लक्षद्वीप: सागर में सिमटा सौंदर्य

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नीले अरब सागर के जल से धोया हुआ, मूंगा व प्रवाल से गढ़ा, झरनों के इंद्रधनुषी सौंदर्य  से घिरा लक्षद्वीप मोहक द्वीपसमूह है। लक्षद्वीप, मिनीकॉय व अभिनदीप – इन तीनों को मिलाकर 1 जनवरी 1973 को लक्षद्वीप का गठन हुआ। यहां द्वीपों की कुल संख्या 36 है। इनमें केवल 10 द्वीपों में ही आबादी है। यहां नारियल के पेड़ों की सघन छाया समूचे आकाश को ढांपे हुए नीले जल के दर्पण में अपना सौंदर्य निहारती सैलानियों को रोमांटिक अनुभूति से भर देती है। नारियल वीथिकाओं के अतिरिक्त पपीते, केले व अमरूद के पेड़ों की कतारें भी सैलानियों को अलग अहसास से भर देती हैं।

केरल के समुद्री तट से लगभग 400 किमी की दूरी पर स्थित लक्षद्वीप के इतिहास के बारे में बहुत कम जानकारी  है। किंवदतियों के अनुसार क्रांगानोर के हिंदू राजा चेरामन पेरूमल इसलाम धर्म कबूल कर क्रांगानोर से मक्का की ओर रवाना होते हुए, किंतु समुद्री तूफान से दिग्भ्रमित होकर बंगारम द्वीप पहुंच गए। बंगारम से वह अगाति पहुंचे। देश वापसी पर उन्होंने लाव लश्कर भेजा। उनमें सभी हिंदू थे। शायद इसीलिए यहां हिंदू प्रभाव आज भी विद्यमान है।

फकीर उबेदुल्ला का असर

गुजरते वक्त के साथ अगाति तथा अभितीव आदि द्वीपों की खोज हुई। किंवदती है कि सातवीं शताब्दी में जद्दा मुस्लिम फकीर उबेदुल्ला को स्वप्न में मोहम्मद साहब ने आदेश दिया कि वे सुदूर देशों में जाकर इस्लाम का प्रचार करें। इस यात्रा में उनका जहाज एक द्वीप के समीप छूट गया तो वह अमीनी द्वीप पर पहुंचे। यहां शुरू में तो उनका विरोध हुआ, पर बाद में वह अपने धर्म के  प्रचार में सफल हो गए। आंद्रेते में उनकी दरगाह पवित्र मुस्लिम तीर्थ है।

संघर्ष सत्ता का

16वीं सदी में पुर्तगाली यहां आए, पर कुछ वर्षो बाद अराकन के मुस्लिम बादशाह के हाथ में यहां की सत्ता वापस आ गई। 1783 में टीपू सुल्तान का कब्जा हुआ। टीपू की मौत के बाद 1885 में द्वीप पर ईस्ट इंडिया कंपनी का कब्जा हो गया। 1947 में भारत के मूल भूखंड के साथ इसका विलय हुआ। 1956 तक यह मद्रास का अंग बना रहा। इसके बाद केंद्रशासित राज्य बना।

यकीन मानिए लक्षद्वीप की सुंदरता, प्रदूषणमुक्त वातावरण, नीले सागर का सफेद जल, उसमें तैरती असंख्य रंग-बिरंगी मछलियां, मूंगा-मोती का अक्षय भंडार नारियल के पेड़ सफेद बालुका राशि तथा शांत द्वीपवासी शायद ही कहीं और देखने को मिलें। लक्षद्वीप के प्रमुख द्वीप हैं-एनड्रोट, अमिनी, अगाति, चेलत, कडमात, कलपेनी, बित्रा, कावारत्ती, किल्तन व मिनिकॉय। यहां की 95 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है। मिनिकॉय को छोड़ सभी द्वीपों पर मलयाली बोली जाती है। मिनिकॉय में महाल भाषा बोली जाती है। यहां की महिलाएं काफी आभूषण पहनती हैं। लक्षद्वीप में बंगारम के अलावा चार द्वीप भारतीय यात्रियों के लिए खुले हैं। इन सब द्वीपों में से कावारत्ती विकसित है। यहां घनी आबादी व नारियल के बड़े-बड़े बाग हैं। यहां 52 मस्जिदें है। कावारत्ती में एक मछलीघर भी बना हुआ है, जिसमें कई तरह की मछलियां हैं।

