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अमेरिका सरीखे विशाल, संसाधन संपन्न और सुव्यवस्थित देश को चंद दिनों के भ्रमण से जानना-समझना संभव नहीं, लेकिन उसका आकर्षण प्रति वर्ष दुनिया भर के लाखों लोगों को अपने यहां खींच लाता है। अमेरिका आने वाले पर्यटकों में से ज्यादातर खुद को एक या दो शहर तक ही सीमित रखते हैं या कहिए कि रख पाते हैं। इसका एक कारण यह है कि किसी भी बड़े अमेरिकी शहर को ढंग से देखने-समझने के लिए एक सप्ताह भी नाकाफी होता है और ऐसा ही एक शहर है शिकागो। यह अमेरिका का तीसरा सबसे बड़ा शहर है। जी हां, पहले नंबर पर न्यूयार्क है और दूसरे पर लास एंजिल्स, जहां पर हालीवुड भी है।
शिकागो दुनिया के उन चंद शहरों में से एक है जिसका एक उपनाम भी है। इसे विंडी सिटी के नाम से जानते हैं। विंडी मतलब हवादार। हवा तो हर जगह होती है, लेकिन शिकागो में हवा का प्रवाह कुछ ज्यादा ही उमंग भरा है। यह प्रवाह उसे मिलता है विशालकाय मिशिगन लेक से। शहर के एक किनारे स्थित यह नहर वाकई विशाल है। पहली नजर में यह समुद्र का सा आभास कराती है। यह नहर शहर को एक विशेष आभा ही नहीं प्रदान करती, बल्कि पर्यटकों का मन मोहने का काम भी करती है और यदि आपके पास पैसे यानी डालर हैं तो आप इस समुद्राकार नहर की सैर भी कर सकते हैं। पैसे न हों तो कोई बात नहीं, आप बाजार से निकलकर सड़क किनारे बस यूं ही चलते-चलते उसमें छलांग लगा सकते हैं, बशर्ते आप तैरने में माहिर हों। यह नहर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी नहर है।
शिकागो अनगिनत विशेषताएं समेटे है। यहां दुनिया का सर्वाधिक व्यस्त व्यावसायिक हवाईअड्डा है। यह विश्व के सबसे बड़े वायदा कारोबार का केंद्र है। उद्योग-व्यापार की समृद्ध विरासत के साथ-साथ शिकागो सांस्कृतिक विविधता और अपनी बेहद खूबसूरत बहुमंजिली इमारतों के लिए भी जाना जाता है। इस शहर में बहुमंजिली इमारतें जितनी ज्यादा हैं उतनी ही वे भव्य भी हैं। शायद यही कारण है कि लोग जब उन्हें निहारने निकलते हैं तो उसे कहा जाता है वास्तुशिल्पीय कौशल का दीदार। वास्तुशिल्प बोले तो इमारतों की बनावट-बुनावट, चमक-दमक, लंबाई-चौड़ाई आदि। शिकागो आने वाले सैलानी यहां की भव्य इमारतों के वास्तुशिल्प को भली भांति निहारकर मंत्रमुग्ध हो सकें, इसके लिए यहां सुविधा संपन्न प्रबंध भी किए गए हैं। इस काम में सहायक है शहर के बीचोंबीच बहने वाली शिकागो नदी, जिसके दोनों छोरों पर खड़ीं गगनचुंबी इमारतें पर्यटकों को अपनी तारीफ में कुछ कहने के लिए बरबस प्रेरित कर देती हैं।
सियर्स टावर
शिकागो में विश्व की पहली गगनचुंबी इमारत का निर्माण 1883 में हुआ था। दुनिया की सबसे ऊंची 16 इमारतों में से चार शिकागो में हैं और जिसकी महिमा सबसे अधिक है उसे सियर्स टावर के रूप में जाना जाता है। 