उदयपुर: रोमानियत भरा ऐतिहासिक शहर

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रोमानियत भरा ऐतिहासिक शहर उदयपुर राजस्थान के महाराणाओं के शौर्य की गौरवगाथा कहते हुए से लगते हैं। अरावली की पहाडि़यों पर स्थित यह शहर झीलों और महलों के लिए खास तौर से जाना जाता है। इसके आसपास कई और भी दर्शनीय जगहें हैं।

खूबसूरत झीलों, आलीशान महलों व सुंदर उद्यानों वाला उदयपुर रोमानियत भरा ऐतिहासिक शहर है। इसकी फिजाओं में आज भी राणाओं की शौर्यगाथाएं गूंजती हैं। मेवाड़ पर 1200 वर्षो तक महान सूर्यवंशी राजाओं का शासन रहा। माना जाता है कि किसी भी क्षेत्र पर इतने लंबे समय तक शासन करने वाला भारत का यह एकमात्र वंश है। 16वीं शताब्दी के मध्य तक इनकी राजधानी चित्तौड़गढ़ थी। 1557 में मुगल सेनाओं के आक्रमण से चित्तौड़गढ़ तहस-नहस हो गया। तब एक महात्मा के कहने पर महाराणा उदय सिंह ने उदयपुर शहर बसाकर, उसे मेवाड़ की राजधानी बनाया। महाराणा प्रताप जैसे योद्धाओं के गौरवशाली इतिहास की यह धरती अरावली की छोटी-छोटी पहाडि़यों के बीच स्थित है। 1559 में इस शहर की स्थापना महाराणा उदय सिंह ने की थी। तब उन्हीं के नाम से शहर का नामकरण उदयपुर हुआ।

उस समय नगर की सुरक्षा के लिए इसके चारों ओर मजबूत चारदीवारी बनवाई गई थी जिसके 11 भव्य द्वार थे। सूरजपोल शहर का मुख्य द्वार था। समय के साथ शहर का स्वरूप भी बदलता गया। इसकी सीमाएं चारदीवारी से बाहर फैलने लगीं, लेकिन आज भी उस दीवार का कुछ भाग तथा शेष बचे द्वार उस दौर के मूक गवाह हैं। इतिहास के कुछ ऐसे ही बाकी निशानों को देखने के लिए सैलानी आज उदयपुर की गलियों और चौराहों पर घूमते नजर आते हैं।

प्रतिध्वनियां अतीत की

वैसे उदयपुर के इतिहास व मेवाड़ के सूर्यवंशी महाराणाओं की गौरवगाथा को समझना हो तो यहां का सिटी पैलेस सबसे उपयुक्त जगह है। सिटी पैलेस उदयपुर का राजमहल है। महाराणाओं की आन-बान-शान का प्रतीक यह आलीशान महल उस दौर की तमाम अनमोल विरासत अपने में संजोए है। इसलिए यहां आने वाले सैलानियों के लिए यह महल सबसे बड़ा आकर्षण है। महल की दर ओ दीवार से अतीत आज भी प्रतिध्वनित होता महसूस होता है। उदयपुर का सिटी पैलेस वास्तव में चार बड़े और कुछ छोटे महलों का एक समूह है। जोकि अलग-अलग समय में अलग-अलग महाराणाओं द्वारा बनवाए गए थे, लेकिन यह निर्माण इतनी कुशलता से हुआ था कि सरसरी तौर पर देखने में तो यह आभास ही नहीं होता कि सिटी पैलेस के ये भाग अलग-अलग दौर में बने होंगे। पिछौला झील के किनारे स्थित इस राजमहल का एक भाग संग्रहालय के रूप में सैलानियों के लिए खुला है। महल के शेष हिस्से में एक ओर आज भी यहां के भूतपूर्व राजाओं का परिवार रहता है तथा अन्य भागों को हेरिटेज होटलों का रूप दे दिया गया है।

