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केरल को देवताओं की भूमि कहा जाता है। इसकी सुंदरता को देखें तो यह बात एकदम सच लगती है। देश की मुख्य भूमि के एकदम सुदूर दक्षिण-पश्चिम कोने पर स्थित छोटे से राज्य में प्राकृतिक सौंदर्य भरपूर है। इस प्रदेश को उच्च भूमि, मध्य भूमि और निचली भूमि की तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है। प्रकृति ने यहां खुले हाथों से सुंदरता लुटाई है। पूरे केरल में तीन से छह हजार फुट ऊंचाई तक की पर्वत श्रृंखलाएं हैं और हैं धान के खेत। चाय, रबड़, कॉफी, इलायची, सुपाड़ी, काजू, केला, गन्ना, अमरूद, काली मिर्च, अदरख, विभिन्न सब्जियों और मसालों के पेड़ों की न खत्म होने वाली श्रृंखला ने इस पूरी जमीन को ही जैसे हरियाली की चादर ओढ़ा दी है। इससे भी लगता है कि ईश्वर संतुष्ट नहीं हुआ तो उसने केरल में नदियों का जाल बिछा दिया।
कुल मिलाकर इस छोटे से प्रदेश में 44 नदियां हैं, जिनमें प्रमुख हैं-पेरियार, मणिमला, अधकोविल, मीनच्चिल और मुवाट्टपुष। इन नदियों की कई सहायक नदियां हैं, कई झील, झरने और जगह-जगह समुद्र के किनारे जमीन के अंदर घुसे जल क्षेत्र (बैकवाटर्स) हैं। सबसे बड़ी झील वेम्बनाड 200 वर्ग किमी से अधिक बड़ी है और कोच्चि बंदरगाह के पास अरब सागर में मिलती है। प्रमुख नदियां इसी झील में मिल कर समाप्त होती हैं। इतनी नदियां होने से जल परिवहन व्यवस्था स्वाभाविक रूप से यहां प्रमुख है। सड़क परिवहन भी है, लेकिन केरल की असली सुंदरता नाव या स्टीमर से ही घूम कर देखी और महसूस की जा सकती है।
नावों पर जनजीवन
समूचे केरल में पतली-पतली छोटी सी नाव खूब चलती है। नदी किनारे या झील में दो फुट चौड़ी, दो-तीन फुट गहरी, 6,10 या 12 फुट लंबी नावें खूब नजर आती हैं। केरल में कहीं भी निकल जाएं सुबह या शाम किसी भी वक्त नारियल, धान के कटे हुए गट्ठर या अन्य सामान लादे हुए तैरती नाव नजर आ जाती है। पर्यटकों के लिए कोट्टायम से अलेप्पी और अलेप्पी से म्विलोन तक की बोट यात्रा अविस्मरणीय साबित होती है। ये केरल के प्रमुख जलमार्ग हैं।
कोट्टायम है स्टीमर अड्डा
कोट्टायम केरल के लगभग मध्य में स्थित महत्वपूर्ण शहर है। कोट्टायम के लगभग बीच में ही है बोट जेटी (स्टीमर अड्डा)। यहां से अलेप्पी तक करीब 20 किमी की स्टीमर यात्रा अगर आप एक बार कर लें तो जब भी फुर्सत पाएंगे, यहां फिर आना चाहेंगे। हर घंटे यहां से अलेप्पी और अन्य ठिकानों के लिए स्टीमर चलते हैं। इनका संचालन केरल नदी परिवहन प्राधिकरण करता है। निजी नावें भी चलती हैं, पर उनमें किराया अधिक है। सिर्फ साढ़े छह रुपये की टिकट लेकर स्टीमर पर कोट्टायम से अलेप्पी तक सफर किया जा सकता है। करीब दो घंटे की यह यात्रा यादगार है। नहर के दोनों ओर नारियल, केले, सुपाड़ी और रबड़ के पेड़ों की अंतहीन कतार और इनके बीच में हैं धान के खेत। कुछ किमी की यात्रा के बाद यह नहर विस्तृत हो जाती है, बिल्कुल समुद्र की तरह। ऊंची-ऊंची लहरें, तेज गति से बहता चमकता-स्वच्छ पानी।
