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हिमालय के बेटे हिमाचल प्रदेश की गोद में बसे मणिकर्ण की सुंदरता देश विदेश के लाखों प्रकृति प्रेमी पर्यटकों को बार-बार बुलाती है। खास तौर पर ऐसे पर्यटक जो चर्म रोग या गठिया जैसे रोगों से परेशान हों यहां आकर स्वास्थ्य सुख पाते हैं। ऐसा माना जाता है कि यहां उपलब्ध गंधकयुक्त गर्म पानी में कुछ दिन स्नान करने से ये बीमारियां ठीक हो जाती हैं। खौलते पानी के चश्मे मणिकर्ण का सबसे अचरज भरा और विशिष्ट आकर्षण हैं। हर बरस अनेक युवा स्कूटरों व मोटरसाइकिलों पर ही मणिकर्ण की यात्रा का रोमांचक अनुभव लेते हैं। मणिकर्ण मंडी-कुल्लू मार्ग पर कुल्लू से 10 किमी. पहले बसे खूबसूरत कस्बे भुंतर से 35 किलोमीटर है। भुंतर में छोटे विमानों के लिए हवाई अड्डा भी है। भुंतर में ही व्यास व पार्वती नदियों का संगम भी है। मनाली व आगे जाने वाले हवाई पर्यटक भुंतर उतरकर सड़क मार्ग से आगे जाते हैं। भुंतर मणिकर्ण सड़क सिंगल रूट है मगर है हरा-भरा व बेहद सुंदर। सर्पीले रास्ते में तिब्बती बस्तियां हैं। इसी राह पर शॉट नाम का गांव भी है, जहां कई बरस पहले बादल फटा था और पानी ने गांव को नाले में बदल दिया था।
मणिकर्ण यानी ‘कान का बाला
समुद्र तल से छह हजार फुट ऊंचाई पर बसे, हिमाचल में मणिकर्ण का शाब्दिक अर्थ ‘कान का बाला’ [रिंग] है। यहां मंदिर व गुरुद्वारे की विशाल इमारत से लगती हुई बहती है पार्वती नदी, जिसका वेग रोमांचित करता है। नदी का पानी बर्फ की तरह ठंडा है। नदी की दाहिनी तरफ गर्म जल के उबलते स्रोत नदी से उलझते दिखते हैं। इस ठंडे-उबलते प्राकृतिक संतुलन ने वैज्ञानिकों को लंबे समय से चकित कर रखा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि पानी में रेडियम है।
मणिकर्ण में बर्फ खूब पड़ती है, मगर ठंड के मौसम में भी गुरुद्वारा परिसर के अंदर बनाए विशाल स्नानास्थल में गर्म पानी में आराम से नहा सकते हैं, जितनी देर चाहें, मगर ध्यान रहे, ज्यादा देर नहाने से चक्कर भी आ सकते हैं। पुरुषों व महिलाओं के लिए अलग-अलग प्रबंध है। दिलचस्प है कि मणिकर्ण के तंग बाजार में भी गर्म पानी की सप्लाई की जाती है, जिसके लिए बाकायदा पाइप बिछाए गए हैं। अनेक रेस्तराओं और होटलों में यही गर्म पानी उपलब्ध है। बाजार में तिब्बती व्यवसायी छाए हुए हैं, जो तिब्बती कला व संस्कृति से जुड़ा सामान और विदेशी वस्तुएं खूब उपलब्ध कराते हैं। साथ-साथ विदेशी स्नैक्स व भोजन भी।
गर्म चश्मों से भोजन
