाय को अपने ढंग से गति देने के लिए उन्होंने पूरे देश में सड़कों और रेलमार्ग का निर्माण करवाया।

आजाद श्रीलंका

सन 1948 में श्रीलंका को अंग्रेजी हुकूमत से आजादी तो हासिल हो गई लेकिन इसके बाद भी  यहां शांति नहीं हो सकी। जातीय द्वंद्व और इसके चलते होने वाले दंगों को लेकर आजादी के एक दशक बाद ही सीलोन को आपातकालीन राज्य घोषित कर दिया गया। सन 1960 में आई भंडारनायके की सरकार भी यहां सिंहलियों और तमिलों के बीच जारी जातीय द्वंद्व को नियंत्रित कर पाने में सफल नहीं हो सकी। इस द्वंद्व ने यहां की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचाया। 1970 के बाद यह संघर्ष और तेज हो गया। 1990 के बाद से यहां शांति बहाली के प्रयास भी काफी तेज कर दिए गए हैं। इन प्रयासों का कुछ असर भी हुआ है, पर अभी भी वहां पूरी तरह शांति की स्थिति नहीं है। जाफना और श्रीलंका के उत्तरी भागों में छिटपुट हिंसा की घटनाएं अभी भी जब-तब होती रहती हैं। श्रीलंका के दक्षिणी भाग, खास तौर से कोलंबो के आसपास के इलाके अब शांतिपूर्ण हैं। घुमक्कड़ी के लिए इन इलाकों में काफी कुछ उपलब्ध भी है।

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