हाथी, श्रीलंका का साथी

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कहा जाता है कि छोटे द्वीपों पर बड़े जानवर नहीं होते, लेकिन यह बात शायद हाथियों को कोई बताना भूल गया। आखिर हाथी धरती का सबसे बड़ा जानवर जो है। लेकिन छोटे से द्वीप श्रीलंका [यहां की आबादी दो करोड़ दो लाख से थोड़ी ही ज्यादा होगी। हमारे यहां 17 राज्यों की आबादी इससे ज्यादा है] में न केवल हाथी हैं बल्कि बहुतायत में हैं। श्रीलंका जाने से पहले ही वहां के हाथियों के बारे में काफी कुछ सुन रखा था। खास तौर पर पिन्नावाला कैंप के बारे में, जो हाथियों का अनाथालय कहा जाता है। श्रीलंका में कई नेशनल पार्क हैं जिनमें से ज्यादातर में हाथियों को आसानी से देखा जा सकता है। श्रीलंकाई हाथी एशियाई हाथी की ही श्रेणी में हैं लेकिन उनमें सबसे बड़े आकार के। अफ्रीकी हाथियों की दो ही किस्में श्रीलंकाई हाथियों से बड़ी हैं।

हाथियों की शरणगाह पिन्नावाला

दुखियारे हाथियों की शरणगाह पिन्नावाला में शिशु हाथियों के बोतल से दूध पीने का दृश्य वाकई विस्मित कर देने वाला था। पिन्नावाला को इसीलिए श्रीलंका का दूसरा सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थल माना जाता है। पिन्नावाला हाथी कैंप श्रीलंका की मौजूदा राजधानी कोलंबो से श्रीलंका की प्राचीन राजधानी कैंडी के बीच रास्ते में केगाला शहर के उत्तर-पश्चिम में स्थित है। पिन्नावाला मुसीबत के मारे हाथियों की शरणगाह है। इसमें आम तौर पर वो हाथी रखे जाते हैं जो किसी हादसे का शिकार हो जख्मी हो गए या अन्य किसी वजह से अपंग हो गए या ऐसे शिशु हाथी जिनकी मां से उनका साथ छूट गया हो। श्रीलंका में गृहयुद्ध का शिकार हुए कई हाथी भी यहां हैं।

अनाथ हाथियों से शुरू कैंप

इस कैंप को 1975 में सात अनाथ हाथियों से शुरू किया गया था जिनमें से कई के पोते अब यहां हैं। इस समय यहां हाथियों की संख्या लगभग अस्सी है। यहां लाए जाने वाले हाथियों को फिर से जंगल में नहीं छोड़ा जाता। इनकी बाकी जिंदगी पालतू हाथियों की तरह रहती है। पिन्नावाला एशियाई हाथियों के प्रजनन का भी बड़ा केंद्र है। सैलानियों के लिए यह कैंप सवेरे साढ़े आठ बजे से शाम छह बजे तक खुला रहता है।

पर्यटकों को रिझाने के लिए यहां के हाथियों का एक खास रुटीन भी बनाया गया है जिसमें दिन में दो बार [सवेरे 10 बजे और दोपहर में दो बजे] दो-दो घंटे के लिए कैंप से नदी में नहाने जाना और दिन में तीन बार [सवेरे सवा नौ बजे, दोपहर सवा बजे और शाम पांच बजे] शिशु हाथियों को बोतल से दूध पिलाना शामिल है। ज्यादातर सैलानी इसे देखने ही कैंप पहुंचते हैं। नदी में नहाने का मुकर्रर वक्त खत्म होते ही बजने वाले सायरन को सुनकर हाथियों का कैंप की तरफ दौड़ लगा देने का नजारा देखते ही बनता है। कैंप के पास रिजॉर्ट व रेस्तरां भी हैं। सैलानियों की आवक के चलते अच्छा-खासा बाजार भी बन गया है।

हाथियों का मेला

पिन्नावाला के उलट श्रीलंका के उत्तर-मध्य प्रांत में मिन्नेरिया झील के तट पर हर साल जंगली एशियाई हाथियों को दुनिया में सबसे बड़ा मेला लगता है। ऐसा नजारा दुनिया में कहीं और बमुश्किल ही मिलेगा। खास बात यह कि यह मेला इंसानी दखल से नहीं बल्कि मौसम चक्र की मार से लगता है। बारिश खत्म होने के बाद जब बाकी जगहों पर पानी का संकट होने लगता है तो ज्यादातर हाथी भोजन व पानी की तलाश में निकल पड़ते हैं। मिन्नेरिया झील का भराव भी सिकुड़ने लगता है लेकिन नीचे से हरियाली फूट पड़ती है। हाथी इसी लोभ में वहां जुटते हैं। जमावड़ा जुलाई के मध्य से शुरू होने लगता है और अक्टूबर के मध्य तक चलता है। अगस्त व सितंबर के महीनों में इनकी संख्या सबसे ज्यादा होती है और यह तीन सौ के पार तक पहुंच जाती है। दूरदराज वास्गोमुवा व त्रिंकोमाली के जंगलों से भी हाथी यहां पहुंचते हैं। अक्टूबर के बाद वे सभी फिर से अपने-अपने इलाकों में लौट जाते हैं।

