इतिहास और प्रकृति की साझा धरोहर

  • SocialTwist Tell-a-Friend

राष्ट्रीय उद्यान बनने से पहले मध्य प्रदेश का यह क्षेत्र रीवा के महाराजाओं की शिकारगाह था। करीब दो हजार वर्षो तक यहां विभिन्न राजाओं ने राज्य किया। शेरों का शिकार करते-करते जब 109 तक की गिनती पूरी हो जाती तो इन्हें मारने वाले राजा के लिए यह अंक शुभ तथा शौर्य और वीरता का प्रतीक माना जाता था। 1968 में रीवा के राजा मार्तड सिंह की पहल पर 105 वर्ग किमी जंगल के क्षेत्र को सरकार ने राष्ट्रीय उद्यान में परिवर्तित कर दिया। वन्य प्राणियों के संरक्षण के लिए एक दशक बाद इस उद्यान के साथ 495 वर्ग किमी क्षेत्र और जोड़ दिया गया। रीवा वंश के राज्य से पहले बांधवगढ़ वघेला वंश को दहेज में मिला था। मुगल इतिहास के अनुसार वघेला वंश के राजा भट्ट लोगों के मुखिया थे। 16वीं शताब्दी तक यह एक समृद्ध राज्य बन चुका था तथा मुगल साम्राज्य के प्रभुत्व को उसने स्वीकार कर लिया था।

कान्हा राष्ट्रीय उद्यान व बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व

छह सौ वर्ग किमी क्षेत्र के इस अभ्यारण्य में से सैलानियों के भ्रमण के लिए 105 वर्ग किमी क्षेत्र सुरक्षित किया गया है। यद्यपि मध्य प्रदेश में ही भारत का सबसे बड़ा (1940 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ) वन्य प्राणी अभ्यारण्य कान्हा राष्ट्रीय उद्यान भी है, जहां भारी संख्या में शेर हैं, परंतु क्षेत्रफल की दृष्टि से ‘बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व’ में ही सबसे अधिक शेर हैं। बाघ देखने की चाह में सारे देश से आने वाले प्रकृतिप्रेमी सैलानी बांधवगढ़ से निराश नहीं लौटते।    इस राष्ट्रीय उद्यान में रेलमार्ग से पहुंचने के लिए सबसे निकट उमरिया स्टेशन पर उतरना पड़ता है। स्टेशन से प्राइवेट बसों एवं निजी वाहनों से 32 किमी की दूरी तय करके यहां पहुंचा जाता है। छोटे से ताला ग्राम की ओर से उद्यान में प्रवेश किया जाता है। ताला ग्राम उमरिया-रीवा राजमार्ग पर स्थित है।

प्रवेश के लिए टिकट लेने, कैमरा शुल्क देने और जिप्सी (जीप) का किराया देने जैसी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद जैसे ही सैलानी उद्यान में प्रवेश करते हैं तो वन्य जीवों और पक्षियों की झलक मिलने लगती है। प्रवेश द्वार क्षेत्र में कुछ सूचना पट लगे हैं, जिन पर जंगल में व्यवहार के नियम लिखे हैं। इन नियमों का पालन आवश्यक है। मुख्यत: शेरों के लिए प्रसिद्ध इस जंगल में हिरण, सांभर, सियार, लंगूर, जंगली, सुअर, बंदर व बारहसिंगा भी बहुतायत में हैं। इनके अलावा लोमड़ी, बिच्छू, साही तथा कुछ स्तनपायी जीवों की प्रजातियां यहां मौजूद हैं। जीपों पर सवार होकर जंगल में दूर तक जाया जा सकता है, परंतु बीहड़ स्थानों पर बैठे बाघ को देखने के लिए आम तौर पर लोग हाथियों पर चढ़कर जाते हैं। वन विभाग के गार्ड और महावत टोह लेते रहते हैं कि शेर कहां हो सकता है। जीपों से उतरकर सैलानी हाथियों पर सवार होते हैं। महावत उन्हें शेर के करीब ले जाते हैं। हाथी पर सवारी का शुल्क अलग से देना पड़ता है।

