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प्रकृति के अलौकिक सौंदर्य से परिपूर्ण हिमालय की चोटियां ऋषियों एवं योगियों की तपस्थली रही हैं। यहां स्थित देवालयों में बद्रीकाश्रम का महत्व सबसे अधिक है। आदि शंकराचार्य ने संपूर्ण भारत को एक सूत्र में बांधने के लिए जिन चार धामों की स्थापना की थी, उनमें यह एक है। भगवान विष्णु के इस पावन धाम की यात्रा पांच मंदिरों के दर्शन के बाद ही पूरी मानी जाती है। ये हैं आदिबद्री, वृद्धबद्री, भविष्यबद्री, योगध्यानबद्री तथा विशालबद्री।
हरिद्वार या ऋषिकेश से जब बद्रीनाथ मार्ग पर बढ़ते हैं तो सबसे पहले आदिबद्री के दर्शन किए जा सकते हैं। यह तीर्थ कर्णप्रयाग से रानीखेत जाने वाले मार्ग पर 19 किमी दूर है। इसका प्राचीन नाम नारायण मठ था। मान्यता है कि भगवान नारायण की आदि तपस्थली यही है। आदि शंकराचार्य भी इस क्षेत्र में सबसे पहले यहीं आए थे। तबसे इसे आदिबद्री कहा गया। यहां एक परिसर में ही कुल 16 मंदिरों का समूह है। ये मंदिर 7वीं से 10वीं शताब्दी के बीच बने माने जाते हैं। मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा विराजमान है। इसके आसपास कई छोटी-छोटी मूर्तियां भी हैं।
अनीमठ में वृद्धबद्री
कर्णप्रयाग से आगे की यात्रा में जोशीमठ से 8 किमी पहले अनीमठ है। यहां स्थित वृद्धबद्री इस क्षेत्र का सबसे प्राचीन मंदिर है। इसका निर्माण आदि शंकराचार्य के यहां आने से कई सदी पूर्व का माना जाता है। कहते हैं कि यहां प्रतिष्ठित भगवान बद्रीनाथ की प्रतिमा स्वयं विश्वकर्मा ने बनाई थी। कलियुग आते ही वह प्रतिमा लुप्त हो गई। बाद में वही प्रतिमा आदि शंकराचार्य को नारदकुंड में मिली, जिसे उन्होंने बद्रीविशाल में स्थापित किया। वृद्धबद्री में दूसरी प्रतिमा स्थापित की गई। वृद्धबद्री समुद्रतल से 1380 मीटर की ऊंचाई पर है, जहां शीतऋतु में हिमपात नहीं होता। आदिबद्री के समान यह मंदिर भी वर्ष भर खुला रहता है।
भविष्यबद्री की यात्रा
भविष्यबद्री मंदिर जोशीमठ से 25 किमी दूर है। इसके दर्शन के लिए तपोवन के मार्ग पर बढ़ते हैं। 19 किमी दूर सलधार से आगे 6 किमी पैदल चलना पड़ता है। कहते हैं कि जोशीमठ के नृसिंह मंदिर में भगवान नृसिंह की प्रतिमा की एक भुजा धीरे-धीरे क्षीण हो रही है। जब यह भुजा स्वत: खंडित होगी तो किसी प्राकृतिक घटना से बद्रीनाथ जाने का मार्ग बंद हो जाएगा। तब भगवान बद्रीनाथ की पूजा यहीं होगी। यही कारण है कि यहां भगवान की पूजा भविष्यबद्री के रूप में होती है। इस मंदिर में भगवान विष्णु के नृसिंह रूप की प्रतिमा विराजमान है।
जोशीमठ से बद्रीनाथ की ओर 20 किमी आगे पांडुकेश्वर नामक स्थान पर योग ध्यान बद्री मंदिर है। मुख्य मार्ग से ढलान पर थोड़ा उतरते ही हरे-भरे वृक्षों से घिरे परिसर में यहां मुख्यत: दो मंदिर हैं। परीक्षित को राजकार्य सौंप कर जब पांडव स्वर्गारोहण के लिए चले तो पांडुकेश्वर नामक स्थान पर उन्होंने कुछ समय तप किया था। पांडवों ने यहां भगवान के योगध्यान रूप की पूजा की थी। इसलिए इन्हें योगध्यान बद्री कहा गया। एक किमी आगे हनुमानचट्टी पर हनुमान मंदिर भी दर्शनीय है।
बेरों के वन में वास
अलकनंदा के तट पर एक छोटी सी घाटी में फैली बद्रीविशाल नगरी पांडुकेश्वर से सिर्फ 23 किमी दूर है। मान्यता है कि नर-नारायण पर्वत के मध्य स्थित इस स्थान पर कभी बदरी यानी बेर के वन थे। भगवान विष्णु उसी वन में रहते थे। बदरीवन का स्वामी होने के कारण उन्हें बद्रीनाथ कहा जाता था। अलकनंदा के दूसरे तट पर अब भव्य मंदिर में भगवान बद्रीनाथ विराजमान हैं। मंदिर के पीछे नीलकंठ पर्वत है। आदि शंकराचार्य ने नारदकुंड से भगवान विष्णु की प्रतिमा निकाल कर यहीं प्रतिष्ठित की थी। गर्भगृह में विराजमान प्रतिमा लगभग एक मीटर ऊंची है, जिसमें भगवान पद्मासन मुद्रा में बैठे हैं। दिव्य प्रतिमा के साथ ही नर-नारायण, उद्धव, कुबेर तथा नारद जी की प्रतिमा भी है। मंदिर परिसर में कुल 15 मूर्तियां हैं।
बद्रीनाथ मंदिर के निकट ही तप्तकुंड है, जिसमें स्नान के बाद ही भक्तगण मंदिर दर्शन के लिए जाते हैं। शीतकाल में बद्रीनाथ के पट बंद कर दिए जाते हैं। उस दौरान भगवान की पूजा जोशीमठ में की जाती है। यहां के अन्य दर्शनीय स्थलों में ब्रह्मकपाल, शेषनेत्र, नारदकुंड व चरणपादुका आदि हैं। तीन किमी दूर माणा गांव, पांच किमी दूर व्यास गुफा एवं भीमपुल भी देखने योग्य हैं।
मार्ग एवं साधन
पंचबद्री की यात्रा ऋषिकेश या हरिद्वार से बस या टैक्सी से की जाती है। आदिबद्री जाने के लिए कर्णप्रयाग में ठहरने की व्यवस्था की जा सकती है। वृद्धबद्री के लिए पीपलकोटी या जोशीमठ में ठहर सकते है। भविष्यबद्री दर्शन के लिए भी जोशीमठ को आधार बना सकते हैं। वहां अच्छे होटल व धर्मशालाएं हैं। योगध्यान बद्री के दर्शन मार्ग में कुछ देर रुक कर किए जा सकते हैं, या फिर गोविंदघाट में ठहर सकते हैं। यहां से पांडुकेश्वर तीन किमी दूर है। पंचबद्री में सबसे प्रमुख मंदिर बद्रीविशाल है। इसलिए यहां हर तरह की सुविधाएं उपलब्ध हैं।