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अगर आप ऊंट की सवारी या ट्रेकिंग के शौकीन हैं और गाहे-बगाहे इसका लुत्फ लेना चाहते हैं तो बात अलग है, पर अब यह आपकी मजबूरी नहीं रही। दुर्गम जगहों तक जीप के झटके खाते हुए थके-मांदे पहुंचना बीते दिनों की बात हो चुकी है। कम समय में दुर्गम जगहों की सैर के मार्ग में आने वाली मुश्किलें आसान की हैं एसयूवी यानी स्पोर्ट्स यूटिलिटी व्हेकिल्स और एमयूवी यानी मल्टी यूटिलिटी व्हेकिल्स ने। इन्हें आप बेहद ठंडे और ऊंचे पहाड़ों से लेकर रेगिस्तान तक कहीं भी दौड़ा सकते हैं। इसीलिए पिछले पांच-छह वर्षो में रोमांचप्रेमी पर्यटकों के बीच ये गाडि़यां बड़ी तेजी से लोकप्रिय हुई हैं और इनकी लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही है।
एसयूवी का इतिहास
एसयूवी का इतिहास लगभग ऑटोमोबाइल जितना ही पुराना है, पर पहले ये गाडि़यां इतनी सुविधाजनक नहीं थीं। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में आए एसयूवी व एमयूवी के नए मॉडल वस्तुत: जीप व कार के मिले-जुले रूप हैं। फोर व्हील ड्राइव होने से ये कठिन राहों पर चलने में सक्षम तो हैं ही, बैठने के अच्छे इंतजाम व न्यूमैटिक सस्पेंशन के कारण आरामदेह भी होते हैं। छोटे-छोटे समूहों को लंबे टूर कराने वाली एजेंसियां अब इनका ही उपयोग करना बेहतर समझती हैं। मध्य प्रदेश, केरल, राजस्थान और पूर्वोत्तर राज्यों के अलावा कैलास मानसरोवर की यात्रा में भी इनका खूब उपयोग हो रहा है। पारिवारिक वाहन के रूप में भी इनका प्रचलन बढ़ रहा है। सात से आठ लोगों के बैठने की व्यवस्था होने से इसमें पूरा परिवार एक साथ आ जाता है।
सुप्रसिद्ध ऑटोमोटिव विशेषज्ञ मुराद अली बेग के अनुसार, ‘अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप में तीस प्रतिशत निजी कारों की जगह एसयूवी ले चुकी है।’ यही वजह है कि 1982 में तो एसयूवी का कुल विक्रय मात्र 1,87,000 था, पर 1992 में यह नौ लाख तक पहुंच गया था। भारत में इस किस्म के वाहन पहले बहुत लोकप्रिय नहीं थे, लेकिन पिछले पांच वर्षो में इनकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ी है। ऑटो मैगजीन के राष्ट्रीय विपणन प्रबंधक संजीव गुलाटी कहते हैं, ‘इनमें बैठने की अच्छी व्यवस्था होने के साथ-साथ पीछे बूट स्पेस भी ज्यादा होता है। इससे लंबी यात्राओं के लिए ये उपयुक्त होती हैं।’
सुरक्षा से लोकप्रियता बढ़ी
इनकी लोकप्रियता की सबसे बड़ी वजह सुरक्षा है। इसीलिए पहाड़ी इलाकों में सफर के लिए एसयूवी ही पर्यटकों की पहली पसंद है। अभियान ट्रेवल्स एंड टूर्स के निदेशक विवेक दीवान बताते हैं, ‘कैलास मानसरोवर की यात्रा के दौरान हम एसयूवी का ही इस्तेमाल करते हैं। नेपाल में कोदारी पहुंचने के बाद हम यात्रियों के छोटे-छोटे समूह बनाकर टोयोटा लैंडक्रूजर गाडि़यों में शिफ्ट कर देते हैं। दरअसल आगे का पूरा रास्ता पथरीला है और जगह-जगह नदियों-नालों को पार करना पड़ता है। इन स्थितियों में सिर्फ एसयूवी में ही सुरक्षित यात्रा संभव है।’ संजीव गुलाटी बताते हैं, ‘जहां-जहां ऊंट है, वहां-वहां एसयूवी है। रेगिस्तानी रास्तों पर जहां अन्य वाहनों का चलना नामुमकिन हो जाता है, वहां भी एसयूवी शान से दौड़ती है। इसीलिए फिलीपींस, मलयेशिया, दुबई, शारजाह, सिंगापुर, सऊदी अरब और फिलिस्तीन जैसे देशों में ये यूरोप से भी अधिक लोकप्रिय हो रही हैं। दुबई और शारजाह में तो एसयूवी के अलावा कोई और वाहन दिखता ही नहीं है।’
भारत में भी उपलब्ध
भारत में इन दिनों छह लाख से लेकर 26 लाख रुपये मूल्य तक के यूटिलिटी वाहन उपलब्ध हैं। इनमें महिंद्रा एंड महिंद्रा की स्कॉर्पियो, टाटा की सफारी, टोयोटा की क्वैलिस, हुंडई की टेराकैन, होंडा की सीआरवी, मारुति की ग्रांड विटारा और जनरल मोटर्स की फॉरेस्टर प्रमुख हैं। आने वाले दिनों में टोयोटा की न्यू लैंड क्रूजर, निसान की एक्स ट्रेल, बीएमडब्लू की एक्स फाइव, वोल्वो की एक्ससी 90, मर्सिडीज की एम क्लास और पोर्श की कयेन जैसी गाडि़यां भी यहां मिल सकेंगी। हालांकि इनका मूल्य 40 से 70 लाख रुपये के बीच होगा।
ट्रैक्टर बनाने वाली प्रमुख कंपनी सोनालिका भी इधर राइनो नाम से अपनी एसयूवी लाने की तैयारी में है। सोनालिका के प्रबंध निदेशक अमृत सागर मित्तल बताते हैं, ‘एसयूवीज के लिए यहां बहुत अच्छी संभावना है। हम यूके की एमजी रोवर से मिलकर काम कर रहे हैं। इसमें बेहतर कंफर्ट लेवल के साथ-साथ अच्छा माइलेज भी मिलेगा।’ महिंद्रा एंड महिंद्रा के उप महाप्रबंधक राकेश मारू बताते हैं, ‘स्कॉर्पियो से हमें उत्साहजनक नतीजे मिले हैं। सुरक्षा और लंबी यात्र के दौरान सुविधा के लिहाज से अच्छी गाड़ी होने के कारण पर्सनल सिग्मेंट में इसकी अच्छी पहचान बनी है।’ फोर्ड के विक्रय सलाहकार समीर दर कहते हैं, ‘एंडीवर सुरक्षा के अलावा सुविधा के हिसाब से भी अच्छी गाड़ी है। इससे हमें बेहतर परिणाम की उम्मीद है।’ दरअसल इन उम्मीदों की बड़ी वजह भारतीय पर्यटकों में रोमांचक यात्राओं के प्रति बढ़ती ललक भी है। इन वाहनों ने लोगों की रोमांचकारी इच्छाओं को मूर्त रूप देने का अनुकूल माहौल प्रदान किया है।