इन्हीं गर्म चश्मों में गुरुद्वारे के लंगर के लिए बड़े-बडे़ गोल बर्तनों में चाय बनती है, दाल व चावल पकते हैं। पर्यटकों के लिए सफेद कपड़े की पोटलियों में चावल डालकर धागे से बांधकर बेचे जाते हैं। विशेष कर नवदंपती इकट्ठे धागा पकड़कर चावल उबालते देखे जा सकते हैं, उन्हें लगता हैं कि यह उनकी जिंदगी की पहली ओपन किचन है और सचमुच रोमांचक भी यहां पानी इतना खौलता है कि जमीन पर पांव नहीं टिकते। यहां के गर्म गंधक जल का तापमान हर मौसम में एक सामान 94 डिग्री रहता है। कहते हैं कि इस पानी की चाय बनाई जाए तो आम पानी की चाय से आधी चीनी डालकर भी दो गुना मीठी हो जाती है। गुरुद्वारे की विशाल किलेनुमा इमारत में ठहरने के लिए खासी जगह है। छोटे-बड़े होटल व कई निजी गेस्ट हाउस भी हैं। ठहरने के लिए तीन किलोमीटर पहले कसोल भी एक शानदार विकल्प है।
धार्मिक महत्व
मणिकर्ण सिखों के धार्मिक स्थलों में खास अहमियत रखता है। गुरुद्वारा मणिकर्ण साहिब गुरु नानकदेव की यहां की यात्रा की स्मृति में बना था। जनम सखी और ज्ञानी ज्ञान सिंह द्वारा लिखी तवारीख गुरु खालसा में इस बात का उल्लेख है कि गुरु नानक ने भाई मरदाना और पंज प्यारों के साथ यहां की यात्रा की थी। इसीलिए पंजाब से बड़ी संख्या में लोग यहां आते हैं। पूरे साल यहां दोनों वक्त लंगर चलता रहता है। लेकिन हिंदू मान्यताओं में यहां का नाम इस घाटी में शिव के साथ विहार के दौरान पार्वती के कान [कर्ण] की बाली [मणि] खो जाने के कारण पड़ा। एक मान्यता यह भी है कि मनु ने यहीं बाढ़ से हुए विनाश के बाद मानव की रचना की। यहां रघुनाथ मंदिर है। कहा जाता है कि कुल्लू के राजा ने अयोध्या से राम की मू्र्ति लाकर यहां स्थापित की थी। यहां शिव का भी एक पराना मंदिर है। इस जगह की अहमियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कुल्लू घाटी के ज्यादातर देवता समय-समय पर अपनी सवारी के साथ यहां आते रहते हैं।
ट्रैकर्स का स्वर्ग
मणिकर्ण अन्य कई दिलकश पर्यटक स्थलों का आधार स्थल भी है। यहां से आधा किमी दूर ब्रह्म गंगा है जहां पार्वती नदी व ब्रह्म गंगा मिलती हैं यहां थोड़ी देर रुकना कुदरत से जी भर मिलना है। डेढ़ किमी. दूर नारायणपुरी है, 5 किमी. दूर राकसट है जहां रूप गंगा बहती हैं। यहां रूप का आशय चांदी से है। पार्वती पदी के बांई तरफ 16 किलोमीटर दूर और 1600 मीटर की कठिन चढ़ाई के बाद आने वाला खूबसूरत स्थल पुलगा जीवन अनुभवों में शानदार बढ़ोतरी करता है। इसी तरह 22 किमी. दूर रुद्रनाथ लगभग 8000 फुट की ऊंचाई पर बसा है और पवित्र स्थल माना जाता रहा है। यहां खुल कर बहता पानी हर पर्यटक को नया अनुभव देता है।
खीरगंगा
मणिकर्ण से लगभग 25 किमी दूर, दस हजार फुट से ज्यादा की ऊंचाई पर स्थित खीरगंगा भी गर्म जल सोतों के लिए जानी जाती हैं। यहां के पानी में भी औषधीय तत्व हैं। एक स्थल पांडव पुल 45 किमी. दूर है। गर्मी में मणिकर्ण आने वाले रोमांचप्रेमी लगभग 115 किमी. दूर मानतलाई तक जा पहुंचते हैं। मानतलाई के लिए मणिकर्ण से तीन-चार दिन लग जाते हैं। सुनसान रास्ते के कारण खाने-पीने का सामान, दवाएं