जॉनी लीवर-लंदन में मुंबई का सा अहसास होता है

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मैं मुंबइया चाल में पला-बढ़ा जीव हूं। कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि  मुंबई के बाहर भी निकल सकूंगा। अब रुमाल और पेन आदि बेचकर पेट पालने वाले इनसान को इससे ज्यादा सोचने का हक भी कहां मिलता है। मगर मेरे हाथ में लिखी रेखा मेरी दिशा और दशा कहीं और बयान कर रही थी। आगे चलकर मेरे साथ जो कुछ भी हुआ वह किसी चमत्कार से कम नहीं कहा जाएगा। मेरी मिमिक्री ने मेरे कैरियर ग्राफ को अचानक  सिफर से शिखर तक पहुंचा दिया।

मिमिक्री ने दिलाया मौका दुनियां घूमने का

मिमिक्री करते हुए मुझे ना केवल देशभर में, बल्कि दुनिया भर में भी घूमने का मौका दिलाया। मगर इस तरह के ट्रिप आपके पर्यटन की भूख नहीं मिटाते। पूरी-पूरी रात शो करने के बाद अगला दिन हम अगले ट्रिप के लिए कूच करने में बिताते थे। इसी दरम्यान हमें कुछ पल झपकी मारने को मिल जाता था। बहुत टाइट शेडयूल होता था हमारा। पर्यटन के लिए मुझे दुनिया का कोई भी कोना पसंद है, जहां सुकून हो, शांति हो, साउथ इंडियन डिश आसानी से मिल रहा हो। आज भी जब काम करके बोर हो जाता हूं तो पत्नी-बच्चों के साथ खंडाला, महाबलेश्वर, माथेरान जैसे किसी हिल स्टेशन की तरफ निकल जाता हूं। वहां घूमने के साथ-साथ शॉपिंग आदि करता हूं क्योंकि शो में व्यस्तता की वजह से परिवार के लिए ज्यादा वक्त नहीं निकल पाता।

1977 में एक शो के सिलसिले में मैंने विदेशी धरती (कुवैत, दुबई) पर पहली बार कदम रखा था। यह शो अनूप जलोटाजी की तरफ से था। मगर बहुत ज्यादा टाइट शेडयूल होने की वजह से हमें शहर देखने या शॉपिंग करने का अवसर नहीं मिला। मगर पहली बार विदेश में घूमने-फिरने का अवसर मुझे अमितजी (अमिताभ बच्चन) और कल्याणजी भाई के सहयोग से मिला था। यह सन् 1978-79 की बात है। हम कई देशों के व‌र्ल्ड ट्रिप पर निकले थे। लगातार दस दिनों तक शो करके जब हम थकान महसूस करने लगे थे तब अमितजी ने दो दिन न्यूयार्क घूमने और शॉपिंग करने की योजना बनाई।

मैं जब न्यूयार्क पहुंचा तो काफी देर तक मैं रोता रहा। मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मैं इस जीवन में न्यूयार्क जैसे सपनों के शहर में पहुंचूंगा। इस समय कल्याणजी भाई और अमितजी ने मेरी काफी देरतक हौसला अफजाई की। इसके बाद पिछले तीस-बत्तीस सालों में मैं दुनिया के तकरीबन हर छोटे-बड़े देश में घूमा हूं। जहां तक पसंदीदा पर्यटन की बात है तो मुझे लंदन सबसे खूबसूरत और अपनापन महसूस कराने वाला महानगर लगा। उसकी वजह बस यही थी कि लंदन और मुंबई में काफी समानता है। आपको एकबारगी लगेगा ही नहीं कि आप अपने शहर से अलग-थलग हैं। वहां भारतीय और पाकिस्तानी बहुतायत में हैं इसलिए भाषा की समस्या भी नहीं रहती। आपको हर तीसरा या चौथा व्यक्ति हिंदी या उर्दू भाषी मिल ही जाता है।

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