आज मैं ऊपर, आसमां नीचे..

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रोमांच की तलाश इंसान को कहां-कहां नहीं ले जाती, फिर नीमराना फोर्ट तो दिल्ली से महज सवा सौ किलोमीटर की दूरी पर है। इस साल जनवरी में जब से फ्लांइंग फोक्स के बारे में सुना था, तब से उसमें हाथ आजमाने का बहुत मन था क्योंकि वह न केवल भारत का अपनी तरह का अकेला जिप टूर है बल्कि इसकी एक जिप लाइन दक्षिण एशिया में सबसे लंबी और समूचे एशिया में दूसरी सबसे बड़ी है।

जैसी शुरू में मेरे मन में थी, वैसी ही आपके मन में सामान्य जिज्ञासा हो सकती है कि आखिर यह जिप टूर है क्या बला? जिप टूर दरअसल वह सफर है जो लोहे के तारों पर हुक से बंधे होकर (लटककर) किया जाता है। आपने तस्वीरों, फिल्मों या हकीकत में लोगों को नदियां पार करते देखा होगा। ठीक उसी तरह अब यह जिपलाइन किसी जगह को नए अंदाज व नई निगाह से देखने का रोमांच है। पहाड़ पर आप एक जगह से दूसरी जगह तक का सफर इसी तार के जरिये करते हैं।

नीमराना फोर्ट-जिपलाइन टूर का मेजबान

दिल्ली से सटी अरावली की पहाडि़यों में राजस्थान की सीमा में घुसते ही स्थित नीमराना फोर्ट भारत के इस अकेले जिपलाइन टूर का मेजबान है। फ्लांइंग फोक्स इसे संचालित करने वाली कंपनी है। फ्लाइंग फोक्स के मेहमान के तौर पर जब मैं नीमराना फोर्ट में ही फ्लाइंग फोक्स के दफ्तर पहुंचा तो वहां मौजूद इंस्ट्रक्टरों ने बड़ी गर्मजोशी से स्वागत किया। कपड़ों, उपकरण व सामान की आरंभिक तैयारी के बाद हम पहाड़ी की चोटी की तरफ चले। हमें पहले ही सीट हारनेस पहना दिया गया था। सीट हारनेस मजबूत बेल्टों का वह जाल होता है जो कमर पर पहन लिया जाता है। शरीर का वजन उठाने में सक्षम यह हारनेस कमरपेटी व जांघ पर कस जाती है, उसमें हुक (जिन्हें कैराबिनर्स कहा जाता है) लगे होते हैं जो शरीर को किसी तार या रस्सी से लटका देते हैं। रॉक क्लाइंबिंग, रैपलिंग, रिवर क्रासिंग और पर्वतारोहण में भी इसी तरह के उपकरण काम आते हैं।

पहाड़ी की चढ़ाई

तो ये कमरपेटियां बांधे हुए हमने पहाड़ी पर चढ़ना शुरू किया। हमारे साथ दो कुशल व काबिल अंग्रेज इंस्ट्रक्टर थे। (आप चाहें तो आपको हिंदीभाषी इंस्ट्रक्टर भी मिल सकते हैं) लगभग बीस मिनट की चढ़ाई के बाद हम चोटी पर आ पहुंचे। वहां से नीमराना फोर्ट पैलेस, जो खुद पहाड़ी काटकर बनाया गया था, छोटा सा नजर आता है। चोटी पर एक प्लेटफार्म बना हुआ था यह पहली जिपलाइन की शुरुआत थी। यहीं पर एक छोटा सा हिस्सा अभ्यास और सफर की पूरी प्रक्रिया समझाने के लिए भी है। जिपिंग (इसे यही कहा जाता है) को समझने, सारे एहतियात जानने, खुद को तैयार करने में 15-20 मिनट का वक्त लग गया। इंस्ट्रक्टर उस इलाके के इतिहास की भी जानकारी देते हैं। बहरहाल, इसके बाद शुरू हुआ असली रोमांच। दो इंस्ट्रक्टरों में से एक पहले गया, वह दूसरे प्वाइंट पर पहुंचने के बाद वॉकी-टॉकी से पीछे वाले इंस्ट्रक्टर को सब ठीक-ठाक होने की सूचना देता है, तभी बाकी लोग जाना शुरू करते हैं। चूंकि सफर पहाड़ी की चोटियों पर होता है, इसलिए मौसम का भी ध्यान रखा जाता है।

