पक्षियों के कलरव से गुलजार घना पार्क

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राजस्थान में भरतपुर स्थित केवलादेव घना राष्ट्रीय पार्क विश्व के अति सुंदर पक्षी विहारों में से एक है। 1981 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित होने से पहले यह अभ्यारण्य था। 29 वर्ग किमी में फैले इस पार्क में कम गहरी झीलें तथा जंगल हैं, जिनका सौंदर्य देखते ही बनता है। देशी तथा विदेशी पक्षियों की इस सैरगाह में 350 से भी अधिक दुर्लभ प्रजातियों के पक्षी शरण लेते हैं, जिनमें एक-तिहाई प्रजातियां प्रवासी पक्षियों की हैं। इनमें से अधिकतर मेहमान, करीब छह हजार किमी से अधिक दूरी तय करके साइबेरिया और मध्य एशिया के देशों से शीतकाल के प्रारंभ में आते हैं और अप्रैल में अपने मूल स्थान को वापस लौट जाते हैं। यद्यपि भारत के अन्य स्थानों से यहां आने वाले पक्षी वर्षा ऋतु के बाद पहुंचने लगते हैं। पंक्तिबद्ध समूहों में उड़ते हुए ये पक्षी आकाश में इधर-उधर दिखाई देते रहते हैं।

लगभग 120 प्रजातियों के पक्षी यहां घोंसले बनाकर वंशवृद्धि करते हैं। दस हजार से अधिक घोंसले और 20 से 30 हजार तक नए जन्मे पक्षी यहां देखे गए हैं। पक्षियों के प्रजनन के लिए घना पार्क विश्वभर में सबसे अच्छा माना गया है। कई प्रकार के सारस, दुर्लभ साइबेरियन क्रेन, पेंटेड स्टॉर्क, ग्रे हेरौन, ओपन बिल, स्पून बिल, सफेद इबिस, बगुला, जलकौआ, जलमुर्ग, दलदल में रहने वाले जंगली मुर्गे-मुर्गियां, किंगफिशर, जंगली हरा कबूतर, नीलकंठ कई तरह की बत्तखें, हंस, चील, बाज, क्रेस्टेड सरपेंट ईगल आदि पक्षी यहां स्वच्छंद उड़ते और जल में विचरण करते मिलते हैं। अन्य जानवर भी यहां बड़ी संख्या में हैं, जैसे चीतल, सांभर, नीलगाय, ऊदबिलाव, जंगली सूअर, काला हिरण आदि। वन विभाग का कहना है कि पार्क के एक क्षेत्र में बाघ भी देखा गया है जिसकी चेतावनी पार्क में जाने वाले सैलानियों को दी जाती है। यद्यपि यह क्षेत्र जंगल के एक कोने पर काफी दूर बताया जाता है। चट्टानों में रहने वाले अजगर अकसर देखे जा सकते हैं जो कभी खुले मैदान में और कभी पेड़ों पर चढ़कर धूप सेंकते हैं।

रोचक है इतिहास

वास्तव में आज के घना पार्क का इतिहास बड़ा रोचक और अन्य राष्ट्रीय पार्को से भिन्न है। 19वीं शताब्दी के अंतिम दशक में भरतपुर के महाराजा ने स्वयं इस क्षेत्र का विकास किया। इससे पहले यहां बंजर भूमि और जंगल ही थे। ऊंची-नीची तथा गढ्डों वाली पार्क की भूमि में वर्षा का पानी इकट्ठा हो जाता था और बड़ी संख्या में जंगली मुर्ग यहां डेरा डालते थे तथा पानी सूखने तक यहीं रहते थे। राज घराने के लोगों ने इस क्षेत्र के समीप बहने वाली गंभीर नदी से लाई गई नहर से यहां की झीलों में पानी पहुंचाने का प्रबंध किया। फिर क्या था। अनेक पक्षी और जानवर इस पार्क की ओर आकर्षित होने लगे। तत्कालीन महाराज और उनके अंग्रेज मित्र शिकार करने के लिए घना में डेरा डाले रहते थे। वर्षो तक यह सिलसिला चलता रहा। आखिर 1956 में इस क्षेत्र को अभ्यारण्य घोषित किया गया, जहां पक्षियों तथा जानवरों को सुरक्षा मिली। 1964 तक इस जंगल में वीआईपी लोग आखेट करते रहे। स्वयं महाराजा ने 1972 तक शिकार करने का अधिकार अपने पास रखा। 1981 में घना क्षेत्र को राष्ट्रीय उद्यान बना दिया गया। केवलादेव नाम का प्राचीन शिव मंदिर पार्क के मध्य में स्थित है जो स्थानीय लोगों की श्रद्धा का प्रतीक है। इसीलिए उद्यान का नाम केवलादेव घना राष्ट्रीय पार्क, भरतपुर रखा गया। पर्यावरण की दृष्टि से यह पार्क ऐसा विकसित हुआ कि 1985 में यूनेस्को ने विश्व की अमूल्य धरोहरों की सूची में इसे नामांकित कर दिया।

