नए-पुराने का अनूठा संगम है जालंधर

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हिंदू पुराणों, दंत कथाओं, स्मृति ग्रंथों व इतिहासकारों की और कई अन्य पौराणिक-ऐतिहासिक रचनाओं में जालंधर को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। पुराणों के अनुसार सतीत्व की प्रतिमूर्ति मां वृंदा के पति दैत्यराज जलंधर के नाम पर इस शहर का नाम पड़ा। रावी, ब्यास व सतलुज का पानी कभी इसी शहर से होकर गुजरता था। सैकड़ों वर्षो तक यह भूमि जल के अंदर रही। भूगोल के जानकारों के अनुसार इसीलिए इसका नाम जालंधर पड़ा। बहुत कम लोग जानते हैं कि कभी बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र रहा यह शहर पंजाब की राजधानी भी रह चुका है। ईसा से 300 वर्ष पूर्व भी जालंधर शहर का अस्तित्व होने के प्रमाण मिलते हैं।

त्रिगर्त प्रदेश

बौद्ध धर्म की अब तक की विश्व की सबसे बड़ी कॉन्फ्रेंस जालंधर में ही आयोजित की गई थी। सातवीं शताब्दी में जब भारत पर हर्षव‌र्द्धन का शासन था, चीन से एक यात्री ह्वेनसांग यहां आया। त्रिगर्त प्रदेश पर राजपूत राजा अत्तर चंद्र का कब्जा था। जालंधर को त्रिगर्त इसलिए भी कहते हैं कि रावी, ब्यास व सतलुज नदियां कभी यहां से होकर बहती थीं। उस समय इसका क्षेत्र पूरब से पश्चिम तक 167 मील और उत्तर से दक्षिण तक 133 मील तक फैला हुआ था। इसमें चंबा, मंडी, सुकेत के पर्वतीय क्षेत्र भी शामिल थे। राजपूतों का शासन यहां 13वीं सदी तक रहा। उस समय इस प्रदेश की राजधानी कांगड़ा थी। चीनी यात्री फाहियान के अनुसार सन 1019 तक जालंधर पंजाब का शाही शहर था। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के गठन को लेकर आखिरी बैठक 23 फरवरी 1921 को हुई थी और यह भी जालंधर में ही संपन्न हुई थी।

गजल सम्राट कुंदन लाल सहगल का शहर

जब देश स्वतंत्र हुआ तब जालंधर को पंजाब की राजधानी बनाया गया। 1953 तक जालंधर संयुक्त पंजाब की राजधानी रहा। बाद में शिमला और फिर चंडीगढ़ को यह सम्मान हासिल हुआ। अब तक जालंधर जिला 3401 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैल चुका है।पांच तहसीलों-जालंधर-1, जालंधर-2, नकोदर, फिल्लौर और शाहकोट तथा पांच सब-तहसीलों-आदमपुर, भोगपुर, करतारपुर, गोराया और नूरमहल, 956 गांवों को अपनी गोद में समेटे जालंधर में हर वर्ष 703 मिलीमीटर बारिश रिकॉर्ड की जाती है। गजल सम्राट कुंदन लाल सहगल के इस शहर में मोहल्लों और बस्तियों के नाम भी संतों, पीरों और फकीरों के नाम पर रखे गए हैं। यह भी इसके अत्यंत पौराणिक शहर होने का एक सुबूत हैं। जनरल एलेग्जेंडर कनिंगम की रिपोर्ट कहती है कि पद्म पुराण में भी इस शहर के नाम का जिक्र है। पद्म पुराण तो जालंधर को भगवान विष्णु की चरणरज प्राप्त भूमि बताता है। छठे सिख गुरु श्री गुरु हरगोविंद साहिब भी इस शहर में आए।

पुरातन शहरों में से एक होने का गौरव

मोहनजोदड़ो और हड़प्पा सभ्यता के अंशों के साथ पौराणिक शहर जालंधर को देश के सबसे पुरातन शहरों में से एक होने का गौरव तो हासिल है ही, साथ ही विश्व को नई दिशा देने वाली धार्मिक सीट का रुतबा भी हासिल है। जिले के 35 गांवों में की गई खुदाई के बाद यहां जिस पुरातन सभ्यता के अवशेष मिले हैं, उनसे यह सिद्ध हो गया है कि हिंदू, मुस्लिम, बौद्ध और सिख धर्मो का केंद्र रहा जालंधर इतिहास की तमाम स्मरणीय घटनाओं का साक्षी रहा है। राजस्व इकट्ठा करने के लिए जालंधर दोआब डिवीजन का गठन भी इसी दौरान हुआ। 1632 में गुरु तेग बहादुर जी का विवाह करतारपुर के लाल चंद खतरी की बेटी माता गुजरीके साथ संपन्न हुआ। 1634 में मुगलों ने छठे गुरु श्री गुरु हरिगोविंद साहिब के साथ करतारपुर पर कब्जे के लिए लड़ाई की। गुरु जी ने इस लड़ाई में पिंडा खान व काला खान को मार मुगलों को यहां से खदेड़ दिया।

