रोमांचक अनुभव है लाहौल घाटी में ट्रेकिंग

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हिमाचल प्रदेश की लाहौल घाटी में क्योरोंग पर्वत श्रृंखलाएं ट्रेकिंग के लिए बेहद सुंदर और रोमांचक हैं। पंक्षी नाला क्षेत्र में समुद्रतल से लगभग 17-18 हजार फुट ऊंचे भव्य हिमाच्छादित पर्वत शिखर हैं जिन्हें देखने पर आप मंत्रमुग्ध होकर रह जाएंगे। हिमाचल के अधिकतर क्षेत्रों में वर्षा ऋतु  के दौरान ट्रेकिंग का सिलसिला थम सा जाता है, परंतु लाहौल  घाटी में वर्षा ऋतु में भी ट्रेकिंग का पूरा आनंद लिया जा सकता है, क्योंकि यहां वर्षा बहुत कम होती है। मनाली स्थित पर्वतारोहण संस्थान के प्रशिक्षण कार्यक्रम भी यहां चलते रहते हैं। ट्रेकिंग के लिए यह अत्यंत रोचक और विस्तृत घाटी है, जहां से कई दिशाओं में जाया जा सकता है।

कुल्लू घाटी से चलकर लाहौल  घाटी में प्रवेश के लिए रोहतांग दर्रे से होकर जाना होता है। समुद्रतल से यह स्थान 13050 फुट ऊंचा है, जहां अत्यंत तेज हवाएं चलती हैं। प्राय: मई मास के आसपास रोहतांग के इस गलियारे की बर्फ हटाकर मार्ग खोल दिया जाता है। इस राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 21 पर शीतकाल के आरंभ तक वाहन आते-जाते रहते हैं। सामरिक दृष्टि से यह मार्ग महत्वपूर्ण है जो लद्दाख को शेष भारत से जोड़ता है।

जेस्पा से शुरू करें ट्रेकिंग

लाहोल में मुख्यत: मनाली से राष्ट्रीय राजमार्ग द्वारा जाया जाता है। रास्ते में अलग-अलग ऊंचाइयों पर स्थित कई छोटे-बड़े  स्थान आते हैं। इनमें प्रमुख हैं मढ़ी (11200 फुट), रोहतांग (13050 फुट), खोकसर (11200 फुट), केलौंग (10500 फुट), जेस्पा (11000 फुट) व पटसिओ (13000 फुट)। यह मार्ग, यद्यपि घाटी के अन्य प्रमुख स्थानों से होता हुआ जम्मू-कश्मीर राज्य में प्रवेश करता है और 17580 फुट की ऊंचे टंगलंग ला को लांघकर लेह पहुंचता है। परंतु यहां पटसिओ तक का ही वर्णन किया जा रहा है, क्योंकि पंक्षी नाला क्षेत्र में यहीं से जाया जाता है। लाहौल का डिsस्ट्रिक्ट हेडक्वार्टर केलौंग में है। यहां के बस अड्डे पर कई क्षेत्रों से आने-जाने वाले स्थानीय लोग अपनी पारंपरिक वेशभूषा में दिखाई देते हैं।

खोकसर में पुलिस चौकी है। विदेशी पर्यटकों के पास विशेष अनुमति होने पर ही उन्हें आगे जाने दिया जाता है। जेस्पा से पटसिओ लगभग 20 किमी दूर है। ट्रेकर्स और पर्यटकों को चाहिए कि पटसिओ जाने से पहले जेस्पा में एक-दो दिन ठहर कर अपने आपको वातावरण के अनुकूल बना लें। कारण यह है कि स्वयं जेस्पा की समुद्रतल से ऊंचाई 11000 फुट है। सारी घाटी हाई आल्टीट्यूड जोन में स्थित है। इसके अलावा कई अन्य स्थानों की तुलना में यहां ऑक्सीजन की कमी अधिक अनुभव की जाती है। हरियाली बहुत कम है। इसे सूखा क्षेत्र भी कहते हैं। घाटी के वातावरण में कभी-कभी ऑक्सीजन रहित वृत्त बनने की संभावना रहती है। एक्लीमेटाइजेशन के बाद यहीं से ट्रेकिंग शुरू करनी चाहिए। कार्यक्रम के अनुसार राशन, जरूरी सामान कुली तथा खच्चरों का प्रबंध भी कर लेना चाहिए। राशन आदि यदि मनाली से लेकर चलें तो सुविधा रहती है। जेस्पा में मनाली स्थित पर्वतारोहण संस्थान माउंटेनियरिंग एंड एलाइड स्पो‌र्ट्स का उपकेंद्र है। पर्यटन की गतिविधियों के अंतर्गत इच्छुक लोगों को बचाव कार्य संबंधी 14 दिन का कोर्स यहां कराया जाता है।

पहला पड़ाव है पटसिओ

ट्रेकिंग शुरू कर जेस्पा से चलकर दार्चा होते हुए 20 किमी दूर पटसिओ पहुंचते हैं। यहां ऊंचाई 13000 फुट है। अत: एक-दो दिन रुककर एक्लीमेटाइजेशन करना जरूरी है। हाई आल्टीट्यूड के कारण कई बार आसानी से नींद नहीं आती। सिर में दर्द होता है और उल्टी को मन करता है। खाने-पीने की इच्छा नहीं रहती। यहां ठहर कर आसपास के पहाड़ों पर चढ़ने-उतरने से ऐसी दिक्कतों से बचा जा सकता है। ट्रे¨कग का आनंद फिर कुछ और ही होता है।