झाडि़यों में छिपकर देखते हैं पक्षी

समुद्रतल से 1214 फुट की ऊंचाई पर स्थित केवलादेव घना गीली मिट्टी और दलदल वाली भूमि के लिए प्रसिद्ध है। उत्तर पूर्व से उत्तर पश्चिम की ओर बहने वाली नहर पार्क को दो हिस्सों में बांटती है। जंगल में बबूल के पेड़ बहुतायत में हैं परंतु बेर, खजूर, कदम्ब और खेजरी आदि वृक्ष भी यहां खूब हैं। कई तरह की झाडि़यां और तरह-तरह की घास न केवल जंगल के सौंदर्य को बढ़ाती हैं, बल्कि पक्षियों और जानवरों को भोजन भी उपलब्ध कराती हैं। इनके पीछे छिपकर पक्षीप्रेमी पक्षियों को समीप जाकर देखते हैं।    पार्क में पक्षियों को देखने के लिए अंदर बने मार्गो से जाया जा सकता है। जलमार्ग से किश्ती में बैठकर पक्षियों को और भी समीप से देखा जा सकता है। प्रात:काल में इनका कलरव किसी ऊंचे स्वर में बजते संगीत से कम नहीं। सुबह और शाम दोनों समय पर्यटक इस संगीत का भरपूर आनंद लेते हैं।

घना पार्क के 10 वर्ग किमी क्षेत्र में 400 से 500 मिलियन क्यूबिक फीट पानी प्रतिवर्ष भरा जाता है। यह पानी घना के समीप बहने वाली गंभीर नदी से पांचना बांध के रास्ते जंगल में पहुंचाया जाता है। पिछले सौ वर्षो से यही क्रम चलता आ रहा है। बहते पानी के साथ नन्हीं मछलियां भी पार्क में आ जाती हैं तथा असंख्य सूक्ष्म प्राणी भी यहां पनपते हैं। इन्हीं को अपना भोजन बनाने के लिए देश के अन्य स्थानों से वर्षा ऋतु के बाद कई सारस प्रजातियां पार्क में डेरा डालने आती हैं तथा प्रजनन करती हैं। कुछ अन्य प्रजातियां भी इसी दौरान यहां वंशवृद्धि करती हैं। अक्टूबर मास से दुर्लभ साइबेरियन क्रेन्स आने लगते हैं। ये पक्षी शाकाहारी होते हैं। अक्टूबर तक पानी में घास पात व अन्य वनस्पतियां तैयार हो चुकी होती हैं जो इनका मुख्य भोजन हैं।

यही तो मौसम है

दिल्ली से लगभग 175 किमी तथा आगरा से केवल 50 किमी की दूरी पर स्थित घना राष्ट्रीय पार्क में सितंबर मास से मार्च तक सबसे अधिक सैलानी और पक्षी प्रेमी आते हैं। यूं तो यह पार्क वर्षभर खुला रहता है। प्रकृतिप्रेमियों को यह आगरा के ताजमहल से अधिक प्रिय और आकर्षित करने वाला लगता है। शीतकाल में यहां का तापमान 5 डिग्री सेल्सियस तक नीचे आ जाता है और ग्रीष्मकाल में तापमान 44 से 45 डिग्री सेल्सियस या इससे भी अधिक हो जाता है।

आगरा से निकट

सड़क, रेल और हवाई, तीनों मार्गो से घना पार्क पहुंचा जा सकता है। समीप का हवाई अड्डा आगरा में हैं। आगरा हवाई अड्डे से घना के लिए प्राइवेट टैक्सियां, कारें और बसें हमेशा उपलब्ध रहती हैं। भरतपुर शहर से मात्र एक किमी की दूरी पर होने से इस पार्क को देखने के लिए आने वाले पर्यटक शहर और पार्क के बाहर बने होटलों में आराम से ठहर सकते हैं। जंगल के अंदर भी फॉरेस्ट लॉज तथा अशोक ग्रुप का होटल है।

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