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नैसर्गिक रूप से समृद्ध कैमूर तथा विंध्य की पर्वत श्रेणियों की गोर में अठखेलियां करती तमसा के तट पर त्रिकूट पर्वत की पर्वत मालाओं के मध्य 600 फुट की ऊंचाई पर स्थित मां शारदा का ऐतिहासिक मंदिर 108 शक्ति पीठों में से एक है। यह पीठ सतयुग के प्रमुख अवतार नृसिंह भगवान के नाम पर नरसिंह पीठ के नाम से भी विख्यात है। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर आल्हखण्ड के नायक आल्हा व ऊदल दोनों भाई मां शारदा के अनन्य उपासक थे। पर्वत की तलहटी में आल्हा का तालाब व अखाड़ा आज भी विद्यमान है।
पौराणिक मंदिर
मैहर में प्रतिदिन हजारों दर्शनार्थी आते हैं किंतु वर्ष में दोनों नवरात्रों में यहां मेला लगता है जिसमें लाखों यात्री मैहर आते हैं। मां शारदा की बगल में प्रतिष्ठापित नरसिंहदेव जी की पाषाण मूर्ति आज से लगभग 1500 वर्ष पूर्व की है। मैहर के नाम के बारे में मान्यता है कि भगवान शंकर जब सती मां के मृत शरीर को लेकर जा रहे थे तो सती के गले का हार इस त्रिकूट पर्वत पर गिर गया था और उस स्थान को लोग माई हार कहने लगे जो बाद में मैहर हो गया। मां शारदा की मूर्ति की प्रतिष्ठा सन् 502 ई. में री नुपुलदेव द्वारा कराई गई थी। इस मंदिर में 10वीं शताब्दी के दो शिला लेख हैं जो मंदिर निर्माण की गाथा के आधार स्तम्भ माने जाते हैं। प्रवेश द्वार से मंदिर तक लगभग 1200 सीढि़यां हैं। पहाड़ को गोलाई में काट कर सड़क भी बनाई गई है जो मंदिर के ठीक नीचे तक जाती है किंतु उसके बाद भी लगभग 200 सीढि़यां चढ़ कर ही मंदिर में पहुंचा जा सकता है। विकलांग लोगों को मंदिर तक पहुंचाने के लिए डोली की व्यवस्था है।
शारदा देवी मार्ग पर स्थित प्राचीन दर्शनीय भगवान राम जानकी का मंदिर है जो बड़ा अखाड़ा के नाम से जाना जाता है यहां गुरुकुल परम्परा में स्थापित संस्कृति विद्यालय संचालित है। पास ही भगवान शंकर का विशाल ऐतिहासिक मंदिर है जो गोलामठ के नाम से प्रसिद्ध है। वहीं एक औघड़ संत मुडि़या बाबा की समाधि है त्रिकूट पर्वत से लगभग 10 किमी दूर रामपुर घाटी में राधा कृष्ण की भव्य मूर्तियां हैं जिसका निर्माण एक महान तपस्वी श्री श्री 108 स्वामी नीलकंठ महाराज द्वारा कराया गया था। दर्शनीय स्थलों में एक मैहर-धनवाही रोड पर भगवान जगन्नाथ जी का प्राचीन मंदिर भी है। महान संगीतज्ञ एवं कला साधक पद्मविभूषण स्व. अलाउद्दीन खां साहब की मजार खेल मैदान से जुड़े मदीना भवन में स्थित है जहां प्रति वर्ष राष्ट्रीय स्तर का शास्त्रीय संगीत समारोह आयोजित किया जाता है जहां हजारों संगीतकार पहुंचकर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।
मैहर पहुंचने का मार्ग
मैहर का रेलवे स्टेशन हावड़ा मुंबई मुख्य मार्ग पर सतना व कटनी के बीच स्थित है।
अमरकंटक
सतना से 300 किमी दूर स्थित शहडोल जिले में अमरकंटक नर्मदा, सोन तथा जुहिला नदियों का उद्गम स्थल है।
गोविंदगढ़
सतना से 60 किमी दूर स्थित गोविंदगढ़ का विशाल तालाब और किला पर्यटकों का मन मोह लेता है। यहां कभी सफेद शेर पाये जाते थे।
चचाई प्रपात
सतना से 100 किमी दूर स्थित चचाई प्रपात मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा प्रपात है। यह प्रपात 175 मीटर चौड़ा है तथा 115 मीटर की ऊंचाई से पानी गिरता है।
बांधवगढ़
सतना से 120 किमी दूर शहडोल जिले में स्थित बांधवगढ़ देश का दूसरा बड़ा नेशनल पार्क है जहां अनेक वन्य प्राणियों को उन्मुक्त विचरण करते देखा जा सकता है।
समवन
सतना से 16 किमी दूर स्थित समवन में पूरी रामायण मूर्तियों, मंदिरों, कुटियों एवं शिला लेखों के माध्यम से दर्शायी गयी है तथा यहां पर विश्र्व में सबसे ऊंची हनुमान जी की मूर्ति है।
मैहर
सतना से 38 किमी दूर मैहर में शारदा देवी का मंदिर, आल्हा ऊदल का अखाड़ा स्थित है। यहीं पर पद्मविभूषण अलाउद्दीन खां की मजार है। पद्मविभूषण पं. रविशंकर, उस्ताद अली अकबर खां आदि ने यहीं पर संगीत की शिक्षा प्राप्त की।