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झारखंड के देवघर जिले में स्थित विश्वप्रसिद्ध बैद्यनाथ मंदिर स्थापत्य कला की दृष्टि से देश के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। पत्थरों से निर्मित इस मंदिर के शिखर पर स्वर्ण कलश है और कलश पर पंचशूल। मंदिर के गुंबद के भीतरी तल में अष्टदल कमल अंकित है।
इसमें चन्द्रकांत मणि जड़ा हुआ है। हर साल सावन के महीने में शिवभक्त कांवरिये सुल्तानगंज से गंगा का पावन जल कांवर में भरकर 105 किमी की यात्रा पैदल तय कर देवघर स्थित रावणेश्वर बैद्यनाथ धाम पहुंचते हैं और वहां पूरी श्रद्धा के साथ बाबा का जलाभिषेक करते हैं। पूरे रास्ते वे निरंतर बोलबम का मंत्रोच्चार करते हैं।
जलाभिषेक
मासव्यापी श्रावणी महोत्सव में प्रतिदिन लाखों श्रद्धालु बाबा का जलाभिषेक करते हैं। भक्ति की अविरल धारा अजगैबी नाथ से बाबा बैद्यनाथ मंदिर तक बहती रहती है।
यहां प्रतिष्ठित रावणेश्वर बैद्यनाथ द्वादश ज्योतिर्लिगों में एक हैं। इस नगरी को शाक्ततीर्थ भी माना जाता है। इसके आसपास कई अन्य पर्यटनस्थल भी हैं। जहां सैलानियों का जमघट साल भर लगा रहता है। सन 1934 में नौ लाख की लागत से बना नवलखा मंदिर कला एवं स्थापत्य का बेजोड़ नमूना है।
तपोवन
बैद्यनाथधाम के पंचकोशी क्षेत्र में स्थित तपोवन भी महत्वपूर्ण तीर्थ है। यहां कई सिद्ध पुरूषों ने तप करके सिद्धि प्राप्त की है। यहां कई देवी-देवताओं के मंदिर एवं गुफाएं हैं। तपोवन पहाड़ पर सबसे पहले बालानंद जी की अखंड धूनी है। उसके सामने भगवान शिव और मां दुर्गा के मंदिर हैं। सबसे ऊपर बालानंद महाराज का मंदिर और उनकी तपस्थली गुफा है। पर्वत के उत्तरी भाग में एक विशाल चट्टान है, जो बीचोंबीच फटी हुई है। उसके मध्य में बजरंगबली की आकृति दिखती है। यहां प्रतिवर्ष मकर संक्रांति पर हनुमान जी की पूजा बड़ी धूमधाम से की जाती है।