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भारत में एक उद्योग के रूप में पर्यटन का विकास स्वतंत्रता के बाद ही शुरू हुआ और अब हमारी अर्थव्यवस्था में इसकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो चुकी है। पिछले कुछ वर्षो से पर्यटन की सुविधाओं के साथ-साथ यहां कारोबार भी लगातार बढ़त पर है। विदेशों से यहां आने वाले पर्यटकों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। वर्ष 2003 में यहां पर्यटन से होने वाली विदेशी मुद्रा की आय में 23 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई। भारत में आने वाले अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों की संख्या में इसी दौरान 16 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। वर्ल्ड ट्रेवल एंड टूरिज्म काउंसिल के आंकलन में भारत को विश्व की दूसरी सबसे तेज गति से बढ़ने वाली पर्यटन अर्थव्यवस्था बताया गया था।
भारत की गिनती दुनिया के पांच सर्वश्रेष्ठ देशों में
संयुक्त राष्ट्र के मानदंडों के अनुसार किए गए अध्ययन में कुल 174 देशों को शामिल किया गया और इनमें मॉन्टेनीग्रो को पहला और चीन को भारत के बाद यानी तीसरा स्थान दिया गया। इसी तरह लोनली प्लैनेट्स की ओर से 134 देशों पर किए गए सर्वेक्षण में सैर-सपाटे की दृष्टि से भारत की गिनती दुनिया के पांच सर्वश्रेष्ठ देशों में की गई। इनमें भारत को चौथे स्थान पर रखा गया, जबकि पहला नंबर थाईलैंड, दूसरा इटली, तीसरा ऑस्ट्रेलिया व पांचवां न्यूजीलैंड का था। पर्यटन के क्षितिज पर हमारी यह स्थिति तब है जबकि यहां न तो रात्रिजीवन का कोई खास आकर्षण है, न वेश्यावृत्ति, कैसिनो या कैबरे जैसी चीजों को कानूनी मान्यता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की पहचान अपने प्राकृतिक सौंदर्य, सभ्यता के अवशेषों, लोक संस्कृति के विविध रंगों, धार्मिक स्थलों व वास्तुशिल्प के लिए है। पिछले दो दशकों में इस क्षेत्र में विकास की गति देखते हुए ही हमने वन्य जीवन एवं वानस्पतिक संपदा, आयुर्वेद, रोमांचक खेलों तथा मौज-मस्ती वाले सैर-सपाटे के नए आयाम भी विकसित किए हैं। यह एक अत्यंत आशाजनक बात है कि इन नए आयामों के मामले में कुछ राज्यों ने बहुत जल्दी ही अपनी खासी पहचान बना ली है।