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मुझे भारतीय पर्यटन स्थलों में दार्जीलिंग बेहद पसंद है, तो विदेश में स्विट्जरलैंड। मेरी सोच के अनुसार पर्यटन का मतलब है घूमना, थोड़ी फुर्सत निकालकर रोजमर्रा की जिंदगी से कहीं दूर जाना। इसलिए जगह ऐसी होनी चाहिए जहां आप प्रकृति का नजारा लें सके, थोड़ा सुकून भी महसूस कर सकें। मैं अपने परिवार के साथ कुछेक साल पहले स्विट्जरलैंड गई थी, और फिर कई बार जाना हुआ। हमारी फिल्मी दुनिया के लोग भी बार-बार वहां क्यों जाते है, यह मुझे यहां की खूबसूरती देखकर ही पता चला। बहरहाल यदि मैं अपने भारतीय पर्यटन स्थल दार्जीलिंग की बात करूं तो मैं वाकई इसकी दीवानी हूं। मुझे यहां का खुशनुमा मौसम बड़ा नोस्टालजिक बना देता है.. मॉम (अभिनेत्री शर्मिला टैगोर) की यादगार फिल्म मौसम की बरबस याद आ जाती है। दार्जीलिंग मैं जब भी गई सिलीगुड़ी से लेकर दार्जीलिंग तक का सफर मैंने सड़क से ही किया है।
हालांकि दार्जीलिंग के लिए छोटी लाइन की रेलगाड़ी का सफर भी बेहद मजेदार है। सड़क के साथ-साथ, कभी उसके ऊपर, कभी उसके नीचे चलती ट्रेन लोगों को बहुत आकर्षित करती है। खूब आनंद उठाया मैंने वहां की प्रकृति का। आसमानों को छूते पहाड़, बर्फीली वादियां, जमीं पर उतरने का सा आभास देने वाले बादल. सुंदर, रंग-बिरंगे फूल, आकाश से होड़ लेने वाले पेड़-पौधे.. वहां की हसीन वादियों और खूबसूरती का मैं जितना वर्णन करूं मेरे अल्फाज कम पड़ जाएंगे। वहां का सूर्योदय देखने के लिए तो लोग उमड़ते हैं। नीचे से सूरज को निकलते देखने का वह दृश्य अद्भुत होता है। रोज तड़के मुंह अंधेरे ही सनराइज प्वाइंट तक पर्यटकों की रेस लगती है ताकि वे सबसे बढि़या लोकेशन से सूर्योदय देख सकें। मुझे तो वहां के छोटे-छोटे बच्चे भी बेहद प्यारे लगते है- लाल टमाटर की तरह उनके गाल, गोरे-गोरे और हमेशा मुस्कुराने वाले.. वहां का जीवन फुल ऑफ लाइफ है. स्थानीय लोग भी बड़े सीधे-साधे हैं। यहां की जिंदगी भागती नहीं, अहसास दिलाती है कि आपको अभी बहुत कुछ करना है..। फिर क्यों न होगा ऐसी जगह से प्यार?