रॉक क्लाइंबिंग-चट्टानों के सीने पर साहस की इबारत

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मानवीय सभ्यता ने जब से अपनी आंखें खोली हैं, पर्वत श्रृंखलाएं उसे सदैव आकर्षित करती रहीं है। जिस तरह सागर की गहराई हमें अपने मौलिक अर्थो में कहीं गहरे तक छू जाती है, वैसे ही पर्वतों की ऊंचाई भी जीवन और जगत को सिर ऊंचा करके देखने का हौसला देती है। पर्वतारोहण मनुष्य को हमेशा से लुभाता रहा है और उसका पहला कदम है दुर्गम और कठोर चट्टानों को लांघने की कला सीखना। जिद्दी चट्टानों से आंखें चार कर उनके सीने पर साहस की इबारत लिखने वाले इस खेल को ही ‘रॉक क्लाइंबिंग’ कहते हैं।

भारत में इधर कुछ वर्षो से रोमांचक खेलों के प्रति लोगों की रुचि तेजी से बढ़ी है। इस क्रम में रॉक क्लाइंबिंग एक प्रमुख खेल के रूप में तेजी से उभरा है। बहुत कम समय में यह जोखिम भरे खेलों का सिरमौर बन गया है। इसकी एक वजह भारत की भौगोलिक विशेषता भी है। विशेषज्ञों की मान्यता है कि यह शक्ति का नहीं अपितु संतुलन का खेल है। भारत के विभिन्न हिस्सों में मौजूद खड़े पहाड़ रॉक क्लाइंबिंग के लिए सर्वाधिक उपयुक्त मानी जाती है। अरावली हिल्स इसके लिए प्रमुख गंतव्य स्थलों में से एक है। इसकी श्रृंखलाएं दिल्ली के दक्षिणी इलाकों में कई जगह फैली हैं। महाराष्ट्र में पूना के निकट पश्चिमी घाट पर मुम्ब्रा व दुधा, हिमाचल में मनाली, मणिकर्ण और रोहतांग पास, राजस्थान में माउंट आबू, सरिस्का में जैंटलर और कर्नाटक में चामुंडी पहाडि़यां रॉक क्लाइंबिंग के शौकीन युवाओं की मनपसंद सैरगाह हैं।

ऊंची पहाडि़यों पर चढ़ने वाले लोग कश्मीर में सोनमर्ग तथा उत्तरांचल में गंगोत्री की पहाडि़यों को बहुत पसंद करते हैं। धौज में क्लांइबिंग का पुराना तरीका अभी भी प्रयोग में लाया जाता है, जिसमें बोल्ट्स का प्रयोग होता है। यहां के स्थानीय लोगों में भी इस खेल परंपरा के प्रति अनूठा उत्साह देखा जा सकता है। दक्षिण में बंग्लौर से 60 किमी के परिक्षेत्र में इसके कई ठिकाने हैं।

उपयुक्त है मौसम

बंग्लौर जाने के लिए सितंबर से जनवरी तक का माह सबसे उपयुक्त है। जून के महीने में भी यहां भीड़ देखी जाती है। अन्य जगहों पर अक्टूबर से फरवरी तक के महीने अनुकूल होते हैं। तापमान तीन डिग्री से कम हो जाने पर अतिरिक्त सतर्कता की जरूरत पड़ती है। बरसात में यह खेल नहीं करते।

सुविधाएं सभी हैं

धौज में रॉक क्लाइंबिंग के लिए 1200 रुपये प्रति व्यक्ति, प्रति रात्रि शुल्क तय किया गया है। दल में कम से कम छह व्यक्तियों का होना जरूरी है। क्लाइंबर्स के लिए मिलने वाला भोजन प्राय: सस्ता व अच्छा होता है। प्राय: सभी क्षेत्रों में खाने-पीने की चीजों की दुकानें प्रचुर मात्रा में हैं। रहने के लिए पहाड़ों के निकट ही गांवों में तथा शहरों में बंगले किराए पर मिल जाते हैं। दिल्ली, मुंबई, देहरादून आदि में हर श्रेणी के होटल उपलब्ध है।

सामान्यत: चढ़ाई को एक से तीस श्रेणियों में विभक्त करके कार्य निर्धारण किया जाता है। तत्काल चढ़ाई में ग्रेड 32 अधिकतम है। अनुभवी क्लाइंबर्स यात्रा की शुरुआत प्राय: ग्रेड 10 की चोटियों से करते हैं। प्रशिक्षु खिलाडि़यों को ग्रेड वन की चोटियां अभ्यास के लिए दी जाती हैं। ढीले-ढाले, भुलक्कड़, भीरु, आलसी और बेडौल व्यक्ति इस खेल के लिए उपयुक्त नहीं माने जाते। इसमें प्रयुक्त किए जाने वाले उपकरण गुणवत्ता के दृष्टिकोण से सर्वोत्तम होने जरूरी हैं। इंडोर क्लाइंबिंग जिम भी इस हुनर को निखारने में सहायक होते हैं। अभी भारत में ऐसे जिम शुरू नहीं हुए हैं, पर पश्चिम के कई देशों में ऐसे जिम विकल्प के रूप में उभरे हैं। रॉक क्लाइंबिंग के कई तरीके चलन में हैं। इनमें सबसे आसान बोल्डिंग है, इसमें कम यंत्रों की जरूरत पड़ती है। अन्य प्रकारों में स्पोर्ट क्लाइंबिंग, एल्पीनीज्म आदि प्रमुख हैं। पर्वतारोहण के लिए जरूरी है कि आप कोई गाइड रख लें। स्थानीय एजेंसियों के पास अनेक अनुभवी पर्वतारोही उपलब्ध रहते हैं।

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