राजस्थान के सबसे बड़े राजप्रासाद सिटी पैलेस में प्रवेश के लिए दो द्वार बने हैं। पहला द्वार बड़ी पोल कहलाता है। जिसका निर्माण 1600 ई. में हुआ था। दूसरा द्वार त्रिपोलिया गेट है। इसका निर्माण 1725 में किया गया था। महलों के सामने सुंदर उद्यान है, जिसमें सुंदर फव्वारे लगे हैं। महल में पर्यटक गणेश डयोढ़ी से प्रवेश करते हैं। प्रवेश करते ही सामने राम आंगन है। यह महल का सबसे पुराना हिस्सा है। जिसे महाराणा उदयसिंह द्वारा 1565 में बनवाया गया था। राम आंगन की दीवारों पर राणा प्रताप द्वारा लड़े गए युद्धों के चित्र बने हैं। मोर चौक पर कांच टाइल्स की कला का अच्छा नमूना देखा जा सकता है। यहां दीवारों पर बनी मयूर आकृतियां इस कला की अद्भुत उदाहरण हैं। विभिन्न मुद्राओं में बनी मोरों की ये आकृतियां अलग-अलग मौसम की प्रतीक हैं। इसी तरह माणिक महल में कांच और चीनी मिट्टी की बनी सुंदर आकृतियां देखने योग्य हैं।

कृष्णा विलास में एक लघु चित्र दीर्घा है। यह महल महाराणा भीम सिंह की पुत्री कृष्णा कुमारी का था। ऊपरी मंजिल पर बाड़ी महल है। बाड़ी का अर्थ है वाटिका। इसकी ऊपरी मंजिल पर एक वाटिका है। टेरेस गार्डन के समान दिखती इस बाड़ी में घने पेड़ भी लगे हैं। इन्हें देख आश्चर्य होता है। दरअसल यह टेरेस गार्डन नहीं बल्कि महल के मध्य एक ऊंचे टीले पर स्थित वाटिका है। महल का यह हिस्सा ऊंचे टीले के चारों ओर बना है।

सिटी पैलेस की दीर्घाएं

सिटी पैलेस में स्थित जनाना महल राज परिवार की स्ति्रयों के लिए बना खास महल था। आज यहां भी एक चित्र दीर्घा है। मोती महल में सैलानी शीशे की सुंदर कारीगरी देखते हैं। जबकि चीनी चित्रशाला में नीली और सफेद टाइल्स की कला दर्शनीय है। महल के अन्य हिस्से में शीश महल, दरबार हाल, शंभु निवास आदि हैं। ऊपर बना सूरज गोखड़ा एक प्रकार की बालकनी है। जहां बैठकर महाराणा जनता को संबोधित करते थे। महल के ऊपरी झरोखों से एक तरफ शहर तथा दूसरी ओर पिछोला झील का विहंगम दृश्य नजर आता है। सिटी पैलेस में स्थित दीर्घाओं में चित्र आदि के अलावा अस्त्र-शस्त्र, राजसी प्रतीक व महाराणाओं की विरासत प्रदर्शित है। इनमें महाराणा प्रताप का जिरह बख्तर एवं ऐतिहासिक भाला विशेष रूप से आकर्षित करते हैं। गाइड द्वारा हर दीर्घा का विवरण सुनकर देशी-विदेशी सैलानी रोमांचित हो जाते हैं।

झील में महल

उदयपुर शहर के सौंदर्य को द्विगुणित करती यहां की झीलों में सबसे प्रमुख पिछौला झील है। सिटी पैलेस के ठीक पीछे पसरी इस झील का सौंदर्य सिटी पैलेस से ही नजर आता है। फिर बहुत से सैलानी दूसरी ओर जाकर राजमहल की दीवारों से टकराती झील की लहरों को देखने से खुद को रोक नहीं पाते हैं। करीब चार किलोमीटर लंबी इस झील का नाम पिछौला गांव के आधार पर पड़ा था। झील पर आगे एक मनोहारी बांध भी है। पिछौला झील के मध्य स्थित है जगनिवास महल। यह महल 1730 में महाराणा जगत सिंह ने बनवाया था। इसे वह अपने ग्रीष्म निवास के रूप में प्रयोग करते थे। पानी पर तैरता हुआ प्रतीत होता यह सफेद जलमहल विदेशी सैलानियों को बहुत आकर्षित करता है। पर्यटकों के इस आकर्षण को देखकर ही जगनिवास महल को अतीत और वर्तमान को जोड़ने वाले एक हेरिटेज होटल में तब्दील कर दिया गया था। इस होटल का नाम है लेक पैलेस। इसी तरह सिटी पैलेस में दो हेरिटेज होटल मौजूद हैं। लेक पैलेस तक पर्यटक बोट से जाते हैं। इस होटल रूपी महल की मेहराबदार खिड़कियां एवं छतरियां इसके सौंदर्य को दूर से भी दर्शाती हैं।

