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असम राज्य की अमूल्य धरोहर है एक सींग वाला दुर्लभ भारतीय गैंडा। काजीरंगा के जंगल इस विशालकाय वन्य प्राणी की शरणस्थली हैं। यूं तो यहां कई प्रकार के अन्य जानवर तथा पक्षी रहते हैं, परंतु विश्व के पर्यटन मानचित्र पर काजीरंगा का नाम गैंडे के कारण ही विशेष रूप से जाना जाता है। दुनिया भर के सैलानी प्रतिवर्ष इसे देखने असम आते हैं।
काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान गुवाहाटी से 217 किमी दूर स्थित है। गुवाहाटी से कुछ दूरी तक राजमार्ग नंबर 37 असम व मेघालय की सीमा बनाता काजीरंगा की ओर बढ़ता है। सड़क के दोनों ओर छोटे-बड़े कस्बे हैं। सुंदर पहाडि़यों की घनी हरियाली थकान महसूस नहीं होने देती। लगभग दो टन वजन के भारी-भरकम देह वाले वन्यप्राणी गैंडे को देखने की चाह में जब लोग काजीरंगा पहुंचते हैं तो खुले मैदानों में शांतिपूर्वक घास चरते गैंडे देख हैरत होती है। जंगल में भ्रमण के लिए पर्यटक हाथियों पर सवार होकर या जीपों में बैठकर जाते हैं। कारों में भी जाया जा सकता है।
अफ्रीका के जंगलों जैसे दलदल वाली जमीन, हाथी से भी ऊंची घनी घास और सरकंडे तथा कम गहरे तालाब काजीरंगा की विशेषताएं हैं। यहां के जंगल कान्हा, बांधवगढ़ और कॉर्बेट पार्क के जंगलों से भिन्न हैं। मादा गैंडे का आकार और वजन नर से कुछ कम होता है। अपने जीवनकाल में मादा गैंडा आठ से दस बच्चों को जन्म देती है। गैंडा यदि बच्चे के साथ दिखाई दे तो महावत हाथी पर सवार दर्शकों को गैंडे उसके पास नहीं ले जाते। ऐसी स्थिति में गैंडा नाराज हो सकता है।
काजीरंगा का दिलचस्प इतिहास
औसतन 45 से 50 वर्षो तक जीने वाले गैंडे के शरणस्थल काजीरंगा का इतिहास दिलचस्प है। अंग्रेजी शासन में वायसरॉय लॉर्ड कर्जन की पत्नी को उनके एक मित्र ने इसके बारे में बताया तो उन्हें विश्वास न हुआ। जिज्ञासावश सन 1904 में वह स्वयं गैंडा देखने काजीरंगा गई। उन्हें गैंडा तो नहीं दिखा, परंतु तीन पंजों वाले खुर के निशान देखकर उन्हें विश्वास हो गया कि ऐसा कोई जानवर है। प्रकृति के प्रेम ने लेडी कर्जन को चुपचाप नहीं बैठने दिया और एक दिन उन्होंने वायसरॉय कर्जन को मना ही लिया कि काजीरंगा के जंगलों को सुरक्षित क्षेत्र घोषित कर इस प्राणी की रक्षा की जाए। अंतत: 1 जून 1905 को काजीरंगा के 57,273,60 एकड़ क्षेत्र को सुरक्षित जंगल बनाने की अपनी मंशा ब्रिटिश सरकार ने सार्वजनिक रूप से घोषित कर दी। बाद में 3 जनवरी 1908 को सरकार ने काजीरंगा को सुरक्षित घोषित कर शिकार खेलने पर रोक लगा दी। 28 जनवरी 1913 को इसके साथ 13509 एकड़ क्षेत्र और जोड़ दिया गया। 10 नवंबर 1916 को इस जंगल का नाम रखा गया ‘गेम सैंक्चुअरी’।
सन 1938 में वन संरक्षक श्री मिलोरी ने हर प्रकार के शिकार पर रोक लगाते हुए काजीरंगा को जनसाधारण के लिए खोल दिया। अंग्रेजी शब्द ‘गेम सैंक्चुअरी’ में गेम का अर्थ शिकार खेलने से जोड़ा जाता है। सन 1950 में सीनियर फॉरेस्ट कंजर्वेटर पीडी स्ट्रेसी ने इसका नाम बदलकर वाइल्ड लाइफ सैंक्चुअरी अर्थात वन्य प्राणी अभ्यारण्य रख दिया तथा 11 फरवरी 1974 को इसका नाम पड़ा काजीरंगा नेशनल पार्क। काजीरंगा में हिरनों के झुंड तथा जंगली भैंसों के समूह भी मिलते हैं। इनके अलावा हाथी, कई तरह के हिरण, सांभर, जंगली सूअर, भालू, तेंदुआ, जंगली बिल्ली, हॉग बैजर, छोटा असमी लंगूर, जल कौआ, बगुला, हंस, कई तरह के जल पक्षी, बत्तख, मछली पकड़ने वाली गोल पूंछ की चील, प्रवासी पक्षी भी यहां मिलते हैं।
ध्यान रखें
असम में गर्मी और सर्दी अधिक नहीं होती। गर्मियों में तापमान औसतन 32.2 डिग्री से. तथा सर्दियों में 10 डिग्री से. होता है, लेकिन मई से लेकर अक्टूबर तक काजीरंगा जाने के लिए उचित नहीं है। ब्रह्मपुत्र की प्रलयंकारी बाढ़ हर साल काजीरंगा को क्षतिग्रस्त करती है। जल में फंसे वन्य प्राणी इधर-उधर शरण खोजते फिरते हैं। 429.93 वर्ग किमी पार्क का क्षेत्र तथा 429.40 वर्ग किमी का अन्य जुड़ा हुआ क्षेत्र घूमने लायक नहीं होता। नवंबर से अप्रैल का समय सैलानियों के लिए श्रेष्ठ है। फरवरी तक ऊंची घास समाप्त हो जाने से लंबे चौड़े मैदान दिखाई देते हैं और जानवरों को देखना आसान हो जाता है। पानी की कमी के कारण ऐसे स्थानों पर जानवर अधिक दिखाई देते हैं जहां पानी उपलब्ध हो। ठहरने के लिए सरकारी एवं प्राइवेट दोनों तरह के होटल और लॉज आदि सस्ते व महंगे दामों पर काजीरंगा क्षेत्र में ही उपलब्ध हैं।