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अगर आपसे कोई पूछे कि क्या आप आगे चलकर पीछे पहुंच सकते हैं तो आप एक बार तो उसे ‘क्या बेवकूफ है’ की नजरों से देखेंगे और अगर इसके बाद भी उसकी आंखों में वही दृष्टि बनी रही तो आपका जवाब नकारात्मक ही होगा। लेकिन महाराष्ट्र के औरंगाबाद से करीब सौ किमी आगे चलकर अजंता पहुंचे तो आप करीब डेढ़ हजार साल पीछे पहुंच जाएंगे। विश्वविख्यात अजंता की गुफाओं के पास घूमते लोग तो इक्कीसवीं सदी के ही नजर आएंगे, लेकिन बाकी सब कुछ डेढ़-दो हजार वर्षो पहले का है। यहां का वातावरण देखकर ऐसा लगता है, जैसे हम वर्तमान में रहते हुए अतीत की यात्रा कर रहे हों।
तीस गुफाओं में छिपा प्राचीन भारतीय कला का सौंदर्य
एक पहाड़ी को काटकर बनाई गई ये गुफाएं दूर से देखने पर हरी-भरी वादियों से झांकती अर्द्ध गोलाकार आकृति में नजर आती हैं और यहां की तीस गुफाओं में छिपा प्राचीन भारतीय कला का सौंदर्य दुनिया भर के कलाप्रेमियों को चकित कर देता है। गुफाओं के अंदर उकेरी गई बुद्ध की अनगिनत प्रतिमाओं में गुफा नंबर 26 में मौजूद प्रतिमा अद्वितीय है। इसमें बुद्ध की वह छवि उकेरी गई है जब उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया था। परम शांति को प्राप्त बुद्ध के आसपास शोक में डूबे लोगों की भीड़ है। सोलह नंबर की गुफा में एक बौद्धविहार का प्रतिरूप है। इस विहार में बुद्ध की विशाल प्रतिमा भी है।
बुद्ध भिक्षुओं की देन
अजंता की गुफाओं में प्राकृतिक रंगों से बनाई गई कलाकृतियां काफी पुरानी पड़ चुकी हैं, फिर भी 1, 2, 16 व 17 नंबर की गुफाओं में दीवारों पर बनाई गई कलाकृतियां काफी अच्छी हालत में हैं।
असल में विश्व भर से आने वाले दर्शकों की भीड़ ने कई वर्षो में यहां की कला को काफी खराब कर दिया है, पर छठें दशक में तय किया गया कि अगर यहां की कलाकृतियों को खराब होने से बचाना है तो गुफाओं के अंदर बिजली या कृत्रिम रोशनी को हटाना होगा। इसीलिए गुफाओं में अब बिजली का प्रयोग बिलकुल बंद कर दिया गया है और सिर्फ प्राकृतिक रोशनी ही इनकी आंतरिक सुंदरता को उजागर करती है।
गुफाओं के बाहर मेटूलिक रिफ्लेक्टर लिए कुछ लोग भी दिखते हैं, जो पांच-दस रुपये लेकर अपने रिफ्लेक्टरों से सूर्य की रोशनी इस तरह परावर्तित करते हैं कि गुफा के अंदर का हिस्सा प्रकाशमान हो जाए और आप वहां की निहित सुंदरता का आनंद उठा सकें। कहा जाता है कि अंजता की गुफाओं की कला उन बुद्ध भिक्षुओं की देन है जो जिन्होंने अपना सारा जीवन कला की आराधना में बिता दिया और इस वीरान इलाके में ऐसी अचंभित कर देने वाली कला दे गए जो सदियों तक सराही जाएगी। अजंता की गुफाओं में बुद्ध के काल की यह अद्भुत कला, बौद्ध धर्म के साथ विश्व के कई देशों में पहुंची।
जरूरी जानकारियां
महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिला मुख्यालय से अजंता की गुफाओं की दूरी करीब एक सौ किमी है। औरंगाबाद देश के प्रमुख महानगरों से वायु, रेल व सड़क तीनों मार्गो से सीधे जुड़ा हुआ है। औरंगाबाद से अजंता के लिए टैक्सियां मिलती हैं। इसके अलावा मुंबई या मनमाड से अजंता के लिए सीधे कार या टैक्सी भी ले सकते हैं। जलगांव रेलवे स्टेशन से भी अजंता की गुफाएं निकट ही हैं। एलोरा की प्रसिद्ध गुफाओं के लिए भी औरंगाबाद से ही टैक्सियां मिलती हैं। एलोरा यहां से दूसरी दिशा में करीब सौ किमी की दूरी पर स्थित है।
औरंगाबाद में ठहरने के लिए महंगे और सस्ते सभी तरह के अच्छे होटल उपलब्ध हैं। खास अजंता में ही अजंता ट्रेवलर्स लॉज है और यहां से चार किमी दूर स्थित फर्दपुर में महाराष्ट्र पर्यटन विभाग का हॉलीडे रिसॉर्ट है। इन जगहों पर ठहरना सुविधाजनक है