उदयपुर से 48 किलोमीटर दूर जयसमंद नामक विशाल झील भी देखने योग्य स्थान है। इस झील का निर्माण 17वीं शताब्दी में महाराणा जयसिंह ने करवाया था। राजपरिवार की स्त्रियों के ग्रीष्म ऋतु में रहने के लिए यहां एक महल का निर्माण भी किया गया था। यह एशिया की दूसरी सबसे बड़ी मानवनिर्मित झील है। उधर 66 किलोमीटर दूर राजसमंद झील है। कांकरोली डैम से निर्मित यह झील महाराणा राज सिंह द्वारा 1660 में बनवाई गई थी।

झील के मध्य जगमंदिर नामक एक और छोटा सा महल है। इस महल की वास्तुकला में मुगल शैली का काफी प्रभाव है। महल की दीवारों पर कई तरह के कीमती पत्थर जड़े हैं। अंदर कई जगह दरबारियों तथा पशु-पक्षियों के चित्र भी बने हैं। मुगल सम्राट जहांगीर के शहजादे खुर्रम को एक बार उदयपुर में पनाह लेनी पड़ी तो उसे इसी महल में ठहराया गया था। रंग सागर, स्वरूप सागर व दूध तलाई झीलें पिछौला झील से जुड़ी है। ये झीलें इस विशाल झील के सौंदर्य में अभिवृद्धि ही करती हैं। ये झीलें ही उदयपुर के मौसम को खुशगवार बनाती हैं। इसीलिए आज उदयपुर हनीमून पर निकले सैलानियों की पसंदीदा सैरगाह है। खासकर अच्छे मानसून के बाद यहां की लबालब भरी झीलों से छलकता यौवन तो नवयुगलों को सम्मोहित कर ही लेता है। उदयपुर की एक और बड़ी झील है फतह सागर। इस झील के मध्य स्थित नेहरू पार्क में भी युवा सैलानियों की भीड़ होती है। एक ऐसी भीड़ जहां भीड़ में होकर भी वह एकांत महसूस करते हैं। पहाडि़यों से घिरी इस झील में पर्यटक नौका विहार का लुत्फ भी उठाते हैं। यहां के विषय में एक प्राकृतिक सच यह भी है कि कभी सूखा पड़ने की स्थिति में इन झीलों के सौंदर्य को ग्रहण लग जाता है।

उदयपुर की यात्रा के साथ ही पर्यटक रणकपुर के प्रसिद्ध जैन मंदिर तथा कुम्भलगढ़ का किला देखने का कार्यक्रम भी बना सकते हैं।

यादें महाराणा प्रताप की

फतहसागर के सामने मोती मगरी नामक पहाड़ी है। इस पहाड़ी पर मेवाड़ के महान योद्धा महाराणा प्रताप का स्मारक है। 1572 में मेवाड़ की बागडोर संभालने के बाद 1597 में अपनी मृत्यु तक उन्होंने कई युद्ध लड़े, जिनमें हल्दीघाटी का युद्ध सबसे ज्यादा उल्लेखनीय है। यह स्मारक महाराणा फतह सिंह ने बनवाया था। यहां महाराणा प्रताप की भव्य प्रतिमा लगी है, जिसमें  वह अपने घोड़े चेतक पर सवार हैं। प्रतिमा के आसपास हराभरा बगीचा तथा मनमोहक फव्वारे हैं। स्मारक परिसर में ही एक छोटा सा खंडहर है। यह पन्ना धाय का आवास था। परिसर में स्थापित हाकिम खान सूर तथा भामा शाह की प्रतिमाएं भी दर्शनीय हैं।