110 मंजिली इस इमारत के पास 20 साल तक दुनिया की सबसे ऊंची बिल्डिंग होने का खिताब रहा है। अब सियर्स टावर की भव्यता को भुला देने वाली अनेक आलीशान इमारतें खड़ी हो चुकी हैं। उनकी संख्या और भव्यता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि शिकागो नदी में तेजी से दौड़ते क्रूज में बैठकर भी उन्हें निहारने में करीब दो घंटे लग जाते हैं। यद्यपि क्रूज में तैनात गाइड यह बताते चलते हैं कि कौन सी इमारत कब, कैसे और किसके द्वारा बनी और उसकी खासियत क्या है, लेकिन यदि आप उनकी शुद्ध अमेरिकन अंग्रेजी से ज्ञानार्जित होने की कोशिश करेंगे तो फिर शायद भव्य इमारतों की भव्यता का अहसास करने से रह जाएंगे। जब आप क्रूज में बैठकर नदी की सैर करने लगें तो इधर-उधर देखने के बजाय जाते समय एक तरफ की और आते समय दूसरी तरफ की इमारतें देखें, अन्यथा आप इधर-उधर करते रह जाएंगे।
चप्पू वाली नाव
क्रूज की भीड़ से बचना चाहते हों तो चप्पू वाली नाव किराए पर लेकर खुद नदी की सैर करने निकल सकते हैं। चूंकि ऐसा कम लोग ही करते हैं इसलिए वे आकर्षण का केंद्र बन जाते हैं और हर कोई उन्हें टाटा-बाय-बाय करने की कोशिश करता है, यहां तक कि पुलों से गुजरते लोग भी। इस नदी की सैर करते समय आप को कुछ ऐसी इमारतें भी दिख जाती हैं जहां चार-पांच मंजिलों तक सिर्फ कारें-कारें ही नजर आती हैं। शिकागो की भव्यता नहर तट और नदी के मध्य से निहारने के बाद बारी आती है कुछ ऐसे स्थलों की जहां आप अपने हिसाब से चहलकदमी कर सकें। ऐसे किसी स्थान की सूची में आमतौर पहले स्थान पर दर्ज होता है 2004 में बनकर तैयार हुआ मिलेनियम पार्क। जब यह बन रहा था तो उसकी काफी आलोचना हो रही थी, लेकिन अब तो वह सबको अपनी ओर खींचता है। करीब 24 एकड़ में बने इस पार्क के हर कोने में कुछ न कुछ देखने और चकित कर देने लायक है। सांझ को इसकी छटा देखते ही बनती है, क्योंकि तब यह रोशनी से जगमग हो जाता है। इस पार्क में भारतीय मूल के कलाकार अनीस कपूर द्वारा डिजाइन किया गया एक गुंबद जैसा चमकीला ढांचा है, जिसे लोग बीन के नाम से भी जानते हैं। इसमें आस-पास की सभी इमारतें प्रतिबिंबित होती हैं।
मिलेनियम पार्क
मिलेनियम पार्क सरीखे मोहित कर देने वाले स्थलों की यहां कमी नहीं। आप जहां जाइएगा वहां कुछ न कुछ अद्भुत पाइएगा। यह आप पर निर्भर करता है कि आप क्या देखना चाहते हैं, लेकिन यदि शिकागो आए हैं तो यहां के ढेरों संग्रहालयों, मछलीघरों, चिडि़याघर और कला दीर्घाओं में से अपनी पसंद का कुछ तो देख ही लें। ये स्थल आप के सामान्य ज्ञान में वृद्धि करने के साथ आपको यह भी बताएंगे कि अमेरिकियों ने सब कुछ कैसे साफ-सुथरा और व्यवस्थित कर रखा है। यहां का शेड एक्वेरियम इसलिए खूब ख्यातिप्राप्त है, क्योंकि वह विश्व में सबसे बड़ा है। यहां दुनिया के हर हिस्से में पाई जाने वाली मछलियां हैं। हमने देखी तो नहीं, लेकिन एक गाइड बुक में लिखा था कि वहां एक व्हेल भी है। यदि आप किस्म-किस्म के पार्क, बगीचे, संग्रहालय, ऐतिहासिक स्थल वगैरह नहीं देखना चाहते तो थियेटर, क्लब वगैरह जा सकते हैं। यहां तीन तरह के हैं थियटेर हैं: कामेडी, ड्रामा और संगीत आधारित। हमने कामेडी आधारित ब्लू मैन ग्रुप का थ्री ब्लू मेन देखना पसंद किया, क्योंकि जून महीने में उसकी ही वहां धूम मची हुई थी। यह चौंकाने, हंसाने और हंसी से लोटपोट करने वाला एक नाटकीय मंचन है। इसका एकमात्र उद्देश्य लोगों का मनोरंजन करना है। इसमें कलाकारों के अभिनय के साथ विजुअल प्रभाव का भी समावेश है। इसके अतिरिक्त बीचबीच में दर्शकों की भी भागीदारी होती रहती है। इस नाटक ने मनोरंजन की पूरी खुराक देने के साथ यह भी बताया कि अमेरिका में थियेटर में कितने अद्भुत प्रयोग करके लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया जा रहा है।
