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राजस्थान के थार मरुस्थल में बसा, जैसलमेर अद्भुत विषमताओं का शहर है। दूर-दूर तक फैले रेत के सुनहरे मैदानों के मध्य यह शहर भी स्वर्ण आभा से दीप्त लगता है, क्योंकि यह पूरा शहर पीले रंग के पत्थरों से निर्मित है। इसे गोल्डन सिटी यानी स्वर्ण नगरी भी इसीलिए कहा जाता है। प्रकृति की शुष्कता के मध्य इस शहर के अतीत का वैभव आज भी विद्यमान है। इस शहर की स्थापना बारहवीं शताब्दी में भाटी राजपूत राव जैसल द्वारा की गई थी। मध्य एशिया और भारत के बीच होने वाले व्यापार का मार्ग यहीं से गुजरता था। इस कारण उस दौर में यह नगर काफी संपन्न था। इस मार्ग के व्यापारियों का मुख्य व्यवसाय सिल्क, मसाले, स्वर्ण तथा जवाहरात का था। अद्भुत रेगिस्तानी सौंदर्य से सजी यह नगरी विश्व पर्यटन मानचित्र पर भी अंकित है और यहां काफी संख्या में विदेशी सैलानियों को भी देखा जा सकता है।
सोनार किला
राजपूतों की इस धरती का एक महत्वपूर्ण आकर्षण है- सोनार किला। यह एक विशाल दुर्ग है। जिसके अंदर एक पूरी नगरी बसी है। शहर के मध्य करीब 80 मीटर ऊंची, त्रिकूट पहाड़ी पर स्थित इस किले की चंद्राकार परिधि दो किलोमीटर से भी अधिक है। इस पर बने परकोटे में 99 बुर्ज हैं। किले के चार द्वार हैं-अक्षयपोल, सूरजपोल, गणेश पोल और हवापोल। स्थापत्य कला में बेजोड़ सोनार किले में कई महल भी हैं। ये हैं-विलास महल, रंगमहल, बादल विलास, सर्वोत्तम विलास और जनाना महल। महलों के अलावा यहां आठ जैन मंदिर और चार वैष्णव मंदिर हैं। जैन मंदिरों में पार्श्वनाथ मंदिर व ऋषभदेव मंदिर की स्थापत्य व मूर्तिकला उत्कृष्ट है।
हवेलियां
जैसलमेर के समृद्ध व कलाप्रेमी सेठों और दीवान ने रहने के लिए आलीशान हवेलियां बनवाई थीं। इन कलात्मक हवेलियों का शिल्प सौंदर्य आज विश्वविख्यात है। ये हवेलियां जैसलमेर की छोटी-छोटी गलियों के मध्य स्थित हैं। जिन्हें देखने के लिए सैलानी पैदल ही निकल पड़ते हैं। इनमें पटवों की हवेली सबसे प्रमुख व आकर्षक है। यह सातमंजिली पांच हवेलियों का समूह है। यह हवेली 1860 में बनकर तैयार हुई थी। इसके अलावा सलीम सिंह की हवेली, दीवान नथमल की हवेली और आचार्य ईसरलाल की हवेली भी भव्य हैं। इन हवेलियों के झरोखे, गोरवड़े बारी आदि बेहद आर्कषक हैं। इनके अनुभाग पर की गई नक्काशी, बेलबूटेदार जालियां आदि कुशल शिल्पियों की कला के बेजोड़ नमूने हैं। यही नहीं, अंदर लकड़ी का काम भी बेहद सुंदर है।
गड़ीसर झील
जैसलमेर का एक अन्य आकर्षण गड़ीसर झील है। इस झील का वास्तविक सौंदर्य प्रात: सूर्योदय के समय नजर आता है। जब झील के पानी में लाल सूरज का झिलमिलाता प्रतिबिंब सारे जल को रंगीन बना देता है और पर्यटकों को मोह लेता है। झील का निर्माण गड़ी सिंह द्वारा करवाया गया था। इसलिए इसका नाम गड़ीसर पड़ गया। झील के समीप एक विशाल द्वार, एक इमारत और मंदिर हैं। यहां लोक संस्कृति संग्रहालय भी है।