उदयपुर से लगभग तीन किलोमीटर दूर स्मारकों की एक और जगह है-अहार। यहां मेवाड़ के पूर्व महाराणाओं के छतरीनुमा स्मारक बने हैं। हर स्मारक के साथ एक अलग गाथा जुड़ी है। यहां अहार क्षेत्र की प्राचीन विरासत को दर्शाने वाला एक समृद्ध संग्रहालय भी है। उदयपुर शहर से कुछ ही दूरी पर एक जगह है हल्दीघाटी। इस ऐतिहासिक स्थल को देखे बगैर उदयपुर की यात्रा अधूरी प्रतीत होगी। यह घाटी 1576 में मुगलों एवं महाराणा प्रताप के मध्य हुए युद्ध की साक्षी है। यह स्थान शहर से 40 किलोमीटर दूर स्थित है।

महलों में मौसम

सहेलियों की बाड़ी भी उदयपुर का एक प्रसिद्ध स्थल है। जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है, यह राजपरिवार की स्ति्रयों के आमोद-प्रमोद के लिए बनवाई गई एक शानदार वाटिका है। खासकर ग्रीष्म ऋतु में यहां उनके लिए ऐसी व्यवस्था थी कि यहां का वातावरण शीतलता प्रदान करता था। सुंदर बगीचों के मध्य बनी छतरियों के किनारों पर फव्वारे लगे हैं। फव्वारों के चलने से वहां वर्षा ऋतु का माहौल बन जाता था और हवा के साथ आती पानी की फुहारें शीतलता प्रदान करती थीं। आज पर्यटक भी थोड़ी देर के लिए वैसा आनंद महसूस कर सकते हैं। उधर बागीचों में भी सुंदर फव्वारे हैं। पीछे एक छोटा सा तालाब है, जिसमें कमल के फूल वाटिका की शोभा बढ़ाते हैं। कई जगह संगमरमर की पशु-पक्षियों की मूर्तियां भी बनी हैं।

महाराजाओं के लिए जिस मानसून महल का निर्माण किया गया था। वह सज्जनगढ़ पैलेस के रूप में एक पहाड़ी पर स्थित है। यहां से उदयपुर की झीलों का विहंगम दृश्य बहुत मोहक लगता है। महाराणा सज्जन सिंह द्वारा बनवाया गया गुलाब बाग गुलाब के फूल की विभिन्न किस्मों के लिए जाना जाता है। बाग में एक पुस्तकालय है, जिसमें कुछ दुर्लभ पांडुलिपियां एवं पुस्तकें संग्रहीत हैं। यहां एक मिनी चिडि़याघर भी है।

हवेली में संग्रहालय

राजस्थान में किले और महलों के समान ही आलीशान हवेलियां बनवाने की परंपरा भी थी। उदयपुर में बागोर की हवेली इस परंपरा का जीवंत उदाहरण है। पिछौला झील के गणगौर घाट पर स्थित यह हवेली महाराणा प्रताप के प्रधानमंत्री अमरचंद बड़वा ने बनवाई थी। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र ने 1986 में इस हवेली का कायाकल्प करके इसका वही गौरव लौटाया। तब से बागौर की हवेली एक हवेली संग्रहालय के रूप में पर्यटकों को प्रभावित करती है। हवेली में वैसे तो कुल 138 कक्ष हैं। उनमें से अनेक कक्ष आज पर्यटकों को मेवाड़ की हवेलियों का वैभव दर्शाते हैं। बैठक कक्ष, आमोद-प्रमोद कक्ष, जनाना महल, श्रृंगार कक्ष, पूजाघर आदि कक्षों में उस दौर की बहुत सी वस्तुएं सुशोभित हैं। यहां मेवाड़ शैली के 200 वर्ष पुराने भित्तिचित्र तथा त्रिपोलिया के ऊपर बने महलनुमा कक्ष में पच्चीकारी का काम तो वास्तव में दर्शनीय है। यह हवेली सिटी पैलेस से कुछ ही दूरी पर स्थित है।