तेज बारिश, हवा या बिजली में जिप टूर को रोकना पड़ता है। आगे जाने वाला इंस्ट्रक्टर हवा के असर को भी भांप लेता है। हालांकि पहले प्वाइंट पर अभ्यास के दौरान हमें यह बताया गया था कि हवा पीछे से या सामने से आए तो कैसे अपनी गति को नियंत्रित रखना है, कैसे गति बढ़ाएं या ब्रेक लगाएं, हवा तिरछी बह रही हो तो कैसे अपना संतुलन बनाए रखना है, इंस्ट्रक्टर के इशारे दूर से कैसे समझे जाते हैं, वगैरह-वगैरह। जिपिंग की पूरी प्रक्रिया मैकेनिकल है यानी लोहे के तार के झोल से शरीर को मिलने वाली गति से हम एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक पहुंचते हैं। खींचने की कोई मशीनी प्रक्रिया नहीं है। ऐसे में यदि हम किसी बिंदु से थोड़ा पीछे रह जाते हैं तो सेना के जवानों की तरह अपने हाथों से खींच-खींचकर खुद को प्लेटफार्म तक पहुंचाते हैं। तो इंस्ट्रक्टर के ओके कहने के बाद मैं आगे बढ़ा।

हारनेस से दो बेल्ट बंधी होती हैं- एक में पुली लगी होती, जिसके जरिये हम रस्सी पर बढ़ते हैं और दूसरे में अतिरिक्त सुरक्षा के लिए कैराबिनर। हाथों में मजबूत दस्ताने होते हैं। जितनी भी घबराहट होती है, वह पहले जिप के लिए शुरू करते वक्त होती है, क्योंकि अनुभव नया होता है। उसके बाद सिर्फ मजेदार रोमांच है। पहली जिप में थोड़ी हवा मिली क्योंकि वह पहाड़ी की चोटी पर ही एक सिरे से दूसरे सिरे तक है। उसकी लंबाई खासी है (350 मीटर) लेकिन सतह से ऊंचाई ज्यादा नहीं है, इसलिए जिपिंग के पहले अनुभव के लिए बिलकुल दुरुस्त है।

जिपलाइनों के रोचक नाम

फ्लाइंग फोक्स ने इन जिपलाइनों के नाम भी बड़े रोचक रखे हैं, जैसे कि पहली जिपलाइन का नाम है- टू किला स्लैमर। पहली जिप जहां उतारती हैं, वहां से दूसरे प्लेटफार्म तक थोड़ा नीचे पहाड़ी पर पैदल उतरना होता है। दूसरी जिप (वेयर ईगल्स डेयर) सबसे लंबी है, लगभग चार सौ मीटर। नीचे अरावली पहाडि़यों के बीच नीमराना फोर्ट और कस्बे के विहंगम और खूबसूरत नजारे के लिए सबसे उपयुक्त। पहली जिप के बाद मन से डर तो भाग चुका था। मजा आने लगा था। मैं अपने भीतर के फोटोग्राफर को रोक न पाया और बीच में रुककर अपने कैमरे से नीचे नीमराना फोर्ट की तस्वीरें खींचने लगा। यह यकीन हो चला था कि बेल्ट मुझे तार से लटकाए रखने में खासी सक्षम है। इसलिए एक हाथ से बेल्ट को पकड़कर अपना संतुलन बनाए रखा तो दूसरे हाथ से कैमरे को थामकर क्लिक करने लगा। एक परिंदे की नजर से नीचे का वह हवाई नजारा अद्भुत था। हालांकि उसका खामियाजा मैंने यह भुगता कि तीसरे प्लेटफार्म तक मुझे अपनी सारी ताकत लगाकर खुद को खींचकर ले जाना पड़ा। तीसरी जिप (गुडबॉय मिस्टर बॉंड) छोटी सी है, महज नब्बे मीटर, बाकी जिपलाइनों की चमक मैं आप इसे भूल ही जाएंगे। चौथी जिपलाइन (हाई एज ए काइट) भी पहली और दूसरी की तुलना में छोटी, ढाई सौ मीटर ही है लेकिन यह जिपलाइन सतह से सबसे ऊपर (बीच में लगभग सौ फुट से ज्यादा) है।

