जयपुर में फागुन की मस्ती और हाथियों का उत्सव

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मेलों और त्योहारों के रंगों में रंगी भारतभूमि के हर राज्य में कई महोत्सव मनाए जाते हैं। फागुन के आते ही पूरे देश में होली से जुड़े रंग-रंगीले आयोजनों का सिलसिला शुरू हो जाता है। राजस्थान की राजधानी जयपुर में इस मौके पर अनूठा आयोजन होता है- गज महोत्सव। यह महोत्सव यहां चौगान स्टेडियम में होता है। मस्तानी चाल से चलते सजे-धजे हाथियों का काफिला जब चौड़ा रास्ता, त्रिपोलिया व गणगौरी बाजार से होते हुए निकलता है इसका वैभव देखने वालों की भीड़ जमा हो जाती है। हाथियों इसके अलावा लोकनर्तक,सजे हुए ऊंट, घोड़े व शाही बग्घी भी इसमें शामिल होती है।

गज महोत्सव

चौगान स्टेडियम में गज महोत्सव देखने के लिए बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटक भी पहुंचते हैं। इस उत्सव का सबसे बड़ा आकर्षण गजश्रृंगार प्रतियोगिता होती है। महावत अपने हाथी को खूब अच्छी तरह सजाते हैं। हाथियों को सजा-संवार कर इतना सुंदर बना दिया जाता है कि लोग देखते ही रह जाते हैं। बांस की खपच्चियों से बने ब्रुश से चटख लाल, हरे, नीले, पीले, सफेद आदि रंगों से पैरों, सूंड़, सिर व कानों पर फूल-पत्तियों के अलावा कई और आकार भी बनाए जाते हैं। बीच-बीच में सितारे भी लगा देते हैं, जो सूरज की किरणें पड़ने से झिलमिलाते हुए बहुत सुंदर लगते हैं। पैरों के नाखूनों को लाल-गुलाबी रंग से रंगकर हाथियों को घंटियों वाली पाजेबें पहनाई जाती हैं। सिर पर चांदी का चमकता मुकुट और कलंगी लगाई जाती है। गले में कठला और झेला होता है, जिसमें लगी घंटियों की टुनटुनाहट मोहक लगती है। कानों में भी रेशमी झूमरें लटकाई जाती हैं। मोती की लडि़यों व गोटे से सजे रंगीन रुमाल दांतों पर लटकाते हैं। पीठ पर रुई का गद्दा व जरी कसीदाकारी से सजी मखमली झूल लटकाई जाती है। झूल के दोनों ओर घंटियां लटकी होती हैं जो हाथी के चलने पर बजती हैं।

सबसे ऊपर धातु का बना हौदा होता है, जिसमें दो व्यक्ति बैठ सकते हैं तथा उनके आगे हाथ में अंकुश लिए महावत बैठता है। गजश्रृंगार करते समय उसकी पूंछ के श्रृंगार के लिए गोटे किनारी व सितारों से सजी कपड़े की खोल बनाकर पूंछ पर पहनाते हैं। इसे दुमची कहते हैं तथा एक चौड़ी सी शनील की पट्टी पर धातु की लटकन व सजावट की जाती है, जिसे पिछवन कहते हैं। इसे हाथी के पिछले भाग पर पहनाया जाता है। इस महोत्सव का एक अन्य आकर्षण होता है- गज दौड़। हर महावत अपने हाथी को तेज दौड़ाता है, परंतु इस दौरान हाथी को किसी भी तरह चोट पहुंचाना सख्त मना होता है। दो टीम बनाकर हाथी पोलो का आयोजन होता है। इसमें घोड़े के बजाय हाथी की पीठ पर बैठ पोलो स्टिक से गेंद को गोल तक पहुंचाना होता है। हाथी व मानव के बीच रस्साकशी भी लुभाती है। लोकगायक व नर्तक, यहां अपने कार्यक्रम भी प्रस्तुत करते हैं।

हाथी की पीठ पर बैठ गुलाल की वर्षा

होली की पूर्व संध्या पर मनाए जाने वाले महोत्सव में रंग न हों, ऐसा कैसे संभव है। विदेशी पर्यटक खास तौर से रंगों में सराबोर होने ही आते हैं। हाथी की पीठ पर बैठ रंग-बिरंगे गुलाल की वर्षा से माहौल इंद्रधनुषी हो जाता है। रंगों की मस्ती से यहां कोई अनछुआ नहीं बचता। चारों ओर तमाम रंगों में रंगे चेहरे हंसते-खिलखिलाते नजर आते हैं। इसके बाद रंगों की आतिशबाजी की जाती है। रंगों के बादल विदेशी पर्यटकों के मन पर भारत की बहुरंगी संस्कृति की अमिट छाप छोड़ जाते हैं। महोत्सव के आकर्षण में एक प्रदर्शनी भी शामिल है। इसमें हाथियों की सज्जा का सामान, उनके आभूषण विभिन्न प्रकार के हौदे, युद्ध के समय हाथियों के लिए प्रयोग की जाने वाली सामग्री प्रदर्शित की जाती है। अंत में देशी-विदेशी पर्यटक रंगों में रंगे तन-मन के साथ मधुर यादें लेकर बार-बार आने की इच्छा के साथ प्रस्थान करते हैं।

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