बुद्ध के पथ पर

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बौद्ध धर्म के उदय की भूमि भारत में बौद्ध तीर्थस्थलों और ऐतिहासिक धरोहरों का एक विशाल परिपथ है। इनमें कुछ स्थान गौतम बुद्ध के जीवन की घटनाओं से संबद्ध हैं तो कुछ उनके धर्म उपदेश और प्रसार से जुड़े हुए हैं। इनके अलावा कई प्रसिद्ध स्तूप, विहार,  मठ एवं गुफाएं भी इस परिपथ का हिस्सा हैं। यहां आने वाले अधिकतर विदेशी पर्यटकों के लिए इस परिपथ का आरंभ आम तौर पर कोलकाता से होता है। इसकी एक वजह वहां अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का होना तो है ही, वस्तुत: पश्चिम बंगाल में कलिम्पोंग और पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में कई महत्वपूर्ण बौद्ध मठों की मौजूदगी भी है।

बोधगया

संपूर्ण भारत में फैले इन पवित्र बौद्ध तीर्थो में सबसे प्रमुख है बोधगया। यहीं एक बोधिवृक्ष के नीचे लंबी तपस्या के बाद राजकुमार सिद्धार्थ को बुद्धत्व की उपलब्धि हुई थी। आज यहां एक महाबोधि मंदिर है। पिरामिड आकार वाले 170 फुट ऊंचे इस मंदिर के  गर्भगृह में भगवान बुद्ध की पवित्र प्रतिमा है और बाहरी दीवारों पर अनेक कलाकृतियां, आले एवं मूर्तियां आदि बने हैं। यहां से कुछ ही दूर बोधिवृक्ष तथा वज्रासन नामक वह स्थान है जहां राजकुमार सिद्धार्थ को बोध हुआ था। चक्रमण स्थल, रत्‍‌नगृह, रजत वृक्ष आदि यहां के अन्य दर्शनीय स्थल हैं।

सारनाथ

बुद्धत्व की उपलब्धि के बाद भगवान ने सबसे पहले जहां धर्मोपदेश दिया वह है सारनाथ। इस पवित्र तीर्थस्थल पर भी देखने योग्य कई स्मारक हैं। इनमें प्रमुख है चौखंडी स्तूप, मूलगंध कुटी, धर्मराजिक स्तूप, अशोक स्तंभ एवं पुरातत्व संग्रहालय। कुशीनगर वह स्थान है जहां भगवान बुद्ध का महापरिनिर्वाण हुआ। गोरखपुर से करीब 60 किमी दूर तराई क्षेत्र में स्थित कुशीनगर में मुख्य स्तूप, महापरिनिर्वाण मंदिर, माथा कंुअर मंदिर, अंत्येष्टि स्तूप एवं कुछ विहार आदि हैं। निर्वाण मंदिर में भगवान बुद्ध की लेटे हुए मुद्रा में निर्वाण प्रतिमा विद्यमान है। यह पवित्र प्रतिमा करीब छह मीटर लंबी है।

वैशाली

भगवान बुद्ध ने अपनी महाकरुणा के प्रसार के लिए तमाम स्थानों की यात्राएं कीं। इनमें कई स्थान बौद्ध आस्था के केंद्र बन गए। बिहार में स्थित वैशाली एक ऐसी ही जगह है। यहां के विशेष स्मारकों में अशोक स्तूप एवं अशोक स्तंभ, लिच्छवि स्तूप एवं कुछ अन्य स्मारक हैं। उधर पटना से करीब सौ किमी दूर स्थित राजगीर भी बौद्ध तीर्थो में गिना जाता है। बौद्ध धर्म से जुड़े स्मारकों में यहां  राजगृह, विश्वशांति स्तूप, वेणुवन, अशोक स्तूप, अजातशत्रु स्तूप, मनियार मठ, करंडताल सोनभद्र गुफाएं आदि खास हैं।

नालंदा

बौद्ध विश्वविद्यालय नालंदा को देश का प्राचीनतम विश्वविद्यालय माना जाता है, यह पटना के निकट है। भगवान बुद्ध अपने जीवन में कई बार नालंदा आए थे। यह स्थान न केवल ज्ञान बल्कि विभिन्न कलाओं का केंद्र भी रहा है। यहां एक ओर बौद्ध विहारों की कतार है तो दूसरी ओर छोटे स्तूपों से घिरे कुछ मंदिर हैं। नालंदा में पुरातत्व संग्रहालय में भी बौद्ध धर्म के देवी-देवता तथा भगवान बुद्ध की प्रतिमा अत्यंत दर्शनीय हैं। इनके अलावा भागलपुर के निकट विक्रमशिला के अवशेष, फर्रुखाबाद जिले में काली नदी के तट पर प्राचीन संकाश्य के स्मारक, लखनऊ से 134 किमी दूर श्रावस्ती के स्तूप एवं विहारों के खंडहर तथा इलाहाबाद से 54 किमी दूर प्राचीन शहर कौशांबी के अवशेष भी बौद्ध धर्मस्थलों की यात्रा पर निकले सैलानियों को आकर्षित करते हैं।