मंदिर उदयपुर के

350 वर्ष पुराना जगदीश मंदिर भी सिटी पैलेस के निकट है। इंडो आर्यन शैली में बना यह मंदिर उदयपुर का सबसे बड़ा मंदिर है। इसका निर्माण 1651 में महाराणा जगत सिंह ने करवाया था। मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु की काले पाषाण की प्रतिमा सुशोभित है। मंदिर प्रांगण में विष्णुवाहन गरुड़ की प्रतिमा भी स्थापित है। मंदिर की दीवारों पर बनी संगमरमर की कलात्मक प्रतिमाएं मंदिर को और शोभायमान बनाती हैं।

उदयपुर के पास ही कुछ अन्य दर्शनीय मंदिर भी हैं। लगभग 22 किलोमीटर दूर प्रसिद्ध एकलिंग जी मंदिर है। मंदिर एक ऊंची चारदीवारी से घिरा है। इसके अंदर छोटे-छोटे 108 मंदिर मौजूद हैं। ये मंदिर भगवान शिव को समर्पित हैं। मुख्य मंदिर के सुंदर मंडप में भगवान शिव की चतुर्मुखी काले संगमरमर की बनी प्रतिमा विराजमान है। उदयपुर से 23 किलोमीटर दूर नागदा में 10वीं शताब्दी में बना सास-बहू मंदिर भी दर्शनीय है। यहां अद्भुत जी के जैन मंदिर भी देखने योग्य हैं। नाथद्वारा में वैष्णव मत का विख्यात मंदिर है। यह मंदिर श्रीनाथ यानी भगवान कृष्ण को समर्पित है। यह स्थान उदयपुर से 48 किलोमीटर दूर है। इस मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी के अंत में हुआ था। मंदिर के गर्भगृह में भगवान की श्यामवर्णी पाषाण प्रतिमा विराजमान है। यह प्रतिमा महाराणा राज सिंह द्वारा मथुरा से लाकर स्थापित की गई थी। जन्माष्टमी आदि त्योहारों के मौके पर इस मंदिर में भक्तों की बहुत भीड़ उमड़ पड़ती है।

लोकनृत्य और कठपुतली शो

राजस्थान की धरती पारंपरिक लोककलाओं के मामले में भी काफी समृद्ध है। उदयपुर स्थित भारतीय लोककला केंद्र में पर्यटकों का ऐसी लोककलाओं से परिचय होता है। पर्यटकों के लिए यहां लोकनृत्य तथा कठपुतली शो का आयोजन भी होता है। कला केंद्र में राजस्थान के अलावा कुछ विदेशी लोककलाओं के अनूठे उदाहरण भी संग्रहीत हैं। राजस्थान ही नहीं देश के पश्चिमी क्षेत्र की लोककला व शिल्पकला के साथ वहां की ग्रामझांकी देखनी हो तो शिल्पग्राम से बेहतर कोई स्थान नहीं हो सकता। शिल्पग्राम पश्चिम क्षेत्र के राज्यों की संस्कृति एवं ग्राम्य जीवन को दर्शाने वाली एक प्रदर्शनी के समान है। यहां आकर सैलानी शिल्पकारों को अपनी कला में संलग्न देख सकते हैं और सीधे उन्हीं से उनकी बनाई कृतियां खरीद भी सकते हैं। यहां के ग्रामीण परिवेश के बीच आकर पर्यटक स्वयं को एक अलग संसार में पाते हैं। पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र द्वारा यहां विभिन्न उत्सव भी आयोजित किए जाते हैं। दिसंबर में लगने वाला शिल्पग्राम उत्सव उनमें से प्रमुख है। इन उत्सवों में विदेशी पर्यटक भी बहुत आते हैं।