मातृ सत्तात्मक समाज

कडमात द्वीप में पर्यटकों के लिए झोपडि़यां बनी हैं, जिसके समीप समान गहराई वाले समुद्री ताल भी हैं। मिनिकॉय द्वीप सबसे बड़ा द्वीप है और दक्षिण की ओर स्थित है। इसके समीप सबसे बड़ा समुद्र ताल है। इसे ‘महिला’ द्वीप भी कहा जाता है, क्योंकि यहां का समाज पूर्णत: मातृ-सत्तात्मक है।

मिनिकॉय की संस्कृति अन्य द्वीपों से बहुत भिन्न है, क्योंकि यह ऐसे बड़े समुद्र मार्ग पर स्थित है जहां से बाहर की दुनिया के लोगों के साथ इसका संपर्क काफी अच्छा है। इस द्वीप के लोग अधिकतर नाविक है और व्यापारी जहाजों में कार्यरत हैं। आगाती द्वीप में छोटे-छोटे अनेक केंद्रीय दफ्तर हैं जिनमें बैंक, डाक बंगले आदि हैं। इन द्वीपों का आनंद लेने के लिए कोचीन कार्यालय से अनुमति लेनी जरूरी है।

अशोक वशिष्ठ

जाने का सर्वोत्तम मौसम: लक्षद्वीप जाने का सबसे अच्छा मौसम सितंबर से मार्च माह तक का है। इन दिनों यहां का सुहावना मौसम व प्राकृतिक सौंदर्य की अनुपम छटा सैलानियों के मन-मस्तिष्क में यहां की खूबसूरती को भर देती है।

मुख्य आकर्षण

इन द्वीपों में पर्यटन का मुख्य आकर्षण है-जलक्रीड़ा। चूंकि ये द्वीप चारों ओर से प्रवालभित्ति से घिरे हैं। इसलिए जलक्रीड़ा हेतु पर्याप्त क्षेत्र उपलब्ध है। यहां स्क्यूबा डाइविंग, डीसी, फिशिंग, कैंटामॉरन और सेलबोट जैसे खेल उपलब्ध है।

क्या खाएं

हर बीच पर रेस्तराओं की भरमार है। यहां मछली खाने के शौकीन सैलानी झींगा मछली का स्वाद ले सकते हैं। यहां का मुख्य भोजन मछली चावल है। इसके अलावा विदेशी सैलानियों के लिए कुछ देशी-विदेशी पकवान भी बनाए जाते हैं।

कहां ठहरें

कोचीन से इन द्वीपों तक नियमित रूप से चलने वाले पोतों से जाने वाले पर्यटक आम तौर पर उसी पोत पर ठहरते हैं और विदेशी पर्यटक कसीनों होटल ग्रुप द्वारा संचालित बंगरम आइलैंड रिजॉर्ट में (जो 30 कमरों वाला है) रुक सकते हैं। यह सुविधा सिर्फ विदेशी पर्यटकों के लिए उपलब्ध है।

कैसे जाएं

इंडियन एयरलाइंस, जेट एयरवेज, सहारा एयरलाइंस तथा कुछ निजी कंपनियां सप्ताह में तीन बार दिल्ली से कोचीन के लिए उड़ान भरती हैं। कुछ उड़ानें मुंबई से भी हैं। कोचीन से अगाती तक भी हवाई सेवा उपलब्ध है। इसके अलावा हेलीकॉप्टर व पोत द्वारा भी इन द्वीपों में जाया जा सकता है। पोत परिवहन का प्रबंध ‘स्पो‌र्ट्स’ लक्षद्वीप कार्यालय, इंदिरा गांधी रोड, विल्गिंडन आइलैंड, कोचीन द्वारा किया जाता है। यह सुविधा सिर्फ भारतीय पर्यटकों के लिए है। हवाई जहाज का दिल्ली से कोचीन तक का किराया 6,000 रुपए के करीब है।

सूचना

कोचीन और नई दिल्ली में लक्षद्वीप कार्यालय हैं। लक्षद्वीप भ्रमण हेतु परमिट कोचीन के लक्षद्वीप पर्यटन कार्यालय से हासिल किया जा सकता है।

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