सांची

मध्य प्रदेश में स्थित सांची भी भव्य स्तूपों, विहारों और मंदिरों के कारण पर्यटकों को बहुत आकर्षित करता है। आश्चर्य की बात यह है कि इस स्थान का संबंध कभी भी भगवान बुद्ध के जीवन से नहीं रहा, फिर भी यह इतना प्रसिद्ध हो गया। एक पहाड़ी पर स्थित सांची के स्मारकों में स्तूप नंबर एक तो स्तूप निर्माण कला का सबसे उत्कृष्ट नमूना माना जाता है। यहां के स्मारकों में बने प्रदक्षिणा पथ, मेधि, वेदिका, स्तंभ एवं आलीशान तोरण के रूप में शिल्पकला का समृद्ध रूप देखने को मिलता है। तोरणों पर जातककथाओं तथा भगवान बुद्ध के जीवन से संबंधित दृश्य आज भी पर्यटकों को प्रभावित करते हैं।

अमरावती

दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश में भी कई प्राचीन बौद्ध स्थल हैं। गुंटूर जिले में कृष्णा नदी के तट पर बसा अमरावती ऐसा ही खास स्थल है। यहां का प्रमुख आकर्षण महाचैत्य स्तूप है। यहां संग्रहालय में रखी भगवान बुद्ध की आदमकद प्रतिमा तथा यहां से प्राप्त मेधि पट्टिका एवं अलंकृत स्तंभ भी दर्शनीय हैं। हैदराबाद से करीब 150 किमी दूर हरी-भरी पहाडि़यों के मध्य नागार्जुन कोंडा भी बौद्ध परिपथ का हिस्सा है। स्तूप, चैत्यगृह, विहार एवं मंडप आदि के रूप में यहां बौद्ध कला एवं संस्कृति का खजाना देखने का मिलता है। उधर उड़ीसा में बौद्ध संस्कृति के प्रमाण ललितगिरि, रत्नागिरि एवं उदयगिरि में आज भी मौजूद है। भुवनेश्वर के निकट स्थित इन स्थलों के अलावा धौलागिरि पहाड़ी पर एक आधुनिक विश्व शांति स्तूप भी भव्य एवं दर्शनीय है। महाराष्ट्र में काली गुफाएं, कन्हेरी गुफाएं, जूनार गुफाएं तथा अजंता गुफाएं भी अपने अंदर छिपे बौद्ध धर्म के संदेश एवं भित्तिचित्रों के कारण सैलानियों को आमंत्रित करती हैं। बौद्ध धर्म की मान्यताओं एवं परंपराओं से जुड़े कई स्थल देश के पर्वतीय राज्यों में भी हैं। जम्मू-कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र में ही तेरह गोंपा है। इनमें सबसे प्रमुख हेमिसगोंपा है, जहां हर वर्ष हेमिस उत्सव मनाया जाता है। हिमाचल की ताबो तथा की मोनेस्ट्री तो हजार वर्ष पुरानी हैं। ये आज भी बौद्ध धर्मावलबिंयों को आकर्षित करती हैं। इसी तरह सिक्किम का रुमटेक मठ भी तिब्बती प्रभाव की बौद्ध परंपराओं से जुड़ा है। पर्यटकों के लिए इतनी बड़ी बौद्ध परिक्रमा एक बार में तो संभव नहीं है। लेकिन फिर भी आज विश्व भर के सैलानी बड़ी संख्या में इन स्थानों पर पहुंचते हैं। विशेषकर उन देशों के लोग तो बार-बार आते हैं, जहां बौद्ध धर्म का विशेष प्रभाव है।

लुंबिनी

लुंबिनी दर्शन के बिना तो बौद्ध धर्म की तीर्थयात्रा पूर्ण ही नहीं हो सकती है। दरअसल यह पवित्र स्थान भगवान बुद्ध की जन्मस्थली है। जो भारतीय सीमा से 10 किमी दूर नेपाल में स्थित है। आज यह क्षेत्र रूमिनदेई नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि कपिलवस्तु के राजा शुद्धोधन की रानी महामाया अपने मायके जाते हुए लुंबिनी नामक मनोरम स्थल पर रुकीं और यहीं उन्होंने बालक सिद्धार्थ को जन्म दिया। वही बालक सिद्धार्थ बाद में गौतम बुद्ध हुआ और बौद्ध धर्म का प्रवर्तक बना। इसीलिए यह स्थान बौद्ध धर्म के अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र तीर्थो में गिना जाता है। बाद में सम्राट अशोक के लुंबिनी आगमन के बाद इसका महत्व बहुत बढ़ गया था, लेकिन कालांतर में इस स्थान का महत्व खो सा गया था। फिर 19वीं शताब्दी के अंतिम वर्षो में इसे नए सिरे से खोजा गया। आज यह स्थान बौद्ध धर्म का महान तीर्थ है। लुंबिनी के मुख्य स्मारकों में प्रमुख है अशोक स्तंभ। लगभग 24 फुट ऊंचे इस स्तंभ पर अशोक के अभिलेखों के अलावा भी कुछ अभिलेख अंकित है। स्तंभ के निकट ही दो छोटे स्तूप हैं। कुछ ही दूर एक आधुनिक मंदिर बना है। इस मंदिर में एक प्राचीन प्रतिमा है, जिसमें भगवान बुद्ध के जन्म को दर्शाया गया है। मंदिर परिसर में एक तालाब भी है। मान्यता है कि यह वही तालाब है जिसमें सिद्धार्थ के जन्म के बाद उनकी माता ने स्नान किया था। आसपास अनेक स्मारक हैं, जो खंडहरों में तब्दील हो चुके हैं। तिलर नदी तक फैले ये खंडहर स्तूप एवं विहारों के हैं। नेपाल की राजधानी काठमांडू से दूर होने के कारण यहां प्राय: बौद्ध धर्म में आस्था रखने वाले लोग ही पहंुचते हैं।

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