जैसलमेर आने वाले पर्यटकों के लिए एक अन्य महत्वपूर्ण आकर्षण है जो शाम ढलते ही अपनी ओर खींचना आरंभ कर देता है। मरुभूमि का यह भव्य प्राकृतिक आकर्षण है- सैंड डयून्स यानी मरु टीले। प्रकृति की इस मनोरम छटा को निहारने के लिए शहर से 40-50 किलोमीटर दूर जाना होता है। यह दूरी जीप सफारी द्वारा तय की जा सकती है। यहां रेत के अथाह समंदर को देख पर्यटक ठगे से रह जाते हैं। प्रकृति का यह रूप उन्हें रोमांचित कर देता है। दूर जहां तक निगाहें जाती हैं वहीं विभिन्न आकृतियों वाले टीले नजर आते हैं। इन पर हवाओं के चलने से धारियां बन जाती हैं जो समंदर की लहरों का सा आभास देती हैं। इन्हें रेतीले धीरे भी कहा जाता हैं।
रेगिस्तान का जहाज
रेत के समंदर की सैर कराने के लिए रेगिस्तान का जहाज यानी ऊंट भी उपलब्ध होता है। शाम होते ही जैसे पर्यटकों के आने की खुशी में उत्सव का सा माहौल बन जाता है। लोक कलाकार अपने वाद्यों के साथ लोकगीतों से पूरे माहौल को रंगीन बना देते हैं। ऊंटों के गलों में पड़ी टुनटुनाती घंटियां एक अलग ही संगीत की सृष्टि कर रही होती हैं। टीलों के पार्श्व में अस्त होते सूर्य का एक अलग ही नजारा होता है।
जैसलमेर के आसपास अनेक दर्शनीय स्थल भी हैं। पांच किलोमीटर दूर अमर सागर नामक स्थान पर कुछ जैन मंदिर हैं। करीब 16 किलोमीटर दूर लोद्रवा यहां की पुरानी राजधानी है, जहां देवी का 900 वर्ष पुराना मंदिर है। यहां के जैन मंदिरों की कलात्मकता दर्शनीय है। इस अंचल की लोकथाओं की नायिका भूमल का संबंध लोद्रवा से ही था। बड़ा बाग शाही छतरियों के लिए जाना जाता है।
वन्य जीवों का संरक्षण स्थल-राष्ट्रीय मरु उद्यान
जैसलमैर के निकट राष्ट्रीय मरु उद्यान यहां के वन्य जीवों का संरक्षण स्थल है। यह करीब 3200 वर्ग किलोमीटर में फैला है, यहां काला हिरण, चिंकारा, भेडि़ये, बाज, नेवले तथा रेगिस्तानी लोमड़ी आदि देखे जा सकते हैं।
जैसलमेर घूमने का उपयुक्त समय अक्टूबर से मार्च के मध्य है। उस समय यहां का मौसम सुखद होता है। जनवरी-फरवरी में यहां मरु उत्सव आयोजित किया जाता है। तीन दिवसीय इस मेले का आयोजन राजस्थान पर्यटन विकास निगम द्वारा किया जाता है। इस अवसर पर सैलानियों को राजस्थानी संस्कृति के विभिन्न रंग देखने को मिलते हैं। लोक-कलाकारों द्वारा अनेक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं।
जैसलमेर से ऊंट की खाल, बालों व पत्थर से बने हस्तशिल्प खरीदे जा सकते हैं। पारंपरिक राजस्थानी भोजन के अलावा, विदेशियों की पसंद के अनुकूल कई अच्छे रेस्तरां यहां हैं। सैलानियों को यहां की प्रसिद्ध घोटुवां मिठाई पसंद आती है। जैसलमेर शहर जयपुर व जोधपुर के रास्ते रेलमार्ग से जुड़ा है। वैसे राजस्थान के सभी खास स्थानों से यहां के लिए बस सेवा उपलब्ध है। स्थानीय भ्रमण के लिए जीप व टैक्सी के अतिरिक्त ऑटोरिक्शा भी मिलते हैं। यहां ठहरने के लिए हर स्तर व बजट के होटल मिल जाते हैं। स्वर्ण नगरी जैसलमेर आज राजस्थान के पर्यटन संसार का सुनहरा पड़ाव है।