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राजश्री टंडन जैसे लोगों ने खजुराहो, उसके वास्तु, उसके दर्शन का जमकर विरोध किया किन्तु खजुराहो का दर्शन और उसका शिल्प भारतीय कला पर अपनी छाप छोड़ता गया। बुंदेलखंड और उसके बाहर अनेक ऐसे मंदिर मिल जाएंगे जिन पर खजुराहो के दर्शन और वास्तु का स्पष्ट प्रभाव है। मराठे भी इस प्रभाव से अछूते न रहे। राजा छत्रपाल से पेशवा बाजीराव प्रथम को बुंदेलखंड का तिहाई भाग उपहार में मिला तो मराठों ने यहां अपनी जड़े जमानी शुरू कीं। मराठों ने बुंदेलखंड में अनेक किलों, बावडि़यों और मंदिरों का निर्माण कराया किंतु बुंदेलखंड में जिस निर्माण के लिए मराठों को सबसे ज्यादा याद किया जाता है- वह है कर्वी मुख्यालय से पांच किमी दूर बना गणेश बाग का मंदिर। इस मंदिर को खजुराहो की शैली में बनाने की कोशिश की गई है इसीलिए गणेश बाग को मिनी खजुराहो कहा जाता है।
मिनी खजुराहो की विशेषता
एक खूबसूरत बावड़ी के किनारे बनाए गए इस दो मंजिला मंदिर की विशेषता इसकी बाहरी दीवारों पर की गई पच्चीकारी है। इस पच्चीकारी में कहीं अपने सात अश्वों के रथ पर सवार सूर्य, कहीं विष्णु हैं तो कहीं अन्य देवसमूह। अगर कुछ नहीं तो मैथुन प्रतिमाएं। संभवत: वास्तुकार खजुराहो की मैथुन प्रतिमाओं के दर्शन से अज्ञात रहा है, अन्यथा उसकी भी नकल करता।
अपनी भव्यता और आकर्षण के बावजूद यह मंदिर पर्यटकों से अछूता है। केवल कुछ धार्मिक अवसरों पर भक्तगण इसकी उपासना करते हैं। खेत-खलिहानों के बीच खड़े इस मंदिर से संपूर्ण परिवेश जीवंत हो जाता है। आसपास की हरियाली इसके सौंदर्य में चार चांद लगाती है। यहां का निर्जन वातावरण पंडों-पुरोहितों के खौफ से भी दूर है। आश्चर्य है कि कर्वी का जिला प्रशासन अभी तक इस अमूल्य धरोहर से अनजान क्यों हैं?
कर्वी जिला मुख्यालय से इसकी दूरी महज 4 किलोमीटर है। गणेश बाग से धार्मिक नगरी चित्रकूट दस किलोमीटर है। पर्यटक चित्रकूट के साथ कालिंजर किले का भी आनंद ले सकते हैं जो यहां से 50 किलोमीटर है।
कैसे पहुंचे
कर्वी दिल्ली, झांसी और वाराणसी रेलमार्ग पर स्थित है। गणेश बाग के लिए कर्वी या चित्रकूट रेलवे स्टेशन पर उतरा जा सकता है। चित्रकूट अब हवाई मार्ग से भी जुड़ गया है। कर्वी इलाहाबाद, वाराणसी और दिल्ली से बस सेवा भी जुड़ा है। गणेश बाग आने वाले पर्यटक रात्रि विश्राम धार्मिक नगरी चित्रकूट में करना अधिक पसंद करते हैं। वैसे अब कर्वी में भी स्तरीय होटल बन गए हैं।