सुदूर सूर्यताल से निकलने वाली भागा नदी इसी पटसिओ से होकर तेज गति से बहती है। इसका जल बर्फ की तरह ठंडा होता है। आगे चलकर यह नदी चंद्र ताल से निकलने वाली चंद्रा नदी में मिल जाती है। मिलन स्थल से इन दोनों नदियों का एक नाम चिनाव हो जाता है। मनाली से पटसिओ जाते हुए इस पवित्र संगम को देखा  जा सकता है।

पटसिओ से पंक्षी नाला क्षेत्र में जाते हुए ट्रेकर प्राकृतिक सौंदर्य को ही निहारते रहते हैं। धीरे-धीरे ऊंचाई बढ़ती जाती है। बर्फ से ढके कई शिखरों व  ग्लेशियरों के समीप पहुंचकर और उनकी दैविक सुंदरता को देख नेत्र खुले के खुले रह जाते हैं। मन कह उठता है शिव का घर यही है। यहां से आगे भी कुछ दुर्गम क्षेत्रों में जाया जा सकता है।

दुर्लभ सात्विक अनुभव

अपनी शारीरिक क्षमता व इच्छाशक्ति को परख कर जब प्रकृतिप्रेमी हिमालय के ऐसे दुर्गम क्षेत्रों से लौटता है तो इस सात्विक अनुभव का लाभ उसे उम्र भर मिलता रहता है। ज्ञान और विज्ञान की खान विशाल हिमालय मौन रहकर हमें जो कुछ सिखाता है, वैसी सीख और कहीं नहीं मिली। लाहोल घाटी में कई तरह के जीवाश्म मिलते रहते हैं। यूं तो हिमालय की आयु एक करोड़ वर्ष आंकी गई है, परंतु जर्मन भूवैज्ञानिकों द्वारा हिंद महासागर में की गई खोजों के अनुसार हिमालय के बनने की प्रक्रिया उससे भी एक करोड़ वर्ष पहले शुरू हो गई थी। लाहौल के विशाल चट्टानों वाले पहाड़ों पर जल के प्रभाव से बनी अनोखी आकृतियां देख कोई अनजान व्यक्ति भी कह सकता है कि कभी यह पर्वत सागर में डूबा रहा होगा। पटसिओ क्षेत्र में कभी-कभी भू-वैज्ञानिकों के कैंप भी देखे जा सकते हैं जो हिमालय के अनंत रहस्यों को जानने की चेष्टा करते रहते हैं। ट्रेकर्स से इनका सुखद मिलन होता है और बेहद रोचक वर्णन सुनने को मिलते हैं। स्थानीय निवासी भी लाहोल की जीवनशैली के विषय में रोचक जानकारी देते हैं विशेषकर बर्फ से ढके क्षेत्र में तथा शीतकाल में वहां रहने के तौर-तरीके।

यह भी ध्यान रखें

दिल्ली से मनाली की दूरी 475 किमी है। हिमाचल टूरिज्म की एसी बस नई दिल्ली से रोज सीधी मनाली जाती है। किराया आठ सौ रुपये है। डिलक्स लग्जरी कोच का किराया 615 रुपये है। अंतरराज्यीय बस अड्डे से भी रोडवेज की बसें प्रतिदिन जाती हैं। हवाई मार्ग से कुल्लू में भुंतर हवाई अड्डे पर उतरें। वहां से मनाली के लिए टैक्सियां मिलती हैं।

कहां ठहरें

मनाली में सैकड़ों छोटे-बड़े होटल हैं। गर्मियों में छोटे होटल भी 600 रुपये प्रति कमरा (डबल बेड) या इससे अधिक किराया लेते हैं। अच्छे होटलों  में आठ सौ से लेकर ढाई हजार रुपये प्रति दिन तक में डबल बेड वाले कमरे मिलते हैं। डॉरमिटरी में एक बिस्तरे का किराया 75 रुपये प्रतिदिन पड़ता है।

आगे जाने के साधन

मनाली से पटसिओ के लिए प्रतिदिन बसें उपलब्ध हैं। किराया लगभग 105 रुपये है। टैक्सी से जाएं तो किराया लगभग 2500 रुपये पड़ेगा।

ट्रेकिंग के दौरान

अगर आप पोर्टर लें तो 175 रुपये प्रतिदिन देने होंगे। पोर्टर कम गाइड 250 रुपये में मिल जाते हैं। अगर खच्चर वाले को साथ लें तो उसे ढाई से तीन सौ रुपये प्रतिदिन देने होंगे। पोर्टर, गाइड और खच्चर वाले पटसिओ के आसपास ही मिल जाते हैं।

ट्रेकिंग दल के सदस्यों की संख्या और कार्यक्रम की अवधि को ध्यान में रखते हुए राशन, बिस्कुट, टॉफी, ग्लूकोज, रसोई में प्रयोग आने वाली सभी जरूरी चीजें, सूखे मेवे और दवाइयां आदि भी पटसियो में ही ले लेनी चाहिए। रसोई की अधिकतर चीजों का प्रबंध पोर्टरों की सहायता से हो जाता है।

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