पांचवी जिपलाइन (बिग बी) 175 मीटर ही लंबी है लेकिन यह पांचों में सबसे तेज है, इतनी कि आखिरी प्लेटफार्म तक पहुंचते-पहुंचते हो सकता है आपको सामने इंस्ट्रक्टर यह इशारा करता नजर आए कि अपनी गति धीमी करें और आपको दस्ताने पहने हाथ से तार को रगड़कर ब्रेक लगाना पड़े। आखिरी प्लेटफार्म महल की ऊपरी चाहरदीवारी पर ही है। इस तरह पांचवी जिप हमें फिर से महल में पहुंचा गई। सफर जहां से शुरू हुआ था, लगभग दो घंटे में वहीं खत्म हुआ। दिल में रोमांच, नीचे जमीन और सैकड़ों फुट ऊपर परिंदों की तरह हवा में तार से लटका मैं। आजमाइए, मेरी ही तरह आपके लिए भी यह यादगार अनुभव रहेगा।

पूरी हिफाजत

यह तो अफसोस की बात है ही कि भारत में रोमांचक खेलों के नियमन के कोई नियम-कायदे बने हुए नहीं हैं। लेकिन फ्लाइंग फोक्स की जिपिंग इस तरह के रोमांच के लिए नवीनतम यूरोपीय मानकों पर खरी उतरती है। पूरे टूर की डिजाइन व निर्माण स्विस इंजीनियरों ने किया है। सभी उपकरण भी स्विट्जरलैंड व फ्रांस से आयातित हैं। संचालन का काम इस क्षेत्र में 15 साल से ज्यादा का अनुभव रखने वाले ब्रिटिश विशेषज्ञों के हाथ में है। रोज हर उपकरण की बारीकी से जांच होती है। फ्लाइंग फोक्स का कहना है कि तार तो इतना मजबूत है कि अगर इतनी बड़ी हारनेस मिल जाए तो हम हाथी तक को जिप करा सकते हैं। नीमराना में डेढ़ हजार से ज्यादा लोग अब तक इस रोमांच का मजा ले चुके हैं। फ्लाइंग फोक्स का लक्ष्य इस साल के लिए पांच हजार का है। अपनी जमी-जमाई नौकरियां छोड़कर नीमराना में इस रोमांच की नींव रखने वाले ब्रिटेन के रिचर्ड मैककेलम और जोनाथन वाल्टर अब इस अनुभव को भारत के बाकी हिस्सों में भी ले जाने की योजना बना रहे हैं।

जिप, जैप, जू…

इसके लिए नीमराना फोर्ट पैलेस पहुंचना होता है। फ्लाइंग फोक्स का बेस यहीं है। नीमराना कस्बा राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 8 पर जयपुर जाते हुए दिल्ली से 125 किलोमीटर दूर है। फोर्ट हाईवे से अंदर लगभग तीन किलोमीटर जाकर है।

14वीं सदी का नीमराना फोर्ट पैलेस एक हैरीटेज होटल है और हैरीटेज होटल के रूप में संचालित हो रही देश की सबसे पुरानी इमारतों में से एक है। दिल्ली व आसपास के लोगों के लिए यह एक वीकेंड डेस्टीनेशन के रूप में या महज दिनभर की सैर व पिकनिक के लिए भी लोकप्रिय है। दस साल से ज्यादा उम्र, 4 फुट 7 इंच से ज्यादा लंबाई, 43 इंच से कम कमर और 127 किलो से कम वजन वाला कोई भी व्यक्ति यहां जिपिंग कर सकता है।

किराया

किराया है वयस्क के लिए 1495 रुपये और बच्चों के लिए 1195 रुपये। लेकिन एडवांस बुकिंग कराने पर इसमें 15 फीसदी तक छूट मिल जाती है। इसके अलावा समूह और परिवारों के लिए टिकटों में अलग से रियायत है। एक खास बात यह भी कि फ्लाइंग फोक्स का टिकट लेने पर नीमराना फोर्ट पैलेस में प्रवेश का शुल्क नहीं लगता, जो आम तौर पर 12 साल से ज्यादा उम्र के लोगों के लिए 500 रुपये है (केवल होटल में नहीं ठहरने वालों के लिए)। आप सीधे नीमराना जाकर भी टिकट ले सकते हैं लेकिन तब सीट मिलने की गारंटी नहीं रहती।

फोर्ट से रवाना होने के बाद पांचों जिप लाइन करके वापस पहुंचने में लगभग दो से ढाई घंटे का समय लगता है। बहुत कुछ हवा, ग्रुप की संख्या और हिम्मत पर भी निर्भर करता है। एक ग्रुप में अधिकतम 10 लोग होते हैं। सामान्य दिनों में जिपिंग टूर सवेरे 9, 10 व 11 बजे और दोपहर बद 1, 2 व 3 बजे शुरू होते हैं।

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