जब मिलती हैं धाराएं
शहरों में जैसे तीन-चार रास्तों के मिलने से चौराहे बनते हैं ठीक उसी तरह इस यात्रा में कई जगह पानी की धाराएं मिलती हैं। कई जगह नहरों के दोराहे हैं तो कई जगह चौराहे। यह पूरा जलमार्ग बहुत व्यस्त है। शहरों की सड़कों पर जैसे बसें, कार, स्कूटर चलते हैं वैसे इस जलमार्ग पर स्टीमर, मोटरबोट और छोटी नावें आती-जाती हैं। रास्ते में कई घुमावदार मोड़ हैं, लेकिन कुशल स्टीमर चालक इस व्यस्त ट्रैफिक के बावजूद आसानी से स्टीमर लाते और ले जाते हैं।
शहरों में जिस तरह जगह-जगह बस स्टॉप हैं उसी तरह इस जलमार्ग पर नहर के किनारे-किनारे नाव स्टॉप हैं। हर स्टॉप के किनारे नारियल के पेड़ के तीन-चार तने गड़े रहते हैं। जैसे ही कोई स्टॉप आता है स्टीमर के कर्मचारी पानी में गड़े हुए नारियल के तने पर रस्सी फेंककर लंगर डाल देते हैं। सवारी चढ़ी या उतरी और कंडक्टर ने घंटी टन्न से बजा दी, जिसे सुन कर चालक स्टीमर की यात्रा फिर शुरू कर देता है। अलेप्पी से थोड़ा पहले ही वह जगह है जहां अगस्त-सितंबर में ओणम के मौके पर नौकादौड़ होती है।
अलेप्पी समुद्रतट पर पार्क
अलेप्पी बोट जेटी पर उतरते ही तिपहिया स्कूटर वाले खड़े मिलते हैं। कुछ ही मिनट में आप अलेप्पी समुद्रतट पर पहुंच जाएंगे। सागर के इस किनारे पर एक सुंदर पार्क भी है, जहां बच्चे झूले आदि का भी आनंद ले सकते हैं। कुछ घंटे यहां बिताकर आप चाहें तो स्टीमर से ही लौट सकते हैं या फिर बसों से। कैसे पहुंचें
दिल्ली, भोपाल, चेन्नई, मुंबई, बंगलूर आदि शहरों से कोट्टायम रेलमार्ग से सीधे जुड़ा है। इलाहाबाद, पटना, गोरखपुर, लखनऊ, वाराणसी आदि से भी कनेक्टिंग ट्रेनें हैं। प्लेन में जाना चाहें तो कोच्चि या त्रिवेंद्रम (तिरुवनंतपुरम) तक सभी प्रमुख शहरों से सीधी उड़ानें हैं। यहां से कोट्टायम टैक्सी, रेल या बस से पहुंच सकते हैं। कोट्टायम में ठहरने के लिए सस्ते और महंगे सभी किस्म के होटल हैं। पूरे केरल और दक्षिण भारत में होटल और खाना-पीना उत्तर भारत की तुलना में सस्ते हैं। यहां के ज्यादातर होटलों में बार हैं और केरल में पब भी खुले हैं।
कब जाएं
केरल की यात्रा कभी भी की जा सकती है। बरसात में थोड़ी असुविधा हो सकती है, पर चूंकि केरल असमतल भूमि है इसलिए यहां बरसात में कीचड़ की समस्या नहीं होती। गर्म कपड़ों की जरूरत यहां तभी पड़ेगी जब आप किसी ऊंचे पहाड़ी क्षेत्र में जाएं।
क्या खरीदें
काजू, मसाले, कच्ची सुपाड़ी, नारियल की जरा से बनी चीजें, केले के कई डिब्बा बंद पकवान और ताजी तथा बेहतरीन कॉफी।