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सात साल की उम्र से मैं डांस सीख रही हूं। फिर सोलह वर्ष की उम्र तक मैं राज साहब (राज कपूर) की फिल्म सपनों का सौदागर से फिल्मों में आ गई। तबसे मैं नॉन स्टॉप काम करती ही जा रही हूं। अपवाद सिर्फ तब, जब एशा और आहना का जन्म हुआ तो मैंने खुद को फिल्मडम से दूर रखा । यह सब कहने की आवश्यकता यहां इसलिए है क्योंकि मेरी भागदौड़ भरी जिंदगी में मुझे पर्यटन के लिए कभी फुर्सत ही नहीं मिली। हां, शूटिंग के सिलसिले में मैं अक्सर देश के बाहर जाती रही। मरहूम निर्माता-निर्देशक रामानंद सागर की फिल्म चरस के लिए मैं और धरम जी हांगकांग, थाइलैंड गए थे। फिल्म ड्रीम गर्ल की शूटिंग के लिए अमेरिका, पेरिस जाना हुआ। फिर अलीबाबा और चालीस चोर फिल्म के लिए बगदाद सिटी भी जाना हुआ मेरा। कुछ लोग फिल्मी शूटिंग को आउटिंग का पर्याय मान लेते हैं, उसे एंजॉय कर लेते है, पर मैं ऐसा कभी नहीं कर सकी। फिल्मी शूटिंग के लिए आउटडोर जाने को मैं महज एक काम ही समझती रही..और शायद ही कभी उसे एंजॉय कर पाई।
एक लंबे अरसे तक धरमजी और मुझमें प्यार चलता रहा। मेरी और उनकी शादी होगी या नहीं, यही चिंता मुझे उस दौरान खाए जाती थी। मैं कैसे किसी आउटडोर शूटिंग को पर्यटन मान लेती? जब मेरी शादी उनसे हुई तो कहीं जाकर मैंने और उन्होंने चैन की सांस ली। शादी के बाद हम पहली बार लंदन और अमेरिका घूमने गए।
मेरे जीवन में लंदन का एक खास महत्व है। लंदन में हमने साथ जीने-मरने की कसमें खाई। आजीवन साथ रहने के वादे किए। लंदन का लुत्फ ही फिर मुझे कुछ और नजर आया..। थेम्स के सुबह के रूप..शाम के रूप..और रात के रूप, जब पूरा लंदन सो जाए-मुझे अलग नजर आते थे। मैंने बरसों बाद मेरे हमसफर के साथ शॉपिंग की। बच्चों की तरह आइसकेंडी खाई। पहले भी कुछ बार देखा हुआ लंदन मुझे बेहद खूबसूरत नजर आया। लंदन की फिजां बदली-बदली नजर आई। वैसे मुझे और उन्हें (धर्मेद्र) को खास पहचानने वाला वहां कोई नहीं था। फिर आगे चलकर हम सभी-मैं, धरमजी, एशा और आहना लंदन जाने लगे..एक दूसरी दुनिया पहुंच जाती हूं मैं वहां.. मुझमें एक अल्हड़ युवती जन्म लेती है।