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अक्टूबर मास से पर्वतीय इलाकों में मौसम बहुत खराब होने लगता है और हिमपात भी शुरू हो जाता है। अत: पर्वतों में हाई आल्टीच्यूड ट्रेकिंग का समय समाप्त हो जाता है। हाई आल्टीच्यूड ट्रेकिंग अर्थात समुद्र तल से आठ-दस हजार फुट या अधिक ऊपर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में निपथ भ्रमण। ऐसे समय में राजस्थान में स्थित विश्व के दूसरे सबसे बडे़ रेगिस्तान थार मरुस्थल में ट्रेकिंग के भरपूर अवसर मिल सकते हैं। पर्वतों की सुंदरता से भिन्न प्राकृतिक सौंदर्य लिए हुए रेगिस्तान में भी पहाड़ों की ही तरह एक निश्चित स्थान से दूसरे स्थान तक घंटों, दिनों, सप्ताहों या कभी-कभी महीनों में पहुंचा जाता है।
मरुस्थल भ्रमण के लिए उपयुक्त समय
मरुस्थल भ्रमण के लिए प्रारंभिक शीतकाल और जाती हुई सर्दी का समय उपयुक्त है। रेगिस्तान में जहां दिन में अत्यधिक गर्मी होती है, वहीं रात के समय खासी ठंड। अत: उपयुक्त कपड़े और स्लीपिंग बैग अवश्य साथ होने चाहिए। अपने साथ पानी लिए बिना एक कदम भी नहीं चलना चाहिए। आपके राशन ले जाने वाले ऊंट पर भी पानी की बड़ी केन लदी होनी चाहिए। रेगिस्तान में एक बार भटक जाने के बाद बहुत दिनों तक रास्ता न मिलने की नौबत भी आ सकती है। इसलिए यहां भ्रमण बहुत सुनिश्चित ढंग से ही किया जाना चाहिए। किसी साथी के रास्ता भटक जाने पर आग जलाकर धुआं करके अपने स्थान का संकेत दिया जा सकता है, जहां वह आपसे मिल सके।
मरुस्थल में बहुत जहरीले सांप व अन्य कीड़े भी होते हैं। ठंड बढ़ने से ये जीव धरती के गर्भ में चले जाते हैं। फिर भी चौकस रहना चाहिए। भ्रमण पर निकलते समय ही अपने पास काफी मात्रा में प्याज जरूर रख लेनी चाहिए। जहां कैम्प लगाया जाए, वहां प्याज को इधर-उधर छीलकर फैला देना चाहिए। इसकी गंध से सांप दूर रहते हैं।
रेगिस्तान में पानी की कमी तो होती ही है। जहां भी पानी उपलब्ध होता है वहां गांव के लोगों के साथ जानवर भी पानी पीते हैं। अत: पानी साफ करने की गोलियां भी साथ रखनी चाहिए। राजस्थान में स्ति्रयों का बहुत सम्मान किया जाता है तथा कड़ी पर्दा प्रथा है। अत: स्ति्रयों से घुलें-मिलें नहीं, वरना खैर नहीं।
राष्ट्रीय मरुस्थल पार्क
मरुस्थल में कई जगह राष्ट्रीय मरुस्थल पार्क बने हैं। रहने के लिए वहां झोपडि़यां बनी हैं। जरूरत पड़ने पर इनमें शरण ली जा सकती है। थार मरुस्थल में अंतरराष्ट्रीय सीमा पड़ती है। अपने भ्रमण से पहले यदि वन संरक्षक तथा स्थानीय पुलिस को अपने कार्यक्रम की सूचना दे दी जाए तो सुविधा होती है। सुबह और शाम का समय ट्रेकिंग के लिए उचित होता है। तारामंडल का ज्ञान तथा कंपास की सहायता लेना आना चाहिए। संकट की घड़ी में सीमा सुरक्षा बल और सेना के अधिकारी बड़े सहायक सिद्ध होते हैं। रेगिस्तान का सन्नाटा अपने आप में एक विचित्र अनुभव है। पर्वतीय क्षेत्रों में भ्रमण और पर्वतारोहण का प्रशिक्षण देने के लिए हमारे देश में कुछ संस्थान बने हैं। दार्जिलिंग में हिमालयन माउंटेनियरिंग इंस्टीटयूट, उत्तरकाशी में नेहरू इंस्टीटयूट ऑफ माउंटेनियरिंग, माउंटेनियरिंग एंड एलाइड स्पोर्ट्स, मनाली, जवाहर इंस्टीटयूट ऑफ माउंटेनियरिंग एंड विंटर स्पोर्ट्स आरू, पहलगाम, गुतमर्ग में स्कीइंग इंस्टीटयूट तथा माउंट आबू में भी गुजरात सरकार का इंस्टीटयूट है। परंतु मरुस्थल भ्रमण की ट्रेनिंग अभी हमारे देश में कोई संस्थान नहीं देता।