नाइट क्लब की सैर
शिकागो में हर सप्ताह कोई न कोई उत्सव, मेला, परेड, शो आदि का आयोजन होता ही रहता है। ऐसा माहौल यहां आने वाले सैलानियों को खोजी और साहसी बना देता है। हमारे समूह में शामिल दो पाकिस्तानी युवतियों ने हिचक तोड़कर थोड़ा साहस जुटाया और एक रात नाइट क्लब की सैर कर आई। वैसा ऐसा कोई साहस दिखाने के पहले यह पता कर लेना जरूरी है कि आप जहां जा रहे हैं वह इलाका सुरक्षित है या नहीं। कोई कहीं भी जाए, वह जल-थल के नयनाभिराम स्थल देखने और हाट-बाजार का मुआयना करने के साथ-साथ दो काम अवश्य करता है-एक तो पेट-पूजा और दूसरे खरीददारी। शिकागो में करीब-करीब दुनिया के हर देश का खाना मिलता है। इसमें अचरज की कोई बात नहीं, क्योंकि यहां दुनिया के लगभग हर देश के लोग भी तो रहते हैं। कुछ देशों के लोग तो बड़ी संख्या में हैं। बतौर उदाहरण पोलिश लोग वारसा (पोलैंड) के बाद सबसे अधिक संख्या में यहीं हैं। निस्संदेह भारतीय भी मिल जाएंगे- यहां रहने वाले भी और घूमने वाले भी और इसी कारण किसी रेडियो से शुद्ध हिंदी में निकलती यह आवाज भी सुनने को मिल सकती है. देखो, सुनो, सीखो, खोजो..।
दरअसल यहां के रेडियो स्टेशन ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपना श्रोता बनाने के लिए अलग-अलग भाषाओं में जुमले उछालते रहते हैं। अभी हाल में हिंदी, उर्दू, मलयालम को अपनाया है शिकागो पब्लिक रेडियो ने, लेकिन.. हम बात कर रहे थे पेट-पूजा की। यह तो आप जान ही गए हैं कि शिकागो में हर देश का भोजन मिलता है, लेकिन यदि भारतीय भोजन की तलाश में हैं तो यहां कम से कम पांच ठिकाने हैं, जिनमें सबसे बड़े नाम वाला है इंडिया हाउस। बिलकुल अपने देश जैसा और वैसी ही सुगंध और स्वाद वाला खाना खाने के लिए यहां आपको कम से कम 20 डालर खर्च करने पड़ेंगे। यह बस थोड़ा सा ही महंगा है, लेकिन खाने के बाद आपको पैसे वसूल हो गए..वाला अहसास अवश्य होगा। आम तौर पर अमेरिकी शहरों में भारतीय खाना 10-12 डालर में मिल जाता है, लेकिन कई बार आपको उनकी तलाश में दूर तक जाना पड़ सकता है। अमेरिका में भोजन अपेक्षाकृत सस्ता है। आप चार-पांच डालर में अपना काम चला सकते हैं। पानी तो आपको खरीदकर ही पीना पड़ेगा। खास बात यह कि कोक-पेप्सी के मुकाबले पानी महंगा है।
खान-पान
यदि आप किस्म-किस्म का खाना खाने वाले प्राणी हैं, शाकाहारी हैं और यह भी मानते हैं कि विदेश में भी अपने देश का खाना खाने का क्या तुक तो नेक सलाह यही है कि थाई या चीनी भोजनालय जाएं, नहीं तो यह भी हो सकता है कि आप खुद को घास-फूस जैसा कुछ खाते हुए पाएं और बाद में पछताएं। सैर-सपाटे और खान-पान के बाद अब कुछ खरीददारी भी कर लें। अमेरिका के हर बड़े शहर की तरह शिकागो में रिटेल स्टोर्स और खासकर सीवीएस फार्मेसी की बहुतायत है। नहीं यह दवाई की दुकान नहीं, बल्कि खुदरा सामान बेचने वाली चेन है। सीवीएस स्टोर्स में आपको हर जरूरत का सामान मिल जाएगा, लेकिन आप