खरीदारी करना चाहें तो

जिन पर्यटकों को घुमक्कड़ी के साथ खरीदारी का भी शौक है, उनके लिए भी उदयपुर में ऐसा बहुत कुछ है जो वह यादगार के रूप में साथ ले जाना चाहेंगे। मेवाड़ राजपूत शैली के लघु चित्र, कशीदाकारी की वस्तुएं, नाथद्वारा की पिछवाइयां, संगमरमर पर पज्जीकारी वाले शिल्प, कठपुतली, टाई एंड डाई वस्त्र एवं साडि़यां और चांदी के आभूषण आदि के अलावा भी अनेक कलात्मक हस्तशिल्प यहां मिलते हैं। जगदीश चौक, चेतक सर्किल, बापू बाजार, क्लॉक टॉवर, हस्तशिल्प एंपोरियम राजस्थली तथा शिल्पग्राम आदि स्थान खरीदारी के उपयुक्त केंद्र है।

उदयपुर की स्थानीय संस्कृति के रंग देखने का अवसर पर्यटकों को मेवाड़ उत्सव तथा गणगौर उत्सव के समय मिलता है। वसंत के आगमन पर होने वाले मेवाड़ उत्सव पर एक शोभायात्रा निकलती है। जिस दौरान यहां के लोकनृत्य, लोकगीत तथा आतिशबाजी पर्यटकों का मनोरंजन करते हैं। गणगौर पर्व पर एक जलूस से सजे धजे हाथी और घोड़ों के साथ शंकर भगवान की प्रतिमा भी ले जाई जाती है। इस दिन औरतें पारंपरिक पोशाकों में नजर आती हैं। पार्वती की पूजा भी इस दिन का खास हिस्सा है। इसी प्रकार तीज के त्योहार पर भी यहां की स्त्रियों द्वारा पूरे उल्लास से मनाया जाता है।

देखा जाए तो उदयपुर विविधताओं भरा पर्यटन स्थल है। जहां पहुंचकर सैलानी आराम से कई दिन व्यतीत कर सकते हैं।

सामान्य जानकारी उदयपुर

कब जाएं

उदयपुर घूमने का उपयुक्त समय सितंबर से अप्रैल माह तक है। वर्षा ऋतु के बाद यहां का मौसम खुशगवार हो जाता है। यहां का तापमान गर्मियों में अधिकतम 38.3 डिग्री और न्यूनतम 28.8 डिग्री तथा सर्दियों में अधिकतम 28.3 डिग्री व न्यूनतम 11.6 डिग्री सेंटीग्रेड रहता है।

कैसे जाएं

रेल मार्ग : उदयपुर दिल्ली, जयपुर, अजमेर तथा अहमदाबाद से रेलमार्ग द्वारा सीधे जुड़ा हुआ है।

सड़क मार्ग : उदयपुर राजस्थान के प्रमुख शहरों और पर्यटन स्थलों से सड़क मार्ग द्वारा बखूबी जुड़ा है। दिल्ली, आगरा, जयपुर, अजमेर, जोधपुर, माउंट आबू, अहमदाबाद से उदयपुर के लिए सीधी बस सेवाएं भी हैं।

प्रमुख स्थानों से दूरी

आगरा 630 किलोमीटर

दिल्ली 640 किलोमीटर

जयपुर 406 किलोमीटर

जोधपुर 275 किलोमीटर

माउंट आबू 185 किलोमीटर

अहमदाबाद 262 किलोमीटर

कुंभलगढ़ 84 किलोमीटर

रणकपुर 96 किलोमीटर

चित्तौड़गढ़ 116 किलोमीटर

कहां ठहरें

लग्जरी होटल : लेक पैलेस, शिवनिवास पैलेस, होटल फतह प्रकाश पैलेस, लक्ष्मी विलास पैलेस होटल, होटल हिल टॉप पैलेस

मध्यम बजट : शिकार बाड़ी होटल, होटल चंद्रलोक, होटल ग्रीन व्यू इंटरनेशनल, होटल राजदर्शन, होटल लेक पिछौला, होटल जगत निवास पैलेस, होटल कजरी

सामान्य बजट : होटल मयूर, होटल फाउन्टेन होटल, देव दर्शन, होटल अलका, मधुबनी हॉलिडे होम, होटल रामप्रताप

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