अंटार्कटिक की सैर

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सैलानियों की संख्या में आ रही गिरावट के चलते दक्षिणी ध्रुव यानी अंटार्कटिक पर भी कम लोग पहुंचे रहे हैं। लेकिन यह एक ऐसी जगह है जहां सैलानियों की संख्या में गिरावट आने की वजह से कुछ लोग बहुत खुश हैं और राहत महसूस कर रहे हैं। इन लोगों में शामिल हैं पर्यावरणविद जो सैलानियों की बढ़ती संख्या को अंटार्कटिक के लिए खतरा मानते हैं। इसीलिए उनकी हमेशा से मांग रही है कि वहां पहुंचने वाले लोगों की संख्या पर सीमा तय की जाए। धरती के इस सिरे पर पहली बार नाविक 1820 में ही पहुंचे थे। पिछली सदी के नौंवे दशक तक यहां जाने वालों की संख्या साल में हजार से कम ही थी।

पिघलते ग्लेशियर

अंटार्कटिक से लगते ग्लेशियरों के पिघलने की घटनाएं अब पहले से कहीं बढ़ गई हैं। जहाजों के मलबे, तेल का रिसाव, वहां के प्राणियों (मुख्य रूप से पेंग्विन व सील) पर दबाव चिंता का कारण हैं। इसलिए सौ पर्यावरण संगठनों के समूह अंटार्कटिक व दक्षिणी समुद्र महासंघ ने दुनियांभर से इसके लिए पुरजोर गुजारिश की है। लेकिन मजेदार बात यह है कि पर्यटन संगठन इन चिंताओं को अतिश्योक्तिपूर्ण बता रहे हैं। उनका कहना है कि हम एक ऐसे महाद्वीप की बात कर रहे हैं जो आस्ट्रेलिया से बड़ा है और वहां जाने वाले सैलानियों की संख्या बमुश्किल एक फुटबाल स्टेडियम को भर पाएगी। तो फिर डर काहे का। अंटार्कटिक की हवा बिलकुल साफ है, वहॉ लगभग न के बराबर वनस्पति है और शून्य प्रदूषण। वहां दिखने वाले रंगों में या तो बर्फ की सफेदी है या फिर आसमान और समुद्र का नीलापन। आइसबर्ग के सतह पर आने से होने वाली आवाज के अलावा वहां कोई आवाज नहीं सुनाई देती।

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