वगैरह साथ ले जाना बेहद जरूरी है। इस दुर्गम रास्ते पर मार्ग की पूरी जानकारी रखने वाले एक सही व्यक्ति को साथ होना बेहद जरूरी है। संसार की विरली, अपने किस्म की अनूठी संस्कृति व लोक तांत्रिक शासन व्यवस्था रखने वाले अद्भुत गांव मलाणा का मार्ग भी मणिकर्ण से लगभग 15 किमी. पीछे जरी नामक स्थल से होकर जाता है मलाणा के लिए नग्गर से होकर भी लगभग 15 किमी. पैदल रास्ता है। इस तरह यह समूची पार्वती घाटी ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए स्वर्ग के समान है।
कसोल
कितने ही पर्यटकों से छूट जाता है कसोल जो कि मणिकर्ण से तीन किमी. पहले आता है। यहां पार्वती नदी के किनारे, दरख्तों के बीच बसे खुलेपन में पसरी सफेद रेत, जो कि पानी को हरी घास से जुदा करती है,यहां के नजारों को खास अलग बना देती है। यहां ठहरने के लिए हिमाचल टूरिज्म की हट्स भी हैं।
मणिकर्ण की घुम्मकड़ी के दौरान आकर्षक पेड़ पौधों के साथ-साथ अनेक रंगों की मिट्टी के मेल से रची लुभावनी पर्वत श्रृंखलाओं के दृश्य मन में बस जाते हैं। प्रकृति के यहां और भी कई अनूठे रंग हैं। कहीं खूबसूरत पत्थर, पारदर्शी क्रिस्टल जिनका लुक टोपाज जैसा होता है, मिल जाते हैं तो कहीं चट्टानें अपना अलग ही आकार ले लेती हैं जैसे कि बीच सड़क पर टंकी ईगल्स नोज जो दूर से हू-ब-हू किसी बाज के सिर जैसी लगती है। प्रकृति पे्रमी पर्यटकों को सुंदर ड्रिफ्टवुडस या फिर जंगली फूल-पत्ते मिल जाते हैं, जो उनके अतिथि कक्ष का यादगार हिस्सा बन जाते हैं और मणिकर्ण की रोमांचक यादों के स्थायी गवाह बने रहते हैं।
हमारी जिंदगी में ऐसी आवारगियों के कारण रोमांच व रोमांस हमेशा जीवंत रहता है क्योंकि पहाड़ हमेशा बुलाते हैं और हम जाते रहते हैं।
कैसे जाएं
समुद्र तल से 1760 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मणिकर्ण कुल्लू से 45 किलोमीटर दूर है। भुंतर तक राष्ट्रीय राजमार्ग है जो आगे संकरे पहाड़ी रास्ते में तब्दील हो जाता है। 1905 में आए विनाशकारी भूकंप के बाद इस इलाके का भूगोल काफी-कुछ बदल गया था। पठानकोट [285 किमी] और चंडीगढ़ [258 किमी] सबसे निकट के रेल स्टेशन हैं। दिल्ली से भुंतर के लिए रोजाना उड़ान भी है।
कब जाएं
मणिकर्ण आप किसी भी मौसम में जा सकते हैं। लेकिन जनवरी में यहां बर्फ गिर सकती है। तब ठंड कड़ाके की रहती है। मार्च के बाद से मौसम थोड़ा अनुकूल होने लगता है। बारिश में इस इलाके का सफर जोखिमभरा हो सकता है। जाने से पहले मौसम की जानकारी जरूर कर लें।
पार्वती नदी में नहाने का जोखिम न उठाएं। न केवल इस नदी का पानी बेतरह ठंडा है, बल्कि वेग इतना तेज है कि माहिर से माहिर तैराक भी अपना संतुलन नहीं बना पाते। बहुत लोग हादसे का शिकार हो चुके हैं क्योंकि एक पल की भी असावधानी और बचा पाने की कोई गुंजाइश नहीं।