कामागाटामारू जहाज प्रकरण से संबद्ध

सन 1913 में कामागाटामारू जहाज में जिन गदरियों पर अंग्रेज सरकार का चाबुक चला उनमें से 32 जालंधर के थे और जो शहीद हुए उनमें से तीन इसी जिले से थे। जो तीन लोग शहीद हुए उनमें से दो- इंदर सिंह (सिद्धूपुर) और अर्जुन सिंह (ढढ्डा) जालंधर के ही थे। तीसरे शहीद लछमण सिंह के गांव का पता नहीं चल सका। नकोदर के दीवान चंद को नजरबंद कर दिया गया था। अपरा के जलाल खां और जालंधर के रहमत अली को भी अपरा में ही नजरबंद रखा गया। भाग सिंह चमियारा को उसके गांव में नजरबंद किया गया जबकि भगवान सिंह (फलपोता), दलीपा (जमशेर), जगता (रायपुर), लब्भू (बरवा), मियां बख्श (शर्क पुर-नकोदर) को गिरफ्तार किया गया।    6 फरवरी 1921 को जालंधर में पहला महिला विश्वविद्यालय बनाने संबंधी प्रस्ताव पारित किया गया था। इसके लिए एक कान्फ्रेंस बुलाई गई। विश्वविद्यालय तो नहीं बन सका लेकिन कन्या महाविद्यालय के रूप में पहला महिला कॉलेज अस्तित्व में आया।

8 मार्च को 1921 को महात्मा गांधी जालंधर में आए। उन्होंने यहां चरखा क्लब की नींव रखी और केएमवी की 21 महिलाओं/छात्राओं ने इस क्लब की सदस्यता ग्रहण की। 17 अगस्त और 17 नवंबर 1921 को पंजाब केसरी लाला लाजपत राय यहां आए और खिलाफत आंदोलन के बारे में स्थानीय नेताओं से विचार-विमर्श किया। सन 1930 में हुए गांधी जी के डांडी मार्च के समर्थन में जालंधर के सैकड़ों कांग्रेसियों को गिरफ्तार किया गया। 1947 के भारत-पाक विभाजन के दुख भरे काल के जख्म आज भी जालंधर की छाती पर काबिज हैं जब तीन सौ के करीब महिलाओं को आज की इकहरी पुली के निकट रेलगाड़ी से उतार कर कत्ल कर दिया गया था।

नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, देहरादून, लखनऊ, जयपुर, पटना, भोपाल और जम्मू आदि देश के सभी महत्वपूर्ण शहरों से जालंधर रेल मार्ग से सीधे जुड़ा हुआ है। सड़क मार्ग और सीधी बस सेवा से भी यह उत्तरांचल, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश की राजधानियों समेत कई अन्य शहरों से जुड़ा हुआ है। अमृतसर यहां से 80 किमी दूर है। अमृतसर के निकटवर्ती राजासांसी हवाई अड्डे से इंग्लैंड और सिंगापुर के अलावा राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली के लिए भी हवाई सेवाएं उपलब्ध हैं।

आधुनिकता-पौराणिकता का संगम

आधुनिक जालंधर श्री देवी तालाब मंदिर, सोढल मंदिर तथा गुरुद्वारा छठी पातशाही के कारण तो जाना ही जाता है, साथ ही जालंधरनिवासियों ने इसे विश्व के मानचित्र पर लाने में भी कोई कसर बाकी नहीं रखी है। कड़वी यादों को भुला चुका यह शहर अब आधुनिकता-पौराणिकता का बेहतरीन सामंजस्य बनाए तरक्की की नई सीढि़यां चढ़ रहा है। ‘हवेली’ में आपको शहर के पुराने कोट, दरवाजे दिखेंगे तो ‘पृथ्वी प्लैनेट’ में आधुनिक कला के नमूने।

फगवाड़ा-जालंधर मार्ग पर स्थित जैन बंधुओं की ‘हवेली’ और गुरु तेग बहादुर नगर में बावा परिवार का ‘पृथ्वी प्लैनेट’ जालंधर को अलग और अनोखी पहचान देते हैं। पंजाब की आत्मा अगर ‘हवेली’ में बसी दिखती है तो आधुनिक पंजाब ‘पृथ्वी प्लैनेट’ पर देखा जा सकता है। आप जब कभी जालंधर आएं तो ‘पृथ्वी प्लैनेट’ पर बसी ‘हवेली’ और उसके अंदर बसा ‘रंगला पंजाब’ देखना न भूलें। ‘हवेली’ और ‘रंगला पंजाब’ में जहां मिस्सी रोटी, मकई की रोटी, सरसों का साग, लस्सी, मक्खन, भड़ोली की दाल उपलब्ध होगी, वहीं ‘पृथ्वी प्लैनेट’ में हर तरह का फास्ट फूड, पूल टेबल, ’बाउलिंग एली’ आपका स्वागत करते मिलेंगे। हवेली में आपके लिए मंजी, पीढ़ी, पतीलियां, फट्टे, मधाणियां-चाटियां, टिंडां वाला खूह दर्शनीय हैं तो ‘पृथ्वी प्लैनेट’ में एयर कंडीशंड हाल, बढि़या फर्नीचर, अंग्रेजी बोलते वेटर, मद्धम रौशनी में नहाया परिसर भी बरबस ही आपको अपनी ओर खींचता है।

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