कुछ खास खरीदने की कोशिश में होंगे इसलिए बड़े-बड़े शापिंग माल्स में जाने में हर्ज नहीं। शिकागो में ऐसे अनेक मशहूर ठिकाने हैं। इनमें से एक वाटर टावर प्लेस में हमें जाने का अवसर मिला। यह पानी में नहीं है। बस सीढि़यों किनारे पानी के फव्वारे हैं, जिनसे रह-रह कर बुलबले इस तरह निकलते हैं जैसे बर्फ के गोले हों। लोग उन्हें पकड़ने की कोशिश करते हैं और अपना हाथ गीला कर बैठते हैं। आप भी ऐसा कर सकते हैं-कोई रोक-टोक नहीं है।
वाटर टावर प्लेस आठ मंजिला है और लिफ्ट की सुविधा से लैस है। यहां आपको बहुत कुछ खरीदने का मन करेगा, लेकिन करीब-करीब हर सामान के टैग में मेड इन चाइना लिखा दिखता है। यदि मेड इन चाइना नहीं लिखा होगा तो मलेशिया, थाईलैंड मिलेगा। अब कुछ वस्तुओं में मेड इन इंडिया के लेबल भी मिल जाते हैं। ये लेबल गर्व की अनुभूति कराते हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या अमेरिका से इंडिया का माल लेकर इंडिया आएंगे? आप ले आ सकते हैं, क्योंकि उनकी गुणवत्ता बेहतर होगी। यदि आपको कहीं सेल का बोर्ड लगा दिख जाए तो संकोच छोड़कर मोल-भाव भी कर सकते हैं। शिकागो में थोड़ी-बहुत सैर पैदल भी की जा सकती है, लेकिन टैक्सी, बस और भूमिगत रेलसेवा का अपना ही आकर्षण है। टैक्सी महंगी पड़ती है, खासकर इसलिए कि उनके चालकों को टिप भी देनी पड़ती है। शिकागो आपकी यादों में बसा रहे, इसके लिए ज्यादा से ज्यादा ठिकानों पर जाने से बेहतर है जहां भी जाएं वहां पूरा समय बिताएं।
स्थानीय भाषा में शिकागो का एक मतलब यह भी है-शी-का-गु यानी बदबूदार प्याज वाला इलाका। तीस लाख की आबादी और 228 वर्ग मील वाला शिकागो जिपर की खोज करने के लिए जाना जाता है। दुनिया की पहली बहुमंजिली इमारत यहीं बनी। इसी तरह पहला नियंत्रित परमाणु रियेक्शन यहीं किया गया। 1871 में भयानक आग (इसे ग्रेट शिकागो फायर भी कहते हैं) में एक तिहाई शहर नष्ट हो गया था। शिकागो ग्रीनविच मीन टाइम से छह घंटे पीछे है।
अमेरिका में ट्रैफिक तो दाएं चलता ही है, लोग भी फुटपाथ, पार्को और अन्य स्थलों पर दाएं ही चलते हैं। इस कारण कृपया बाएं चलें नियम का पालन करने वाले देशों के लोग अक्सर अमेरिकियों से आमना-सामना करते नजर आते हैं। किलोमीटर की जगह मील का चलन है। बिजली के स्विच नीचे करने पर आफ होते हैं और ऊपर करने पर आन। यहां पिन वाले इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, जैसे कि मोबाइल चार्जर का इस्तेमाल तभी संभव है जब अमेरिकी एडाप्टर का उपयोग किया जाए। करीब-करीब हर वस्तु कुछ डालर के साथ 95 या 75 सेंट में मिलती है, जैसे 4.95 डालर या 25.75 डालर। इसलिए नन्हे से सेंट का बड़ा महत्व है। करीब-करीब हर सामग्री की खरीद में सर्विस टैक्स देना पड़ता है और टैक्सी ड्राइवरों को कुल किराए की 15 प्रतिशत टिप। हर जगह लोग क्यू में रहते हैं, यहां तक कि सड़क पार करते हुए भी। ज्यादातर जगहों, यहां तक कि घरों में भी चाय-नाश्ता या भोजन परोसने की परिपाटी नहीं है। ग्राहक हो या मेहमान, उसे खुद ही कष्ट उठाना पड़ता है। अधिकांश होटलों और इमारतों में 13 नंबर के कमरे नहीं होते। यहां तक कि 13वीं मंजिल को भी कोई और संख्या दी जाती है।