बंगाल में काली पूजा

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बंगाल में यह पर्व काली पूजा से संबद्ध है। दुर्गापूजा के समान ही सुंदर पंडालों में मां काली की प्रतिमा स्थापित की जाती है। वैसे तो धनतेरस से ही पूजा शुरू हो जाती है।

महानिशा पर देर रात मुख्य पूजा आरंभ होकर भोर तक चलती है। महिलाएं अल्पना सजाती हैं तथा उपवास रखती हैं। पूजा के बाद माछ-भात का प्रसाद ग्रहण किया जाता है। दीपक जलाने एवं आतिशबाजी से माहौल और उत्सवी बन जाता है। बाद में काली प्रतिमाएं नदी-सरोवरों में विसर्जित की जाती हैं। कई जगह साथ में लक्ष्मी पूजा भी की जाती है। ‘भाई फोटा’ यानी भाई दूज के साथ यह पर्व संपन्न होता है।

उड़ीसा में भी यह पर्व काली पूजा का पर्व है। वहां भी अर्धरात्रि के बाद पूजा और पुष्पांजलि की परंपरा है। शाम के समय आतिशबाजी चलाई जाती है। अधिकतर लोग पितरों के निमित दीपदान भी करते हैं। ऊंचे से बांस के ऊपरी छोर पर लोग छिद्रों वाली हांडी में दीपक जला कर टांगते हैं। बाद में भी रोज शाम को उस हांडी को उतार कर दीपक में तेल डाल जाता है। शाम के समय धूमधाम के साथ आतिशबाजी चलाई जाती है।

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    One Response to “बंगाल में काली पूजा”

      Miles Tesseneer के द्वारा
      April 26, 2010

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