जीपों और हाथियों से उतरकर जंगल में पैदल घूमना वर्जित है। ऐसे जंगलों में मौन रहना बेहतर होता है। बांधवगढ़ की विशेषता यह है कि जंगल में पानी प्रचुर मात्रा में बारहों मास उपलब्ध होता है। निरंतर बहने वाली जीवनदायिनी चरणगंगा तथा मौसमी नदियां जल, थल और नभ के वन्य प्राणियों का आश्रय यहां सुलभ बनाती हैं। जंगल के तालाबों में तैरते-विचरते जल जीव उद्यान के नैसर्गिक सौंदर्य को और बढ़ाते हैं। साल, ढाक, बर तथा तेंदू के वृक्षों की यहां भरमार है। बांसों के झुरमुट भी इस जंगल में कई जगह हैं। फरवरी से अप्रैल के बीच यहां के बहुत से वृक्ष विशेष लाल रंग के फूलों से ढके होते हैं जिनके बीच से गुजरना अपने-आप में  सुखद अनुभव है। पीले और नारंगी रंग के पंखों वाली गोल्डन ओरियल, जंगली मुर्गा, नीलकंठ, जंगली हरे कबूतर, रैकेट, ट्रेल ड्रोंगो, पैराडाइज फ्लाईकैचर, मोर, फाख्ता, बाज, धनेश, मैना, जलकौआ, ब्राउनफिश आउल और गिद्ध आदि भी इस जंगल की धरोहर हैं। क्रेस्टेड सरपेंट ईगल, जिसे स्थानीय लोग ‘नागिन बाज’ कहते हैं, भी जहां-तहां मिल जाते हैं।

मानवनिर्मित गुफाएं

जंगल में बहती चरण गंगा एक ऐसे गहरे स्थान से होकर गुजरती है जहां जामुन के तमाम वृक्ष हैं। इस हरे-भरे स्थान को जामुनिया कहते हैं। यहां खूंखार जानवरों के मिलने की संभावना अधिक होती है। काला रीछ (स्लोथ बीयर) भी यहां पाया जाता है। इसी प्रकार दूसरा स्थान है सीता मंडप। यहां मानवनिर्मित गुफाएं हैं। अठारहवीं शताब्दी में रीवा राजघराने के सुरक्षाकर्मी यहां रहते थे। इसी तरह किसी गुफा में अस्तबल था तो किसी गुफा में कचहरी।

रानी की झिरिया (रानी के नहाने का तालाब) भी यहां है। एक अजीबोगरीब गुफा पहाड़ी के अंत में है, इसका किनारा गहरे खड्डनुमा एक ऐसे स्थान की ओर जाता है, जो करीब 900 फुट गहरा है। कहते हैं किसी जमाने में मृत्युदंड प्राप्त अपराधियों को इसी स्थान पर सजा दी जाती थी।    बांधवगढ़ सभी राष्ट्रीय उद्यानों से अलग है जहां वन्य प्राणी भी हैं और ऐतिहासिक गढ़ यानी किला भी है, जो अब खंडहर हो चुका है। कहा जाता है लंका पर विजय प्राप्ति के बाद दक्षिण की सीमाओं को सुरक्षित करने के उद्देश्य से श्री राम ने यहां की सबसे ऊंची पहाड़ी पर एक समतल स्थान बनवाया, किला तैयार किया गया और फिर उसे छोटे भाई लक्ष्मण को भेंट स्वरूप दे दिया था। इस संपूर्ण प्रकरण ने बांधवगढ़ नाम को जन्म दिया।

राजा रामचंद्र बघेला का दरबार

16वीं सदी के मध्य में यहां राजा रामचंद्र बघेला का दरबार था। संगीत सम्राट तानसेन उन्हें संगीत सुनाते थे। बाद में वह अकबर के दरबार में चले गए थे। कहा जाता है संत कबीर भी बांधवगढ़ में रहे थे, जिन्हें कुछ लोग प्रतिवर्ष श्रद्धासुमन अर्पित करने आते हैं। गढ़ के साथ ही 2000 वर्ष पुराना एक मंदिर है। यह मंदिर प्राचीनकाल में केवल रामनवमी तथा जन्माष्टमी के दिन ही खुलता था, पर अब यह हमेशा खुला रहता है। कहा जाता है कि पिछले दो हजार वर्षो से एक ही वंशपरंपरा के पुजारी यहां पीढ़ी दर पीढ़ी मंदिर की जंगल में स्वच्छंद घूमते-विचरते बाघों तथा अन्य पशु-पक्षियों के बीच रहते हुए मंदिर की सेवा करते आ रहे हैं।

VN:F [1.9.1_1087]
Rating: 8.6/10 (5 votes cast)
इतिहास और प्रकृति की साझा धरोहर, 8.6 out of 10 based on 5 ratings



Leave a Reply

    One Response to “इतिहास और प्रकृति की साझा धरोहर”

    * Following fields are required

    उत्तर दर्ज करें

     (To type in english, unckeck the checkbox.)

आपके आस-पास

Jagran Yatra