मिन्नेरिया झील के तट पर हाथियों की चहलकदमी

हाथियों के झुंड का नजारा होता बड़ा जबरदस्त है। यहां मातृसत्ता चलती है। बुजुर्ग मादा हाथी आगे-आगे, बच्चे बीच में और बाकी वयस्क हाथी उनको घेरे हुए, उनकी हिफाजत में। भोजन, पानी, छाया और साथी की तलाश में नातेदार हाथी झुंड में जुड़ते जाते हैं। छोटे-छोटे झुंड मिलकर बड़ा दल बना लेते हैं। हाथी परिवार में बस मां व बच्चा होते हैं। पिता की भूमिका सिर्फ प्रजनन करने की है। इसलिए नर हाथी मुक्त घूमते रहते हैं, अपनी सूंड से साथ की इच्छुक मादा हाथी को सूंघते हुए। नर हाथियों को वयस्क होते ही झुंड से निकाल दिया जाता है। मिन्नेरिया झील के मेले में कई परिचित हाथी सालभर बाद एक-दूसरे से मुलाकात करते हैं। नर हाथी अपना सिक्का चलाने की जुगत में रहते हैं तो शिशु हाथी एक-दूसरे के साथ खेलने में वक्त बिताते हैं। लगता है मानो हम किसी इंसानी मेल-मिलाप की बात कर रहे हों।

एशियाई हाथी आम तौर पर छाया पसंद करते हैं। झील के आसपास घना जंगल है जो दिन में धूप की तेजी से हाथियों को छाया देता है। शाम होते-होते हाथी जंगल से बाहर निकल आते हैं। मिन्नेरिया की झील तीसरी सदी ईसा पूर्व में राजा महासेन द्वारा निर्मित की गई बताई जाती है। पूर्वोत्तर मानसून के दौरान यह भर जाती है और फिर धीरे-धीरे इसका पानी उतरने लगता है। लेकिन झील में थोड़ा पानी हमेशा बना रहता है। कभी-कभी यह झुंड निकट के ही कौदुल्ला नेशनल पार्क में भी चला जाता है।

खास बातें

मिन्नेरिया श्रीलंका में सांस्कृतिक व पुरातात्विक दृष्टि से सबसे संपन्न इलाके में स्थित है।

अनुराधापुर व पोलोन्नारुवा के प्राचीन शहर, सिगिरिया में कस्यापा का चट्टानी किला, दाम्बुला का गोल्डन रॉक मंदिर- सब आसपास हैं। एक-डेढ़ दिन में इन सबका नजारा लिया जा सकता है।

जिन्हें जंगलों व संस्कृति में ज्यादा रुचि है, वे रितिगाला पुरातात्विक व वन रिजर्व की भी सैर कर सकते हैं।

श्रीलंका के कई बेहतरीन होटल मिन्नेरिया से महज आधे घंटे के सफर पर स्थित हैं। ठहरने के अलावा पार्क में प्रवेश के शुल्क, जीप सफारी वगैरह का भी इंतजाम कर लें। पार्क में सिर्फ चौपहिया वाहन से ही घूमा जा सकता है।

स्थानीय गाइड आपको यह बता सकेंगे कि हाथियों का मेला ठीक-ठीक किस स्थान पर लगा हुआ है। अपना कार्यक्रम उसी हिसाब से लचीला बनाए रखें।

मिन्नेरिया झील प्रवासी पक्षियों व जलचरों के लिए भी बहुत लोकप्रिय है। सुबह-शाम झील के ऊपर इनकी रौनक देखी जा सकती है। नेशनल पार्क में सांभर व हिरण भी हैं।

मिन्नेरिया श्रीलंका की राजधानी कोलंबो से 182 किलोमीटर दूर है। हबराना होते हुए पोलोन्नारुवा जाने के मुख्य मार्ग पर अम्बागेसवेवा में नेशनल पार्क का मुख्य प्रवेश द्वार है। सड़क मार्ग के अलावा मिन्नेरिया में हवाई अड्डा भी है जहां कोलंबो से उड़ानभर कर पहुंचा जा सकता है। पोलोन्नारुवा के लिए कोलंबो से सीधी ट्रेन भी है।

हाथियों से जुड़ी जिंदगी

हर साल जुलाई के आखिर से अगस्त की शुरुआत तक लगभग एक हफ्ते कैंडी पेराहेरा होता है। इसे सजे-धजे हाथियों की शोभायात्रा भी कहा जा सकता है। लेकिन इसे केवल हाथियों की शोभायात्रा न कहकर श्रीलंका की बौद्ध संस्कृति की झलक कहा जाए तो बेहतर होगा। श्रीलंका में कैसे हाथी व इंसान एक दूसरे की जिंदगियों से जुड़े हैं, यह उसकी बानगी है।

श्रीलंका का जनजीवन कैसे हाथियों से जुड़ा है इसकी एक और बानगी हाथी के मल से बनने वाले कागज के रूप में देखी जा सकती है। इस कागज का यहां बड़ा उद्योग है और श्रीलंका से सैलानियों द्वारा ले जाए जाने वाले तोहफों में चाय के बाद अगला नंबर ऐलीफेंट डंग पेपर से बनी चीजों का है। ये आपको श्रीलंका में हर पर्यटन स्थल व डिपार्टमेंटल स्टोर तक में मिल जाएंगी।

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